मौत और जिंदगी के बीच के दो मामले. यदि किसी की धड़कन रुक जाए और वह फिर जी उठे तो क्या कहा जाएगा... चमत्कार, भगवान की कृपा. लेकिन, यदि ऐसा ही किसी अस्पताल में हो तो क्या कहा जाएगा... डॉक्टर की लापरवाही, धोखा. मरीज के परिजन तो उस डॉक्टर के खून के प्यासे हो जाएंगे, जिसने मरीज को मृत घोषित किया हो. खैर, इन दोनों परिस्थितियों के बीच असली सवाल यह है कि क्या वाकई ऐसी कोई परिस्थिति होती है, जिसमें इस बात की गुंजाइश हो कि मरा हुआ व्यक्ति जी उठेगा. किसी व्यक्ति की जिंदगी को लेकर कब तक उम्मीद नहीं छोड़नी चाहिए. यह रहस्य है, लेकिन दिल्ली के मैक्स अस्पताल के एक मामले ने इस बहस को फिर से जन्म दे दिया है. जहां डॉक्टरों ने एक बच्चे को मृत घोषित कर दिया था, जो बाद में जीवित निकला.
दिल्ली के मैक्स अस्पताल से अंतिम संस्कार के लिए ले बच्चे को ले जा रहे परिजन उसे जिंदा देखकर झूम उठे, लेकिन अगले ही पल मैक्स अस्पताल के लिए उनकी आंखों में गुस्सा भर आया. अब मैक्स अस्पताल पर सवालों की बौछार हो गई है और मामले की जांच के आदेश दे दिए गए हैं. यह घटना डॉक्टर की लापरवाही से हुई है या नहीं, अभी यह कहा नहीं जा सकता. लेकिन कई बार कुछ ऐसी मेडिकल कंडिशन भी होती हैं, जिनमें लाख कोशिशों के बाद भी डॉक्टर नहीं समझ पाते कि मरीज जीवित है या नहीं.
ऐसा पता करते हैं कोई जिंदा है या नहीं
मैक्स अस्पताल का मामला सामने आने के बाद 'iChowk' ने संजय गांधी पोस्ट ग्रेजुएट इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज, लखनऊ के एक पूर्व डॉक्टर स्कंद शुक्ला से बात की. डॉक्टर स्कंद शुक्ला के अनुसार दिल की धड़कन, सांसें और दिमाग की गतिविधि से यह निर्धारित किया जाता है कि कोई शख्स जीवित है या नहीं. अगर यह सब काम नहीं करते हैं...
मौत और जिंदगी के बीच के दो मामले. यदि किसी की धड़कन रुक जाए और वह फिर जी उठे तो क्या कहा जाएगा... चमत्कार, भगवान की कृपा. लेकिन, यदि ऐसा ही किसी अस्पताल में हो तो क्या कहा जाएगा... डॉक्टर की लापरवाही, धोखा. मरीज के परिजन तो उस डॉक्टर के खून के प्यासे हो जाएंगे, जिसने मरीज को मृत घोषित किया हो. खैर, इन दोनों परिस्थितियों के बीच असली सवाल यह है कि क्या वाकई ऐसी कोई परिस्थिति होती है, जिसमें इस बात की गुंजाइश हो कि मरा हुआ व्यक्ति जी उठेगा. किसी व्यक्ति की जिंदगी को लेकर कब तक उम्मीद नहीं छोड़नी चाहिए. यह रहस्य है, लेकिन दिल्ली के मैक्स अस्पताल के एक मामले ने इस बहस को फिर से जन्म दे दिया है. जहां डॉक्टरों ने एक बच्चे को मृत घोषित कर दिया था, जो बाद में जीवित निकला.
दिल्ली के मैक्स अस्पताल से अंतिम संस्कार के लिए ले बच्चे को ले जा रहे परिजन उसे जिंदा देखकर झूम उठे, लेकिन अगले ही पल मैक्स अस्पताल के लिए उनकी आंखों में गुस्सा भर आया. अब मैक्स अस्पताल पर सवालों की बौछार हो गई है और मामले की जांच के आदेश दे दिए गए हैं. यह घटना डॉक्टर की लापरवाही से हुई है या नहीं, अभी यह कहा नहीं जा सकता. लेकिन कई बार कुछ ऐसी मेडिकल कंडिशन भी होती हैं, जिनमें लाख कोशिशों के बाद भी डॉक्टर नहीं समझ पाते कि मरीज जीवित है या नहीं.
ऐसा पता करते हैं कोई जिंदा है या नहीं
मैक्स अस्पताल का मामला सामने आने के बाद 'iChowk' ने संजय गांधी पोस्ट ग्रेजुएट इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज, लखनऊ के एक पूर्व डॉक्टर स्कंद शुक्ला से बात की. डॉक्टर स्कंद शुक्ला के अनुसार दिल की धड़कन, सांसें और दिमाग की गतिविधि से यह निर्धारित किया जाता है कि कोई शख्स जीवित है या नहीं. अगर यह सब काम नहीं करते हैं तो व्यक्ति को मृत घोषित कर दिया जाता है. कुछ ऐसे भी मामले सामने आए हैं, जिसमें शख्स की न तो सांसें चल रही होती हैं, ना ही दिल धड़कता है और दिमाग में भी कोई गतिविधि होती नहीं दिखाई देती है. ऐसी स्थिति में डॉक्टर मरीज को मृत घोषित कर देते हैं. अमूमन डॉक्टर 5-10 मिनट तक व्यक्ति के दिल की धड़कन को पता करने की कोशिश करते हैं और उसके बाद ही किसी को मृत घोषित किया जाता है. हालांकि, अलग-अलग अस्पतालों के लिए दिशा-निर्देश अलग-अलग हो सकते हैं.
