कोरोना की दूसरी लहर के बीच भी होली (Holi 2021) का खुमार ठंडा नहीं पड़ा और लोगों ने जमकर होली मनाई. परंपरा के अनुसार, होलिका दहन के साथ शुरू हुए रंगों के महोत्सव का भाईदूज को समापन हो गया. पूरे देश में होली पर एक ही दिन रंग, अबीर, गुलाल खेला जाता है. लेकिन, हिंदुस्तान में कानपुर ऐसा इकलौता शहर है, जहां होली का त्योहार सात दिनों तक चलता है. उत्तर प्रदेश के कानपुर शहर में होली का समापन गंगा मेला (Ganga Mela) के साथ होता है. होलिका दहन के सातवें दिन कानपुर शहर एक बार फिर रंगों से सराबोर होकर होली खत्म करता है. कहा जाता है कि सात दिनों तक होली का त्योहार मनाने की अनोखी परंपरा आजादी के दीवानों ने डाली थी. आइए जानते हैं कि कानपुर में होली का त्योहार सात दिनों तक चलने की परंपरा कैसे पड़ी और इसका इतिहास क्या है?
कानपुर में गंगा मेला तक होली खेलने की परंपरा 1942 में अंग्रेजों के विरोध में पड़ी थी. किसी समय 'पूरब का मेनचेस्टर' कहे जाने वाले कानपुर का हटिया बाजार का इलाका व्यापारियों के साथ ही आजादी के आंदोलन में हिस्सा लेने वाले क्रांतिकारियों का भी डेरा माना जाता था. ब्रिटिश राज के दौरान 1942 में तत्कालीन कानपुर जिलाधिकारी ने होली खेलने पर प्रतिबंध लगा दिया था. इस प्रतिबंध को तोड़ते हुए हटिया इलाके में होली खेल रहे लोगों में से किसी ने एक अंग्रेज अधिकारी के ऊपर रंग डाल दिया. इससे भड़के अंग्रेज अधिकारी ने बहुत से लोगों को ब्रिटिश सरकार के खिलाफ साजिश के आरोप में सरसैया घाट स्थित कारागार में डाल दिया.
इस घटना से अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ लोगों का गुस्सा फूट पड़ा. लेकिन, उन्होंने गांधीवादी तरीके से अपने आंदोलन को हवा दी. गिरफ्तार...
कोरोना की दूसरी लहर के बीच भी होली (Holi 2021) का खुमार ठंडा नहीं पड़ा और लोगों ने जमकर होली मनाई. परंपरा के अनुसार, होलिका दहन के साथ शुरू हुए रंगों के महोत्सव का भाईदूज को समापन हो गया. पूरे देश में होली पर एक ही दिन रंग, अबीर, गुलाल खेला जाता है. लेकिन, हिंदुस्तान में कानपुर ऐसा इकलौता शहर है, जहां होली का त्योहार सात दिनों तक चलता है. उत्तर प्रदेश के कानपुर शहर में होली का समापन गंगा मेला (Ganga Mela) के साथ होता है. होलिका दहन के सातवें दिन कानपुर शहर एक बार फिर रंगों से सराबोर होकर होली खत्म करता है. कहा जाता है कि सात दिनों तक होली का त्योहार मनाने की अनोखी परंपरा आजादी के दीवानों ने डाली थी. आइए जानते हैं कि कानपुर में होली का त्योहार सात दिनों तक चलने की परंपरा कैसे पड़ी और इसका इतिहास क्या है?
कानपुर में गंगा मेला तक होली खेलने की परंपरा 1942 में अंग्रेजों के विरोध में पड़ी थी. किसी समय 'पूरब का मेनचेस्टर' कहे जाने वाले कानपुर का हटिया बाजार का इलाका व्यापारियों के साथ ही आजादी के आंदोलन में हिस्सा लेने वाले क्रांतिकारियों का भी डेरा माना जाता था. ब्रिटिश राज के दौरान 1942 में तत्कालीन कानपुर जिलाधिकारी ने होली खेलने पर प्रतिबंध लगा दिया था. इस प्रतिबंध को तोड़ते हुए हटिया इलाके में होली खेल रहे लोगों में से किसी ने एक अंग्रेज अधिकारी के ऊपर रंग डाल दिया. इससे भड़के अंग्रेज अधिकारी ने बहुत से लोगों को ब्रिटिश सरकार के खिलाफ साजिश के आरोप में सरसैया घाट स्थित कारागार में डाल दिया.
इस घटना से अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ लोगों का गुस्सा फूट पड़ा. लेकिन, उन्होंने गांधीवादी तरीके से अपने आंदोलन को हवा दी. गिरफ्तार किए गए लोगों को छुड़ाने के लिए सात दिनों तक रंग और गुलाल खेला जाता रहा. सात दिनों तक चले आंदोलन से घबराकर अंग्रेज अधिकारियों ने क्रांतिकारियों को छोड़ने का फैसला किया. आजादी के दीवानों को रिहा किया गया, तो उस दिन अनुराधा नक्षत्र था. रिहा होने के बाद इन सभी लोगों ने होली खेली और सरसैया घाट में गंगा स्नान किया. उस समय बनी ये परंपरा आज भी बदस्तूर जारी है.
रोहिणी नक्षत्र में होलिका दहन के साथ शुरू होनी वाली होली का कानपुर में समापन अनुराधा नक्षत्र में होता है. होलिका दहन के बाद 5वें, 6वें या 7वें दिन जब भी अनुराधा नक्षत्र पड़ता है, गंगा मेला का आयोजन कर होली के त्योहार का समापन किया जाता है. गंगा मेला पर हटिया इलाके में आज भी होलियारों की टोली ढोल-नगाड़ों के साथ रंगों का ठेला निकालती है. सरसैया घाट पर हर साल गंगा मेला का आयोजन होता है और राजनीतिक दलों, सामाजिक संस्थाओं और धार्मिक संस्थाओं के स्टाल लगाए जाते हैं. पूरे शहर के लोग गंगा मेला पर इकट्ठा होते हैं और गुलाल से होली खेलकर एकदूसरे को बधाई देते हैं. कहा जाता है कि आजादी के बाद कानपुर में सात दिनों तक खेली जाने वाली होली की परंपरा को एक दिन तक ही सीमित करने की कोशिश कई लोगों ने की, लेकिन सफल नहीं हुए.
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