अब तक आपने दुनिया की अलग-अलग सरकारों द्वारा लिए गए कई बेतुके फैसले देखे होंगे. हो सकता है इन हैरान कर देने वाले फैसलों को देखकर आप अचरज में पड़े हों और आपने दांतों तले उंगलियां दबाई हों. मगर जो अब ऑस्ट्रेलिया में हो रहा है वो उन सभी बेवकूफियों की पराकाष्ठा है जो अब तक आपने देखी या फिर सुनी होगी. ऑस्ट्रेलिया के मेलबर्न में एक अजीब ओ गरीब मामला सामने आया है. यहां की स्थानीय परिषद सरकार पर दबाव बना रही है कि वो चौराहों पर ऐसी लाइटें लगाए जिनमें कपड़े पहने 'फीमेल सिम्बल' का इस्तेमाल किया गया हो.
बताया जा रहा है कि इस पहल के लिए ब्रिमबैंक की काउंसलर विक्टोरिया बोर्ग ने बीती 15 मई को अपनी आखिरी बैठक में प्रतीकों को बदलने के लिए एक प्रस्ताव पेश किया है. स्ट्रीट लाइटों पर ऐसे सिम्बल क्यों लगने चाहिए इसके पीछे की वजह अपने आप में काफी दिलचस्प है. मेलबर्न की स्थानीय परिषद् का मानना है कि यदि चौराहों पर इस तरह के सिम्बल लगाए जाएं तो इससे उन महिलाओं को राहत मिलेगी जो लगातार अनकॉन्शियस बायस सहती हैं और जिन्हें इसके कारण लगातार हीन भावना का शिकार होना पड़ रहा है.
मेलबर्न में महिला सशक्तिकरण की दृष्टि से ये मामला गत वर्ष मार्च में उठाया गया था. उस समय मांग की गई थी कि कुछ विशेष स्थानों को चिन्हित किया जाए और वहां ऐसी 10 स्पेशल लाइटें लगाई जाएं. इन चिन्हित स्थानों की सबसे बड़ी खासियत ये भी थी कि, जब इनका चुनाव किया जा रहा था तो इस बात का पूरा ख्याल रखा गया था कि राज्य के उन्हीं स्थानों को चुना जाए जहां पुरुषों के मुकाबले स्त्रियों की आवाजाही ज्यादा हो.
ज्ञात हो कि, वर्तमान स्ट्रीट लाइटों को बदलने की एक बड़ी वजह ट्रैफिक सिग्नल्स पर स्त्री और पुरुषों को समान अधिकार मिलना भी बताया...
अब तक आपने दुनिया की अलग-अलग सरकारों द्वारा लिए गए कई बेतुके फैसले देखे होंगे. हो सकता है इन हैरान कर देने वाले फैसलों को देखकर आप अचरज में पड़े हों और आपने दांतों तले उंगलियां दबाई हों. मगर जो अब ऑस्ट्रेलिया में हो रहा है वो उन सभी बेवकूफियों की पराकाष्ठा है जो अब तक आपने देखी या फिर सुनी होगी. ऑस्ट्रेलिया के मेलबर्न में एक अजीब ओ गरीब मामला सामने आया है. यहां की स्थानीय परिषद सरकार पर दबाव बना रही है कि वो चौराहों पर ऐसी लाइटें लगाए जिनमें कपड़े पहने 'फीमेल सिम्बल' का इस्तेमाल किया गया हो.
बताया जा रहा है कि इस पहल के लिए ब्रिमबैंक की काउंसलर विक्टोरिया बोर्ग ने बीती 15 मई को अपनी आखिरी बैठक में प्रतीकों को बदलने के लिए एक प्रस्ताव पेश किया है. स्ट्रीट लाइटों पर ऐसे सिम्बल क्यों लगने चाहिए इसके पीछे की वजह अपने आप में काफी दिलचस्प है. मेलबर्न की स्थानीय परिषद् का मानना है कि यदि चौराहों पर इस तरह के सिम्बल लगाए जाएं तो इससे उन महिलाओं को राहत मिलेगी जो लगातार अनकॉन्शियस बायस सहती हैं और जिन्हें इसके कारण लगातार हीन भावना का शिकार होना पड़ रहा है.
मेलबर्न में महिला सशक्तिकरण की दृष्टि से ये मामला गत वर्ष मार्च में उठाया गया था. उस समय मांग की गई थी कि कुछ विशेष स्थानों को चिन्हित किया जाए और वहां ऐसी 10 स्पेशल लाइटें लगाई जाएं. इन चिन्हित स्थानों की सबसे बड़ी खासियत ये भी थी कि, जब इनका चुनाव किया जा रहा था तो इस बात का पूरा ख्याल रखा गया था कि राज्य के उन्हीं स्थानों को चुना जाए जहां पुरुषों के मुकाबले स्त्रियों की आवाजाही ज्यादा हो.
ज्ञात हो कि, वर्तमान स्ट्रीट लाइटों को बदलने की एक बड़ी वजह ट्रैफिक सिग्नल्स पर स्त्री और पुरुषों को समान अधिकार मिलना भी बताया गया था. ब्रिमबैंक की मेयर मार्गरेट ग्यूडाइस ने इस पूरे मामले पर अपना तर्क रखते हुए कहा है कि इन स्ट्रीट लाइटों की सबसे खास बात ये है कि जब राज्य की लड़कियां और महिलाएं सड़क पर ऐसी लाइटों को देखेंगी तो उन्हें अपनी शक्ति का एहसास होगा और उनमें नई उर्जा का संचार होगा.
मेयर का इस मुद्दे पर ये भी मानना है कि इससे लड़कियों और महिलाओं को उनकी वैल्यू और महत्त्व का अंदाजा लगेगा. साथ ही मेयर ने ये भी कहा है कि यदि हम जेंडर इक्विटी में सुधार करते हैं तो इससे हमारे समुदाय को सकारात्मक परिणाम देखने को मिलेंगे जिससे उनका भविष्य सुखद होगा.
इस पूरे मुद्दे पर राज्य की महिला मंत्री फिओना रिचार्डसन काफी उत्साहित दिखीं. फिओना का मानना है कि जब हमनें इस अभियान की शुरुआत की तो हमें महिलाएं में खासा उत्साह देखने को मिला. महिलाएं खुश थीं की अब ट्रैफिक सिग्नल्स को भी उनके एक्सक्लूसिव कर दिया गया है.
बहरहाल, सरकार इस मुद्दे पर जो भी तर्क दे मगर आम नागरिक अपनी सरकार की इस पहल की जमकर आलोचना कर रहे हैं. लोगों का तर्क है कि किसी भी ट्रैफिक सिग्नल का उद्देश्य सड़क पार करना होता है अब इसमें महिला सशक्तिकरण कहां से आ गया ये बात अपने आप में समझ के परे है. स्ट्रीट लाइट पर "फीमेल सिम्बल" लगाने से महिलाओं पर होने वाले अपराध थम जाएं ऐसा संभव नहीं है. ये आज भी हो रहे हैं और इसके बाद भी होंगे.
कहा जा सकता है कि सरकार के मुकाबले आम लोगों की बात में वजन ज्यादा है. इस फैसले को मेलबर्न की सरकार का एक बड़ा ही बेवकूफी भरा फैसला कहा जाएगा जिसकी जितनी निंदा हो उतनी कम है.
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