1995-2014 के बीच 2,96,438 किसान आत्महत्या कर चुके थे. NCRB डेटा का डेटा बताता है कि वर्ष 2016 में 6270 किसानों ने, जबकि वर्ष 2015 में लगभग 8,007 किसानों ने आत्महत्या की एवं वर्ष 2016 में 5,109 कृषि मज़दूरों ने तथा वर्ष 2015 में 4,595 कृषि मज़दूरों ने आत्महत्या की. 2018 में खेती किसानी करने वाले कुल 10,349 लोगों ने आत्महत्या की थी. 2019 में करीब 43,000 किसानों और दिहाड़ी मजदूरों ने आत्महत्या की. सबसे ज़्यादा आत्महत्या के मामले महाराष्ट्र, कर्नाटक, मध्यप्रदेश, तेलंगाना, केरल, छत्तीसगढ़ एवं आंध्रप्रदेश में दर्ज होते हैं. इसके अलावा लाखों किसान पिछले 35 सालों में खेती छोड़ चुके हैं.
आज किसान आंदोलन हो रहा है आप बढ़-चढ़कर हिस्सा ले रहे हैं. संभावना है कि बिल वापस भी ले लिया जाएगा और उसके बाद? उसके बाद आपको फ़र्क नहीं पड़ेगा कि बैंक अधिकारी मशीनरी देने पर कितनी रिश्वत ले रहा है. आपको फ़र्क नहीं पड़ेगा कि जल विभाग, सिंचाई विभाग, कृषि विभाग के अधिकारी, खाद बीज बांटने वाले, किसानों को जानकरियां देने वालों का जो ढर्रा दशकों से चला आ रहा है वैसे ही चलता रहेगा.
किसानों तक उनके लिए आवंटित ना पैसा पहुंचेगा, ना सुविधाएं और ना जानकारी. किसान अंधवारी रसायन खेतों में डालता रहेगा सोचकर कि इससे फसल बेहतर हो जाए. जब किसान मर रहा होगा तब आप शहरों में बैठकर किसी बड़े फूड मार्ट से 20 रुपए का अमरूद 100 रुपए में ख़रीद रहे होंगे. जब किसान खेती छोड़ रहा होगा तब आप किसी बड़ी कंपनी के शेयर ख़रीद रहे होंगे जो उन किसानों की ज़मीन पर फेक्ट्री डालने वाली है.
जब आप किसी महंगी ब्रांड का महंगा चावल ख़रीद रहे होंगे तब वही किसान उस चावल...
1995-2014 के बीच 2,96,438 किसान आत्महत्या कर चुके थे. NCRB डेटा का डेटा बताता है कि वर्ष 2016 में 6270 किसानों ने, जबकि वर्ष 2015 में लगभग 8,007 किसानों ने आत्महत्या की एवं वर्ष 2016 में 5,109 कृषि मज़दूरों ने तथा वर्ष 2015 में 4,595 कृषि मज़दूरों ने आत्महत्या की. 2018 में खेती किसानी करने वाले कुल 10,349 लोगों ने आत्महत्या की थी. 2019 में करीब 43,000 किसानों और दिहाड़ी मजदूरों ने आत्महत्या की. सबसे ज़्यादा आत्महत्या के मामले महाराष्ट्र, कर्नाटक, मध्यप्रदेश, तेलंगाना, केरल, छत्तीसगढ़ एवं आंध्रप्रदेश में दर्ज होते हैं. इसके अलावा लाखों किसान पिछले 35 सालों में खेती छोड़ चुके हैं.
आज किसान आंदोलन हो रहा है आप बढ़-चढ़कर हिस्सा ले रहे हैं. संभावना है कि बिल वापस भी ले लिया जाएगा और उसके बाद? उसके बाद आपको फ़र्क नहीं पड़ेगा कि बैंक अधिकारी मशीनरी देने पर कितनी रिश्वत ले रहा है. आपको फ़र्क नहीं पड़ेगा कि जल विभाग, सिंचाई विभाग, कृषि विभाग के अधिकारी, खाद बीज बांटने वाले, किसानों को जानकरियां देने वालों का जो ढर्रा दशकों से चला आ रहा है वैसे ही चलता रहेगा.
