26/11 Mumbai Attack का दर्द भारत के देशवासी भला कैसे भूल सकते हैं? इस दिन मुंबई दहल (Mumbai Attack) गई थी. अभी भी 2008 मुंबई आतंकी हमले के वो मार्मिक दृश्य देखकर हमारा दिल रो पड़ता है. कई दृश्य तो इतने मार्मिक हैं कि आंखें अपने आप बंद हो जाती हैं, क्योंकि हम देखने की हिम्मत नहीं जुटा पाते. जरा सोचिए जब हमें इतनी तकलीफ होती है तो उनका क्या हाल होता होगा जिन्होंने इस हमले को अपनी आंखों से देखा है, जिसपर बीती हो, जो हमले वाली जगह मौजूद थे. ऐसी ही एक बच्ची की कहानी हम आपको बता रहे हैं जिसका जन्म 26-11-2008 को आतंकी हमले वाली जगह पर ही हुआ था. जब बच्ची ने जन्म लिया तो चारों तरफ गोलियां चल रही थीं.
हम जिसकी कहानी आपको बता रहे हैं उसका नाम 'गोली' है. जो अपने परिवार के लिए दहशत के बीच एक उम्मीद बनकर आई. हर तरफ लोग रो रहे थे, चिल्ला रहे थे उसी वक्त बच्ची की किलकारी सुनाई दी. बच्ची गोलीबारी के बीच पैदा हुई तो लोगों ने उसका नाम ही गोली रख दिया. इतना ही नहीं परिवार वाले इस बच्ची का जन्मदिन भी नहीं मनाते. आज मुंबई आंतकी हमले की 13वीं बरसी है. आज के दिन परिवार आंतकी हमले में मारे गए लोगों को याद करते हैं. मेरे जेहन में सबसे पहला ख्याल यही आया कि इसमें बच्ची का क्या दोष है? उसे अपने जन्म की तारीख चुनने की आजादी तो थी नहीं, लेकिन परिवार वाले भी क्या करें वो मुंबई हमले के जख्म को अभी भी भूला ही नहीं पाए हैं. बच्ची के माता-पिता ने अपने सामने लोगों को मरते देखा था इसिलए वो बच्ची का जन्मदिन नहीं मनाते.
भास्कर की रिपोर्ट के अनुसार, गोली की मां विजू का कहना है कि 'शाम के 7 बज रहे थे. मुझे लेबर पेन होने लगा. मेरे पति शामू लक्ष्मणराव मुझे लेकर कामा अस्पताल...
26/11 Mumbai Attack का दर्द भारत के देशवासी भला कैसे भूल सकते हैं? इस दिन मुंबई दहल (Mumbai Attack) गई थी. अभी भी 2008 मुंबई आतंकी हमले के वो मार्मिक दृश्य देखकर हमारा दिल रो पड़ता है. कई दृश्य तो इतने मार्मिक हैं कि आंखें अपने आप बंद हो जाती हैं, क्योंकि हम देखने की हिम्मत नहीं जुटा पाते. जरा सोचिए जब हमें इतनी तकलीफ होती है तो उनका क्या हाल होता होगा जिन्होंने इस हमले को अपनी आंखों से देखा है, जिसपर बीती हो, जो हमले वाली जगह मौजूद थे. ऐसी ही एक बच्ची की कहानी हम आपको बता रहे हैं जिसका जन्म 26-11-2008 को आतंकी हमले वाली जगह पर ही हुआ था. जब बच्ची ने जन्म लिया तो चारों तरफ गोलियां चल रही थीं.
हम जिसकी कहानी आपको बता रहे हैं उसका नाम 'गोली' है. जो अपने परिवार के लिए दहशत के बीच एक उम्मीद बनकर आई. हर तरफ लोग रो रहे थे, चिल्ला रहे थे उसी वक्त बच्ची की किलकारी सुनाई दी. बच्ची गोलीबारी के बीच पैदा हुई तो लोगों ने उसका नाम ही गोली रख दिया. इतना ही नहीं परिवार वाले इस बच्ची का जन्मदिन भी नहीं मनाते. आज मुंबई आंतकी हमले की 13वीं बरसी है. आज के दिन परिवार आंतकी हमले में मारे गए लोगों को याद करते हैं. मेरे जेहन में सबसे पहला ख्याल यही आया कि इसमें बच्ची का क्या दोष है? उसे अपने जन्म की तारीख चुनने की आजादी तो थी नहीं, लेकिन परिवार वाले भी क्या करें वो मुंबई हमले के जख्म को अभी भी भूला ही नहीं पाए हैं. बच्ची के माता-पिता ने अपने सामने लोगों को मरते देखा था इसिलए वो बच्ची का जन्मदिन नहीं मनाते.
