हमारे समाज में शादी के बाद महिलाएं दूसरों के लिए जीना शुरु कर देती हैं. शादी के बाद एक लड़की अपना घर छोड़कर ससुराल आती है. उसकी जिंदगी में सबसे बड़ा बदलाव तो यही होता है कि अपना घर उसके लिए पराया हो जाता है. वह मन ही मन यह सोचकर उदास रहती है. कैसे उसका घर शादी के बाद उसके लिए मायका बन जाता है. जहां बड़ी मुश्किल से वह महीनों में दो दिन के लिए मेहमान बनकर जाती है.
कहना आसान है, लेकिन एक लड़की के लिए उसका घर छोड़ना बहुत मुश्किल होता है. पुरुष तो अपने घर में ही रहते हैं, वे तो अपना घर छोड़कर जाते नहीं हैं. शायद इसलिए वे इस पीड़ा को समझ भी नहीं पाएंगे. इस बात को महिलाएं ही समझ सकती हैं. क्योंकि शादी के बाद उनकी जिंदगी पूरी तरह बदल जाती है. वे हर काम दूसरों को खुश करने के लिए करती हैं.
शादी के बाद सभी कामों की जिम्मेदारी महिला के सिर आ जाती है
हमारे समाज में शादी के बाद घर की सारी जिम्मेदारी बहू के ऊपर डाल दी जाती है. वह भले ही अपने घर में काम नहीं करती थी मगर ससुराल में घर के काम करने के अलावा और कोई ऑप्शन नहीं होता है. घर का काम करने और रसोई में खाना बनाने में बुराई नहीं है, लेकिन यह तब उबाऊ हो जाता है सब सब कुछ उस महिला को ही संभालना पड़ता है. अगर वह वर्किंग हो तो उसे दोहरी जिम्मेदारी निभानी पड़ती है.
ससुराल वालों के हिसाब से खुद को एडजस्ट करना
शादी चाहें लव हो या अरेंज, शादी के बाद हर लड़की को ससुराल के हिसाब से खुद को एडजस्ट करना पड़ता है. एक लड़की को ससुराल वालों के हिसाब से अपना रहन-सहन बदलना पड़ता है. यहां तक की खाने के स्वाद में भी ए़डजेस्टमेंट करनी पड़ती है. अगर घरवाले कहेंगे कि...
हमारे समाज में शादी के बाद महिलाएं दूसरों के लिए जीना शुरु कर देती हैं. शादी के बाद एक लड़की अपना घर छोड़कर ससुराल आती है. उसकी जिंदगी में सबसे बड़ा बदलाव तो यही होता है कि अपना घर उसके लिए पराया हो जाता है. वह मन ही मन यह सोचकर उदास रहती है. कैसे उसका घर शादी के बाद उसके लिए मायका बन जाता है. जहां बड़ी मुश्किल से वह महीनों में दो दिन के लिए मेहमान बनकर जाती है.
कहना आसान है, लेकिन एक लड़की के लिए उसका घर छोड़ना बहुत मुश्किल होता है. पुरुष तो अपने घर में ही रहते हैं, वे तो अपना घर छोड़कर जाते नहीं हैं. शायद इसलिए वे इस पीड़ा को समझ भी नहीं पाएंगे. इस बात को महिलाएं ही समझ सकती हैं. क्योंकि शादी के बाद उनकी जिंदगी पूरी तरह बदल जाती है. वे हर काम दूसरों को खुश करने के लिए करती हैं.
शादी के बाद सभी कामों की जिम्मेदारी महिला के सिर आ जाती है
हमारे समाज में शादी के बाद घर की सारी जिम्मेदारी बहू के ऊपर डाल दी जाती है. वह भले ही अपने घर में काम नहीं करती थी मगर ससुराल में घर के काम करने के अलावा और कोई ऑप्शन नहीं होता है. घर का काम करने और रसोई में खाना बनाने में बुराई नहीं है, लेकिन यह तब उबाऊ हो जाता है सब सब कुछ उस महिला को ही संभालना पड़ता है. अगर वह वर्किंग हो तो उसे दोहरी जिम्मेदारी निभानी पड़ती है.
