जामा मस्जिद (Jama Masjid) में लड़की या लड़कियों का अकेले दखल मना है. जी हां यह आप सही पढ़ रहे हैं. इस तरह के बोर्ड मस्जिद के तीनों गेट पर चस्पा किए गए हैं. इनके हिसाब से लड़कियां अकेले मस्जिद में जाकर गलत काम करती हैं, लड़कों से बातें करती हैं. इसलिए अब उन्हें अपने साथ पुरुष गार्जियन को लेकर आना होगा, तब जाकर वे मस्जिद में अंदर जा सकेंगी और खुदा की इबादत कर सकेंगी.
इस मामले में जामा मस्जिद पीआरओ सबीउल्लाह खान का कहना है कि, "जो अकेली लड़कियां आती हैं, लड़कों को टाइम देती हैं. यहां आकर गलत हरकतें होती हैं. वीडियो बनाई जाती है. सिर्फ इस चीज पर रोकने के लिए पाबंदी लगाई गई है. आप फैमिली के साथ आएं कोई पाबंदी नहीं हैं. मैरिड कपल आएं कोई पाबंदी नहीं है. मगर किसी को टाइम देकर यहां आना, इसको मीटिंग प्वाइंट बनाना, पार्क समझ लेना, टिकटॉक वीडियो बनाना, डांस करना किसी भी धर्म स्थल के लिए मुनासिब नहीं है. किसी भी धर्म स्थल पर प्रोटोकॉल होना बहुत जरूरी है. हमारा पाबंदी लगाने का यही मतलब है कि मस्जिद सिर्फ इबादत के लिए है और उसका इस्तेमाल सिर्फ इबादत के लिए होना चाहिए. हमने सिर्फ अकेली लड़कियों के आने पर पाबंदी लगाई है, जो यहां आकर लड़कों को वक्त देती हैं उनके साथ मुलाकातें करती हैं. गलत हरकते करती हैं."
यानी मस्जिद में गलती सिर्फ लड़कियां करती हैं, लड़के नहीं-
पीआरओ सबीउल्लाह खान की बातों पर गौर करेंगे तो लगेगा कि मस्जिद में होन वाले सभी गलत...
जामा मस्जिद (Jama Masjid) में लड़की या लड़कियों का अकेले दखल मना है. जी हां यह आप सही पढ़ रहे हैं. इस तरह के बोर्ड मस्जिद के तीनों गेट पर चस्पा किए गए हैं. इनके हिसाब से लड़कियां अकेले मस्जिद में जाकर गलत काम करती हैं, लड़कों से बातें करती हैं. इसलिए अब उन्हें अपने साथ पुरुष गार्जियन को लेकर आना होगा, तब जाकर वे मस्जिद में अंदर जा सकेंगी और खुदा की इबादत कर सकेंगी.
इस मामले में जामा मस्जिद पीआरओ सबीउल्लाह खान का कहना है कि, "जो अकेली लड़कियां आती हैं, लड़कों को टाइम देती हैं. यहां आकर गलत हरकतें होती हैं. वीडियो बनाई जाती है. सिर्फ इस चीज पर रोकने के लिए पाबंदी लगाई गई है. आप फैमिली के साथ आएं कोई पाबंदी नहीं हैं. मैरिड कपल आएं कोई पाबंदी नहीं है. मगर किसी को टाइम देकर यहां आना, इसको मीटिंग प्वाइंट बनाना, पार्क समझ लेना, टिकटॉक वीडियो बनाना, डांस करना किसी भी धर्म स्थल के लिए मुनासिब नहीं है. किसी भी धर्म स्थल पर प्रोटोकॉल होना बहुत जरूरी है. हमारा पाबंदी लगाने का यही मतलब है कि मस्जिद सिर्फ इबादत के लिए है और उसका इस्तेमाल सिर्फ इबादत के लिए होना चाहिए. हमने सिर्फ अकेली लड़कियों के आने पर पाबंदी लगाई है, जो यहां आकर लड़कों को वक्त देती हैं उनके साथ मुलाकातें करती हैं. गलत हरकते करती हैं."
यानी मस्जिद में गलती सिर्फ लड़कियां करती हैं, लड़के नहीं-
पीआरओ सबीउल्लाह खान की बातों पर गौर करेंगे तो लगेगा कि मस्जिद में होन वाले सभी गलत कामों की जिम्मेदार सिर्फ और सिर्फ लड़कियां हैं. लड़के तो कुछ करते ही नहीं है. वे लड़कियों को टाइम नहीं देते हैं. वे वीडियो नहीं बनाते हैं. वे लड़कियों को मिलने के लिए नहीं बुलाते हैं. वे मस्जिद को मीटिंग प्वाइंट नहीं बनाते हैं. वे लड़कियों को टाइम नहीं देते हैं. वे तो बेचारे मासूम हैं जिन्हें लड़कियां फंसा लेती हैं.
गार्जियन भी पुरुष ही होने चाहिए. लड़कियों की मां, बड़ी बहनें और दादी भी गार्जियन नहीं हो सकती हैं क्योंकि वे महिलाएं हैं जिन्हें हमेशा पुरुषों के अधीन होना चाहिए.
वैसे भी शरिया कानून के अनुसार महिलाएं, जो अल्लाह और आखिरी दिन पर विश्वास करती हैं उन्हें बिना महरम (पति या पुरुष रिश्तेदार) के अकेले घर से बाहर निकलकर यात्रा करने की इजाजत नहीं है. यानी वे जब भी घर से बाहर जाएंगी तो गार्जियन के साथ जाएंगी. वे भी पति के अलावा उस पुरुष के साथ जिससे वे शादी न कर सकें. अब ऐसे में मस्जिद में हुए एक तरफा फैसले पर हमें हैरानी नहीं होनी चाहिए.
लड़की अकेले मस्जिद क्यों नहीं जा सकती?
आपको पाबंदी लगानी है तो गलत कामों पर लगाओ. वीडियो बनाने पर बैन लगाओ, टिकटॉक बैन करो, ये क्या बात हुई कि इस बहाने मस्जिद में लड़कियों की एंट्री पर ही बैन लगा दो? क्या खुदा की इबादत करने का अधिकार महिलाओं को नहीं है, या उसके लिए भी आपकी इजाजत लेनी पड़ेगी. अनुशासन बनाए रखने के लिए सिर्फ लड़कियों को सजा क्यों? क्या लड़की होना पाप है?
स्वाती मालीवाल ने जामा मस्जिद के इमाम को जारी किया नोटिस-
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