आपने पद्मावत और भंसाली के समर्थन में लिखा, करणी सेना और उनकी अराजकता के विरोध में लिखा मगर ये बताइए क्या आपने "कासगंज पर कुछ लिखा?" देखिये एक हिन्दू लड़का मरा है, कासगंज पर आपकी चुप्पी कचोटने वाली है. जब आप लिख ही रहे हैं तो इस पर भी आपको कुछ लिख देना चाहिए था. कुछ लिखोगे या सिर्फ एक ही पक्ष पर अपनी बात कहकर उसका समर्थन और वाह-वाह हासिल करते रहोगे? तुम लोग पक्षपात करते हो? तुम लोग सिर्फ मौके को भुनाना जानते हो. तुम्हारी चुप्पी सिलेक्टिव है.
ये वो सवाल और बातें हैं जिनका सामना मैं गुजरे 24 घंटे से कर रहा हूं. मुझसे लगातार कासगंज में कुछ अराजक तत्वों द्वारा की गयी एक हिन्दू युवक की हत्या पर मेरे विचार मांगे जा रहे हैं. लोगों को इस विषय पर मेरी चुप्पी काट रही है, उन्हें कचोट रही है. बीते कुछ घंटों से उत्तर प्रदेश के कासगंज में हालात बद से बदतर होते जा रहे हैं. पूरे इलाके में तनाव है. जगह-जगह पुलिस की जीपों के सायरनों और उनके हूटर की गूंज है.
पहली नजर में पुलिस के गश्ती जवानों को देखकर लग रहा है कि इनके रहते अब अराजक तत्व अपने मंसूबों में और कामयाब नहीं हो पाएंगे. मगर जब हम कासगंज को, जलती हुई रोडवेज की बसों और आग से जलकर स्वाहा हुई दुकानों, साध्वी प्राची, घटना के बाद धरने पर बैठे सांसद, टुकड़ियां बनाए पीएसी और आरएएफ के जवानों को देखते हैं तो मिलता है कि आने वाले कुछ घंटों बल्कि कुछ दिनों तक कासगंज की स्थिति बद से बदतर होने वाली है और निश्चित तौर पर लाश पर चल रही राजनीति अपना सबसे खौफनाक रूप लेने वाली है.
क्या था मामला
गणतंत्र दिवस पर विद्यार्थी परिषद एवं हिंदूवादी संगठनों ने देशभर की तरह कासगंज में भी तिरंगा यात्रा निकाली थी. यह...
आपने पद्मावत और भंसाली के समर्थन में लिखा, करणी सेना और उनकी अराजकता के विरोध में लिखा मगर ये बताइए क्या आपने "कासगंज पर कुछ लिखा?" देखिये एक हिन्दू लड़का मरा है, कासगंज पर आपकी चुप्पी कचोटने वाली है. जब आप लिख ही रहे हैं तो इस पर भी आपको कुछ लिख देना चाहिए था. कुछ लिखोगे या सिर्फ एक ही पक्ष पर अपनी बात कहकर उसका समर्थन और वाह-वाह हासिल करते रहोगे? तुम लोग पक्षपात करते हो? तुम लोग सिर्फ मौके को भुनाना जानते हो. तुम्हारी चुप्पी सिलेक्टिव है.
ये वो सवाल और बातें हैं जिनका सामना मैं गुजरे 24 घंटे से कर रहा हूं. मुझसे लगातार कासगंज में कुछ अराजक तत्वों द्वारा की गयी एक हिन्दू युवक की हत्या पर मेरे विचार मांगे जा रहे हैं. लोगों को इस विषय पर मेरी चुप्पी काट रही है, उन्हें कचोट रही है. बीते कुछ घंटों से उत्तर प्रदेश के कासगंज में हालात बद से बदतर होते जा रहे हैं. पूरे इलाके में तनाव है. जगह-जगह पुलिस की जीपों के सायरनों और उनके हूटर की गूंज है.
पहली नजर में पुलिस के गश्ती जवानों को देखकर लग रहा है कि इनके रहते अब अराजक तत्व अपने मंसूबों में और कामयाब नहीं हो पाएंगे. मगर जब हम कासगंज को, जलती हुई रोडवेज की बसों और आग से जलकर स्वाहा हुई दुकानों, साध्वी प्राची, घटना के बाद धरने पर बैठे सांसद, टुकड़ियां बनाए पीएसी और आरएएफ के जवानों को देखते हैं तो मिलता है कि आने वाले कुछ घंटों बल्कि कुछ दिनों तक कासगंज की स्थिति बद से बदतर होने वाली है और निश्चित तौर पर लाश पर चल रही राजनीति अपना सबसे खौफनाक रूप लेने वाली है.
