जी हां, जहां एक तरफ हम बलात्कारियों के लिए फांसी की मांग करते हैं, वहीं दूसरी तरफ दिल्ली से लेकर मुंबई और मुंबई से लेकर चंडीगढ़ और गुजरात तक एक बलात्कारी को सजा न मिले इसके लिए हवन और प्रार्थनाएं की जा रही हों, तो ऐसे में यही ख्याल मन में आता है. एक तरफ बलात्कार के खिलाफ आप कैंडल लेकर सड़कों पर उतर रहे हैं और दूसरी तरफ ये बलात्कारी के लिए हवन. आपके किस रूप और किस सोच को ईमानदार और सही माना जाए? जब एक आम आदमी बलात्कार करता है तब वो बलात्कार होता है और जब कोई धर्मगुरु वही कुकृत्य करे, तो वो आशीर्वाद और वरदान में बदल जाता है?
कहीं कोई लड़की अगर किसी पर सिर्फ छेड़ने का आरोप लगाती है और मौके पर अगर गुनहगार मौजूद हो, तो आप इतने उग्र हो जाते हैं कि बस चले तो वहीं 'ऑन द स्पॉट' फैसला सुना दें. बस चले तो जान से मार भी दें. वैसे एक तरह से यह सही भी है क्योंकि फिर कोई जिंदगी में दोबारा ऐसा करने की सोचेगा नहीं, लेकिन वही जब कोई लड़की किसी धर्मगुरु पर बलात्कार जैसा संगीन इल्जाम लगाती है, तो आप लड़की के ही चरित्र पर उंगलियां उठाने लगते हैं. ये सोच में दोहरापन क्यों?
आप एक तरफ तो कोर्ट और न्यायपालिका की आलोचना करते हैं कि गुनहगार को सजा नहीं मिलती और दूसरी तरफ जब सजा मिल रही है तो आप उसी फैसले के खिलाफ खड़े हैं. मुझे ताज्जुब हो रहा है इन धर्मगुरुओं के अंधभक्तों के स्टेटमेंट सुनकर कि-
- वो अस्सी साल के हैं, उनकी उम्र का ख्याल रखा जाए.
- बाबा ने समाज को धर्म पर चलने की राह दिखाई है, उनके लिए सम्मान से बात कीजिये. हमारी भारतीय संस्कृति किसी बुजुर्ग के लिए ऐसे शब्द निकालने को नहीं कहती.
- जिस लड़की ने बलात्कार का आरोप लगाया उसके शरीर पर कोई घाव या खरोच का निशान नहीं था.
- जज साहेब क्या उस कमरे में मौजूद थे...
जी हां, जहां एक तरफ हम बलात्कारियों के लिए फांसी की मांग करते हैं, वहीं दूसरी तरफ दिल्ली से लेकर मुंबई और मुंबई से लेकर चंडीगढ़ और गुजरात तक एक बलात्कारी को सजा न मिले इसके लिए हवन और प्रार्थनाएं की जा रही हों, तो ऐसे में यही ख्याल मन में आता है. एक तरफ बलात्कार के खिलाफ आप कैंडल लेकर सड़कों पर उतर रहे हैं और दूसरी तरफ ये बलात्कारी के लिए हवन. आपके किस रूप और किस सोच को ईमानदार और सही माना जाए? जब एक आम आदमी बलात्कार करता है तब वो बलात्कार होता है और जब कोई धर्मगुरु वही कुकृत्य करे, तो वो आशीर्वाद और वरदान में बदल जाता है?
कहीं कोई लड़की अगर किसी पर सिर्फ छेड़ने का आरोप लगाती है और मौके पर अगर गुनहगार मौजूद हो, तो आप इतने उग्र हो जाते हैं कि बस चले तो वहीं 'ऑन द स्पॉट' फैसला सुना दें. बस चले तो जान से मार भी दें. वैसे एक तरह से यह सही भी है क्योंकि फिर कोई जिंदगी में दोबारा ऐसा करने की सोचेगा नहीं, लेकिन वही जब कोई लड़की किसी धर्मगुरु पर बलात्कार जैसा संगीन इल्जाम लगाती है, तो आप लड़की के ही चरित्र पर उंगलियां उठाने लगते हैं. ये सोच में दोहरापन क्यों?
