गुजरात (Gujarat) के तापी जिले के रहने वाले गणेश और रंजना एक-दूसरे से बहुत प्यार करते थे. वे एक-दूसरे के साथ जिंदगी बिताना चाहते थे. इसलिए वे शादी करना चाहते थे. मगर उनके परिवार वालों को यह रिश्ता मंजूर नहीं था. उन्होंने घरवालों को मनाने की बहुत कोशिश की मगर वे नहीं माने. इसके बाद गणेश और रंजना ने अगस्त 2022 में एक ही फंदे से फांसी लगाकर अपनी जान दे दी. रंजना के दादा भीम सिंह पड़वी का कहना है कि लड़का हमारे दूर के परिवार से था इसलिए हम इस शादी के लिए तैयार नहीं थे.
दोनों के गुजर जाने के बाद परिवार के लोगों को पछतावा होने लगा. वे लोग खुद को दोनों की मौत का दोषी मानने लगे. उन्हें लगा कि अगर वे मान गए होते तो आज दोनों जिंदा होते और साथ होते. मगर सच तो यही है कि जो समय बीत जाता है हम उसे बदल नहीं सकते हैं. सिर्फ मन ही मन अफसोस करते रहते हैं कि काश ऐसा कर लिया होता काश वैसा कर लिया होता.
गणेश और रंजना के घरवालों को भी पाश्चाताप होने लगा. उन्होंने जमाने के सामने अपनी गलती स्वीकार करने की हिम्मत दिखाई. इतना ही नहीं घटना के 6 महीने बाद उन्होंने प्रेमी जोड़े की एक जगह मूर्तियां बनवाई और पूरे रीति-रिवाज से उनकी शादी करा दी. इस तरह जो जीते-जी नहीं मिल पाए वे मरकर हमेशा के लिए अमर हो गए. मगर बात को यही है कि दोनों के मर जाने के बाद परिवार वालों को उनका प्यार समझ आया.
बड़ी बात यह है कि कितने लोग अपनी गलती स्वीकार करते हैं. प्रेमी जोड़े का इस तरह मर जाना कोई नई बात नहीं है, लेकिन कितने लोग हैं तो पाश्चाताप में ऐसा करते हैं. कितने लोगों को अपनी गलती का एहसास होता है? जवाब आपको भी पता है. हालांकि यह बहुत भावुक है कि इस प्रेमी जोड़े के निधन के बाद उनकी शादी कराई गई मगर...
गुजरात (Gujarat) के तापी जिले के रहने वाले गणेश और रंजना एक-दूसरे से बहुत प्यार करते थे. वे एक-दूसरे के साथ जिंदगी बिताना चाहते थे. इसलिए वे शादी करना चाहते थे. मगर उनके परिवार वालों को यह रिश्ता मंजूर नहीं था. उन्होंने घरवालों को मनाने की बहुत कोशिश की मगर वे नहीं माने. इसके बाद गणेश और रंजना ने अगस्त 2022 में एक ही फंदे से फांसी लगाकर अपनी जान दे दी. रंजना के दादा भीम सिंह पड़वी का कहना है कि लड़का हमारे दूर के परिवार से था इसलिए हम इस शादी के लिए तैयार नहीं थे.
दोनों के गुजर जाने के बाद परिवार के लोगों को पछतावा होने लगा. वे लोग खुद को दोनों की मौत का दोषी मानने लगे. उन्हें लगा कि अगर वे मान गए होते तो आज दोनों जिंदा होते और साथ होते. मगर सच तो यही है कि जो समय बीत जाता है हम उसे बदल नहीं सकते हैं. सिर्फ मन ही मन अफसोस करते रहते हैं कि काश ऐसा कर लिया होता काश वैसा कर लिया होता.
गणेश और रंजना के घरवालों को भी पाश्चाताप होने लगा. उन्होंने जमाने के सामने अपनी गलती स्वीकार करने की हिम्मत दिखाई. इतना ही नहीं घटना के 6 महीने बाद उन्होंने प्रेमी जोड़े की एक जगह मूर्तियां बनवाई और पूरे रीति-रिवाज से उनकी शादी करा दी. इस तरह जो जीते-जी नहीं मिल पाए वे मरकर हमेशा के लिए अमर हो गए. मगर बात को यही है कि दोनों के मर जाने के बाद परिवार वालों को उनका प्यार समझ आया.
बड़ी बात यह है कि कितने लोग अपनी गलती स्वीकार करते हैं. प्रेमी जोड़े का इस तरह मर जाना कोई नई बात नहीं है, लेकिन कितने लोग हैं तो पाश्चाताप में ऐसा करते हैं. कितने लोगों को अपनी गलती का एहसास होता है? जवाब आपको भी पता है. हालांकि यह बहुत भावुक है कि इस प्रेमी जोड़े के निधन के बाद उनकी शादी कराई गई मगर ईश्वर न करे कि फिर कभी किसी की ऐसी शादी करानी पड़े. इस तरह का मिलना भी भला क्या मिलना है? जहां शादी तो हुई मगर वही नहीं रहे जिन्हें साथ में जीना था.
इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.