क्या था मामला
गणतंत्र दिवस पर विद्यार्थी परिषद एवं हिंदूवादी संगठनों ने देशभर की तरह कासगंज में भी तिरंगा यात्रा निकाली थी. यह यात्रा जब मुस्लिम बाहुल्य मुहल्ले हुल्का में पहुंची तो जोश में आए कार्यकर्ताओं ने वंदे मातरम, भारत माता की जय के नारे लगाने शुरू कर दिए. इन नारों को देखकर मुस्लिम समुदाय के लोग आक्रोशित हो उठे तभी किसी युवक ने पाकिस्तान जिंदाबाद का नारा लगा दिया. पाकिस्तान जिंदाबाद का नारा लग्न भर था कि स्थिति तनावपूर्ण हो गयी और देखते-देखते दोनों पक्षों की ओर से जारी नारेबाजी पथराव फिर गोलीबारी में तब्दील हो गयी. मौके पर चली गोली चंदन गुप्ता नाम के युवक को लगी जिससे वो गंभीर रूप से घायल हुआ और इलाज के दौरान उसकी मौत हो गयी.
फिर शुरू हो गयी लाशों पर राजनीति
एक घर का चिराग बुझ चुका है, लड़के के परिजनों का रो-रो कर बुरा हाल है ऐसे में संतावना देने के नाम पर तमाम तरह के अराजक तत्वों का उसके द्घर आना और नफरत की आग में घी डालना ये बताने के लिए काफी है कि उत्तरप्रदेश के कासगंज में धर्म की राजनीति से लग चुकी आग आने वाले वक़्त में कई घरों का अस्तित्व तबाह कर देगी. चाहे हिन्दू मरे या मुसलमान मौत किसी की भी हो, ये न सिर्फ मरने वाले के परिवार के लिए पीड़ा का कारण है बल्कि देश की एकता और संप्रभुता के लिए घातक है. ऐसा इसलिए क्योंकि ऐसे हादसे न सिर्फ हमें विकास के मार्ग से कोसों दूर करते हैं बल्कि वो अपने आप ये भी बता देते हैं कि आज भी हम अपनी मर्जी से हिन्दू-मुस्लिम, जात-पात के बंधनों में बंधे हैं.
बहरहाल, कासगंज मामले को देखकर और सोशल मीडिया जगत में इस सन्दर्भ में चल रहे प्रश्नों और उत्तरों को देखकर शायद ये कहना गलत न होगा कि ये उपद्रव बहुत जल्द ही अपने सबसे उग्र रूप में होगा. फेसबुक, ट्विटर, व्हाट्सऐप पर तिल को ताड़ बनाने का दौर है.जल्द ही ये मामला मॉर्फ तस्वीरों, भड़काऊ संदेशों, ललकारने वाले ट्वीट्स और फेसबुक पोस्ट से तिल से ताड़ बनेगा. रही गयी कसर न्यूज़ चैनल, उनमें चल रही बहस और उनके "राष्ट्रवादी एंकर" पूरी कर देंगे. इन बहसों का निचोड़ वही धर्म आधारित राजनीती होगी. साथ ही वहां ये भी बहस होगी कि यदि वहां कोई दूसरे समुदाय का मरता तो मीडिया से लेकर पुलिस तक और सेकुलरिज्म की राजनीति करने वाले नेता रुदाली बन जाते.
अब आप ही बताइए. क्या ऐसी बातें इस आग में खर का काम नहीं करेंगी. बिल्कुल करेंगी. निस्संदेह ये बवाल मुजफ्फरनगर दंगों से ज्यादा विकराल रूप लेगा. अगर इस बवाल के मद्देनजर कल कोई बड़ी खबर आए तो हमें बिल्कुल भी हैरत नहीं करनी चाहिए क्योंकि हम वही काट रहे हैं जो हमनें बोया है. कहा जा सकता है कि उत्तर प्रदेश के कासगंज में असली फिल्म तो अब शुरू हुई है. बीते दिनों वहां जो गोली कांड हुआ वो तो महज फिल्म का टीजर था. अंदाजा लगा के देखिये उस फिल्म का जिसका टीजर राष्ट्रवाद के नाम पर एक जान ले चुका है.
बस करिए. पूछना बंद करिए लोगों से कि फलां की मौत पर फलां की क्या राय है. और वो फलां, उस फलां मौत और मरने वाले के लिए क्या कर रहा है अपने फेसबुक और ट्विटर पर क्या पोस्ट कर रहा है, व्हाट्स ऐप से क्या मैसेज भेज रहा है. याद रखिये कासगंज का कासगंज मामला बनना, वहां लाशों को नोचने गिद्धों का आना ये बताने के लिए काफी है कि वर्तमान की स्थिति कैसी है और भविष्य में ये कितना विकराल रूप लेने वाली है.
अंत में हम ये कहकर अपनी बात खत्म करेंगे कि ऐसी घटनाएं देश की एकता के लिए खतरा तो हैं ही साथ ही ये या इससे मिलती जुलती घटनाएं ही वो अवरोध हैं जिसके चलते विकास अभी हमसे कोसों दूर है. यदि हम अपने देश को विकास के मार्ग पर आगे बढ़ता हुआ देखना चाहते हैं तो हमें ऐसी घटनाओं की निंदा करनी होगी और अपनी-अपनी सिलेक्टिव सहानुभूति को बंद कर निष्पक्षता के साथ इस घटना का अवलोकन करना होगा.
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