ससुराल वालों के हिसाब से खुद को एडजस्ट करना
शादी चाहें लव हो या अरेंज, शादी के बाद हर लड़की को ससुराल के हिसाब से खुद को एडजस्ट करना पड़ता है. एक लड़की को ससुराल वालों के हिसाब से अपना रहन-सहन बदलना पड़ता है. यहां तक की खाने के स्वाद में भी ए़डजेस्टमेंट करनी पड़ती है. अगर घरवाले कहेंगे कि तुम्हें साड़ी पहनना है तो वह सूट नहीं पहन सकती है. घरवालें कहेंगे कि आज खाने में यही बनेगा तो उसे भी वही खाना पड़ता है.
शादी के बाद जैसे छिन जाती है आजादी
शादी के बाद कहीं भी आना-जाना हो तो पहले सास-ससुर और पति की परमिशन लेनी पड़ती है. छोटी से छोटी बात में भी उनकी मर्जी जाननी पड़ती है. महिला चाह कर भी अपने फैसले नहीं ले सकती है. ऐसा लगता है कि वह ससुराल में पराए लोगों के बीच रह रही है. ऐसे में उसे अपने घर की याद आती है. वह फ्री महसूस नहीं करती थी. कुछ बनाने से पहले भी संकोच करती, मानो जैसी उसकी आजादी छिन गई हो.
परिवार सबसे पहले प्राथमिकता
शादी के बाद लड़की की पहली प्राथमिकता उसकी ससुराल हो जाती है. यहां तक की अपने माता-पिता से भी मिलने के लिए उसे 100 बार सोचना पड़ता है. वह खुद से पहले पति, सास, ससुर और बच्चों के बारे में सोचती है. उनकी पसंद का ख्याल रखती है. वह खुद से पहले परिवार की चिंता करती है. यहां तक के लिए उसके लिए करियर भी बाद में आता है.
पर्सनैलिटी बदल जाती है
शादी के बाद महिलाओं के पर्सनैलिटी में बहुत बड़ा बदलाव होता है. उस लड़की का ध्यान खुद पर से हटकर अपनी गृहस्थी में लग जाता है. वह खुद की केयर करना छोड़ देती है. जो लड़की पहले आधे घंटे में तैयार होती थी अब वह 5 मिनट में रेडी हो जाती है. उसका शरीर मोटा होने लगता है. खुले बाल जुड़े में सिमट जाते हैं. कुल मिलाकर शादी के बाद वह कोई औऱ बन जाती है.
उसका रूटीन बदल जाता है
पहले जो लड़की अपने घर में आराम से सोकर जगती थी. आज वह सबसे देरी से सोती है और सबसे पहले जग जाती है. जो लड़की मॉनिंग वॉक औऱ जिम को प्राथमिकता देती थी अब सबसे पहले रसोई में जाकर सबके लिए चाय बनाती है. वह ना टाइम से खाती है ना आराम करती है. वह बस यही सोचती है कि रात को खाने में क्या बनाना है कल सुबह नाश्ते में क्या बनाना है? उसकी खाने-पीने, सोने-जगने का पूरा रूटीन बदल जाता है.
सबसे बड़ी बात की जिस महिला के साथ यह सब बदलाव हो रहा होता है, उसे समझ में भी नहीं आता कि उसकी जिंदगी अचानक इतना कैसे बदल गई? वह तो एक ही धुन में सिर्फ घर की जिम्मेदारियों में भागती रहती है. वह पहले किसी की पत्नी होती है, किसी की बहू होती है, किसी की मां होती है फिर वह खुद होती है. उसे अपने लिए समय ही नहीं मिलता.
और उसे इस बात का कोई पछतावा भी नहीं होती है क्योंकि वह इसी में खुश होती है. आपके घर की महिला के हालात क्या हैं हमें नहीं पता...हो सकता है कि उनकी जिंदगी इससे बेहतर हो मगर अधिकतर घरों में आज भी लड़कियों की शादी के बाद यही हाल हैं. वे यही जिंदगी जी रही हैं...
इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.