आज की पीढ़ी के हर हिन्दुस्तानी को, जिसने महात्मा गांधी को प्रत्यक्ष नहीं देखा है और सिर्फ पुस्तकों में पढता रहा है. उसके लिए किसी ऐसे जगह पर जाकर रहना जो उनके जीवन को एक निर्णायक मोड़ देने में सबसे महत्वपूर्ण रहा हो, बेहद रोमांच और गर्व का विषय हो सकता है. अगस्त 2013 में दक्षिण अफ्रीका पहुंचने पर मुझे अंदर ही अंदर सबसे बड़ी ख़ुशी और सबसे बड़ा रोमांच इसी को लेकर था कि अब गांधीजी के पहले राजनैतिक और सामाजिक कर्मस्थल को नजदीक से देखने और महसूस करने का अवसर मिलेगा.
जोहानसबर्ग में ऐसे दो जगहों का पता चला जो गांधीजी से जुड़े थे. उनमें से सबसे महत्वपूर्ण था 'सत्याग्रह हाउस'. यहां गांधीजी ने काफी समय तक निवास किया था. हिन्दुस्तान से उलट, दक्षिण अफ्रीका में लोगों से रास्ता पूछकर आप कहीं नहीं जा सकते. तो जीपीएस की मदद से जब हम लोग सत्याग्रह हाउस पहुंचे तो दिल बहुत तेजी से धड़क रहा था. अंदर प्रवेश करते ही सबसे पहले नजर वहां बैठे स्थानीय कर्मचारियों पर पड़ी. उन्होंने सफ़ेद कुर्ता पायजामा पहना हुआ था (पुरुष और महिला दोनों कर्मचारियों ने). यह एक बेहद सुखद अनुभव था जिसकी कल्पना भी हमने नहीं की थी.
ये पता चलते ही कि हम लोग भी हिन्दुस्तान से हैं, उन्होंने बहुत अपनेपन से पूरा आश्रम हमें दिखाया. आश्रम में अब कई कमरे भी बना दिए गए हैं, जहां पूरी दुनिया से आकर लोग ठहरते हैं और गांधीजी के साथ अपनी निकटता को अनुभव करते हैं. और फिर हमारे लिए अगले तमाम सालों में किसी भीअतिथि को लेकर जाने वाला जोहानसबर्ग का यह पहला स्थान बन गया.
फोर्ड्सबर्ग में स्थित गांधी स्क्वायर जहां गांधीजी की बैरिस्टर के समय की प्रतिमा लगी है भी जाना अपने आप को गांधीजी से जोड़ने जैसा ही अनुभव था. लेकिन जहां सत्याग्रह हाउस जाने पर आपको...
आज की पीढ़ी के हर हिन्दुस्तानी को, जिसने महात्मा गांधी को प्रत्यक्ष नहीं देखा है और सिर्फ पुस्तकों में पढता रहा है. उसके लिए किसी ऐसे जगह पर जाकर रहना जो उनके जीवन को एक निर्णायक मोड़ देने में सबसे महत्वपूर्ण रहा हो, बेहद रोमांच और गर्व का विषय हो सकता है. अगस्त 2013 में दक्षिण अफ्रीका पहुंचने पर मुझे अंदर ही अंदर सबसे बड़ी ख़ुशी और सबसे बड़ा रोमांच इसी को लेकर था कि अब गांधीजी के पहले राजनैतिक और सामाजिक कर्मस्थल को नजदीक से देखने और महसूस करने का अवसर मिलेगा.
जोहानसबर्ग में ऐसे दो जगहों का पता चला जो गांधीजी से जुड़े थे. उनमें से सबसे महत्वपूर्ण था 'सत्याग्रह हाउस'. यहां गांधीजी ने काफी समय तक निवास किया था. हिन्दुस्तान से उलट, दक्षिण अफ्रीका में लोगों से रास्ता पूछकर आप कहीं नहीं जा सकते. तो जीपीएस की मदद से जब हम लोग सत्याग्रह हाउस पहुंचे तो दिल बहुत तेजी से धड़क रहा था. अंदर प्रवेश करते ही सबसे पहले नजर वहां बैठे स्थानीय कर्मचारियों पर पड़ी. उन्होंने सफ़ेद कुर्ता पायजामा पहना हुआ था (पुरुष और महिला दोनों कर्मचारियों ने). यह एक बेहद सुखद अनुभव था जिसकी कल्पना भी हमने नहीं की थी.
