बॉडी शेमिंग एक ऐसा विषय है जो न जाने कब से लोगों के बीच चर्चा का विषय बना हुआ है. लोग एक दूसरे का उनके चेहरे, शरीर, रंग आदि को लेकर मजाक उड़ाते हैं, लेकिन वो भूल जाते हैं कि अपने शरीर का मजाक उड़ने वाले वो खुद हैं. चाहें लड़के हों या लड़कियां इस बात को लेकर कुंठाओं से घिरे रहते हैं.
लड़कियों की कुंठाओं का इलाज कोई हो ही नहीं सकता. जी हां ये इसलिए कहा जा रहा है क्योंकि हर लड़की सबसे सुंदर दिखना चाहती है या सबसे बेहतर काम करना चाहती है. इसी बेहतर बनने की चाह में अपने शरीर को प्यार करना ही भूल गए हैं हम. सिर्फ लड़कियां ही नहीं लड़के भी इस मामले में काफी ज्यादा आगे निकल गए हैं. ब्रेस्ट साइज न हो गया कोई ब्यूटी कॉम्पटीशन का एलिजिबिलिटी फॉर्म हो गया. कुछ लोग तो इसे इतना सीरियसली लेते हैं कि लगता है जैसे बस अगर ये सही आकार के हो गए तो IAS परीक्षा पास हुई समझो.
हाल ही में गर्लियापा का एक नया वीडियो आया है जो बैग साइज की बात करता है. वीडियो को देखेंगे तो शुरू में ऐसा ही लगेगा कि बैग साइज की बात हो रही है, लेकिन अगर थोड़ा दिमाग लगाएंगे तो कहानी समझ आ जाएगी.
इस वीडियो को कुछ लोग विज्ञापन के तौर पर देख रहे हैं, कुछ को लगता है कि ये बस फेमिनिज्म के लिए बनाया गया है, लेकिन अगर मेरी राय पूछी जाए तो इस वीडियो में वाकई कुछ बात है. सोशल मैसेज भी काफी गहरा है. बैग नहीं ब्रेस्ट की बात हो रही है यहां.
एक डायलॉग है जहां बोला जाता है कि अगर आपका बैग बड़ा हो तो कोई आंखों को नहीं देखता, यकीनन बात तो सही है. लड़की को देखने के कुछ खास पैमाने जो बना रखे हैं समाज ने. सॉरी, सॉरी समाज ने नहीं, पुरुषों ने या मनचले लड़कों ने. समाज तो ऐसे कोई पैमाने बना ही नहीं सकता है न, ये सब तो समाज के लिए असंस्कारी है.
ब्रेस्ट साइज एक गंभीर विषय है..
ब्रेस्ट साइज को लेकर लोगों के मन में अलग-अलग भ्रांतियां होती हैं. NCBI की एक स्टडी जो इस टॉपिक पर की गई थी कि आखिर मर्द किस तरह से ब्रेस्ट को देखते हैं. ये स्टडी...
बॉडी शेमिंग एक ऐसा विषय है जो न जाने कब से लोगों के बीच चर्चा का विषय बना हुआ है. लोग एक दूसरे का उनके चेहरे, शरीर, रंग आदि को लेकर मजाक उड़ाते हैं, लेकिन वो भूल जाते हैं कि अपने शरीर का मजाक उड़ने वाले वो खुद हैं. चाहें लड़के हों या लड़कियां इस बात को लेकर कुंठाओं से घिरे रहते हैं.
लड़कियों की कुंठाओं का इलाज कोई हो ही नहीं सकता. जी हां ये इसलिए कहा जा रहा है क्योंकि हर लड़की सबसे सुंदर दिखना चाहती है या सबसे बेहतर काम करना चाहती है. इसी बेहतर बनने की चाह में अपने शरीर को प्यार करना ही भूल गए हैं हम. सिर्फ लड़कियां ही नहीं लड़के भी इस मामले में काफी ज्यादा आगे निकल गए हैं. ब्रेस्ट साइज न हो गया कोई ब्यूटी कॉम्पटीशन का एलिजिबिलिटी फॉर्म हो गया. कुछ लोग तो इसे इतना सीरियसली लेते हैं कि लगता है जैसे बस अगर ये सही आकार के हो गए तो IAS परीक्षा पास हुई समझो.
हाल ही में गर्लियापा का एक नया वीडियो आया है जो बैग साइज की बात करता है. वीडियो को देखेंगे तो शुरू में ऐसा ही लगेगा कि बैग साइज की बात हो रही है, लेकिन अगर थोड़ा दिमाग लगाएंगे तो कहानी समझ आ जाएगी.
इस वीडियो को कुछ लोग विज्ञापन के तौर पर देख रहे हैं, कुछ को लगता है कि ये बस फेमिनिज्म के लिए बनाया गया है, लेकिन अगर मेरी राय पूछी जाए तो इस वीडियो में वाकई कुछ बात है. सोशल मैसेज भी काफी गहरा है. बैग नहीं ब्रेस्ट की बात हो रही है यहां.