किसानों तक उनके लिए आवंटित ना पैसा पहुंचेगा, ना सुविधाएं और ना जानकारी. किसान अंधवारी रसायन खेतों में डालता रहेगा सोचकर कि इससे फसल बेहतर हो जाए. जब किसान मर रहा होगा तब आप शहरों में बैठकर किसी बड़े फूड मार्ट से 20 रुपए का अमरूद 100 रुपए में ख़रीद रहे होंगे. जब किसान खेती छोड़ रहा होगा तब आप किसी बड़ी कंपनी के शेयर ख़रीद रहे होंगे जो उन किसानों की ज़मीन पर फेक्ट्री डालने वाली है.
जब आप किसी महंगी ब्रांड का महंगा चावल ख़रीद रहे होंगे तब वही किसान उस चावल को 20 रुपए किलो में किसी बिचौलिए को बेच रहा होगा. जब आप आंदोलन के नाम पर कीबोर्ड पर अपनी उंगलियां पीट रहे होंगे तब वह किसान किसी धूर्त खाद-बीज भंडार वाले से घटिया केमिकल ख़रीदकर जिसका उसके ना नाम पता है ना स्वभाव, अपने खेत में छिड़क रहा होगा, औने-पौने दाम पर मंडी में फसल बेच रहा होगा जिसे बिचौलिए बड़े खरीददारों और बड़ी कंपनी वालों को महंगे दामों पर बेचकर मालामाल हो रहे होंगे. और यह सब इसी ढर्रे पर चलता रहेगा...
ऐसे ही तो चलते आया है ना? आपको लगता है कि ये आंदोलन उन छोटे किसानों को बचा लेगा? तरस आता है आपकी प्रबुद्धता पर. किसानों को बचाने के लिए जन आंदोलन करिए कि बिचौलियों की धांधली बंद हो. आंदोलन करिए कि सरकारी अधिकारियों की धांधली बंद हो. आंदोलन करिए कि देशभर में किसानों को जो कागज़ों में सुविधाएं और जानकरियां बांटी जा रही हैं उनकी धांधली बंद हो.
आंदोलन कीजिए कि देशभर में रसायन मुक्त खेती एवं मल्टीक्रॉपिंग का कैम्पेन चलाया जाए सरकार के द्वारा और किसानों को समर्थन दिया जाए. उन्हें सही जानकारी दी जाए. आंदोलन चलाइए कि किसानों को अपने ही खेतों में खाद-दवाइयां बनाने की जानकरियां दी जाएं ताकि वे धूर्त विक्रेताओं के झांसे में ना आएं. आंदोलन कीजिए कि किसानों की उनकी संस्थाएं बनाई जाएं जिसमें वे सीधे कंपनी और विक्रेताओं से संपर्क में रहें ताकि उन्हें उनकी फसल की सही क़ीमत मिले.
आंदोलन कीजिए कि प्राकृतिक आपदाएं जो खेती के लिए हानिकारक हैं उनसे निपटने की पूरी-पूर्ववत तैयारी सरकार करे और किसानों को भी इनसे निपटने के लिए सही जानकारी दे. अगर ये सब आपके विचारों में दूर-दूर तक नहीं तो तैयार रहिए फिर से किसान आत्महत्या के नए आंकड़ों के लिए, खेती छोड़ने के नए आंकड़ों के लिए.
ये भी पढ़ें -
'किसान कांड' के बाद ट्रैक्टर भले ही दबंग बन गया हो, मगर बेइज्जती भी तबीयत से हुई
व्यंग्य: नरेंद्र मोदी PM और अमित शाह गृहमंत्री होते, तो लाल किले पर उपद्रव न होने देते!
कृषि कानूनों को CAA की तरह लागू करने के पीछे मोदी सरकार का इरादा क्या है
इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.