हिन्दुस्तान त्योहारों का देश है और यहां विभिन्न धर्मों के इतने ज्यादा त्योहार मनाये जाते हैं कि अगर आपको इनकी गिनती करना हो तो शायद आधा दिन लग जाए. त्योहार इस देश की खूबसूरती हैं और इनके बिना हम जीने की कल्पना भी नहीं कर सकते. अगर हम हिन्दू धर्म के त्योहारों की बात करें तो इसमें होली, दिवाली और दशहरा मुख्य हैं और अभी अभी रंगों का त्योहार होली बीता है. वैसे मध्य प्रदेश में होली से ज्यादा रंग इसके पांचवे दिन मनाये जाने वाले त्योहार रंग पंचमी को खेला जाता है और बाहरी प्रदेश के लोगों जिनमे मैं भी आता हूं, के लिए यह एक बेहद सुखद बात है (होली खेलने वालों को अगर साल में एक दिन के बदले दो दिन होली खेलने को मिले उनके आनंद की कल्पना की जा सकती है). और होली के लिए एक बात बहुत जोर शोर से कही जाती है कि 'बुरा न मानो, होली है'. सामान्य परिस्थिति में यह बिलकुल ठीक लगता है कि होली खेलने में बुरा क्या मानना. लेकिन अगर हम गौर से होली खेलने के तरीकों को देखें तो लगेगा कि होली में खूब बुरा माना जा सकता है. होली का त्योहार परंपरागत रूप से प्रेम और भाईचारे का त्योहार माना जाता है और इसमें कहीं से भी किसी भी प्रकार की बदमाशी, जबरदस्ती और नफरत के लिए कोई जगह नहीं होनी चाहिए. लेकिन वास्तविकता में क्या होता है, ये हम सब को पता है.
होलिका दहन की तैयारी से इस त्योहार की शुरुआत होती है और इसी समय से इससे जुड़ी बदमाशियां भी शुरू हो जाती हैं. दरअसल फागुन के शुरुआत से ही फगुआ गीत बजने शुरू हो जाते हैं और हर मोहल्ले तथा गली की पान सिगरेट की दूकान पर स्पीकर लगाकर बजाये जाते हैं. एक समय था जब ये गीत कर्णप्रिय और मधुर हुआ करते थे लेकिन पिछले 15-20 सालों में ये गाने इतने अश्लील और...
हिन्दुस्तान त्योहारों का देश है और यहां विभिन्न धर्मों के इतने ज्यादा त्योहार मनाये जाते हैं कि अगर आपको इनकी गिनती करना हो तो शायद आधा दिन लग जाए. त्योहार इस देश की खूबसूरती हैं और इनके बिना हम जीने की कल्पना भी नहीं कर सकते. अगर हम हिन्दू धर्म के त्योहारों की बात करें तो इसमें होली, दिवाली और दशहरा मुख्य हैं और अभी अभी रंगों का त्योहार होली बीता है. वैसे मध्य प्रदेश में होली से ज्यादा रंग इसके पांचवे दिन मनाये जाने वाले त्योहार रंग पंचमी को खेला जाता है और बाहरी प्रदेश के लोगों जिनमे मैं भी आता हूं, के लिए यह एक बेहद सुखद बात है (होली खेलने वालों को अगर साल में एक दिन के बदले दो दिन होली खेलने को मिले उनके आनंद की कल्पना की जा सकती है). और होली के लिए एक बात बहुत जोर शोर से कही जाती है कि 'बुरा न मानो, होली है'. सामान्य परिस्थिति में यह बिलकुल ठीक लगता है कि होली खेलने में बुरा क्या मानना. लेकिन अगर हम गौर से होली खेलने के तरीकों को देखें तो लगेगा कि होली में खूब बुरा माना जा सकता है. होली का त्योहार परंपरागत रूप से प्रेम और भाईचारे का त्योहार माना जाता है और इसमें कहीं से भी किसी भी प्रकार की बदमाशी, जबरदस्ती और नफरत के लिए कोई जगह नहीं होनी चाहिए. लेकिन वास्तविकता में क्या होता है, ये हम सब को पता है.
होलिका दहन की तैयारी से इस त्योहार की शुरुआत होती है और इसी समय से इससे जुड़ी बदमाशियां भी शुरू हो जाती हैं. दरअसल फागुन के शुरुआत से ही फगुआ गीत बजने शुरू हो जाते हैं और हर मोहल्ले तथा गली की पान सिगरेट की दूकान पर स्पीकर लगाकर बजाये जाते हैं. एक समय था जब ये गीत कर्णप्रिय और मधुर हुआ करते थे लेकिन पिछले 15-20 सालों में ये गाने इतने अश्लील और दोअर्थी हो चुके हैं कि कोई भी सामान्य पुरुष तक इनको बर्दास्त नहीं कर सकता. ऐसे में महिलाओं और लड़कियों की स्थिति का सहज ही अंदाजा लगाया जा सकता है. उनके लिए ऐसे गानों को सुनते हुए रोज स्कूल कालेज जाना नरक झेलने के बराबर होता है. अब अगर इन गानों को बजने से आप रोकते हैं तो आपको इनकी बत्तमीजी और गुंडागर्दी झेलने को तैयार रहना पड़ेगा.
