महिलाओं (Women) की जिंदगी दूसरों के लिए ही बनी है, दुनिया ने शायद यही मान लिया है...तभी तो अगर कोई औरत अपने बारे में सोचती है तो उसे स्वार्थी करार दिया जाता है. समाज के लोगों ने महिलाओं को देवी की उपाधि देकर उन्हें त्यागी की मूर्ति बना दी. अब चाहें दुख हो या सुख...वह अपनी भावनाओं को अपने अंदर दबा लेती है.
वे मन ही मन कुढ़ती हैं, रोती हैं मगर अपने सिर पर जिम्मेदारियों का बोझ लिए उम्र काट देती हैं. मैंने कई महिलाओं को कभी आराम करते नहीं देखा. वे सुबह जल्दी जग जाती हैं और सबसे पहले रसोई में चाय बनाती हैं ताकी बाकी घरवालें जब जगे तो उन्हें चाय के लिए इंतजार ना करना पड़े.
यहां हर उम्र की महिला के लिए काम है. घर में एक गिलास पानी लाना हो तो घरवालों को बेटी की याद आती है. वह थोड़ी बड़ी होकर छोटे भाई की बड़ी मां ही बन जाती है. वह घर के कामों में मां का हाथ बटाती है. शादी के बाद पत्नी का धर्म, बहू का धर्म, मां का धर्म, मामी, चाची, दादी, नानी और पता नहीं कितने रिश्तों का धर्म निभाती है. अरे महिला तो अपने बुढ़ापे में भी आराम नहीं करती है...ऐसा करने के लिए उसे कोई कहता नहीं है बल्कि उसकी परवरिश की इस हिसाब से की गई है.
औरत कई बार चाहकर भी अपने दिल की बात नहीं कहती है, क्योंकि उसे आदर्श गृहिणी के रूप में जज किए जाने का डर रहता है...समाज के लोग उस महिला को आदर्श मानते हैं जो अपनी इच्छाओं को मारते हुए बिना थके, बिना आराम किए चक्की की तरह दिन-रात पिसती रहती है. दुनिया वाले उस महिला की तारीफ करते हैं जो बीमार हालत में भी अपने बच्चों के लिए रोटी सेंकती है.
घरेलू हों चाहें कामकाजी, कुछ काम ऐसे हैं जो महिलाओं को ही करने होते हैं. एक औरत को...
महिलाओं (Women) की जिंदगी दूसरों के लिए ही बनी है, दुनिया ने शायद यही मान लिया है...तभी तो अगर कोई औरत अपने बारे में सोचती है तो उसे स्वार्थी करार दिया जाता है. समाज के लोगों ने महिलाओं को देवी की उपाधि देकर उन्हें त्यागी की मूर्ति बना दी. अब चाहें दुख हो या सुख...वह अपनी भावनाओं को अपने अंदर दबा लेती है.
वे मन ही मन कुढ़ती हैं, रोती हैं मगर अपने सिर पर जिम्मेदारियों का बोझ लिए उम्र काट देती हैं. मैंने कई महिलाओं को कभी आराम करते नहीं देखा. वे सुबह जल्दी जग जाती हैं और सबसे पहले रसोई में चाय बनाती हैं ताकी बाकी घरवालें जब जगे तो उन्हें चाय के लिए इंतजार ना करना पड़े.
यहां हर उम्र की महिला के लिए काम है. घर में एक गिलास पानी लाना हो तो घरवालों को बेटी की याद आती है. वह थोड़ी बड़ी होकर छोटे भाई की बड़ी मां ही बन जाती है. वह घर के कामों में मां का हाथ बटाती है. शादी के बाद पत्नी का धर्म, बहू का धर्म, मां का धर्म, मामी, चाची, दादी, नानी और पता नहीं कितने रिश्तों का धर्म निभाती है. अरे महिला तो अपने बुढ़ापे में भी आराम नहीं करती है...ऐसा करने के लिए उसे कोई कहता नहीं है बल्कि उसकी परवरिश की इस हिसाब से की गई है.