एक डायलॉग है जहां बोला जाता है कि अगर आपका बैग बड़ा हो तो कोई आंखों को नहीं देखता, यकीनन बात तो सही है. लड़की को देखने के कुछ खास पैमाने जो बना रखे हैं समाज ने. सॉरी, सॉरी समाज ने नहीं, पुरुषों ने या मनचले लड़कों ने. समाज तो ऐसे कोई पैमाने बना ही नहीं सकता है न, ये सब तो समाज के लिए असंस्कारी है.
ब्रेस्ट साइज एक गंभीर विषय है..
ब्रेस्ट साइज को लेकर लोगों के मन में अलग-अलग भ्रांतियां होती हैं. NCBI की एक स्टडी जो इस टॉपिक पर की गई थी कि आखिर मर्द किस तरह से ब्रेस्ट को देखते हैं. ये स्टडी कहती है कि साथी तलाशने के लिए भी मर्द ब्रेस्ट साइज को तवज्जो देते हैं. छोटे ब्रेस्ट अट्रैक्टिव नहीं लगते और यही कारण है कि ब्रेस्ट साइज को लेकर न सिर्फ मर्दों में बल्कि औरतों में भी बहुत ज्यादा ब्रेस्ट को लेकर कुंठाएं रहती हैं. ये सब असल में आकर्षक दिखने की होड़ होती है जो महिलाओं को असहज बना देती है.
सिर्फ हमारे देश की ही नहीं पूरी दुनिया की यही सोच है और कुछ ऐसे ही देखा जाता है लड़कियों को. यहां तक की लड़कियां खुद को भी ऐसे ही देखती हैं. यही सोचती हैं कि काश मेरा साइज बड़ा होता! अपने साइज से कोई खुश नहीं. चाहें छोटा हो या बड़ा. सभी को इस बात से समस्या है कि सामने वाले के पास अलग कैसे. ये सिर्फ साइज को लेकर ही नहीं बल्कि रूप, रंग, बाल, चेहरा, मोटापा, वजन आदि सब कुछ शामिल है.
इसी मानसिकता को समझाते हुए सोनम कपूर ने हाल ही में एक चिट्ठी लिखी है, आखिर ओपन लेटर का जमाना जो है. इसमें सोनम ने लिखा है कि उन्हें भी कलर करेक्शन की जरूरत पड़ती है. लड़कियों को समझाया है कि जो दिखता है वो असल नहीं होता बल्कि वो तो दिखावा होता है और कोई भी परफेक्ट नहीं होता. असली औरतें सिनेमा की हिरोइन नहीं बल्कि वो लोग हैं जो हर दिन फेक नहीं लगतीं.
सच ही कहा है सोनम ने या इस वीडियो वाली लड़कियों ने कि साइज की चिंता नहीं करनी चाहिए. अगर इसकी चिंता करेंगे तो यकीनन कभी अपने आप से खुश नहीं हो पाएंगे. अगर ये समझाने के लिए इन्हें डबल मीनिंग की जरूरत पड़ी तो मेरे हिसाब से ये ठीक ही है. आखिर बैग की जगह ब्रेस्ट बोलते तो संस्कारी समाज को भी तो ठेस पहुंच जाती न.
बहरहाल, जो बात वीडियो के जरिए कही है वो बिलकुल सही है. ब्रेस्ट साइज, चेहरे का रंग, शक्ल का आकार, शरीर का आकार कुछ भी तब तक मायने नहीं रखता जब तक कोई खुद इसे अपनी जिंदगी का अहम हिस्सा न बना ले. ब्रेस्ट साइज को लेकर छोटी लड़कियां भी इतनी असहज हो जाती हैं कि उन्हें लगता है कि उनमें कोई कमी है. स्कूल जाने वाली लड़कियां समझती हैं कि बस बड़े आकार से ही वो सुंदर दिखेंगी! कॉलेज में लड़कियों को लगता है कि बड़ा है तो बेहतर है.
आखिर क्यों परफेक्ट दिखने की चाह इतनी हावी हो जाती है लोगों पर कि एक दूसरे से कॉम्पटीशन होने लगता है. आखिर क्यों एक आम सी दिखने वाली लड़की अपनी सुंदरता को समझ नहीं पाती. खास दिखने की चाहत में न जाने क्या-क्या किया जाता है. जिनके पास पैसे हैं वो सर्जरी करवाते हैं, जिनके पास थोड़े कम हैं वो न जाने क्या-क्या नुस्खे करते हैं कि बस किसी तरह से परफेक्शन आ जाए. पर क्या ये सही है? खुद ही सोच कर देखिए, क्या साइज इतना मैटर करता है?
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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.