रसगुल्ले को देखते ही मुंह में मिठास घुलने लगती है और तुरंत ही जुबान में बंगाल का नाम आ जाता है. पिछले कुछ सालों से रसगुल्ले को लेकर पश्चिम बंगाल और ओडिशा में विवाद भी चल रहा था कि सबसे पहले किस राज्य में इसकी इजाद हुई. इस विवाद पर अब विराम लगना लाजिमी है जब रसगुल्ले की ज्योग्राफिकल इंडिकेशन यानी भौगोलिक पहचान पश्चिम बंगाल के पक्ष में गयी. पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने इसकी जानकारी ट्वीट करके दी. उन्होंने लिखा, ये हम सब के लिए मिठास से भरी खबर है. हम लोग बहुत खुश हैं और गर्व है कि बंगाल को ज्योग्राफिकल इंडिकेशन (जीआई) स्टेटस रसगुल्ले के लिए प्रदान किया गया.
पश्चिम बंगाल और ओडिशा के बीच रसगुल्ले को लेकर विवाद काफी लम्बे समय से छिड़ा हुआ था. ओडिशा सरकार भी रसगुल्ले के लिए ज्योग्राफिकल इंडिकेशन टैग लेने की फ़िराक़ में थी. पश्चिम बंगाल की सरकार और उस राज्य के वर्षो पुराने मिठाई विक्रेताओं द्वारा पेश किये गए दावों के कारण फैसला उनके पक्ष में गया.
रसगुल्ले के मालिकाना हक को लेकर उभरे विवाद ने दो पड़ोसी राज्यों को आमने-सामने खड़ा कर दिया था. 2015 में ओडीशा सरकार ने कटक और भुवनेश्वर के बीच स्थित पाहाल में मिलने वाले मशहूर रसगुल्ले को जियोग्राफिकल इंडिकेशन यानी जीआई मान्यता दिलाने के लिए कोशिशें शुरू की थी. जियोग्राफिकल इंडिकेशन टैग किसी उत्पाद पर उस स्थान विशेष की पहचान बताने के लिए लगाया जाता है.
ऐतिहासिक शोध को आधार बनाते हुए ओडिशा सरकार ने दावा किया था की रसगुल्ले का पहला अवतार खीर मोहन है जिसका प्रसाद पुरी में भगवान जगन्नाथ को लगाया जाता था. बाद में इसकी जगह रसगुल्ले ने ले ली. 2015 में ओडिशा सरकार ने एक प्रदर्शनी का आयोजन करके...
रसगुल्ले को देखते ही मुंह में मिठास घुलने लगती है और तुरंत ही जुबान में बंगाल का नाम आ जाता है. पिछले कुछ सालों से रसगुल्ले को लेकर पश्चिम बंगाल और ओडिशा में विवाद भी चल रहा था कि सबसे पहले किस राज्य में इसकी इजाद हुई. इस विवाद पर अब विराम लगना लाजिमी है जब रसगुल्ले की ज्योग्राफिकल इंडिकेशन यानी भौगोलिक पहचान पश्चिम बंगाल के पक्ष में गयी. पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने इसकी जानकारी ट्वीट करके दी. उन्होंने लिखा, ये हम सब के लिए मिठास से भरी खबर है. हम लोग बहुत खुश हैं और गर्व है कि बंगाल को ज्योग्राफिकल इंडिकेशन (जीआई) स्टेटस रसगुल्ले के लिए प्रदान किया गया.
पश्चिम बंगाल और ओडिशा के बीच रसगुल्ले को लेकर विवाद काफी लम्बे समय से छिड़ा हुआ था. ओडिशा सरकार भी रसगुल्ले के लिए ज्योग्राफिकल इंडिकेशन टैग लेने की फ़िराक़ में थी. पश्चिम बंगाल की सरकार और उस राज्य के वर्षो पुराने मिठाई विक्रेताओं द्वारा पेश किये गए दावों के कारण फैसला उनके पक्ष में गया.
रसगुल्ले के मालिकाना हक को लेकर उभरे विवाद ने दो पड़ोसी राज्यों को आमने-सामने खड़ा कर दिया था. 2015 में ओडीशा सरकार ने कटक और भुवनेश्वर के बीच स्थित पाहाल में मिलने वाले मशहूर रसगुल्ले को जियोग्राफिकल इंडिकेशन यानी जीआई मान्यता दिलाने के लिए कोशिशें शुरू की थी. जियोग्राफिकल इंडिकेशन टैग किसी उत्पाद पर उस स्थान विशेष की पहचान बताने के लिए लगाया जाता है.
ऐतिहासिक शोध को आधार बनाते हुए ओडिशा सरकार ने दावा किया था की रसगुल्ले का पहला अवतार खीर मोहन है जिसका प्रसाद पुरी में भगवान जगन्नाथ को लगाया जाता था. बाद में इसकी जगह रसगुल्ले ने ले ली. 2015 में ओडिशा सरकार ने एक प्रदर्शनी का आयोजन करके इसकी जानकारी भी लोगों को दी थी. ओडिशा सरकार ने रसगुल्ले को जीआई टैग दिलाने के लिए सोशल मीडिया पर भी अभियान छेड़ रखा था. वहीं पश्चिम बंगाल सरकार ने भी ऐतिहासिक तथ्यों का ही आधार लेकर दावा किया था कि प्रख्यात मिठाई निर्माता नबीन चंद्र दास ने 1868 में पहले-पहल रसगुल्ला बनाया था.
क्या है ज्योग्राफिकल इंडिकेशन?
ज्योग्राफिकल इंडिकेशन उत्पादों पर अंकित वो छाप है जो उत्पादों की विशेष भौगोलिक पहचान बताता है और उसकी मूल पहचान और गुणवत्ता को दर्शाता हैं. जियोग्राफिकल इंडिकेशन के तहत किसी प्रोडक्ट की पहचान उस क्षेत्र से होती है, जहां उसकी पैदावार होती है. भारत में इंडियन जियोग्राफिकल इंडिकेशंस ऑफ गुड्स (रजिस्ट्रेशन एंड प्रोटेक्शन) एक्ट, 2003 में लागू हुआ था. दार्जीलिंग की चाय, महाबलेश्वर स्ट्रॉबेरी, जयपुर की ब्लू पॉटरी, चंदेरी फैब्रिक, बनारसी साड़ी, कुल्लु शॉल, कांगड़ा टी और तिरुपति के लड्डू जीआई के कुछ उदाहरण हैं.
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