ये पता चलते ही कि हम लोग भी हिन्दुस्तान से हैं, उन्होंने बहुत अपनेपन से पूरा आश्रम हमें दिखाया. आश्रम में अब कई कमरे भी बना दिए गए हैं, जहां पूरी दुनिया से आकर लोग ठहरते हैं और गांधीजी के साथ अपनी निकटता को अनुभव करते हैं. और फिर हमारे लिए अगले तमाम सालों में किसी भीअतिथि को लेकर जाने वाला जोहानसबर्ग का यह पहला स्थान बन गया.
फोर्ड्सबर्ग में स्थित गांधी स्क्वायर जहां गांधीजी की बैरिस्टर के समय की प्रतिमा लगी है भी जाना अपने आप को गांधीजी से जोड़ने जैसा ही अनुभव था. लेकिन जहां सत्याग्रह हाउस जाने पर आपको लगेगा कि आप ऐसी जगह हैं जहां हर व्यक्ति गांधीजी को जानता है. तो गांधी स्क्वायर पर ऐसा कोई शायद ही मिलेगा जो गांधीजी को जानता हो. मैंने कई लोगों से पूछने की कोशिश की लेकिन अधिकांश ने अपनी असमर्थता ही व्यक्त की.
जोहानसबर्ग में महात्मा गांधी से जुड़े विषयों पर हर साल तीन कार्यक्रम आयोजित होते थे. जिनकी शुरुआत जनवरी में 'भारतीय प्रवासी दिवस' जो 1995 में गांधीजी के दक्षिण अफ्रीका से हिन्दुस्तान लौटने के उपलक्ष्य में मनाया जाता है, से होती है. फरवरी में 'टॉलस्टॉय फार्म' में एक बैठक होती है, जहां पर गांधीजी ने भारतीय समुदाय को धर्म और भेदभाव भूलकर एकसाथ रहने के लिए प्रेरित किया था. और अंत में 2 अक्टूबर को 'कॉन्स्टीट्यूशन हिल', जहां महात्मा गांधी और नेल्सन मंडेला कई सालों तक कैद रहे थे, में गांधी जयंती पर आयोजित भव्य सभा से इन कार्यक्रमों का अंत होता है.
एक बार मुझे भी इन कार्यक्रमों में शामिल होने का निमत्रंण मिला. कार्यक्रम के दौरान लगातार दिमाग में यही चलता रहा कि अगर महात्मा गांधी 13 अप्रैल 1893 को हिन्दुस्तान से दक्षिण अफ्रीका नहीं आये होते, तो क्या वह वास्तव में महात्मा गांधी बन पाए होते? जैसा कि खुद नेल्सन मंडेला ने कहा था 'आपने हमें मोहनदास गांधी दिया था, हमने आपको महात्मा गांधी लौटाया'. शायद बहुत हद तक यह बात सही भी है. 1893 में सिर्फ एक साल के लिए दक्षिण अफ्रीका आए महात्मा गांधी न सिर्फ दो दशकों से ज्यादा दक्षिण अफ्रीका में रहे, बल्कि उनके राजनैतिक जीवन और उनके सबसे बड़े हथियार 'सत्याग्रह' की उत्पत्ति का श्रेय भी उनके दक्षिण अफ्रीका प्रवास को ही जाता है.
नेल्सन मंडेला भी उनको अपने आदर्श मानते थे और उनके अहिंसा और सत्याग्रह से बहुत प्रभावित थे. और यह बात भी उतनी ही सत्य है कि अगर महात्मा गांधी दक्षिण अफ्रीका नहीं रहे होते तो शायद नेल्सन मंडेला भी उनके दिखाए मार्ग को इतनी आसानी से समझ पाए होते और दक्षिण अफ्रीका को आज़ादी दिलाने में इसका उपयोग कर पाए होते.
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