अपने बच्चों को क्या क्या सिखाना चाहिए? बड़ों से अच्छा व्यवहार करना, अच्छे से पढ़ना, मैथ्स के सवाल हल करना, खेलना, कूदना, डांसिंग, स्विमिंग, कराटे आदि? लेकिन क्या अपने बच्चों को हमें ये नहीं सिखाना चाहिए कि सेक्शुअल हैरेस्मेंट क्या होता है? जरा खुद सोचिए कि आखिर कितने बच्चे ऐसे होंगे जो हर रोज़ स्कूल जाते समय शारीरिक शोषण का शिकार होते हैं, स्कूल भी छोड़िए ऐसे कितने बच्चे होंगे जो अपने घर में ही शोषण का शिकार होते होंगे? #metoo मूवमेंट में किशोर अवस्था के कई लोगों ने अपने साथ शोषण की बात स्वीकारी. कितने माता-पिता ऐसे होते हैं जो अपने बच्चों के सामने इस तरह की बातें करने में असहज महसूस करते हैं, लेकिन अगर वो ये न करें तो बच्चों के सामने वो क्या उदाहरण पेश कर रहे हैं? यही न कि कुछ भी हो जाए ऐसी बातें शर्मिंदगी भरी होती हैं और ये बच्चों के सामने बोलनी नहीं चाहिएं.
पर ऐसा करके माता-पिता न सिर्फ अपना बल्कि अपने बच्चों का भी नुकसान कर रहे हैं जो यकीनन न सिर्फ उनके आज को बल्कि उनके भविष्य को भी नुकसान पहुंचा सकता है. चाइल्ड साइकोलॉजिस्ट यूजीन बेरेसिन ने कुछ बातें बताई हैं जो हर माता-पिता को करनी चाहिए ताकि उनके बच्चे सेक्शुअल हैरेस्मेंट से बच सकें या उसके बारे में जान सकें.
1. सबसे पहले अपना ख्याल रखें..
अगर माता-पिता के साथ भी कभी ऐसा हुआ है तो अपना खयाल रखें. बच्चों पर ये हावी न होने दें. माता-पिता ऐसे में बच्चे की भावनाओं को समझेंगे और अगर बच्चों के सामने उनकी भावनाएं सामने आ गईं तो बच्चा और डर जाएगा. माता-पिता के लिए ऐसे समय बच्चों से बात करते हुए स्टेबल होना बहुत जरूरी है. अगर अपनी कहानी उनको बता सकते हैं तो बताएं, लेकिन रो कर या गुस्सा दिखाकर...
अपने बच्चों को क्या क्या सिखाना चाहिए? बड़ों से अच्छा व्यवहार करना, अच्छे से पढ़ना, मैथ्स के सवाल हल करना, खेलना, कूदना, डांसिंग, स्विमिंग, कराटे आदि? लेकिन क्या अपने बच्चों को हमें ये नहीं सिखाना चाहिए कि सेक्शुअल हैरेस्मेंट क्या होता है? जरा खुद सोचिए कि आखिर कितने बच्चे ऐसे होंगे जो हर रोज़ स्कूल जाते समय शारीरिक शोषण का शिकार होते हैं, स्कूल भी छोड़िए ऐसे कितने बच्चे होंगे जो अपने घर में ही शोषण का शिकार होते होंगे? #metoo मूवमेंट में किशोर अवस्था के कई लोगों ने अपने साथ शोषण की बात स्वीकारी. कितने माता-पिता ऐसे होते हैं जो अपने बच्चों के सामने इस तरह की बातें करने में असहज महसूस करते हैं, लेकिन अगर वो ये न करें तो बच्चों के सामने वो क्या उदाहरण पेश कर रहे हैं? यही न कि कुछ भी हो जाए ऐसी बातें शर्मिंदगी भरी होती हैं और ये बच्चों के सामने बोलनी नहीं चाहिएं.
पर ऐसा करके माता-पिता न सिर्फ अपना बल्कि अपने बच्चों का भी नुकसान कर रहे हैं जो यकीनन न सिर्फ उनके आज को बल्कि उनके भविष्य को भी नुकसान पहुंचा सकता है. चाइल्ड साइकोलॉजिस्ट यूजीन बेरेसिन ने कुछ बातें बताई हैं जो हर माता-पिता को करनी चाहिए ताकि उनके बच्चे सेक्शुअल हैरेस्मेंट से बच सकें या उसके बारे में जान सकें.
1. सबसे पहले अपना ख्याल रखें..
