एक कहावत है कि 'तरकश से निकला तीर और जुबान से निकले शब्द वापस नहीं आते' और इसका भान अक्सर लोगों को समय बीत जाने के बाद ही होता है. अब कहावत तो जो है सो है ही, इस कहावत को भारतीय क्रिकेट टीम के दो सदस्य शायद आजीवन भूल नहीं पाएंगे. जी मैं बात कर रहा हूं भारतीय टीम के दो युवा और प्रतिभाशाली सदस्यों की जिनको आजकल हर खेल प्रेमी किसी अच्छे नहीं बल्कि बुरे कारण से याद कर रहा है.
समय से पहले अगर बेपनाह शोहरत मिल जाए तो उसे पचा पाना सबके बस की बात नहीं होती. हर खिलाड़ी न तो राहुल द्रविड़ हो सकता है और न सचिन जो कि आजीवन बिना किसी विवाद में पड़े अपने खेल से ही सब कुछ कहते रहे. और वजह सिर्फ शोहरत ही नहीं है, आज का सामाजिक ढांचा भी कुछ ऐसा ही है जिसमें चर्चा में रहना बहुत जरुरी समझा जाता है और शराफत की वजह से शायद ही कोई चर्चा में रहता हो. और उसपर आजकल होने वाले टॉक शो जिनमें अमूमन आपसे उलटे सीधे सवाल ही किये जाते हैं और उनके वैसे ही जवाब भी अपेक्षित होते हैं.
हार्दिक पंड्या और के एल राहुल निःसंदेह बहुत अच्छे खिलाडी हैं और उनकी क्रिकेट प्रतिभा में कोई संदेह नहीं है. लेकिन इसके चलते उनको जो शोहरत अचानक मिलने लगती है, उसको बर्दाश्त कर पाने की न तो उनको आदत होती है और न अनुभव होता है. ऐसे में ये लोग जब भी पब्लिक के बीच में या स्टेडियम में भी जहां ये खेल रहे होते हैं, वहां हजारों लड़कियां इनके लिए चीखती चिल्लाती रहती हैं. ऐसा उनके खेल की वजह से होता है लेकिन ये खिलाड़ी उसे अपनी पर्स्नालिटी या पुरुष होने के दम्भ में गलत समझ लेते हैं. बहुत सी लड़कियां स्टेडियम में तख्ती भी लेकर बैठी रहती हैं जिसमें लिखा होता है कि "प्लीज मैरी मी", और ये खिलाडी...
एक कहावत है कि 'तरकश से निकला तीर और जुबान से निकले शब्द वापस नहीं आते' और इसका भान अक्सर लोगों को समय बीत जाने के बाद ही होता है. अब कहावत तो जो है सो है ही, इस कहावत को भारतीय क्रिकेट टीम के दो सदस्य शायद आजीवन भूल नहीं पाएंगे. जी मैं बात कर रहा हूं भारतीय टीम के दो युवा और प्रतिभाशाली सदस्यों की जिनको आजकल हर खेल प्रेमी किसी अच्छे नहीं बल्कि बुरे कारण से याद कर रहा है.
समय से पहले अगर बेपनाह शोहरत मिल जाए तो उसे पचा पाना सबके बस की बात नहीं होती. हर खिलाड़ी न तो राहुल द्रविड़ हो सकता है और न सचिन जो कि आजीवन बिना किसी विवाद में पड़े अपने खेल से ही सब कुछ कहते रहे. और वजह सिर्फ शोहरत ही नहीं है, आज का सामाजिक ढांचा भी कुछ ऐसा ही है जिसमें चर्चा में रहना बहुत जरुरी समझा जाता है और शराफत की वजह से शायद ही कोई चर्चा में रहता हो. और उसपर आजकल होने वाले टॉक शो जिनमें अमूमन आपसे उलटे सीधे सवाल ही किये जाते हैं और उनके वैसे ही जवाब भी अपेक्षित होते हैं.
हार्दिक पंड्या और के एल राहुल निःसंदेह बहुत अच्छे खिलाडी हैं और उनकी क्रिकेट प्रतिभा में कोई संदेह नहीं है. लेकिन इसके चलते उनको जो शोहरत अचानक मिलने लगती है, उसको बर्दाश्त कर पाने की न तो उनको आदत होती है और न अनुभव होता है. ऐसे में ये लोग जब भी पब्लिक के बीच में या स्टेडियम में भी जहां ये खेल रहे होते हैं, वहां हजारों लड़कियां इनके लिए चीखती चिल्लाती रहती हैं. ऐसा उनके खेल की वजह से होता है लेकिन ये खिलाड़ी उसे अपनी पर्स्नालिटी या पुरुष होने के दम्भ में गलत समझ लेते हैं. बहुत सी लड़कियां स्टेडियम में तख्ती भी लेकर बैठी रहती हैं जिसमें लिखा होता है कि "प्लीज मैरी मी", और ये खिलाडी समझने लगते हैं मानो समाज की हर लड़की इनके इशारे पर नाचने के लिए तैयार है.
अब ऐसे में जब कोई टॉक शो का होस्ट या कोई पत्रकार इनसे लड़कियों या महिलाओं के बारे में कोई सवाल करता है तो ये लोग भूल जाते हैं कि महिलाएं इन्हें पसंद जरूर करती हैं, लेकिन इसका मतलब यह नहीं होता कि वह इनकी व्यक्तिगत संपत्ति हैं. बस इसी वजह से ये जो मन में आए, बोल देते हैं और सोचते हैं कि इनकी शोहरत के चलते कोई इनपर उंगली नहीं उठाएगा. और इनके सामने कुछ ऐसे लोगों का उदहारण भी रहता है जो कुछ भी बोलकर या करके बेदाग निकल जाते हैं और समाज या लोग इनका कुछ भी बिगाड़ नहीं पाते.
ऐसे में जरुरत इस बात की है कि ऐसे खिलाडियों को न सिर्फ तुरंत सजा दी जाए, बल्कि उनको एकाध साल के लिए प्रतिबंधित कर दिया जाए जिससे अन्य युवा खिलाडियों को भी इसका आभास हो जाए. साथ ही साथ वरिष्ठ खिलाडियों की भी जिम्मेदारी बनती है कि युवा खिलाडियों को समझाएं और उनको अचानक मिलने वाली शोहरत को बर्दाश्त करने के लिए मार्गदर्शन करें.
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