भास्कर की रिपोर्ट के अनुसार, गोली की मां विजू का कहना है कि 'शाम के 7 बज रहे थे. मुझे लेबर पेन होने लगा. मेरे पति शामू लक्ष्मणराव मुझे लेकर कामा अस्पताल लेकर पहुंचे. मैं अस्तपताल में एडमिड हो गई. पति दवाई लेने बाहर चले गए. दर्द बढ़ने पर मुझे दूसरे वार्ड में ले जाया गया. तभी तेज धमाका होने लगा, मुझे नहीं पता था कि बाहर क्या हो रहा है? मैंने सोचा शायद इंडिया के मैच जीतने पर लोग पटाखे चला रहे होंगे. तभी गोली की आवाज गूंजने लगी और डॉक्टर मुझे छोड़कर बाहर भाग गए. इसके बाद चारों तरफ अफरा-तफरी मच गई और सब इधर-उधर भागने लगे. 15-20 लोग वार्ड में अंदर आए. सभी घबराए हुए थे. किसी ने कहा कि पर्दा लगा लो. कोई खिड़की तो कोई दरवाजा बंद करने लगा. इसी बीच किसी ने ने कहा कि विजू को लेबरवार्ड में ले चलो. मुझे तेज लेबर पेन होने लगा और दनादन गोलियों की आवाज आने लगी. मुझे घबराहट हो रही थी और बहुत पसीना आ रहा था.
मुझे इतना समझ में आ गया था कि बाहर कुछ खतरनाक हो रहा है. मुजे तेज दर्द हो रहा था लेकिन मैं डर के मारे चिल्ला भी नहीं पा रही थी. मैंने अपने उस दर्द को खामोशी से सहा और सभी तकलीफों को सीने में दफन कर लिया. अगर चिल्लाती तो आतंकी गोली मार सकते थे. इन्हीं गोलियों की तेज आवाज के बीच ही हमारी बेटी ने जन्म लिया. 10-15 मिनट बाद नर्स ने मुझे बेड के नीचे गद्दे पर सोने के लिए कहा, क्योंकि उपर गोली लग सकती थी. मुझे पलंग से उतार कर नीचे सुला दिया गया और लाइट बंद कर दी गई. मैं बहुत डर गई थी और एक नर्स का हाथ पकड़ लिया था, मैं बस ऊपरवाले को याद कर रही थी'.
वहीं गोली के पापा का कहना है कि 'जब मैं दवा लेने जा रहा था तो गोलियों की आवाज आई. मुझे भी लगा कि यह भारत की जीत की खुशी में पटाखे फोड़े जा रहे हैं. मैं लिफ्ट के पास पहुंचता उसके पहले ही लिफ्ट चल चुकी थी, इसलिए मैं सिढ़ियों से जाने लगा. तभी मैंने एक दर्दनाक सीन देखा, मैंने देखा कि लिफ्टमैन को गोली लगी थी. उसके पेट से खून निकल रहा था और उसकी मौत हो चुकी थी. मैं थोड़ा आगे गया तो देखा कि चौकिदार को भी गोली लगी हुई थी और उसकी भी मौत हो चुकी थी. मैं बहुत घबरा गया था. मैं धीरे-धीरे ऊपर गया और सबसे कहा कि बाहर गोलीबारी हो रही है. मैंने बरामदे में मौजूद लोगों से कहा कि एक वार्ड के अंदर चले जाइए और आतंकियों को घुसने से रोकने के लिए हमने दरवाजे के सामने बहुत से बेड लगा दिए थे. मैं खिड़की से झांक रहा था कि हो क्या रहा है.'
गोली की मां कहती हैं कि 'अस्पताल के पास वाले CST स्टेशन से बहुत सी महिलाएं भाग कर आईं थीं. सब गोलीबारी के बारे में बात कर रही थीं. नर्स ने कहा कि तुम सेब खा लो क्योंकि बच्ची को दूध पिलाना है. यह गोलीबारी के बीच पैदा हुई है तो इसका नाम गोली रख दो. तभी से मेरी बेटी का नाम गोली पड़ गया. कई लोग उसे एके-47 भी बुलाते हैं'.
गोली जब पैदा हुई को पाकिस्तानी आतंकी अजमल कसाब और उसके साथी कामा हॉस्पिटल में गोलियां चला रहे थे. वे लोगों को मौत के घाट उतार रहे थे. मासूम को तो कुछ होश ही नहीं था कि वहां क्या हो क्या रहा है? अब गोली 13 साल की है और कक्षा 8वीं में पढ़ती है. वह कहती है कि मेरा नाम 'गोली' है और मुझे इससे कोई परेशानी नहीं है. मुझे पता है कि मैं आतंकवादी हमले के बीच पैदा हुई हूं. मैं बड़ी होकर कलेक्टर बनना चाहती हूं. मम्मी-पापा चाहते हैं कि मैं आर्मी ज्वाइन करूं और गरीबों की मदद करूं.
इस पूरी घटना को पढ़ने वाले का दिल दुख सकता है, मन खराब हो सकता है. मुंबई आतंकी हमला ऐसा जख्म है जिसे भूलना आसान नहीं है. जब भी इसका जिक्र होता है, ऐसा लगता है कि किसी ने नमक लगाकर पुराने जख्म को ताजा कर दिया हो.
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