आप एक तरफ तो कोर्ट और न्यायपालिका की आलोचना करते हैं कि गुनहगार को सजा नहीं मिलती और दूसरी तरफ जब सजा मिल रही है तो आप उसी फैसले के खिलाफ खड़े हैं. मुझे ताज्जुब हो रहा है इन धर्मगुरुओं के अंधभक्तों के स्टेटमेंट सुनकर कि-
- वो अस्सी साल के हैं, उनकी उम्र का ख्याल रखा जाए.
- बाबा ने समाज को धर्म पर चलने की राह दिखाई है, उनके लिए सम्मान से बात कीजिये. हमारी भारतीय संस्कृति किसी बुजुर्ग के लिए ऐसे शब्द निकालने को नहीं कहती.
- जिस लड़की ने बलात्कार का आरोप लगाया उसके शरीर पर कोई घाव या खरोच का निशान नहीं था.
- जज साहेब क्या उस कमरे में मौजूद थे जो वो ये फैसला सुना रहे हैं?
- जम्मू में एक मौलवी है जिसने 50 लड़कियों के साथ गलत किया, उसे तो सजा नहीं मिल रही. हमारे बाबा को निशाना बनाया जा रहा है. हमारे सनातन धर्म को बदनाम करने की कोशिश जा रही है.
और सबसे ज्यादा दुःख और गुस्सा तो मुझे उन औरतों और लड़कियों के बयान पर आ रहा है जो, "हमारे बाबा निर्दोष हैं. उन्हें फंसाया जा रहा है" कह रही हैं. मतलब जब उसने 75 साल की उम्र में एक बच्ची का बलात्कार किया तब वो बूढ़ा नहीं था. आज जब फैसला आया है तो अचानक से उसकी उम्र की दुहाई देने लगे. भारतीय संस्कृति क्या बच्चियों का बलात्कार करने को उकसाती है जो आपके बाबा ने किया?
तर्कहीनता और मूर्खता का इससे बड़ा उदाहरण क्या हो सकता है कि आप जम्मू के मौलवी का उदाहरण दे रहें हैं. आपको उन 50 लड़कियों का दुःख दिखाई दे रहा है मगर उस एक लड़की का दुःख दिखाई नहीं दे रहा जिसके साथ आप ही के बाबा ने ये कुकर्म किया. अपने धर्म में हुई गलती आपको नहीं दिखती और तुरंत दूसरे धर्मों पर उंगली उठाने लग जाते हैं. आज सजा आसाराम को मिली है, कल को उस मौलवी को भी मिलेगी.
मुझे सच में समझ नहीं आता कि जो गलत है उसे गलत मान लेने में इतनी आपत्ति क्यों हैं? और आप दूसरे धर्मों में हो रहे गलतियों को गिना कर अपने धर्म की गलतियों को जायज़ कैसे ठहरा सकते हैं?
आप एक तरफ तो कह रहे हैं कि बाबा के चार लाख से ज्यादा भक्त हैं और सत्तर से ज्यादा आश्रम तो उन्हें कम सज़ा दी जाए. वहीं आप ये क्यों नहीं सोच पा रहे हैं कि बाबा ने इन चार लाख लोगों का विश्वास तोड़ा है और अपने अनुयायियों को गलत रास्ता दिखाया है. इतने भक्त होने के बावजूद भी आप उनके सामने ऐसे उदाहरण प्रस्तुत करते हैं कि आपके मानने वालों के मन में भी यही ख्याल आए कि हम भी बलात्कार कर सकते हैं और फिर आराम से बच कर निकल सकते हैं. इस केस में तो और भी कठोर सजा मिलनी चाहिए क्योंकि उसने समाज के एक बड़े वर्ग को गलत राह दिखाई है.
लेकिन नहीं जब तक धर्म के नाम की काली पट्टी आंखों पर आप बांधें रहेंगे आप सच्चाई से रूबरू नहीं हो सकते और तब तक देश में ऐसे बाबाओं की चांदी होती ही रहेगी. ऐसा भी नहीं कह सकते कि सिर्फ अशिक्षित लोग या घरेलू महिलाएं ही इन बाबाओं के चपेट में आती हैं. आज जिस तरह के लोग बाबा के बचाव में बोल रहे हैं, उनको देखकर यही लगता है कि धर्म की जड़ें हमारे समाज में शिक्षा-अशिक्षा से परे की चीज़ है.
जो धर्म कभी हमारे लिए उत्थान का सबब था आज हमें पतन की ओर लिए जा रहा है. हमें बौद्धिक रूप से पंगु बना रहा है.
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