कब मरने के बाद भी कोई जिंदा हो जाता है?
कुछ मामलों में दिल की धड़कन न तो छू-कर पता चलती है ना ही स्टेथोस्कोप से. इतना ही नहीं, कम्प्यूटर आधारित ईसीजी यानी इलेक्ट्रोकार्डियोग्राफी से भी दिल की धड़कन का पता नहीं चल पाता है. डॉक्टर स्कंद शुक्ला के अनुसार बुहत कम ही मामलों में ऐसा होता है, जब ईसीजी से भी दिल की धड़कन का पता न चले. ऐसी स्थिति में दिल बहुत धीरे-धीरे खून को पंप कर के दिमाग तक पहुंचाता है, जिससे व्यक्ति जीवित तो रहता है, लेकिन न तो उसकी सांसें पता चलती हैं और न ही शरीर में कोई हरकत होती है. ऐसी स्थिति में डॉक्टर को भी यह लगता है कि व्यक्ति की मौत हो चुकी है और उसे मृत घोषित कर दिया जाता है. हालांकि, ऐसे मामले लाखों में इक्का-दुक्का ही होते हैं.
क्या हुआ है मैक्स अस्पताल वाले मामले में?
दिल्ली के मैक्स सुपर स्पेशिएलिटी अस्पताल में गुरुवार को एक महिला ने जुड़वा बच्चों को जन्म दिया. इनमें एक लड़की और एक लड़का है. जन्म के बाद से ही बच्चे (लड़के) की स्थिति गंभीर थी और कुछ घंटों बाद डॉक्टर ने उसे मृत घोषित कर दिया. जब परिवार बच्चे का अंतिम संस्कार करने जा रहे थे तो रास्ते में ही उसके शरीर में कुछ हरकत महसूस हुई. तब पता चला कि बच्चा जीवित है. परिवार इसे डॉक्टर की लापरवाही का ही मामला मान रहा है. दिल्ली के स्वास्थ्य मंत्री सत्येंद्र जैन ने ट्वीट करके कहा है कि इस मामले में जांच की जा रही है.
ल्यूडमिला का केस है चौंकाने वाला
रूस की 61 साल की एक महिला ल्यूडमिला स्टेबलिसकाया (Lyudmila Steblitskaya) का केस सुनकर तो आप भी चौंक जाएंगे. द साइबेरियन टाइम्स के अनुसार ल्यूडमिला तीन दिनों तक मुर्दाघर में पड़ी रहीं और उसके बाद फिर से जिंदा हो गईं. जब ल्यूडमिला नवंबर 2011 में अस्पताल में थीं तो उनकी 29 साल की बेटी एनेस्टेसिया (Anastasia) ने शुक्रवार शाम को डॉक्टर को फोन किया और अपनी मां की तबियत के बारे में पूछा. डॉक्टरों ने उन्हें बताया कि उनकी मां की मौत हो चुकी है. इसके बाद उनकी मां का शव उन्हें सोमवार को मिलना था क्योंकि रूस में शनिवार और रविवार को मुर्दाघर बंद रहते हैं. एनेस्टेसिया ने अंतिम संस्कार की सारी तैयारियां कर लीं और रिश्तेदारों को भी सूचना दे दी. सोमवार जब एनेस्टेसिया अस्पताल पहुंची तो डॉक्टरों ने उन्हें इंतजार करने को कहा क्योंकि उनकी मां की ऑटोप्सी होनी बाकी है. ऑटोप्सी की प्रक्रिया शुरू करने से पहले ही डॉक्टर ने पाया कि उनकी मां जीवित हैं. दूसरी बार अक्टूबर 2012 में भी दिल की किसी परेशानी की वजह से उन्हें अस्पताल में भर्ती कराया गया. इस बार भी वह कुछ घंटों के लिए मर गई थीं, लेकिन फिर वापस जिंदा हो गईं. दो बार मर कर भी जिंदा हो जाने से डॉक्टर, दोस्त और परिजन सभी हैरान हैं.
ल्यूडमिला उन डॉक्टरों के लिए एक रहस्य भी हैं और उदाहरण भी, जो काफी जल्दी अपने मरीज के इलाज के बाद हाथ खड़े कर देते हैं. वहीं ल्यूडमिला के लिए यह किसी चमत्कार से कम नहीं है. अगर मुर्दाघर बंद नहीं होता और उसी दिन उनका शव परिजनों को दे दिया जाता, तो शायद उन्हें दफनाया जा चुका होता. दो बार मौत से लड़कर वापस आ जाने के इस रहस्य को अभी तक मेडिकल साइंस भी समझ नहीं सका है.
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