जब कॉलेज में ड्रेस कोड पहले से लागू कर दिया गया है तो फिर वहां बुर्का (Burqa) पहनकर जाने की जरूरत क्या है? क्लास में तो साथ पढ़ने वाले छात्र ही होते हैं, शिक्षक ही होते हैं उनके सामने बुर्के की क्या जरूरत है? हां अगर आप कहीं बाजार जाती हैं, धार्मिक स्थल जाती हैं और वहां आपको बुर्का पहनकर न जाने दिया जाए तो बात अलग है. वहां आप अपने लिए आवाज उठा सकती हैं मगर क्लास बुर्के की क्या जरूरत है?
बुर्के की बात इसलिए हो रही है क्योंकि उत्तर प्रदेश के मुरादाबाद हिंदू कॉलेज में कुछ मुस्लिम छात्राएं बुर्का पहनकर आई थीं. इसी कारण उनको एंट्री नहीं मिली. इसके बाद छात्राओं ने हंगामा कर दिया कि बुर्का पहनना हमारा अधिकार है. वे वहीं धरने पर बैठ गईं. उनका कहना है कि वे पहले भी बुर्का पहनकर आती थीं और आगे भी आएंगी. इसके बाद वहां सपा छात्र सभा के पदाधिकारी भी पहुंच गए और हंगमा करने लगे. इस मामले में कॉलेज प्रशासन का कहना है कि एक जनवरी से ड्रेस कोड लागू कर दिया गया है फिर भी छात्राएं बुर्का पहनकर आ गईं. इन छात्राओं के पार उनका आईकार्ड तक नहीं था.
भास्कर की रिपोर्ट के अनुसार, हिंदू पीजी कॉलेज के प्राचार्य डॉ. सत्यव्रत रावत का कहना है कि "हमने कॉलेज गेट पर चेंजिंग रूम बनवा दिया है. ड्रेस के साथ दुपट्टा या हिजाब पर हमें कोई आपत्ति नहीं है. इस ड्रेस कोड से छात्र और उनके परिवरा वाले खुश हैं. असल दिक्कत बाहरी तत्वों को हो रही है जो अक्सर कॉलेज में घूमते रहते थे. उनका कहना है कि अगर आज हम क्लास रूम तक बुर्का पहनकर जाने की अनुमति दे देंगे तो कल को दूसरे धर्म संप्रदाय के स्टूडेंट्स दूसरी मांग करेंगे."
हमारे हिसाब से यह सिर्फ...
जब कॉलेज में ड्रेस कोड पहले से लागू कर दिया गया है तो फिर वहां बुर्का (Burqa) पहनकर जाने की जरूरत क्या है? क्लास में तो साथ पढ़ने वाले छात्र ही होते हैं, शिक्षक ही होते हैं उनके सामने बुर्के की क्या जरूरत है? हां अगर आप कहीं बाजार जाती हैं, धार्मिक स्थल जाती हैं और वहां आपको बुर्का पहनकर न जाने दिया जाए तो बात अलग है. वहां आप अपने लिए आवाज उठा सकती हैं मगर क्लास बुर्के की क्या जरूरत है?
बुर्के की बात इसलिए हो रही है क्योंकि उत्तर प्रदेश के मुरादाबाद हिंदू कॉलेज में कुछ मुस्लिम छात्राएं बुर्का पहनकर आई थीं. इसी कारण उनको एंट्री नहीं मिली. इसके बाद छात्राओं ने हंगामा कर दिया कि बुर्का पहनना हमारा अधिकार है. वे वहीं धरने पर बैठ गईं. उनका कहना है कि वे पहले भी बुर्का पहनकर आती थीं और आगे भी आएंगी. इसके बाद वहां सपा छात्र सभा के पदाधिकारी भी पहुंच गए और हंगमा करने लगे. इस मामले में कॉलेज प्रशासन का कहना है कि एक जनवरी से ड्रेस कोड लागू कर दिया गया है फिर भी छात्राएं बुर्का पहनकर आ गईं. इन छात्राओं के पार उनका आईकार्ड तक नहीं था.
भास्कर की रिपोर्ट के अनुसार, हिंदू पीजी कॉलेज के प्राचार्य डॉ. सत्यव्रत रावत का कहना है कि "हमने कॉलेज गेट पर चेंजिंग रूम बनवा दिया है. ड्रेस के साथ दुपट्टा या हिजाब पर हमें कोई आपत्ति नहीं है. इस ड्रेस कोड से छात्र और उनके परिवरा वाले खुश हैं. असल दिक्कत बाहरी तत्वों को हो रही है जो अक्सर कॉलेज में घूमते रहते थे. उनका कहना है कि अगर आज हम क्लास रूम तक बुर्का पहनकर जाने की अनुमति दे देंगे तो कल को दूसरे धर्म संप्रदाय के स्टूडेंट्स दूसरी मांग करेंगे."
हमारे हिसाब से यह सिर्फ राजनीति है और कुछ नहीं. इसके जरिए सिर्फ बुर्के का प्रचार किया जा रहा है. तालिबान में महिलाओं को घऱ की चारदीवारी में कैद कर दिया गया है. उनकी एजुकेशन पर रोक लगा दी गई है. वे रो रही हैं. वे पढ़ने के लिए तरस रही हैं. अगर क्लास में बुर्के से इतनी परेशानी है तो फिर इन छात्राओं को भी घर से बाहर ही नहीं निकलना चाहिए. खुद को पूरी तरह कैद करने के लिए घर की चारदीवारी से बेहतर कौन सी जगह है?
ईरान में ठीक से बुर्का ना पहनने के कारण महशा अमीनी को मौत की नींद सुला दी गई, और हमारे यहां क्लास में पढ़ते वक्त भी बुर्के की मांग की जा रही है, इसे आप क्या कहेंगे? आखिर क्लास में किसके सामने पर्दा करना है?
इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.