औरत कई बार चाहकर भी अपने दिल की बात नहीं कहती है, क्योंकि उसे आदर्श गृहिणी के रूप में जज किए जाने का डर रहता है...समाज के लोग उस महिला को आदर्श मानते हैं जो अपनी इच्छाओं को मारते हुए बिना थके, बिना आराम किए चक्की की तरह दिन-रात पिसती रहती है. दुनिया वाले उस महिला की तारीफ करते हैं जो बीमार हालत में भी अपने बच्चों के लिए रोटी सेंकती है.
घरेलू हों चाहें कामकाजी, कुछ काम ऐसे हैं जो महिलाओं को ही करने होते हैं. एक औरत को ऑफिस से तो वीकऑफ मिल जाता है लेकिन घर के कामों और जिम्मेदारियों से उसे कभी छुट्टी नहीं मिलती. इसके बावजूद उससे उम्मीद की जाती है कि वह खुश दिखे, और हर पल चहकती रहे...
ऐसे में हम तो महिलाओं से यही कहेंगे कि अपनी आदतों में कुछ बदवाल लाइए और अपने लिए थोड़ा जीना शुरु कीजिए, यकीन मानिए इसमें कोई बुराई नहीं है, अपनी खुशियों के बारे में सोचना स्वार्थी होना नहीं है.
1- दूसरों को अच्छा महसूस करवाना आपकी जॉब नहीं है, चाहें पति हों या घरवाले. उनके खराब मूड को हर वक्त ठीक करने की जिम्मेदारी छोड़ दीजिए.
2- अपने पैसे खर्च कर दूसरों को खुश रखने में महिलाएं पिस जाती हैं. उनसे उम्मीद की जाती है कि वह घर के सदस्यों के लिए कुछ ना कुछ हमेशा करती रहे.
3- महिलाएं हमेशा अपने खुशियां, अपने सपनों से समझौता करती हैं, ताकि उनका घर ना टूटे और उनके घर में शांति बनी रहे.
4- महिलाओं को हर बात में हां कहना छोड़ देना चाहिए जो काम आपकी क्षमता से बाहर है उसके लिए हां मत कहिए.
5- आराम करना आपका अधिकार है, आप कोई मशीन नहीं है जिसे कभी थकान नहीं होती है. अरे मशीन भी खराब हो जाती है.
6- महिलाएं एक-एक पैसा घर खर्च से बचाकर जोड़ती हैं लेकिन उसे खुद पर खर्च करने से डरती हैं, अब आप इस भय को खुद से दूर कर दीजिए.
7- महिलाएं दूसरों की नजरों में परफेक्ट दिखने के लिए उनके हिसाब से खुद को बदलती रहती हैं, इस तरह उनकी पसंद मायने ही नहीं रखती है.
8- महिलाएं अपनी जरूरतें पूरी नहीं करती हैं, वे इसे भविष्य काल में टालती जाती हैं और कल कभी नहीं आता. इस तरह उनके अरमान धरे के धरे रह जाते हैं.
9- अपनी इच्छाओं को मारने में महिलाएं आगे रहती हैं. वे सबकी ख्वाहिशें पूरी करने में खुद को भूला देती हैं. अरे वे तो खाना भी दूसरों की पसंद का बनाती हैं.
10- महिलाएं खुद की वैल्यू नहीं करतीं, वे दूसरों का सम्मान करने में अपनी सेल्फ रिस्पेक्ट को पीछे छोड़ देती हैं, ऐसा लगता है कि वे दूसरों के लिए हमेशा फ्री हैं.
11- महिलाओं की गलती यह है कि वे अपनी हेल्थ को तब तक इग्नोर करती रहती हैं, जब तक उनकी हालात सीरियस ना हो जाए. वे डॉक्टर के नाम से घबराती हैं.
12- महिलाएं खुद को काम में इतना व्यस्त कर लेती हैं कि वे अपने आप को ही समय नहीं दे पाती हैं, उनकी नींद भी शायद की कभी पूरी होती होगी.
महिलाओं को समझना होगा कि उनकी जिंदगी हमेशा दूसरों का दर्द कम करने के लिए नहीं है. उन्हें भी खुश रहने का अधिकार है. अपनी छोटी-छोटी ख्वाहिशों को पूरा करने का अधिकार है. अपने बारे में सोचने का अधिकार है. पति और परिवार का ख्याल रखने में खुद को भुला देने वाली महिलाओं को खुलकर जिंदगी जीने का अधिकार है.
इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.