मौत से डर सबको लगता है. सबको पता है मौत तो एक दिन आनी है. बस वक्त अलग-अलग है. बेमौत मर जाना अच्छा नहीं माना जाता. देश की राजधानी में मौत की वजहें ना केवल चौंकाती हैं बल्कि सवाल भी उठाती हैं कि जब ऐसी मौत देश की राजधानी में नसीब हो रही है तो फिर बदनसीबी क्या कही जाएगी.
बीते दिनों राजधानी के गाजीपुर में कूड़े के ढेर के नीचे दबकर एक युवक की मौत हो गई. सीवर या गड्ढे में सफाई के दौरान कई परिवारों के चिराग बुझ गए. तो अब बिस्किट ना देने पर एक शख्स का कत्ल कर दिया गया. गाड़ी टच होने पर जान ले लेना तो दिल्ली का सिग्नेचर स्टाइल बनता जा रहा है. किसी चट्टी-चौराहे पर कहीं गाड़ी टच हुई तो सीधा जिस्म में गोली पैबस्त.
दिल्ली का हर शख्स परेशान क्यों है. इतना ज्यादा गुस्सा आखिर किस बात का है? दिल्ली में अधिकतर लोग बाहर से आकर रहते हैं तो क्या अपनापन का अभाव है? सभी एक दूसरे को गैर ही समझते हैं. शायद तभी खून से लथपथ लाश देखने के बाद भी कोई हाथ नहीं लगाता. कानूनी पचड़े में नहीं पड़ना चाहते होंगे शायद. ये बेगैरतपन दिल्ली वासियों में ही नहीं है गाहे-बगाहे सिविक एजेंसियों में भी दिखता है. पहले ये घटना पढ़िए. खुद ब खुद पता चल जाएगा...
बाहरी दिल्ली के अमन विहार इलाके में बेकरी मालिक को महज इसलिए चाकूओं से गोदकर मार दिया क्योंकि उसने फ्री में बिस्कट उठाने से मना कर दिया था. मुफ्तखोर दंबगों को ये बात बुरी लगी और तुंरत ही बेकरी से बाहर निकाला और मौत के घाट उतार दिया. आपराधिक प्रवृति वाले तीन लोगों ने इस वारदात को अंजाम दिया. बात यहीं पर खत्म नहीं होती. पुलिस और अस्पताल ने भी उसे मरने के लिए छोड़ दिया. पीड़ित परिवार का कहना है कि पुलिस को वारदात की सूचना दी गई पर पुलिस 6 घंटे बाद तक नहीं पहुंची. घायल हालत में पीड़ित वकील को संजय गाँधी अस्पताल ले जाया गया लेकिन वहां भी समय पर...
मौत से डर सबको लगता है. सबको पता है मौत तो एक दिन आनी है. बस वक्त अलग-अलग है. बेमौत मर जाना अच्छा नहीं माना जाता. देश की राजधानी में मौत की वजहें ना केवल चौंकाती हैं बल्कि सवाल भी उठाती हैं कि जब ऐसी मौत देश की राजधानी में नसीब हो रही है तो फिर बदनसीबी क्या कही जाएगी.
बीते दिनों राजधानी के गाजीपुर में कूड़े के ढेर के नीचे दबकर एक युवक की मौत हो गई. सीवर या गड्ढे में सफाई के दौरान कई परिवारों के चिराग बुझ गए. तो अब बिस्किट ना देने पर एक शख्स का कत्ल कर दिया गया. गाड़ी टच होने पर जान ले लेना तो दिल्ली का सिग्नेचर स्टाइल बनता जा रहा है. किसी चट्टी-चौराहे पर कहीं गाड़ी टच हुई तो सीधा जिस्म में गोली पैबस्त.
दिल्ली का हर शख्स परेशान क्यों है. इतना ज्यादा गुस्सा आखिर किस बात का है? दिल्ली में अधिकतर लोग बाहर से आकर रहते हैं तो क्या अपनापन का अभाव है? सभी एक दूसरे को गैर ही समझते हैं. शायद तभी खून से लथपथ लाश देखने के बाद भी कोई हाथ नहीं लगाता. कानूनी पचड़े में नहीं पड़ना चाहते होंगे शायद. ये बेगैरतपन दिल्ली वासियों में ही नहीं है गाहे-बगाहे सिविक एजेंसियों में भी दिखता है. पहले ये घटना पढ़िए. खुद ब खुद पता चल जाएगा...
बाहरी दिल्ली के अमन विहार इलाके में बेकरी मालिक को महज इसलिए चाकूओं से गोदकर मार दिया क्योंकि उसने फ्री में बिस्कट उठाने से मना कर दिया था. मुफ्तखोर दंबगों को ये बात बुरी लगी और तुंरत ही बेकरी से बाहर निकाला और मौत के घाट उतार दिया. आपराधिक प्रवृति वाले तीन लोगों ने इस वारदात को अंजाम दिया. बात यहीं पर खत्म नहीं होती. पुलिस और अस्पताल ने भी उसे मरने के लिए छोड़ दिया. पीड़ित परिवार का कहना है कि पुलिस को वारदात की सूचना दी गई पर पुलिस 6 घंटे बाद तक नहीं पहुंची. घायल हालत में पीड़ित वकील को संजय गाँधी अस्पताल ले जाया गया लेकिन वहां भी समय पर इलाज नहीं मिला और आखिरकार वकील नाम के पीड़ित की मौत हो गई. वकील की सालभर पहले ही शादी हुयी थी घर गृहस्ती को लेकर उसके बड़े अरमान थे लेकिन इलाके की कानून व्यवस्था और अस्पताल की लापरवाही ने उसे अच्छे दिन देखने से पहले ही मौत दे दी.
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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.