20 साल की प्रिया नत्राम एक शांत लड़की है. प्रिया ने 10 साल की उम्र में एक नक्सल हमले में अपने माता पिता को खो दिया था. इसके बाद सुकमा के उन जंगलों में प्रिया का पालन पोषण उसके चाचा ने किया. एक कामचलाऊ स्कूल में वो पढ़ती थी. लेकिन उस स्कूल को भी जला दिया गया. अब उसे अपने जीवन किसी तरह से बदलाव की आशा नहीं थी.
लेकिन अब समय ने ऐसा करवट बदला कि आज प्रिया और उसके कुछ दोस्त बैंक ऑफ अमेरिका और एचडीएफसी बैंक के ग्राहकों की समस्या का समाधान करते हैं. वो भी बेंगलुरु या गुरुग्राम से नहीं बल्कि दंतेवाड़ा से. आज नेत्राम और उसके दोस्त बस्तर में 500 लोगों की झमता वाली बीपीओ चलाती हैं.
स्किल्ड कामगार-
पांच साल पहले ये किसी ने सोचा भी नहीं होगा. दंतेवाड़ा सहित छत्तीसगढ़ के लगभग हर जिले में मौजूद आजीविका कॉलेजों की वजह से आया बदलाव साफ नजर आता है. और युवाओं फिर चाहे पुरुष हो या फिर महिला उनके चेहरे का आत्मविश्वास और दृढ़ संकल्प, बस्तर के इतिहास में एक नया अध्याय लिखने की ताकिद करता है.
हाल ही में आउटसोर्सिंग को बिजनेस प्रोसेस मैनेजमेंट (बीपीएम) के रूप में इसे चिन्हित किया गया है. 80 के दशक के उत्तरार्ध में और 90 के दशक के आरंभ में अमेरिकन एक्सप्रेस और जनरल इलेक्ट्रिक (जीई) ने गुरुग्राम में आउटसोर्सिंग की शुरुआत की और बुलंदियों को छुआ. लेकिन 1991 के उदारीकरण के दौर के समय भारत आउटसोर्सिंग का एक हॉट प्वाइंट बन गया. कम्यूनिकेशन टेक्नोलॉजी के उदय के साथ ही भारत में बीपीओ इंडस्ट्री फलने फूलने लगी.
20 फीसदी के CAGR (कंपाउंड एनुअल ग्रोथ रेट) के साथ वित्तीय वर्ष 2012 में बीपीओ की आमदनी 1.6 बिलियन डॉलर थी यानी लगभग 10 हजार करोड़ रुपए. ये आंकड़ें वित्तीय वर्ष 2017 में बढ़कर...
20 साल की प्रिया नत्राम एक शांत लड़की है. प्रिया ने 10 साल की उम्र में एक नक्सल हमले में अपने माता पिता को खो दिया था. इसके बाद सुकमा के उन जंगलों में प्रिया का पालन पोषण उसके चाचा ने किया. एक कामचलाऊ स्कूल में वो पढ़ती थी. लेकिन उस स्कूल को भी जला दिया गया. अब उसे अपने जीवन किसी तरह से बदलाव की आशा नहीं थी.
लेकिन अब समय ने ऐसा करवट बदला कि आज प्रिया और उसके कुछ दोस्त बैंक ऑफ अमेरिका और एचडीएफसी बैंक के ग्राहकों की समस्या का समाधान करते हैं. वो भी बेंगलुरु या गुरुग्राम से नहीं बल्कि दंतेवाड़ा से. आज नेत्राम और उसके दोस्त बस्तर में 500 लोगों की झमता वाली बीपीओ चलाती हैं.
स्किल्ड कामगार-
पांच साल पहले ये किसी ने सोचा भी नहीं होगा. दंतेवाड़ा सहित छत्तीसगढ़ के लगभग हर जिले में मौजूद आजीविका कॉलेजों की वजह से आया बदलाव साफ नजर आता है. और युवाओं फिर चाहे पुरुष हो या फिर महिला उनके चेहरे का आत्मविश्वास और दृढ़ संकल्प, बस्तर के इतिहास में एक नया अध्याय लिखने की ताकिद करता है.
हाल ही में आउटसोर्सिंग को बिजनेस प्रोसेस मैनेजमेंट (बीपीएम) के रूप में इसे चिन्हित किया गया है. 80 के दशक के उत्तरार्ध में और 90 के दशक के आरंभ में अमेरिकन एक्सप्रेस और जनरल इलेक्ट्रिक (जीई) ने गुरुग्राम में आउटसोर्सिंग की शुरुआत की और बुलंदियों को छुआ. लेकिन 1991 के उदारीकरण के दौर के समय भारत आउटसोर्सिंग का एक हॉट प्वाइंट बन गया. कम्यूनिकेशन टेक्नोलॉजी के उदय के साथ ही भारत में बीपीओ इंडस्ट्री फलने फूलने लगी.
