राजनीति के लिए गाय सबसे हॉट टॉपिक है. और चूंकि गाय को हिंदू माता का दर्जा देते हैं इसलिए गाय से संबंधित किसी भी मामले को बेहद गंभीरता से लिया जाता है. ये अच्छी बात है कि लोग गाय के लिए इतना सम्मान रखते हैं. लेकिन गाय को धर्म से जोड़ना अलग बात है और गाय का धर्म बताना अलग. भारत में धर्म को लेकर कट्टरता इस स्तर पर आ चुकी है कि अब जानवर से लेकर तमाम चीजें बंट गई हैं.
गौ माता और जय श्री राम को लेकर मॉब लिंचिंग की घटनाओं को छोड़ दें तो हाल ही में धार्मिक कट्टरता के ऐसे कई उदाहरण सामने आए हैं, जो इस बात का सबूत हैं कि ये देश वाकई बदल रहा है. बाराबंकी के बीजेपी नेता रंजीत बहादुर श्रीवास्तव नगर पालिका के पूर्व चेयरमैन और मौजूदा नगर पालिका की चेयरमैन शालिनी श्रीवास्तव के पति हैं. इन्होंने जो भी कहा वो इस तरह है-
'गाय माता का अंतिम संस्कार मुस्लिम पद्धति के अनुसार किया जा रहा है, उन्हें दफनाया जा रहा है, इस पर मुझे घोर आपत्ति है. हमारे वैदिक धर्म के अनुसार, इनका अंतिम संस्कार अग्नि को सुपुर्द करके ही किया जाना चाहिए.'
'गाय हमारी माता है, हम अपनी मां का संस्कार जिस तरह करते हैं, कफन देकर, श्मशान घाट लेजाकर उनको मुखाग्नि देकर जिस तरह से दाह संस्कार किया जाता है, उसी तरह गौमाता का दाह संस्कार होना चाहिए.
'इनके कफन आदि की भी व्यवस्था होनी चाहिए. मेरी यह मांग मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से है और मैं नगर पालिका चेयरमैन का पति और पूर्व चेयरमैन भी हूं, इसलिए मैं यह प्रयास करूंगा कि नगर पालिका बोर्ड की मीटिंग में यह प्रस्ताव लाकर विद्युत शवदाह गृह बनवाकर इसकी शुरुआत करूं. ये विद्युत शवदाह गृह गौ माता के लिए बनेगा.'
राजनीति के लिए गाय सबसे हॉट टॉपिक है. और चूंकि गाय को हिंदू माता का दर्जा देते हैं इसलिए गाय से संबंधित किसी भी मामले को बेहद गंभीरता से लिया जाता है. ये अच्छी बात है कि लोग गाय के लिए इतना सम्मान रखते हैं. लेकिन गाय को धर्म से जोड़ना अलग बात है और गाय का धर्म बताना अलग. भारत में धर्म को लेकर कट्टरता इस स्तर पर आ चुकी है कि अब जानवर से लेकर तमाम चीजें बंट गई हैं.
गौ माता और जय श्री राम को लेकर मॉब लिंचिंग की घटनाओं को छोड़ दें तो हाल ही में धार्मिक कट्टरता के ऐसे कई उदाहरण सामने आए हैं, जो इस बात का सबूत हैं कि ये देश वाकई बदल रहा है. बाराबंकी के बीजेपी नेता रंजीत बहादुर श्रीवास्तव नगर पालिका के पूर्व चेयरमैन और मौजूदा नगर पालिका की चेयरमैन शालिनी श्रीवास्तव के पति हैं. इन्होंने जो भी कहा वो इस तरह है-
'गाय माता का अंतिम संस्कार मुस्लिम पद्धति के अनुसार किया जा रहा है, उन्हें दफनाया जा रहा है, इस पर मुझे घोर आपत्ति है. हमारे वैदिक धर्म के अनुसार, इनका अंतिम संस्कार अग्नि को सुपुर्द करके ही किया जाना चाहिए.'
'गाय हमारी माता है, हम अपनी मां का संस्कार जिस तरह करते हैं, कफन देकर, श्मशान घाट लेजाकर उनको मुखाग्नि देकर जिस तरह से दाह संस्कार किया जाता है, उसी तरह गौमाता का दाह संस्कार होना चाहिए.
'इनके कफन आदि की भी व्यवस्था होनी चाहिए. मेरी यह मांग मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से है और मैं नगर पालिका चेयरमैन का पति और पूर्व चेयरमैन भी हूं, इसलिए मैं यह प्रयास करूंगा कि नगर पालिका बोर्ड की मीटिंग में यह प्रस्ताव लाकर विद्युत शवदाह गृह बनवाकर इसकी शुरुआत करूं. ये विद्युत शवदाह गृह गौ माता के लिए बनेगा.'
इतना सुनकर रंजीत बहादुर श्रीवास्तव की मानसिकता साफ समझ आती है कि वो अपने धर्म और गाय को लेकर कितनी श्रद्धा रखते हैं. लेकिन आगे जो कुछ उन्होंने कहा उससे पूरा माजरा शीशे की तरह साफ हो गया कि ये श्रद्धा नहीं बल्कि कट्टरता और राजनीति बोल रही है. रंजीत बहादुर श्रीवास्तव ने मुसलमानों के गाय पालने को 'लव-जिहाद' का नाम दे दिया.
