जब मैं छोटी थी तब अगर गलती से कभी बाल लंबे हो गए और वो खुले भी हैं तो पापा कहते- 'क्या चुड़ैल जैसे बाल खोलकर घूम रही हो. जाओ बाल बांधो. तेल क्यों नहीं लगाया?' लेकिन आज अमूमन हर लड़की बाल खोलकर रखती है. अब इसे फैशन कहें या फिर पसंद. इसमें कोई खास बुराई किसी को दिखती भी नहीं, बल्कि लड़कों को तो लड़कियों के खुले बाल ही पसंद आते हैं. खैर ये बात और है कि बड़े-बुजुर्गों के अलावा भी कई लोग और हिंदू जनजागृति समिति जैसे संस्थाएं हैं जो महिलाओं के इस पसंद को बुरा मानते हैं. हिंदू जनजागृति समिति खुले बाल वाली महिलाओं की तुलना डरावनी फिल्मों की 'महिला भूत' करते हैं.
हिंदू जनजागृति समिति की वेबसाइट पर महिलाओं के खुले बाल रखने की जो परिभाषा दी गई है वो अपने आप में ही बहस का एक विषय है.
वेबसाइट पर लिखा है कि हमारे सभी पौराणिक कथाओं में महिलाओं को बाल बंधे हुए और जुड़े में ही दिखाया जाता था. यहां तक की हमारे धर्म की सभी देवियों के बाल बंधे होते थे. तो फिर आखिर आज 21 वीं सदी में रहकर महिलाओं की इतनी हिम्मत कैसे हुई कि वो बाल खोलकर घूम रही हैं? ऊपर से देखने में भले ही महिलाओं के खुले बाल अच्छे लगते हों लेकिन इससे औरतें नकारात्मक ऊर्जा को बुलावा देती हैं.
समिति की वेबसाइट के अनुसार, खुले बालों की वजह से महिलाएं ज्यादा इमोशनल हो जाती हैं जिससे वो ऐसे काम करने पर मजबूर हो जाती हैं जो वे सामान्य रूप से नहीं करना चाहतीं. जिसके कारण औरतों में डिप्रेशन, चिंता के साथ-साथ सेक्स करने के लिए भी तीव्र इच्छा जागृत होती है. तो अगर आप अकेले घर के बाहर हैं और इस वक्त आपको सेक्स करने की इच्छा हो, तो बाल...
जब मैं छोटी थी तब अगर गलती से कभी बाल लंबे हो गए और वो खुले भी हैं तो पापा कहते- 'क्या चुड़ैल जैसे बाल खोलकर घूम रही हो. जाओ बाल बांधो. तेल क्यों नहीं लगाया?' लेकिन आज अमूमन हर लड़की बाल खोलकर रखती है. अब इसे फैशन कहें या फिर पसंद. इसमें कोई खास बुराई किसी को दिखती भी नहीं, बल्कि लड़कों को तो लड़कियों के खुले बाल ही पसंद आते हैं. खैर ये बात और है कि बड़े-बुजुर्गों के अलावा भी कई लोग और हिंदू जनजागृति समिति जैसे संस्थाएं हैं जो महिलाओं के इस पसंद को बुरा मानते हैं. हिंदू जनजागृति समिति खुले बाल वाली महिलाओं की तुलना डरावनी फिल्मों की 'महिला भूत' करते हैं.
हिंदू जनजागृति समिति की वेबसाइट पर महिलाओं के खुले बाल रखने की जो परिभाषा दी गई है वो अपने आप में ही बहस का एक विषय है.
वेबसाइट पर लिखा है कि हमारे सभी पौराणिक कथाओं में महिलाओं को बाल बंधे हुए और जुड़े में ही दिखाया जाता था. यहां तक की हमारे धर्म की सभी देवियों के बाल बंधे होते थे. तो फिर आखिर आज 21 वीं सदी में रहकर महिलाओं की इतनी हिम्मत कैसे हुई कि वो बाल खोलकर घूम रही हैं? ऊपर से देखने में भले ही महिलाओं के खुले बाल अच्छे लगते हों लेकिन इससे औरतें नकारात्मक ऊर्जा को बुलावा देती हैं.
समिति की वेबसाइट के अनुसार, खुले बालों की वजह से महिलाएं ज्यादा इमोशनल हो जाती हैं जिससे वो ऐसे काम करने पर मजबूर हो जाती हैं जो वे सामान्य रूप से नहीं करना चाहतीं. जिसके कारण औरतों में डिप्रेशन, चिंता के साथ-साथ सेक्स करने के लिए भी तीव्र इच्छा जागृत होती है. तो अगर आप अकेले घर के बाहर हैं और इस वक्त आपको सेक्स करने की इच्छा हो, तो बाल बांध लें सब ठीक हो जाएगा. इतना सब पढ़कर अगर मेरी तरह आपको भी ये फीलिंग आ रही है कि इन लोगों को गोली मार दें तो इसका दोष भी हम अपने खुले बालों और इसके साथ आने वाली निगेटिव एनर्जी को दे सकते हैं. हैं ना?
यही नहीं अगर आपको आजतक लगता था कि छोटे बाल कराने से बाल स्वस्थ और सुंदर लगते हैं तो ये जितनी जल्दी हो सके ये गलतफहमी अपने दिमाग से निकाल दें. असलियत ये है कि छोटे बालों की वजह से महिलाएं निगेटिव एनर्जी को आकर्षित करती हैं.
वहीं दूसरी तरफ पुरुषों के छोटे और खुले बालों के लिए भी इनके पास तर्क है. वेबसाइट पर कहा गया है कि पुरुष सामान्यत: असंवेदनशील और कम भावनात्मक होते हैं. तो इस वजह से उन पर निगेटिव एनर्जी का असर नहीं होता.
अगर आपको इतना पढ़कर भी चक्कर नहीं आया तो इनके 'आध्यात्मिक सुझावों' पर एक नजर मार लें. अगर उल्टी ना आ जाए तो कहना. वेबसाइट के मुताबिक अगर औरत को मजबूरी में घर के बाहर खुले बाल के साथ जाना पड़ रहा है तो घर से बाहर निकलने के पहले बालों को बिल्कुल हल्का सा बांध लें. इससे औरतों के शरीर की तरफ आने वाली नकारात्म ऊर्जा में कमी आएगी!
पता नहीं ये औरतें भी किस जमाने में रहती हैं. महिला अधिकार और आजादी की बात सुन-सुनकर इनका भी दिमाग खराब हो गया है. मेरी बात मानिए अगर खुशहाल जीवन चाहिए तो इस वेबसाइट के फॉलो कीजिए और प्रकृति की पॉजीटिव ताकतों को अपने पास बुलाइए. अरे दुखी रहने के लिए पुरुष बने हैं ना.
आप भले ही अब तक अपना सिर पीट रही होंगी लेकिन शर्म इनको कभी नहीं आएगी. यकीन मानिए.
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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.