'घर में भूखी है मां, बाहर लंगर लगा... ऐसे इंसां कभी पूजे जाते नहीं.' गुजरात के अहमदाबाद में रहने वाले दिशांत को भी यही समझना जरूरी है. भगवान में उनकी ऐसी आस्था जागी है कि महज 26 साल की उम्र में ही उन्होंने अपनी बीटेक की पढ़ाई बीच में ही छोड़ दी और संन्यास धारण कर लिया है. दिशांत के लिए माता-पिता के प्यार से बढ़कर भगवान की आस्था है. जननी के आंसू भी उसकी भक्ति की शक्ति को हिला नहीं पाई. जिन हाथों की उंगलियां पकड़कर दिशांत ने चलना सीखा था, उन्हीं हाथों को जोड़कर मां-बाप उससे वापस चलने की भीख मांग रहे हैं. आखिरकार मां-बाप और बेटे का ये रिश्ता घर की दहलीज लांघकर थाने में जा पहुंचा है.
पुलिस बेबस दिख रही है, क्योंकि दिशांत बालिग है और उसे अपनी मर्जी से जिंदगी जीने का पूरा हक है. वहीं मां-बाप की दुविधा है कि इकलौता बेटा, जो कल बुढ़ापे की लाठी बनता, जिसकी परवरिश और पढ़ाई लिखाई में मां-बाप ने अपनी जमा पूंजी लुटा दी, वह घर आने के लिए तैयार ही नहीं है. थाने में मां-बाप के अलावा रिश्तेदार भी पहुंचे, दिशांत को रिश्तों की दुहाई दी गई, प्यार से भी समझाया गया और डांटने की भी कोशिश की, लेकिन जिस मां की मुस्कुराहट ही कभी दिशांत के लिए सब कुछ थी, अब उसके आंसू भी दिशांत का इरादा नहीं बदल पा रहे हैं.
क्या है मामला?
इसकी शुरुआत करीब 3 साल पहले हुई थी. 31 मई 2015 को दिशांत घर से यह कह कर निकला कि वह मंदिर जा रहा है. वह मंदिर तो गया,...
'घर में भूखी है मां, बाहर लंगर लगा... ऐसे इंसां कभी पूजे जाते नहीं.' गुजरात के अहमदाबाद में रहने वाले दिशांत को भी यही समझना जरूरी है. भगवान में उनकी ऐसी आस्था जागी है कि महज 26 साल की उम्र में ही उन्होंने अपनी बीटेक की पढ़ाई बीच में ही छोड़ दी और संन्यास धारण कर लिया है. दिशांत के लिए माता-पिता के प्यार से बढ़कर भगवान की आस्था है. जननी के आंसू भी उसकी भक्ति की शक्ति को हिला नहीं पाई. जिन हाथों की उंगलियां पकड़कर दिशांत ने चलना सीखा था, उन्हीं हाथों को जोड़कर मां-बाप उससे वापस चलने की भीख मांग रहे हैं. आखिरकार मां-बाप और बेटे का ये रिश्ता घर की दहलीज लांघकर थाने में जा पहुंचा है.
पुलिस बेबस दिख रही है, क्योंकि दिशांत बालिग है और उसे अपनी मर्जी से जिंदगी जीने का पूरा हक है. वहीं मां-बाप की दुविधा है कि इकलौता बेटा, जो कल बुढ़ापे की लाठी बनता, जिसकी परवरिश और पढ़ाई लिखाई में मां-बाप ने अपनी जमा पूंजी लुटा दी, वह घर आने के लिए तैयार ही नहीं है. थाने में मां-बाप के अलावा रिश्तेदार भी पहुंचे, दिशांत को रिश्तों की दुहाई दी गई, प्यार से भी समझाया गया और डांटने की भी कोशिश की, लेकिन जिस मां की मुस्कुराहट ही कभी दिशांत के लिए सब कुछ थी, अब उसके आंसू भी दिशांत का इरादा नहीं बदल पा रहे हैं.
क्या है मामला?
इसकी शुरुआत करीब 3 साल पहले हुई थी. 31 मई 2015 को दिशांत घर से यह कह कर निकला कि वह मंदिर जा रहा है. वह मंदिर तो गया, लेकिन वहां से वापस नहीं आया. जब माता-पिता उससे मिलने एस्कॉन मंदिर पहुंचे तो कथित रूप से मंदिर प्रशासन ने उन्हें अपने बेटे से ठीक से मिलने भी नहीं दिया. मां-बाप को अपने बच्चे का बर्ताव भी बदला हुआ लग रहा था.
कहीं ये कोई साजिश तो नहीं?
मां-बाप ने आरोप लगाया है कि मंदिर प्रशासन ने दिशांत का ब्रेनवॉश किया है. उनके अनुसार जब दिशांत बीटेक कर रहा था, उसी दौरान हरे कृष्ण मूवमेंट के लोग दिशांत से मिले और उसका ब्रेनवॉश कर दिया. अब मां-बाप ने अपना बेटा वापस पाने के लिए कानून की चौखट पर गुहार लगाई है. मां-बाप के आरोपों को ध्यान में रखते हुए पुलिस फिलहाल इस मामले की जांच भी कर रही है. मंदिर प्रशासन ने साफ किया है कि दिशांत बालिग है और अपनी मर्जी से मंदिर के साथ जुड़ा है, वह कोई बच्चा नहीं है, जिसका ब्रेनवॉश कर दिया गया है.
दिशांत नहीं चाहता घर आना
जहां एक ओर परिवार वाले मंदिर प्रशासन पर ब्रेन वॉश का आरोप लगा रहे हैं, वहीं बेटा कुछ और ही राग अलाप रहा है. दिशांत का कहना है कि वह अपनी मर्जी से हरे कृष्ण मूवमेंट से जुड़े हैं और ब्रेनवॉश के आरोप गलत हैं. आपको बता दें कि दिशांत 3 साल से एस्कॉन मंदिर में अपनी सेवाएं दे रहे हैं और साफ-साफ कह चुके हैं कि वह अब हरे कृष्णा मूवमेंट से जुड़ चुके हैं. हालांकि, जब दिशांत से पूछा गया कि एक बेटे की अपने मां-बाप के लिए भी कुछ जिम्मेदारी होती है तो वह बिना कुछ कहे ही चला गया.
पिता परेशान हैं कि अब वह 55 साल के हो चुके हैं. जिस बेटे को मां-बाप के बुढ़ापे की लाठी बनना था, वह संन्यासी बन गया. परेशानी ये है कि अब उनका ख्याल कौन रखेगा. बेटा तो संन्यास ले चुका है और किसी भी हालत में घर वापस आने के लिए तैयार नहीं है. अब घर की दहलीज लांघ कर थाने पहुंचा ये रिश्ता बचेगा या टूट जाएगा, ये तो वक्त ही बताएगा. लेकिन एक जवान बेटे का मां-बाप को छोड़कर भगवान का हो जाना हर मां-बाप के दिल में एक डर जरूर पैदा करता है. भगवान में आस्था होना अच्छी बात है, लेकिन भगवान की आस्था के लिए मां-बाप को लाचार छोड़ देना कहां तक जायज है?
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