अब केरल के कोल्लम के पुत्तिंगल मंदिर में भयानक हादसा हो गया. वहां पर आग लगने से सौ से ज्यादा लोगों की मौत हो चुकी है. सैकड़ों के घायल होने की खबर है. मालूम चला है कि सुबह 3 बजे के करीब मंदिर में एक समारोह के दौरान आतिशबाजी की जा रही थी जिसे देखने के लिए मैदान पर हजारों लोग उपस्थित थे. पटाखे फोड़ने के दौरान चिंगारियां पास के गोदाम तक पहुंच गई जहां पटाखों का ढेर रखा हुआ था. पटाखों में आग लगने लगी तो उधर मौजूद लोग जान-बचाने के लिए भी दाएं-बाएं भागने लगे.
क्या भीड़ को नियंत्रण करना नामुमकिन काम है? जिसकी वजह से भीड़ में भगदड़ मच जाती है. दरअसल बड़े आयोजनों में एकत्र भीड़ को निकलने के पर्याप्त मार्ग ना मिलने के कारण ही हादसे होते हैं. कोल्लम हादसे से पहले पिछले साल हमारे यहां दो धार्मिक आयोजनों में भगदड़ के कारण बहुत से मासूम मारे गए. पहली घटना आंध्र प्रदेश की है. पिछले साल मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू पुष्करम मेले में सपरिवार स्नान करने पहुंच गये. उन्हें वहां देखने के लिए भीड़ में भगदड़ मच गई.
हादसे के कोल्लम मंदिर बाद की तस्वीर |
इसके चलते दो दर्जन निर्दोषों की जान चली गयी. हादसा चंद्रबाबू नायडू को खास तवज्जो देने के कारण हुआ. जब चंद्रबाबू नायडू वहां से स्नान करके निकले तो उसके कुछ ही देर बाद यह हादसा हो गया. मुख्यमंत्री के आकर्षण को लेकर भी लोगों का उक्त स्थल पर जमाव हुआ. नायडू परिवार के साथ जैसे ही वहां से स्नान पूजन कर निकले गेट को खोल दिया गया और यह दिल दहलाने वाला हादसा हुआ.
दूसरी घटना उड़ीसा की है. पिछले ही साल उडीसा में भगवान जगन्नाथ की इस शताब्दी की पहली नबकेलवर रथयात्रा को करीब 15 लाख...
अब केरल के कोल्लम के पुत्तिंगल मंदिर में भयानक हादसा हो गया. वहां पर आग लगने से सौ से ज्यादा लोगों की मौत हो चुकी है. सैकड़ों के घायल होने की खबर है. मालूम चला है कि सुबह 3 बजे के करीब मंदिर में एक समारोह के दौरान आतिशबाजी की जा रही थी जिसे देखने के लिए मैदान पर हजारों लोग उपस्थित थे. पटाखे फोड़ने के दौरान चिंगारियां पास के गोदाम तक पहुंच गई जहां पटाखों का ढेर रखा हुआ था. पटाखों में आग लगने लगी तो उधर मौजूद लोग जान-बचाने के लिए भी दाएं-बाएं भागने लगे.
क्या भीड़ को नियंत्रण करना नामुमकिन काम है? जिसकी वजह से भीड़ में भगदड़ मच जाती है. दरअसल बड़े आयोजनों में एकत्र भीड़ को निकलने के पर्याप्त मार्ग ना मिलने के कारण ही हादसे होते हैं. कोल्लम हादसे से पहले पिछले साल हमारे यहां दो धार्मिक आयोजनों में भगदड़ के कारण बहुत से मासूम मारे गए. पहली घटना आंध्र प्रदेश की है. पिछले साल मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू पुष्करम मेले में सपरिवार स्नान करने पहुंच गये. उन्हें वहां देखने के लिए भीड़ में भगदड़ मच गई.
हादसे के कोल्लम मंदिर बाद की तस्वीर |
इसके चलते दो दर्जन निर्दोषों की जान चली गयी. हादसा चंद्रबाबू नायडू को खास तवज्जो देने के कारण हुआ. जब चंद्रबाबू नायडू वहां से स्नान करके निकले तो उसके कुछ ही देर बाद यह हादसा हो गया. मुख्यमंत्री के आकर्षण को लेकर भी लोगों का उक्त स्थल पर जमाव हुआ. नायडू परिवार के साथ जैसे ही वहां से स्नान पूजन कर निकले गेट को खोल दिया गया और यह दिल दहलाने वाला हादसा हुआ.