अगर माता-पिता के साथ भी कभी ऐसा हुआ है तो अपना खयाल रखें. बच्चों पर ये हावी न होने दें. माता-पिता ऐसे में बच्चे की भावनाओं को समझेंगे और अगर बच्चों के सामने उनकी भावनाएं सामने आ गईं तो बच्चा और डर जाएगा. माता-पिता के लिए ऐसे समय बच्चों से बात करते हुए स्टेबल होना बहुत जरूरी है. अगर अपनी कहानी उनको बता सकते हैं तो बताएं, लेकिन रो कर या गुस्सा दिखाकर नहीं. वर्ना बच्चे के मन में डर बैठ सकता है.
2. अपने बच्चे की मानसिक स्थिति देख लें..
अगर बच्चा बहुत छोटा है और ऐसा कोई भी सवाल करता है जो चिंताजनक हो या ऐसी कोई हरकत करता है जिससे ऐसा लगे कि वो परेशान है तो माता-पिता को सवाल करना चाहिए. अगर बहुत छोटे बच्चे को भी सेक्शुअल हैरेस्मेंट के बारे में बताना है तो भी सवाल करना चाहिए. माता पिता पूछ सकते हैं ऐसे सवाल जैसे- 'क्या आपको कभी किसी ने ऐसी जगह छुआ है?' यहीं अगर बच्चा टीनएजर है तो उससे सीधे तौर पर पूछा जा सकता है कि क्या उसको या उसके किसी दोस्त को सेक्शुअल हैरेस्मेंट से सामना करना पड़ा है?
3. ऐसे उदाहरण दें जो न्यूज में आ रहे हों...
बच्चे बहुत जल्दी सीखते हैं और अगर कोई किस्सा न्यूज में चल रहा है तो उनका ध्यान आकर्षित कर सकता है. ऐसे में अगर किसी सेक्शुअल हैरेस्मेंट की न्यूज पर बात हो तो बच्चे को जल्दी समझ आ सकता है. उसे ये बताया जा सकता है कि असल में ये समस्या क्या है. उससे उसकी राय जानी जा सकती है.
4. आराम से उनकी कहानी सुनिए...
यहां गौर करने वाली बात ये है कि अक्सर माता-पिता के पास बच्चों के लिए समय नहीं होता. वो बहुत ज्यादा समय नहीं बिता पाते, उन्हें फोन पर कोई काम होता है या फिर अपने ऑफिस के काम में बिजी रहते हैं, लेकिन अगर ऐसी कोई गंभीर बात हो रही है तो पहले बच्चे को कॉन्फिडेंस में लेना जरूरी है अन्यथा वो अपनी बातें नहीं बताएगा. ऐसे में खुद उसे थोड़ा सहज होने का मौका दें. बच्चे को अगर लगेगा कि आप उस पर ध्यान दे रहे हैं तो वो अपनी बात खुलकर कह पाएगा. उसकी बात सुनें, कोई भी ऐसी बात जो चिंताजनक लगे उस पर गौर करें. साथ ही बच्चे से ये भी पूछें कि क्या उसने ये किसी को बताया है?
5. उनकी भावनाओं के बारे में जानें..
सेक्शुअल हैरेस्मेंट का पता लगाना और बच्चों के किस्से जानने का एक अहम हिस्सा ये भी है कि लोग अपने बच्चों की भावनाएं नहीं समझ पाते. ये जानना जरूरी है कि इन सब बातों का बच्चे पर क्या असर पड़ा है. वो कैसे रिएक्ट कर रहा है, क्या वो डरा हुआ है, या शर्मिंदा है या फिर चिंता में है और वो कितना सोच रहा है इसके बारे में. अगर ऐसी कोई घटना हुई है तो बच्चे के मन में कहीं न कहीं उस घटना की छवि छप गई होगी और ये चिंताजनक है.
6. सीधे नतीजे पर न पहुंचें, पहले सोचें और फिर एक्शन लें..
बच्चों के लिए सेक्शुअल हैरेस्मेंट के बारे में बताना या किसी से भी उनके मन की भावनाओं को साझा करना बहुत मुश्किल हो सकता है. अगर उन्हें एकदम से लगेगा कि आप पुलिस में जा रहे हैं, उसके स्कूल में बात करने वाले हैं या फिर उस इंसान से बात करने वाले हैं जिससे वो डरा हुआ है तो उसे असहज लगेगा. पूरी पड़ताल करें, बच्चे को समझाएं कि गुनहगार के खिलाफ कार्यवाही करना जरूरी है.
ये भी पढ़ें-
किसे भरोसा होगा इनके बलात्कारी होने पर?
Viral Video: नौटंकी की सारी हदें पार कर गए ये बच्चे
इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.