शरीर किसी अनोखी मशीन की तरह है जिसमें कब कौन सा हिस्सा बागी हो जाए ये पता ही नहीं चलता. मशीन का कोई पुर्जा भी खराब हो रहा है इसकी जानकारी अगर जल्दी हो जाए तो यकीनन मशीन ठीक काम करेगी, लेकिन अगर देर से हुई तो मशीन को नुकसान ज्यादा होगा. यही हालत इंसानी शरीर में किसी बीमारी के कारण भी होती है. बीमारी को जल्दी पता लगाना बहुत मुश्किल होता है और खास तौर पर अगर बीमारी कैंसर जैसी हो तो उसे फर्स्ट स्टेज में पता लगाना बहुत ही मुश्किल हो जाता है.
पर कुछ खास तरीकों से ये आसानी से पता लगाया जा सकता है कि क्या वाकई कैंसर हो रहा है. कुछ ऐसा ही वाक्या जीन विलियम के साथ हुआ.
जीन दो बच्चों की नानी हैं और वो एक कॉल सेंटर में काम करती हैं. जीन टेलर 53 साल की हैं और उनकी जिंदगी बिलकुल अच्छी चल रही थी, लेकिन अचानक उन्हें अपने लंग कैंसर का पता चला. जीन बहुत ही खुशकिस्मत हैं कि उनका कैंसर उन्हें फर्स्ट स्टेज में ही पता चल गया. पर कैसे? वो कैंसर जिसे जल्दी पता करना बहुत मुश्किल है आखिर उस कैंसर को पहली स्टेज में पकड़ पाना इतना आसान कैसे हो गया.
इसके पीछे जीन के नाखूनों की कारस्तानी है. जीन को लगा कि उनके नाखून बस बेडौल हैं, खराब हैं और इसका और कुछ मतलब नहीं है. उन्हें कभी नाखून को लेकर दिक्कत नहीं हुई और उन्हें इसके लिए डॉक्टर के पास जाना भी अजीब लगा.
जीन के नाखून मुड़े हुए थे. उन्हें लगा कि ये आम बात है क्योंकि उनकी मां के साथ भी ऐसा ही हुआ था. जीन की मां भी लंग कैंसर के कारण मारी गई थीं. इसके पहले जीन एक फैक्ट्री में काम करती थीं और उस समय उनके नाखून कभी नहीं बढ़े. जब उन्हें कॉल सेंटर में काम मिला तो उन्होंने नाखून बढ़ाने की सोची और ये देखकर उन्हें काफी बुरा लगा कि उनके नाखून मुड़ रहे हैं.
जीन की...
शरीर किसी अनोखी मशीन की तरह है जिसमें कब कौन सा हिस्सा बागी हो जाए ये पता ही नहीं चलता. मशीन का कोई पुर्जा भी खराब हो रहा है इसकी जानकारी अगर जल्दी हो जाए तो यकीनन मशीन ठीक काम करेगी, लेकिन अगर देर से हुई तो मशीन को नुकसान ज्यादा होगा. यही हालत इंसानी शरीर में किसी बीमारी के कारण भी होती है. बीमारी को जल्दी पता लगाना बहुत मुश्किल होता है और खास तौर पर अगर बीमारी कैंसर जैसी हो तो उसे फर्स्ट स्टेज में पता लगाना बहुत ही मुश्किल हो जाता है.
पर कुछ खास तरीकों से ये आसानी से पता लगाया जा सकता है कि क्या वाकई कैंसर हो रहा है. कुछ ऐसा ही वाक्या जीन विलियम के साथ हुआ.
जीन दो बच्चों की नानी हैं और वो एक कॉल सेंटर में काम करती हैं. जीन टेलर 53 साल की हैं और उनकी जिंदगी बिलकुल अच्छी चल रही थी, लेकिन अचानक उन्हें अपने लंग कैंसर का पता चला. जीन बहुत ही खुशकिस्मत हैं कि उनका कैंसर उन्हें फर्स्ट स्टेज में ही पता चल गया. पर कैसे? वो कैंसर जिसे जल्दी पता करना बहुत मुश्किल है आखिर उस कैंसर को पहली स्टेज में पकड़ पाना इतना आसान कैसे हो गया.
इसके पीछे जीन के नाखूनों की कारस्तानी है. जीन को लगा कि उनके नाखून बस बेडौल हैं, खराब हैं और इसका और कुछ मतलब नहीं है. उन्हें कभी नाखून को लेकर दिक्कत नहीं हुई और उन्हें इसके लिए डॉक्टर के पास जाना भी अजीब लगा.
जीन के नाखून मुड़े हुए थे. उन्हें लगा कि ये आम बात है क्योंकि उनकी मां के साथ भी ऐसा ही हुआ था. जीन की मां भी लंग कैंसर के कारण मारी गई थीं. इसके पहले जीन एक फैक्ट्री में काम करती थीं और उस समय उनके नाखून कभी नहीं बढ़े. जब उन्हें कॉल सेंटर में काम मिला तो उन्होंने नाखून बढ़ाने की सोची और ये देखकर उन्हें काफी बुरा लगा कि उनके नाखून मुड़ रहे हैं.
जीन की बेटी को ये बात कुछ हजम नहीं हुई. उन्होंने गूगल किया और इसका पहला कारण निकला कैंसर. जीन को फिर भी यकीन नहीं हुआ क्योंकि उन्हें कोई परेशानी नहीं हो रही थी पर बेटी के कहने पर वो डॉक्टर के पास गईं. डॉक्टर ने देखकर उन्हें कई चेकअप करवाने के लिए कहा और इसके बाद पता चला कि जीन के दोनों ही लंग्स में ट्यूमर है. दोनों ही फेफड़े बीमारी से ग्रसित थे और उनमें गोल्फ बॉल के साइज़ का ट्यूमर था.
जीन के नाखूनों की वजह से कैंसर का पता चला और यही कारण है कि वो अब इन्हें काटना नहीं चाहती हैं.
जीन ने अपनी इस खोज के बारे में फेसबुक पर पोस्ट किया था और तीन ही दिन में इस पोस्ट को 175000 शेयर्स मिल गए.
जीन को अब लंग कैंसर के लिए सर्जरी करवानी होगी. शुरुआत उनके बाएं फेफड़े से होगी और इसके लिए वो हर दिन करीब 20 गुब्बारे फुला रही हैं. ये एक तरह की एक्सरसाइज है जो जीन के फेफड़ों को सर्जरी के लिए तैयार करेगी.
क्या वाकई कैंसर के बारे में नाखूनों से पता चल सकता है?
फिंगर क्लबिंग (जो जीन को हुई) वो असल में एक मेडिकल कंडीशन है जिसमें उंगलियों के नाखून बड़े होने लगते हैं और वो घुमावदार तरीके से बाहर आते हैं. इससे उंगलियों का शेप भी बदल जाता है. फिंगर क्लबिंग दरअसल लंग कैंसर का पता लगाने का एक तरीका है.
हर तीसरे लंग कैंसर के मरीज को ऐसे नाखूनों की समस्या से दो चार होना पड़ सकता है. हालांकि, दूसरे किसी तरह के कैंसर के लिए ये हो ये जरूरी नहीं है. उनके लिए अलग तरह के लक्षण हो सकते हैं.
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