दूसरी घटना उड़ीसा की है. पिछले ही साल उडीसा में भगवान जगन्नाथ की इस शताब्दी की पहली नबकेलवर रथयात्रा को करीब 15 लाख श्रद्धालुओं ने देखा. लेकिन रथयात्रा के दौरान हुई भगदड़ में दो महिलाओं की मौत हो गई. उसी दौरान झारखण्ड के देवघर में भगदड़ में जानें गईं. अब पूरे यकीन के साथ माना जा सकता है कि हमारे प्रशासन को भीड़ को संभालना नहीं आता. 1956 में इलाहाबाद में चल रहे कुंभ मेले में आठ सौ तीर्थयात्रियों की भगदड़ में जान चली गयी थी. जांच रिपोर्ट में चेतावनी दी गयी थी कि ऐसे भीड़-भाड़ वाले मेलों में वीआईपी व्यक्तियों को नहीं जाना चाहिए. कहा जाता है कि मेले में आए प्रधानमंत्री पंडित नेहरू को देखने के लिए मची भगदड़ के कारण दुर्घटना हुई थी. बाद में जांच से मालूम चला कि नेहरु जी ने अखाड़ों से पहले स्नान करने का फैसला किया. इससे साधु नाराज हो गए. वहां हंगामा हो गया. वहां मौजूद हाथी भी भड़क गए. उन्होंने भी दर्जनों लोगों को कुचला.
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उसके बाद भी धार्मिक आयोजनों में वीआईपी पहुंचते रहे हैं और भगदड़ से लोगों के मरने का सिलसिला जारी है. मतलब प्रशासन ने कोई सबक नहीं सीखा. साफ है कि देश पुरानी घटनाओं से सीख लेने के लिए तैयार नहीं है. हमारे इधर होने वाले बड़े आयोजनों में हादसे होना अब सामान्य बात हो गई. लोगों को खुद भी भीड़भाड़ वाले आयोजनों में भाग लेने से बचना होगा. क्योंकि ताजा सूरते हाल से यही लगता है कि हमारे यहां कुंभ तथा दूसरे आयोजनों में ऐसे ही हादसे होते रहेंगे.
आपको याद होगा कि 1986 के हरिद्धार कुम्भ मेले में तब हरियाणा के मुख्यमंत्री भजन लाल के आने से लगभग 100 लोग भीड़ में भगदड़ से दब कर मर गए थे. 2013 में इलाहाबाद कुंभ में भी मौनी अमावस्या के दिन रेलवे स्टेशन पर मची भगदड़ में 150 से ऊपर लोग मरे थे. अब ये हादसे भी जनता की स्मृतियों से ओझल होते जा रहे हैं. आप धर्मिक आयोजनों के दौरान भगदड़ और अन्य कारणों के चलते होने वाली मौतों को गूगल करेंगे तो आपको समझ आ जाएगा कि भारत में कितने मासूम इन आयोजनों में जान गंवा देते हैं. लेकिन मजाल है कि भीड़ प्रबंधन को लेकर कोई सोच रहा हो. यानी लोग मरते रहे, होती रहे जांच और दे दी जाए मृतकों के परिजनों को अंतरिम राहत.
कोल्लम हादसे के बाद केरल में प्रधानमंत्री मोदी |
एक बात और. भारत में क्रिकेट मैच की टिकटों की बिक्री से लेकर मुफ्त खाने और बर्तन वितरण के दौरान छीना-झपटी में भी लोग मरते रहे हैं. बात देश से बाहर की करें तो मिस्र में भी कुछ दिन पहले ही सुरक्षा बलों और फुटबाल प्रशंसकों के बीच हिंसक झड़प के बाद आंसू गैस के गोले छोड़े जाने के कारण दम घुटने और भगदड़ से कम से कम 30 लोगों की मौत हो गई. 35 से अधिक लोग जख्मी हो गए. फुटबाल मैच में भगदड़ के कारण मरने वालों का भी लंबा इतिहास है.
