शतरंज की बिसात में सबसे आगे खड़े होते हैं प्यादे. उनके पीछे ताकतवरों का जमावड़ा रहता है. वही तय करते हैं की कौन सा प्यादा किस समय चाल चलेगा और किस राजा के नाम पर मरेगा. यहां राजा में कोई चेहरा मत ढूंढिए बल्कि एक शब्द के कई चेहरे देखने की कोशिश कीजिये.
सत्ता
सरकार की सत्ता. समाज की सत्ता, पुरुषों की सत्ता, पुरुषों की सोच लेकर चलती हुई महिलाओं की सत्ता. तो शतरंज बिछी थी बरसों से. हम और आप उस पर शहीद भी हो रहे थे, बस अब कम्युनिकेशन की बदौलत उन्माद का नाच लाइव देख रहे हैं.
बात निकली है तो दूर तलक जाएगी
तो कर्नाटक के सरकारी कॉलेज से उठी हिजाब कॉन्ट्रोवर्सी चिंगारी से आग में तब्दील होने की पूरी तैयारी में है. हिजाब से उठी बात पहुंच गयी भगवा दुशालों पर और श्री राम के नारो तक. कॉलेज में हिजाब गलत है. कॉलेज में श्री राम का नारा भी गलत है.
नारे दुशाले और हिजाब से मन नहीं भरा और अपना वर्चस्व दिखाने को कॉलेज परिसर में तिरंगा हटाकर भगवा झंडा फहरा दिया गया ! पिछले साल छब्बीस जनवरी को भी उन्मादी लोगो ने तिरंगे के बदसलूकी की थी. हां दिन खास था, मीनार खास थी लेकिन तिरंगा? वो तो हर दिन हर रूप और हर इमारत पर खास ही होता है.
अब तिरंगे के अपमान पर छाती पीटने वाले सो गए या अंधे हो गए इसका पता चलते ही बताते हैं. कॉलेज के हिन्दू लड़कों ने झुण्ड बना कर एक लड़की को लगभद दौड़ाते और डराते हुए श्री राम के नारे लगाए और उस लड़की ने 'अल्ला हु अकबर' के जवाबी नारे लगाए.
पत्थरबाज़ी हुई आंसू गैस छोड़ी गई.
जिन्हे भी लगता है की 5000 साल पुराने धर्म को, 10 रूपये की मैगी भी पिता के पैसे से खाने वाले, उन्मादी लड़को ने...
शतरंज की बिसात में सबसे आगे खड़े होते हैं प्यादे. उनके पीछे ताकतवरों का जमावड़ा रहता है. वही तय करते हैं की कौन सा प्यादा किस समय चाल चलेगा और किस राजा के नाम पर मरेगा. यहां राजा में कोई चेहरा मत ढूंढिए बल्कि एक शब्द के कई चेहरे देखने की कोशिश कीजिये.
सत्ता
सरकार की सत्ता. समाज की सत्ता, पुरुषों की सत्ता, पुरुषों की सोच लेकर चलती हुई महिलाओं की सत्ता. तो शतरंज बिछी थी बरसों से. हम और आप उस पर शहीद भी हो रहे थे, बस अब कम्युनिकेशन की बदौलत उन्माद का नाच लाइव देख रहे हैं.
बात निकली है तो दूर तलक जाएगी
तो कर्नाटक के सरकारी कॉलेज से उठी हिजाब कॉन्ट्रोवर्सी चिंगारी से आग में तब्दील होने की पूरी तैयारी में है. हिजाब से उठी बात पहुंच गयी भगवा दुशालों पर और श्री राम के नारो तक. कॉलेज में हिजाब गलत है. कॉलेज में श्री राम का नारा भी गलत है.
नारे दुशाले और हिजाब से मन नहीं भरा और अपना वर्चस्व दिखाने को कॉलेज परिसर में तिरंगा हटाकर भगवा झंडा फहरा दिया गया ! पिछले साल छब्बीस जनवरी को भी उन्मादी लोगो ने तिरंगे के बदसलूकी की थी. हां दिन खास था, मीनार खास थी लेकिन तिरंगा? वो तो हर दिन हर रूप और हर इमारत पर खास ही होता है.
अब तिरंगे के अपमान पर छाती पीटने वाले सो गए या अंधे हो गए इसका पता चलते ही बताते हैं. कॉलेज के हिन्दू लड़कों ने झुण्ड बना कर एक लड़की को लगभद दौड़ाते और डराते हुए श्री राम के नारे लगाए और उस लड़की ने 'अल्ला हु अकबर' के जवाबी नारे लगाए.
पत्थरबाज़ी हुई आंसू गैस छोड़ी गई.
जिन्हे भी लगता है की 5000 साल पुराने धर्म को, 10 रूपये की मैगी भी पिता के पैसे से खाने वाले, उन्मादी लड़को ने बचाया है उन्हें बता दूं की हमारे इतने बुरे दिन नहीं आये. यकीनन कॉलेज का हर लड़का वहां नहीं रहा होगा क्योंकि कुछ- सरकारी नौकरी और आगे की पढ़ाई की तैयारी कर रहें होंगे. हमारा धर्म - धर्म न मानने की इजाज़त भी देता है!
और वो लड़की, उन लड़को के सामने डट कर खड़ी हुई डरी नहीं! दिल खुश हुआ. शाबाश लेकिन क्यों? तुमको हिजाब में क्यों रहना है इसकी वजह धर्म से परे बताओ. क्योंकि हर धर्म औरतों को धोखे में ही रखता है. डीप मेंटल कंडीशनिंग!
