'अपने बेटे आकाश अंबानी की सगाई पर थिरकीं नीता अंबानी..' ऐसी हेडलाइन्स पिछले कुछ दिनों से किसी न किसी मीडिया वेबसाइट पर दिख जाती है. इस हेडलाइन के साथ कुछ वीडियो भी दिखाए जाते हैं. नीता अंबानी किसी भव्य सेट पर डांस कर रही थीं और देश की बड़ी-बड़ी हस्तियां नाच गा रही थीं. ये थी अंबानी परिवार के एक फंक्शन की स्थिती. अंबानी परिवार की शादी की रिहर्सल देखकर फिल्म हम आपके हैं कौन की याद आ जाती है.
अक्सर भारतीय शादियों के बारे में ऐसे ही कल्पना की जाती है. पूरा परिवार हंसी खुशी नाचता रहे, हज़ारों लोग खुशी में शामिल हों, वगैराह-वगैराह. शादी की बात जहां तक है वहां भारतीय समाज में इसका महत्व ही अलग होता है. कम से कम तीन दिन का फंक्शन और हर दिन ड्रेस से लेकर डिश तक सब कुछ नया और अलग. ये होती है भारतीय शादी.
पर इस भारतीय शादी का सपना देखने वाले अक्सर अपने बजट के साथ खिलवाड़ कर बैठते हैं. 2011 की जनगणना के मुताबिक 30% भारतीय जनसंख्या (37 करोड़) शहरों में रहती है और इनमें से 10% यानी 10 करोड़ के आस-पास लोग शादी की उम्र के हैं यानी 20-35 साल की उम्र के. 1000 पुरुषों में 926 महिलाएं हैं तो इसमें महिलाओं की संख्या हुई 4.5 करोड़ के आस-पास. यानी इतने लोगों की शादी. अगर 10 करोड़ लोग शादी की उम्र के हैं और लड़कियों का अनुपात देखें तो 4.5 करोड़ शादियां तो फिर भी होनी हैं. अगर सालाना एवरेज देखें तो (45000000/15= 3000000). तो यकीनन इस एज ग्रुप के गैप में कम से कम 30 लाख शादियां तो हर साल होती ही होंगी.
अब अगर शादी के एक फंक्शन की कीमत देखें तो...
1. जगह..
वेन्यू अगर शादी के किसी छोटे फंक्शन का है तो यकीनन 1 दिन का 60 हज़ार से 1 लाख तक खर्च हो ही जाएगा. ये सगाई, मेहंदी, हल्दी जैसा कोई फंक्शन हो सकता है.
2. ड्रेस..
सगाई के कपड़ों का बजट भी इसी तरह का होता है. 1 लाख तक के कपड़े सारे परिवार वालों के लिए हो जाते हैं. इसी तरह का बजट शादी के बाकी फंक्शन का भी होता...
'अपने बेटे आकाश अंबानी की सगाई पर थिरकीं नीता अंबानी..' ऐसी हेडलाइन्स पिछले कुछ दिनों से किसी न किसी मीडिया वेबसाइट पर दिख जाती है. इस हेडलाइन के साथ कुछ वीडियो भी दिखाए जाते हैं. नीता अंबानी किसी भव्य सेट पर डांस कर रही थीं और देश की बड़ी-बड़ी हस्तियां नाच गा रही थीं. ये थी अंबानी परिवार के एक फंक्शन की स्थिती. अंबानी परिवार की शादी की रिहर्सल देखकर फिल्म हम आपके हैं कौन की याद आ जाती है.
अक्सर भारतीय शादियों के बारे में ऐसे ही कल्पना की जाती है. पूरा परिवार हंसी खुशी नाचता रहे, हज़ारों लोग खुशी में शामिल हों, वगैराह-वगैराह. शादी की बात जहां तक है वहां भारतीय समाज में इसका महत्व ही अलग होता है. कम से कम तीन दिन का फंक्शन और हर दिन ड्रेस से लेकर डिश तक सब कुछ नया और अलग. ये होती है भारतीय शादी.
