ग़ाज़ियाबाद के इस बच्चे का नाम आसिफ़ है जिसे श्रृंगीनंदन यादव नामक महानुभाव ने बुरी तरह पीटकर धार्मिक श्रेष्ठता का परचम लहराने का गौरवशाली कार्य किया है. आसिफ़ का गुनाह यह था कि उसने मंदिर परिसर में घुसकर पानी पीया. वीडियो देखकर मन कांच की तरह बिखर जाता है. मारते हुए वीडियो बनाते हुए अब लोगों को डर नहीं लगता, हाथ नहीं कांपते, शौर्य का अनुभव होता है. उनके मारने से कहीं ज़्यादा ख़तरनाक है मारते हुए उनका साहसी होना और इसे गौरव का प्रतीक मानना.
पानी का फ़ॉर्मुला होता है H2O, हैवी वॉटर हो, जो कि असामान्य है तो D2O. पानी मंदिर में हो, मस्जिद में हो या मदिरालय में हो, एक-सा ही होता है. पानी का मूल कर्म है प्यास बुझाना. इसे यूनिवर्सल कूलेंट माना जाता है और सॉल्वेंट भी. लेकिन पानी की केमिस्ट्री पढ़कर क्या करना है! पानी ने कब खींची दरार अपने ऊपर, कब कहा कि सिंधु पर खिंच जाएं लकीरें?
आज एक बच्चे को प्यास बुझाने के लिये पीटा गया है क्योंकि वह पानी मंदिर परिसर का था. ईश्वर के नाम पर इस कुकृत्य को जायज़ नहीं ठहराया जा सकता. ईश्वर कभी नहीं चाहेंगे कि कोई व्यक्ति उनके घर से प्यासा लौटे क्योंकि वह दूसरे धर्म का है. पानी की तरह ईश्वर ने भी नहीं खींची लकीरें.
आपको लगता है कि आसिफ़ को मारकर आपने धर्म की रक्षा की है? धर्म आप जैसे लोगों से ही अपनी रक्षा चाहता है. धर्म निश्छल होता है, निर्दयी नहीं, धर्म को हमेशा नैतिक रहना है, धर्म को नहीं है ज़रूरत आपके ठेकेदारी की. ईश्वर अगर आपसे कुछ कहते तो सबसे पहले लानतें भेजते. अपने...
ग़ाज़ियाबाद के इस बच्चे का नाम आसिफ़ है जिसे श्रृंगीनंदन यादव नामक महानुभाव ने बुरी तरह पीटकर धार्मिक श्रेष्ठता का परचम लहराने का गौरवशाली कार्य किया है. आसिफ़ का गुनाह यह था कि उसने मंदिर परिसर में घुसकर पानी पीया. वीडियो देखकर मन कांच की तरह बिखर जाता है. मारते हुए वीडियो बनाते हुए अब लोगों को डर नहीं लगता, हाथ नहीं कांपते, शौर्य का अनुभव होता है. उनके मारने से कहीं ज़्यादा ख़तरनाक है मारते हुए उनका साहसी होना और इसे गौरव का प्रतीक मानना.
पानी का फ़ॉर्मुला होता है H2O, हैवी वॉटर हो, जो कि असामान्य है तो D2O. पानी मंदिर में हो, मस्जिद में हो या मदिरालय में हो, एक-सा ही होता है. पानी का मूल कर्म है प्यास बुझाना. इसे यूनिवर्सल कूलेंट माना जाता है और सॉल्वेंट भी. लेकिन पानी की केमिस्ट्री पढ़कर क्या करना है! पानी ने कब खींची दरार अपने ऊपर, कब कहा कि सिंधु पर खिंच जाएं लकीरें?
आज एक बच्चे को प्यास बुझाने के लिये पीटा गया है क्योंकि वह पानी मंदिर परिसर का था. ईश्वर के नाम पर इस कुकृत्य को जायज़ नहीं ठहराया जा सकता. ईश्वर कभी नहीं चाहेंगे कि कोई व्यक्ति उनके घर से प्यासा लौटे क्योंकि वह दूसरे धर्म का है. पानी की तरह ईश्वर ने भी नहीं खींची लकीरें.
आपको लगता है कि आसिफ़ को मारकर आपने धर्म की रक्षा की है? धर्म आप जैसे लोगों से ही अपनी रक्षा चाहता है. धर्म निश्छल होता है, निर्दयी नहीं, धर्म को हमेशा नैतिक रहना है, धर्म को नहीं है ज़रूरत आपके ठेकेदारी की. ईश्वर अगर आपसे कुछ कहते तो सबसे पहले लानतें भेजते. अपने कृत्यों व कुण्ठाओं के लिये ईश्वर को बिम्ब न बनायें.
पता नहीं कितना गरल भरा होगा, कितना कलुषित होगा मन जो किसी के पानी पीने पर क्रोधित हो गया. फिर बैठकर भजन भी सुन लेंगे कि प्यासे को पानी पिलाया नहीं... धर्म की आड़ में अपनी संकुचित सोच ठेलना बंद करें. धर्म को रक्षक की आवश्यकता नहीं है, धर्म आप जैसों से बचा रहे तो सब बच जाएगा.
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