होलिका जलाने के नाम पर आपसी दुश्मनी खूब सधाई जाती है, अगर होलिका कमेटी के किसी सदस्य का किसी से किसी बात को लेकर झगड़ा है तो उसके घर से होलिका में जलाने के लिए कुछ भी उठाया जा सकता है और कोई इसका विरोध भी नहीं कर सकता है. होली मनाने का मतलब है कि आप लोगों को नुक्सान नहीं करने वाले रंग या गुलाल से रंग दीजिये लेकिन हक़ीक़त में इसका उलट ही होता है. होली खेलने के पहले ही अधिकांश पुरुष मदिरापान करना आवश्यक समझते हैं और उसके बाद रंग या गुलाल तो किनारे हो जाते हैं, होली खेली जाती है कीचड़ से, पेण्ट से, वार्निश से और यहां तक कि नाली के पानी से. कपडे फाड़ना और जबरदस्ती ऐसी जगहों पर रंग लगाना, जहां गलत है, यह सब सामान्य होली का अंग बन गया है.
मोहल्लों, गांवों और शहरों में टोलिया निकलती हैं और उनमें अधिकांश लोग नशे में धुत्त रहते हैं. अब ये टोली जिसके भी घर जाती है वहां अगर कोई होली नहीं खेलना चाहता है तो उसे हर हाल में रंग और कीचड़ इत्यादि लगाया जाता है. अब जरुरी तो नहीं है कि हर व्यक्ति रंग खेलना पसंद ही करता है, कुछ लोगों को नहीं अच्छा लगता है तो कुछ लोगों को एलर्जी भी होती है. लेकिन ऐसे लोग तो इस टोली के लिए सबसे जरुरी लोग होते है जिनको रंग लगाए बिना त्योहार मनाया ही नहीं जा सकता है. अगर किसी घर से लोग बाहर नहीं निकलते हैं तो उस घर के सामने गन्दगी जरूर की जाती है.
आप सड़क पर निकल जाईये, कुछ अधनंगे लोग शराब के नशे में सड़क पर गिरे मिलते हैं तो कुछ नालियों में पड़े मिलते हैं. अश्लील गालियां इस त्योहार की सबसे जरुरी चीज है और लड़कियों और महिलाओं को विशेष रूप से निशाना बनाया जाता है. रंग लगाने के बहाने छेड़खानी करना बेहद आम है और यही वजह है कि लड़कियां होली के दिन सड़क पर नहीं निकलती हैं. दुकानों के कांच, खिड़कियां, शीशे की होर्डिंग्स और सरकारी सम्पत्तियों को जम कर नुक्सान पंहुचाया जाता है.
होली के दो दिन पहले से ही लड़कियों को निशाना बनाकर पानी और रंग के गुब्बारे फेंकना आम बात है और इससे उनको कितनी दिक्कत होती है, इससे इन शोहदों को कोई मतलब नहीं होता है. किसी बुजुर्ग की तबियत ख़राब हो या कोई हस्पताल ही क्यों न जा रहा हो, होली खेलने वालों को कोई फ़र्क़ नहीं पड़ता. वो तो ऐसे लोगों से होली खेलना आवश्यक समझते हैं. गैर धर्म के लोगों को, जो होली नहीं खेलना चाहते हैं, जबरदस्ती रंग लगाना कहां की शराफत है लेकिन यह उनको आवश्यक लगता है.
घरों में घुसकर महिलाओं के साथ जबरदस्ती रंग खेलने के बहाने बत्तमीजी करना कहां का त्योहार मनाना है. फिर रंग खेलने के बाद पानी की धार बहाकर उसमें नहाना और पानी बर्बाद करना भी होली का अभिन्न अंग है. किसी त्योहार को मनाने के पीछे समाज में ख़ुशी का संचार करने की भावना होती है लेकिन होली के साथ तमाम गलत चीजें जुड़ गयी हैं. जब तक हम सब इन पहलुओं पर गंभीरता से विचार नहीं करेंगे, जब तक हम इसका बुरा नहीं मानते, तब तक इसे सच्चे अर्थों में नहीं मना पाएंगे.
होली पर एक दूसरे पर प्यार के रंग डालिये, आपस में मोहब्बत बढाईये और कोई भी ऐसी हरकत मत कीजिये जिससे दूसरों को तकलीफ पहुंचती हो. फिर देखिये आपको आएगा असली त्योहार का मजा, असली होली का मजा.
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