पर इस भारतीय शादी का सपना देखने वाले अक्सर अपने बजट के साथ खिलवाड़ कर बैठते हैं. 2011 की जनगणना के मुताबिक 30% भारतीय जनसंख्या (37 करोड़) शहरों में रहती है और इनमें से 10% यानी 10 करोड़ के आस-पास लोग शादी की उम्र के हैं यानी 20-35 साल की उम्र के. 1000 पुरुषों में 926 महिलाएं हैं तो इसमें महिलाओं की संख्या हुई 4.5 करोड़ के आस-पास. यानी इतने लोगों की शादी. अगर 10 करोड़ लोग शादी की उम्र के हैं और लड़कियों का अनुपात देखें तो 4.5 करोड़ शादियां तो फिर भी होनी हैं. अगर सालाना एवरेज देखें तो (45000000/15= 3000000). तो यकीनन इस एज ग्रुप के गैप में कम से कम 30 लाख शादियां तो हर साल होती ही होंगी.
अब अगर शादी के एक फंक्शन की कीमत देखें तो...
1. जगह..
वेन्यू अगर शादी के किसी छोटे फंक्शन का है तो यकीनन 1 दिन का 60 हज़ार से 1 लाख तक खर्च हो ही जाएगा. ये सगाई, मेहंदी, हल्दी जैसा कोई फंक्शन हो सकता है.
2. ड्रेस..
सगाई के कपड़ों का बजट भी इसी तरह का होता है. 1 लाख तक के कपड़े सारे परिवार वालों के लिए हो जाते हैं. इसी तरह का बजट शादी के बाकी फंक्शन का भी होता है और जयमाल की बात करें तो दुल्हन के लहंगे से लेकर दुल्हन की कजिन की साड़ी और दूल्हे की शेरवानी से लेकर उसके परिवार की ड्रेस तक का कुल खर्च ही 1 लाख से 5 लाख के बीच आता है.
3. सजावट..
किसी शादी के हॉल को स्वर्ग की तरह सजाने का खर्च भी उतना ही ज्यादा होता है. एक फंक्शन की सजावट का खर्च कुछ 50 हज़ार से 3 लाख तक हो सकता है.
4. खाना...
केटरिंग की बात करें तो ये खर्च भी 1.5 से 3.5 लाख के बीच बैठता है.
5. एंटरटेनमेंट...
शादी के किसी भी फंक्शन में नाच-गाना, हंसी मज़ाक, डीजे वाले बाबू और बैंड वाले भइया तक कई तरह के इंतजाम किए जाते हैं. आजकल तो डांसिंग कोरियोग्राफर का इंतजाम भी होने लगा है. ऐसे में शादियों में और खर्च बढ़ जाता है.
6. गिफ्ट..
यहां गिफ्ट का मतलब शगुन से है. लड़के वालों का शगुन, लड़की वालों का शगुन, तिलक में दिए जाने वाले गिफ्ट सब शामिल हैं जिनका कुल खर्च 1-3 लाख के बीच होता है.
यानी अगर गौर करें तो शादी के एक दिन का खर्च करीब 5-10 लाख के बीच बैठता है. तीन दिन का एस्टिमेट अगर ऊपर नीचे करें तो एक एवरेज भारतीय शादी 20-22 लाख से नीचे नहीं होती.
अब अगर यहीं अमेरिका में शादियों को देखें तो द नॉट के मुताबिक एक अच्छी शादी की कीमत 35000 डॉलर (लगभग 24 लाख रुपए के आस-पास) होती है. ये वहां की महंगी शादी गिनी जाती है. भारत की सबसे महंगी शादी अमित भाटिया और वनीशा मित्तल (लक्ष्मी मित्तल की बेटी) की थी जो करीब 74 मिलियन डॉलर का खर्च थी ये 2004 की बात है. यहीं अमेरिका की महंगी शादी देखें तो 2010 में चेल्सी क्लिंटन और मार्क मेज्विन्स्की की शादी में 5 मिलियन डॉलर खर्च किए गए थे और इसे एक मंहगी शादी बताया गया था.