नजर निकासी पर
बड़े धार्मिक आयोजन बिना किसी हादसे के कैसे आयोजित हों? मैं मानता हूं कि अगर इच्छाशक्ति हो तो ये मुमकिन है. बेशक, भीड़ प्रबंधन के लिए योजना बनाना अहम है. आपको जिस क्षेत्र में आयोजन हो रहा है वहां पर एकत्र होनी वाली भीड़ और उनके भगदड़ में निकलने के लिए जरूरी निकासी वाले स्थानों पर नजर रखनी होगी. साथ ही भीड़ प्रबंधकों को भीड़ के बर्ताव में संभावित बदलाव पर भी नजर रखनी होगी. दुनियाभर में, भीड़भाड़ वाले कोई भी समारोह इस तरह की त्रासदियों के प्रति प्रभावशून्य नहीं हैं. अगर आपके पास इस तरह के आयोजनों के लिए वास्तव में योजना पर फोकस करने वाले लोग नहीं है, तो ये हादसे कहीं भी हो सकते हैं.
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कहने की जरूरत नहीं है कि अगर आप इसी तरह की भीड़ का हिस्सा हैं और हालात खराब हो जाते हैं, ऐसे में आप ज्यादा कुछ नहीं कर सकते. इसलिए बेहतर तो ये होगा कि आप हमेशा भीड़भाड़ वाले इलाकों से बचें. संबंधित सरकारी महकमों की जिम्मेदारी है कि वह इस बात को देखे ताकि भीड़ काबू से बाहर होने न पाए. फिलहाल तो इस मोर्चे पर काम करने की जरूरत है. ये बात भी नहीं है कि हादसे सिर्फ हमारे यहां पर ही होते हैं.
पिछले साल सितंबर में मक्का में दो बड़े हादसों में कई जायरीन मारे गए. पहला हादसा तब हुआ जब क्रेन जायरीनों पर गिर गई. उसके बाद चंद रोज बाद हुई भगदड़ में 850 से ज्यादा हाजी अपनी जान गंवा बैठे. ये पूरी दुनिया के विभिन्न देशों से वहां पर हज के लिए पहुंचे थे. इन हादसों के बाद पूरी दुनिया सऊदी अरब से सवाल पूछ रही थी कि उसने इतनी लचर व्यवस्था क्यों की जिसके चलते दो बार हादसे हो गए? क्या वहां पर कोई देखने वाला नहीं है?
क्रेन हादसे में मारे गए लोगों के परिजनों को मोटा मुआवजा देकर सऊदी सरकार ने अपने ऊपर लगने वाले कलंक को धोने की चेष्टा की थी. पर, दूसरे हादसे ने उसकी कलई खोल कर रख दी. सऊदी अरब की मक्का मस्जिद के पास मीना में शैतान को पत्थर मारने की रस्म अदाएगी के बीच भगगड़ मची थी. इसी तरह से 2004 और फिर 2006 में शैतान को मारने की होड़ में सैकड़ों लोग रौंदे गए थे. ऐसे ही 1990 में वहां भगदड़ में 1400 से ज्यादा लोगों की जानें चली गई थी. दुनिया के अनेक देशों में म्युजिक कंसर्ट से लेकर फुटबाल के मैदान में भी भीड़ के बेकाबू होने के कारण बड़े हादसे होते रहे हैं.
दरअसल, मैं मानता हूं कि बड़े आयोजनों से पहले उनका आयोजन करने वालों को भीड़ प्रबंधन को लेकर लिए ठोस योजना बनानी चाहिए. भीड़भाड़ वाले इलाके आतंकियों या गड़बड़ फैलाने वालों के लिए बेहद मुफीद स्थान होते हैं. वे अफवाह फैलाकर भगदड़ वाले हालात पैदा कर देते हैं. इसलिए इन तत्वों पर भी पैनी नजर रखने की जरूरत है. याद रखिए कि अगर आपके पास इस तरह के आयोजनों को मैनेज करने वाले जानकार नहीं हैं, तो धार्मिक आयोजनों से लेकर फुटबाल मैचों तक में हादसे होते रहेंगे.
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