'मैं हिंदुओं से एक अपील और करना चाहूंगा कि जो गाय मुसलमानों के घरों में पल रही हैं, हिंदुओं को किसी भी कीमत पर वहां से गाय वापस ले लेनी चाहिए. क्योंकि जब हम अपनी लड़की और बहन को मुसलमानों के यहां जाने को लव-जिहाद मानते हैं, तो क्या गाय माता का इनके घर में जाना लव जिहाद की श्रेणी में नहीं आएगा. इसलिए गाय माता को किसी भी कीमत पर मुसलमानों के घर से वापस लिया जाना चाहिए. रंजीत ने कहा कि मुसलमानों के रसूल अल्लाह ने तो बकरियां पाली थीं, इसलिए बकरियां इनकी माता हैं. मुसलमानों को सिर्फ बकरियां पालनी चाहिए, यह लोग गाय क्यों पालते हैं. मुसलमानों का गाय पालना भी एक तरह का लव-जिहाद है और मैं इसका घोर विरोधी हूं.'
हमने तो सिर्फ त्योहारों को धर्म के हिसाब से अलग अलग देखा था. जैसे हिंदुओं के त्योहार होली-दीवाली और मुसलमानों का ईद-मोहर्रम. लेकिन अलग-अलग होने के बावजूद भी ये त्योहार सब मिलकर मनाते रहे हैं. लेकिन धर्म के नाम पर राजनीति करने वालों ने हर चीज को बांट दिया है. रंजीत बहादुर श्रीवास्तव ने गाय को हिंदू और बकरी को मुसलमान बना दिया. लेकिन लोगों ने रंग, मिठाइयों समेत न जाने क्या-क्या बांट दिया है.
ये बंटवारा किसी के लिए भी अच्छा नहीं
आज हरा रंग मुसलमानों का है तो केसरिया रंग हिंदुओं का. नारियल हिंदुओं का तो खजूर मुसलमानों का. मंदिर के लिए गेंदे का फूल, मस्जिद के लिए लिली का फूल. खीर हिंदुओं की और सेवियां मुसलमानों की. पुलाव हिंदुओं का तो बिरयानी मुसलमानों की. और बहुत से लोग तो ऐसे भी हैं जो हिंदी और उर्दू के शब्दों के इस्तेमाल पर भी ऐतराज करते हैं. यानी 'खाना' नहीं 'भोजन' कहो, 'पास' नहीं 'समीप'. बाकायदा लोगों को व्हाट्सएप पर मैसेज भेजकर अपील की जा रही है कि हिंदी हिंदुओं की भाषा है, उसे बचाया जाए, उर्दू के शब्दों का उपयोग न किया जाए.
एक और शख्स है जिसने ज़ोमाटो से खाना आर्डर किया और जैसे ही उसे ये पता चला कि खाना डिलिवरी करने वाला मुस्लिम है, उसने ऑर्डर कैंसल करने को कहा. क्योंकि सावान चल रहे हैं और एक मुस्लिम के हाथ से खाना लेंगे तो इनका धर्म भ्रष्ट हो जाएगा. ये फख्र के साथ अपनी इस सोच का ढिंढोरा ट्विटर पर भी पीट रहे हैं.
लेकिन इतनी कट्टरता दिखाने वाले इस व्यक्ति को क्या इस बात पर शंका नहीं हुई कि रेस्त्रां में खाना बनाने वाला कोई मुस्लिम न हो. और ऐसा ही है तो फिर उगाओ गेहूं और सब्जी अपने घर पर, और हां, दूध के लिए गाय तो पालते ही होगे.
ऐसी ही कट्टरता का एक नमूना हाल ही में यूपी के कैराना से आया, जहां विधायक नाहिद हसन मुस्लिम समाज के लोगों से भाजपा के दुकानदारों से सामान न लेने की अपील करते देखे गए थे.
तो इनके जवाब में साधवी प्राची कांवड़ियों से अपील कर रही हैं कि हरिद्वार में कांवड़ बनाने वाले मुसलमानों का बहिष्कार कर देना चाहिए.
अब इस देश में यही सब चल रहा है. धर्म के नाम पर लोगों का बांटा जाना तो इस देश में चलता ही आ रहा है, लेकिन ऐसी कट्टरता भी क्या कि अब जानवरों को भी बांटा जा रहा है. इंसानों को छोड़ दिया जाए तो धर्म और जाति किसी और नस्ल में नहीं देखी जाती. और जानवरों की ये सबसे अच्छी बात है कि वो धर्म और जात-पात पर कभी नहीं लड़ते. और इसीलिए ये जानवर इंसानों से कहीं ज्यादा बेहतर हैं. और इंसान...वो हैं ही कहां, यहां तो हिंदू और मुसलमान हैं.
भगवा ओढ़े हिन्दू, हरा पहने मुसलमान !
मैं कौन सा रंग ओढ़ू़ं, जो बन जाऊं इंसान?
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