कहते हैं ना कि डूबते को तिनके का सहारा काफी होता है. छत्तीसगढ़ के दुर्ग की रहने वाली इस बेटी की भी यही कहानी है. जिसका नाम हिषा बघेल है. पिता 10 साल से कैंसर पीड़ित हैं. वे ऑटो चलाते थे मगर बेटी की पढ़ाई के कारण उसे भी बेच दिया. फिर भी पैसे कम पड़े तो जमीन बेच दी. मां हाउस वाइफ है. घर का खर्च चलाने में मुश्किल होने लगी तो हिषा ने बच्चों को ट्यूशन पढ़ाना शुरु कर दिया.
हिषा ने सेना में जाने के लिए खुद के दम पर तैयारी की. इसके लिए वह स्कूल के लड़कों के साथ दौड़ती थी. उसका सपना सेना में भर्ती होने का था. उसने कॉलेज में एडमिशन लिया तो एनसीसी में शामिल हो गई. वहां अग्निवीर फॉर्म का पता चला को अप्लाई कर दिया. इसके बाद हिषा का सेलेक्शन इंडियन नेवी में हो गया. फिलहाल वह ओडिशा के चिल्का में ट्रेनिंग ले रही है.
इस तरह हिषा के नए सफर की शुरुआत हो गई. उसने अपने माता-पिता का सपना पूरा किया. मां कहती हैं कि मुझे अपनी बेटी पर बहुत गर्व है. वह रोज सुबह 4 बजे उठकर सेना में भर्ती होने के लिए तैयारी करती थी. पिता अलग फूले नहीं समा रहे हैं. उन्हें तो यकीन ही नहीं हो रहा है कि उनकी बेटी सेना में शामिल हो गई है. उन्हें अपनी जमीन औऱ ऑटो बेचने का जरा भी अफसोस नहीं है, बिटिया पढ़ लिखकर कुछ बन गई, समझो जीवन सफल हो गया.
मुझे अच्छी तरह याद है जब अग्निवीर योजना के बारे में सरकार ने फैसला सुनाया था तो कितना विरोध हुआ था. लोगों ने विरोध प्रदर्शन किया था. ट्रेनों में आग लगा दी गई थी. हर तरफ सरकार के खिलाफ बयानबाजी हो रही थी. मगर हिषा जैसी लड़कियों के लिए यह एक अच्छा मौका था कि वो कुछ कर पाती. हिषा को चिंता नहीं है कि वह 4...
कहते हैं ना कि डूबते को तिनके का सहारा काफी होता है. छत्तीसगढ़ के दुर्ग की रहने वाली इस बेटी की भी यही कहानी है. जिसका नाम हिषा बघेल है. पिता 10 साल से कैंसर पीड़ित हैं. वे ऑटो चलाते थे मगर बेटी की पढ़ाई के कारण उसे भी बेच दिया. फिर भी पैसे कम पड़े तो जमीन बेच दी. मां हाउस वाइफ है. घर का खर्च चलाने में मुश्किल होने लगी तो हिषा ने बच्चों को ट्यूशन पढ़ाना शुरु कर दिया.
हिषा ने सेना में जाने के लिए खुद के दम पर तैयारी की. इसके लिए वह स्कूल के लड़कों के साथ दौड़ती थी. उसका सपना सेना में भर्ती होने का था. उसने कॉलेज में एडमिशन लिया तो एनसीसी में शामिल हो गई. वहां अग्निवीर फॉर्म का पता चला को अप्लाई कर दिया. इसके बाद हिषा का सेलेक्शन इंडियन नेवी में हो गया. फिलहाल वह ओडिशा के चिल्का में ट्रेनिंग ले रही है.
इस तरह हिषा के नए सफर की शुरुआत हो गई. उसने अपने माता-पिता का सपना पूरा किया. मां कहती हैं कि मुझे अपनी बेटी पर बहुत गर्व है. वह रोज सुबह 4 बजे उठकर सेना में भर्ती होने के लिए तैयारी करती थी. पिता अलग फूले नहीं समा रहे हैं. उन्हें तो यकीन ही नहीं हो रहा है कि उनकी बेटी सेना में शामिल हो गई है. उन्हें अपनी जमीन औऱ ऑटो बेचने का जरा भी अफसोस नहीं है, बिटिया पढ़ लिखकर कुछ बन गई, समझो जीवन सफल हो गया.
मुझे अच्छी तरह याद है जब अग्निवीर योजना के बारे में सरकार ने फैसला सुनाया था तो कितना विरोध हुआ था. लोगों ने विरोध प्रदर्शन किया था. ट्रेनों में आग लगा दी गई थी. हर तरफ सरकार के खिलाफ बयानबाजी हो रही थी. मगर हिषा जैसी लड़कियों के लिए यह एक अच्छा मौका था कि वो कुछ कर पाती. हिषा को चिंता नहीं है कि वह 4 साल बाद क्या करेगी, क्योंकि तब तक उसकी जिंदगी में काफी कुछ बदल जाएगा. उसके साथ परिवार के हालात बदल जाएंगे औऱ उसे खुद पर पूरा भरोसा है. वह 4 सालों के बाद इस काबिल तो हो ही जाएगी कि कुछ अच्छा कर सके. हो सकता है कि वह इतनी मेहनत करे कि उसकी नौकरी परमानेंट हो जाए.
अग्निवीर का मकसद उन युवाओं को एक सुनहरा भविष्य देना है जो पढ़लिखकर बेकार हैं. वे दिन भर भटकते हैं औऱ कई बार गलत संगति में भी पढ़ जाते हैं. दिन भर मोबाइल पर रील देखने से तो बेहतर है कि वे कम से कम स्किल्ड हो जाएं. एक सभ्य नागरिक बन सकेंगे और अपने जीवन में बेहतर कर सकेंगे.
हिषा के जो हालात हैं, उसके लिए यह नौकरी उसके लिए किसी सुनहरे अवसर से कम नहीं है. उसे इस नौकरी की सख्त जरूरत थी. उसका आत्मविश्वास चेहरे से साफ झलक रहा है. एक छोटे से गांव की लड़की ने सपना देखने की हिम्मत की और आज अग्निवीर की बदौलत वह सच हो गया. हिषा के साथ ही उसके पूरे परिवार का जिंदगी सुधर जाएगी.
ऐसी ना जाने कितनी हिषा को सपने देखने और उन्हें पूरा करने का हौसला बढ़ेगा. माता-पिता भी बेटियों को पढ़ाने-लिखाने में पीछे नहीं हटेंगे...हिषा की कहानी जानने के बाद लग रहा है कि सरकार का अग्निवीर योजना लाने का फैसला गलत नहीं था. हिषा तुम्हें अपनी जीत मुबारक हो...
इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.