20 फीसदी के CAGR (कंपाउंड एनुअल ग्रोथ रेट) के साथ वित्तीय वर्ष 2012 में बीपीओ की आमदनी 1.6 बिलियन डॉलर थी यानी लगभग 10 हजार करोड़ रुपए. ये आंकड़ें वित्तीय वर्ष 2017 में बढ़कर 54 बिलियन डॉलर और 2025 तक 3.6 लाख करोड़ डॉलर होने की उम्मीद है. इस लिहाज से देखें तो वैश्विक बाजार में लगभग 38 फीसदी शेयर के साथ भारत अग्रिम पंक्ति में खड़ा है.
भारत में घरेलू ई-कॉमर्स बाजार के लिए 30 प्रतिशत वार्षिक वृद्धि दर का अनुमान है. (2026 तक 200 अरब डॉलर (13.3 लाख करोड़ रुपये) पर पहुंच सकता है.), 2020 तक इंटरनेट उपयोगकर्ताओं की बढ़ती संख्या को देखते हुए ये आंकड़ा 730 मिलियन तक जा सकता है. ऐसे में देश में जो बीपीओ बाजार का सिर्फ एक तिहाई ही है उसका भविष्य सुनहरा है और वो सफलता के नए कीर्तिमान गढ़ सकता है.
कई सारे पहल-
हालांकि सेवाओं के क्षेत्र में भारत की यह प्रगति देखने में आकर्षक है लेकिन इसका रास्ता उतना भी आसान नहीं है.
पहले बीपीओ का क्षेत्र बेंगलुरू, दिल्ली-एनसीआर, मुंबई और चेन्नई जैसे प्रमुख टियर 1 शहरों पर ही केंद्रित होता था. दूसरे प्रमुख बीपीओ केंद्रों के साथ साथ बेंगलुरु भी कम फायदे को झेल रहा है. भारत के सॉफ्टवेयर टेक्नोलॉजी पार्क (एसटीपीआई) योजना के खत्म होने और डॉलर के मुकाबले रुपये के बढ़ने के परिणामस्वरुप देश के टियर टू और टियर थ्री शहरों में भी बीपीओ कल्चर बढ़ रहा है.
तेजी से बढ़ते बुनियादी ढांचे और मैनपावर की लागत, उच्च दुर्घटना दर और तीव्र प्रतिस्पर्धा, ने घरेलू आउटसोर्सिंग बाजार के लिए नए आयाम खोल दिए हैं और बीपीएम इंडस्ट्री के लिए रास्ता साफ कर दिया है. यही कारण है कि अब इनके केंद्र पारंपरिक शहरों से दूर निकल कर छोटे शहरों में शिफ्ट हो रहे हैं. रोजगार के अवसर पैदा करने के स्पष्ट उद्देश्य के साथ सरकार और विभिन्न राज्यों द्वारा कई नीतियां बनाई जा रही हैं. इससे बीपीओ उद्योग का रास्ता आसान हो रहा है.
नए मानदंड-
"बस्तर" का नाम सुनते ही दिमाग में ऐसी तस्वीर उभरती है जिसकी बदौलत तो कोई भी वहां उद्योग लगाने की नहीं सोचेगा. लेकिन राज्य सरकार और जिला कलेक्टरों के प्रयासों ने छत्तीसगढ़ में एक गैर परंपरागत टियर थ्री शहर, बस्तर में एक बीपीओ यूनिट खुलवा ही दिया.
कम ऑपरेशनल कॉस्ट, जिला प्रशासन द्वारा इंफ्रास्ट्रक्चर की सुविधा, कामगार की मौजूदगी, कम दुर्घटना दर और पॉलिसी सपोर्ट ने पारंपरिक निर्णय को चुनौती दी है. बीपीओ की चेन में बस्तर भले ही नीचे से शुरू हो रहा है जबकि बेंगलुरू और गुरुग्राम लगातार बढ़ रही है. लेकिन बस्तर जैसी जगहों पर जाना पसंद नापसंद का सवाल नहीं होगा बल्कि ये रोजाना की बात हो जाएगी.
बस्तर के युवाओं के लिए प्रिया नेत्राम की कहानी प्रेरणा का स्रोत है. साथ ही मोचनार के अंकेश नाग, इल्मिड़ी गांव के कार्तिक, कोंडगांव स्थिक कमेला की रहने वाली ताम्ता दीवान और बीजापुर स्थित अवापल्ली के रमेश काका ऐसे उन कुछ नामों में से हैं जिन्होंने अपनी जीवटता से अपनी वर्तमान परिस्थिति को बदला और आज 500 युवा बीपीओ के कर्मचारी बने हैं. ये शांति से, चुपचाप, बस्तर के बदलने की भी कहानी है.
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