वी आर मेस्ड-अप पीपल
हम हिंदुस्तानी दिमागी तौर पर इतने स्तरों पर एक दूसरे को प्रताड़ित करते और प्रताड़ना सहते आये हैं की हम हर बुरी से बुरी चीज़ में भी किसी न किसी तरह की जीत/या वाजिब वजह खोज लेते हैं. हमे समस्या को हल करने से ज्यादा उसमे मकड़ी की तरह उलझते जाने में मज़ा मिलता है.
खाली लोग हैं हम भाई. समोसे चाय की दुकान पर लाइन लगा कर 2024 के चुनाव की चर्चा करते हैं और अपने वार्ड मेंबर का नाम तक नहीं जानते ! हमने अपने जीवन में कुछ नहीं उखाड़ा होता इसलिए अपने धर्म जाति बिरादरी का कोई कुछ करता है तो उसी का मशाल से अपना 170 x 170 पिक्सेल की फेसबुक डीपी चमका लेते हैं.
धर्म कॉलेज/शिक्षण संस्थान में गवारा नहीं.
स्कूलों और कॉलेजों में एक जैसी किताबें, एक सी पढाई, एक से कपड़े का चलन इसलिए है की किसी भी आधार पर विद्यार्थी अपने साथी को ऊंचा नीचा न समझे. सरनेम से धर्म जाति की परख करना हम बड़े ही सिखाते हैं. वरना बच्चे 'मुझे अच्छा लगता', बस इसी पर यारी करते हैं और शायद यही आधार भी है.
ऐसे में क़ानूनी तौर पर तय की गयी ड्रेस कोड हटा कर हिजाब पहनने की ज़िद! और बचकाना सा तर्ककि कॉलेज के ड्रेस कोड के रंग का है. किसका दिमाग है? अरिजीत के गाने पर साथ साथ झूमने वाली, सपने देखने वाली, दुनिया घूमने की इच्छा रखने लड़कियों की सोच इतनी अलग कैसे?
कल को दूसरे धर्म वाले नीली साड़ी या सूट में सर पर पल्ला रखवाकर भेजने लगेंगे, उसके अगले दिन क्या पता लड़के धोती कुर्ते में आ जाये. हमारा धर्म हमारे पसंद के कपड़े और पढ़ाई? आग लगा दी भाई !
बेतुका बहनापा
इसे लिखते हुए दुःख हो रहा है लेकिन सच है सो लिखना ज़रूरी है. अपने घर के आदमियों के सामने अपने पसंद के कपड़े पहनने की इच्छा ज़ाहिर करने की भी जिन आंटियों दीदियों की हिम्मत नहीं हैं जो गांव में, 'अरे इतना तो पर्दा है. गर्मी में जान निकल जाये.' कह कर दुखड़ा सोशल मिडिया पर रोती है जो अपने पिता भाई पति बेटे की गलत सोच को गलत न कह कर रिश्तों के नाम पर उसे नज़रअंदाज़ करने को रिश्ते निभाना कहती हैं. जो हॉट पैन्ट्स से ले जींस को कम्फर्ट और घूंघट को पिछड़ा मान गांव में रह रही अपनी देवरानी नंनद की हंसी उड़ाती या सहानुभूति दिखाती है वो महिलाएं- अभिव्यक्ति की आज़ादी के नाम पर बुर्के का समर्थन कर रही हैं?
सशक्तिकरण की जो बैंड बजायी है न दीदी तुमने !
सच बताना तुमने ये धर्म गुरुओं से साठ गांठ कर रखी है क्या? क्योंकि तुम शायद देख नहीं रही लेकिन पहले ये बच्चियां हिजाब 'अपनी मर्ज़ी', से पहन कर अपने ईश्वर, अपने धर्म के प्रति अपनी आस्था का प्रदर्शन करेंगी. जो भी घुट्टी पी हो इन्होने लेकिन सर से पैर तक ढंक कर ईश्वर के आगे जाने का नियम शायद (ज़्यादातर) मर्दों की घटिया कु.. ,क...नी नज़र से बचने का तरीका होता रहा होगा. क्योंकि मर्द तो आदम हौवे के समय से ही गर्त की सोच का कुछ हिस्सा दिमाग में पालता है न!
लेकिन आज ?
मर्द की जात (ज़्यादातर )वही है घटिया की घटिया ही है लेकिन पिछले सौ सालों में औरतों ने शिक्षा की रेस में दौड़ लगाई है और बराबरी पर आने लगी उससे पुरुषो की सत्ता की सांकल ज़रा सी खटकी ज़रूर है. औरतें हर बेकार के नियम पर प्रश्न उठाने लगी. कम से कम हिन्दू औरतों ने किया और धर्म इतना कमज़ोर भी नहीं निकला की हमारे सरकते पल्ले से मिटने लग जाये.
ऐसे में 2022 में ये नया पाठ - हिजाब पहनने की ज़िद्द को स्वीकारना और उसे हवा देना, अपनाना आपको भी धीरे धीरे वहां ले जायेगा जहां से हमारे श्री राम की परिधि खत्म और 'मनु स्मृति' की परिधि शुरू होती है. पढ़ी न हो तो पढ़ लीजिये.
ये पुरुषों की सत्ता और उनके बनाये धर्मों के वर्चस्व की लड़ाई है जिसमे औरतें प्यादों की तरह खड़ी हैं. पुरुषों द्वारा लिखे धर्म के कानूनों से अगर औरते चलने लगेंगी तो सिवा चार दीवारी और अंधेरे के कुछ और नहीं मिलेगा. दशकों की लड़ाई ज़िद्द और हिम्मत का नतीजा है की एक बड़ा तबका औरतों का बेहिचक बेहिजाब, बेपर्दा घूमता है. हिजाब का हक जीत भी गयीं तो यकीन जानिए औरते सिर्फ हारेंगी.
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