अब आप खुद ही सोच लीजिए की अमेरिकी एवरेज शादी कितने कम खर्च में हो जाती होगी. भारत और अमेरिकी जीडीपी को देखें और वहीं वेडिंग मार्केट को देखें तो सब कुछ बहुत अलग पाएंगे. अमेरिका की कुल जनसंख्या 300 मिलियन के आस-पास है और 400 मिलियन से ज्यादा लोग भारत में अगले 15 साल में शादी के लिए तैयार होंगे. एक एवरेज मिडिल क्लास परिवार अपने बच्चों की शादी में पूरे जीवन की 70% पूंजी खर्च कर देता है. अगर सिर्फ सालाना शादी यानी 30 लाख * एवरेज शादी यानी 22 लाख से गुणा कर दिया जाए तो ये आंकड़ा 6,60,000 करोड़ हो जाएगा. इसमें अमीरों की शादियां तो यकीनन 20 लाख में नहीं होती तो अंदाजा लगाना मुश्किल नहीं की शादियों में कितना खर्च होता है.
ये एक एस्टिमेटेड खर्च है, इस खर्च में शादी का दहेज शामिल नहीं है, न ही शादी के पहले की शॉपिंग शामिल है जो लगातार बढ़ती और घटती रहती है.
अब बात करते हैं कोर्ट मैरिज की ..
हिंदू मैरिज एक्ट के तहत शादी करने पर 100 रुपए फीस, और स्पेशल मैरिज एक्ट के तहत शादी करने पर 150 रुपए फीस लगती है. लोग 500-100 रुपए बाकी सर्टिफिकेट और एफिडेविट के देते हैं. अगर किसी को शादी के तुरंत बाद मैरिज सर्टिफिकेट चाहिए या फिर किसी को अर्जेंट शादी रजिस्टर करवानी है तो उसके लिए 10 हज़ार रुपए तक की फीस लग सकती है और शादी के बाद एक रिसेप्शन का खर्च मान लीजिए सब कुछ मिलाकर 8-10 लाख भी हुआ तो भी शादी का करीब 50% खर्च बचाया जा सकता है.
ये 10-15 लाख जो बचेंगे वो किसी भी ज्यादा जरूरी काम के लिए लगाए जा सकते हैं. अगर कोई रिसेप्शन न देना चाहे तो 22 लाख पूरे के पूरे बच सकते हैं.
इसे मेरी अपनी ख्वाहिश मानिए या फिर अपनी सोच, लेकिन अपनी शादी के लिए भी मैं कोर्ट मैरिज ही करने की इच्छा रखती हूं. कारण सीधा सा है. मेरी तनख्वाह और मां-पापा की सेविंग्स अगर मिला ली जाएं तो मैं अपने खुद के घर की डाउनपेमेंट, गाड़ी और फ्यूचर के लिए एफडी, म्यूचुअल फंड इन्वेस्टमेंट के साथ-साथ अपने बच्चों के पहले 3 साल का खर्च भी आसानी से उसी पैसे से निकाल सकती हूं जिसे मेरी शादी के लिए खर्च किया जाएगा.
इसमें कोई बड़ा गणित नहीं बल्की सीधा-साधा लॉजिक है कि अगर किसी को शादी करनी है तो वो कोर्ट मैरिज कर सकता है, रही बात रस्मों की तो वो मंदिर में भी की जा सकती हैं. इसके लिए 1000 लोगों को दावत देने की बात गले नहीं उतरती. ये 1000 लोगों का हुजूम सिर्फ खाना खाकर चला जाएगा और आपके पास रह जाएगें बिल. जितना भी कर लीजिए भारतीय परिवार और रिश्तेदार कभी नहीं बदलेंगे. चाहें शादी किसी के घर में भी हो बुराइयां निकालना और ताने मारना बदस्तूर जारी रहेगा. अब अगर ऐसा होना ही है तो क्यों न शादी को थोड़ा आसान बनाया जाए और शादी के खर्च को थोड़ा कम किया जाए. फैसला आपका है और सोच भी आपकी है.
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