'बारात ठीक आठ बजे पहुंच जाएगी लेकिन हम आपसे एक बात तो कहना भूल ही गए!' शम्मी कपूर के इतना कहते ही थरथराते हुए लड़की वालों (अशोक कुमार) के पसीने छूट जाते. तुरंत ही नीले कुर्ते में मुस्कियाते ज़ुबान पर लड्डू धर शम्मी जी कहते, 'घबराइये मत. हमें कुछ नहीं चाहिए. हम तो बस इतना चाहते हैं कि आप बारातियों का स्वागत पान पराग से कीजिए'. अहा! दिल ही लूट लिया था, लड़की वालों का! उस समय दहेज प्रथा का जोर था (अब भी है पर आजकल 'उपहार' के नाम पर लेनदेन जायज़ ठहरा दिया जाता है). तो इस विज्ञापन ने लड़की को बोझ समझने वाले समाज में जैसे क्रांति ही ला दी थी. सुपरहिट रहा ये विज्ञापन. तभी तो आज तक याद किया जाता है. जबकि हुआ यह था कि दहेज़ का मुलम्मा चढ़ाकर, कंपनी ने भारतीयों की भावुक मानसिकता को अच्छे से भुनाया. साथ ही उनके हाथ में प्यार से पान मसाला/गुटका भी थमा दिया था.
यही सच है कि हम लोगों पर हमारे माता-पिता, शिक्षकों की बातें उतना असर नहीं करतीं जितना कि एक विज्ञापन कर जाता है. जब सचिन और कपिल हंसते हुए बताते हैं कि 'बूस्ट इज़ द सीक्रेट ऑफ़ आवर एनर्जी' तो दूध से नफ़रत करने वाला बच्चा भी एक सांस में पूरा ग्लास गटक जाता है. पेप्सी ने आमिर, शाहरुख़, ऐश्वर्या जैसे सुपरस्टार्स से 'यही है राईट चॉइस बेबी, आहां.' कहलवाकर देश भर के फ्रिज़ में अपना स्थान सुरक्षित कर लिया था.
कहने का तात्पर्य यह है कि जब से टीवी आया, तब से साबुन, तेल, नमकीन से लेकर बड़ी-बड़ी कारों तक की ख़रीद के लिए हम विज्ञापनों के मायाजाल में फंसे हुए हैं. ये बनाए ही इस तरह जाते हैं कि लोग उनसे कनेक्ट हो सकें. विजुअल का असर ही गहरा होता है. तभी तो फ़िल्मी कलाकारों/खिलाड़ियों की लोकप्रियता को भुनाते हुए...
'बारात ठीक आठ बजे पहुंच जाएगी लेकिन हम आपसे एक बात तो कहना भूल ही गए!' शम्मी कपूर के इतना कहते ही थरथराते हुए लड़की वालों (अशोक कुमार) के पसीने छूट जाते. तुरंत ही नीले कुर्ते में मुस्कियाते ज़ुबान पर लड्डू धर शम्मी जी कहते, 'घबराइये मत. हमें कुछ नहीं चाहिए. हम तो बस इतना चाहते हैं कि आप बारातियों का स्वागत पान पराग से कीजिए'. अहा! दिल ही लूट लिया था, लड़की वालों का! उस समय दहेज प्रथा का जोर था (अब भी है पर आजकल 'उपहार' के नाम पर लेनदेन जायज़ ठहरा दिया जाता है). तो इस विज्ञापन ने लड़की को बोझ समझने वाले समाज में जैसे क्रांति ही ला दी थी. सुपरहिट रहा ये विज्ञापन. तभी तो आज तक याद किया जाता है. जबकि हुआ यह था कि दहेज़ का मुलम्मा चढ़ाकर, कंपनी ने भारतीयों की भावुक मानसिकता को अच्छे से भुनाया. साथ ही उनके हाथ में प्यार से पान मसाला/गुटका भी थमा दिया था.
यही सच है कि हम लोगों पर हमारे माता-पिता, शिक्षकों की बातें उतना असर नहीं करतीं जितना कि एक विज्ञापन कर जाता है. जब सचिन और कपिल हंसते हुए बताते हैं कि 'बूस्ट इज़ द सीक्रेट ऑफ़ आवर एनर्जी' तो दूध से नफ़रत करने वाला बच्चा भी एक सांस में पूरा ग्लास गटक जाता है. पेप्सी ने आमिर, शाहरुख़, ऐश्वर्या जैसे सुपरस्टार्स से 'यही है राईट चॉइस बेबी, आहां.' कहलवाकर देश भर के फ्रिज़ में अपना स्थान सुरक्षित कर लिया था.
कहने का तात्पर्य यह है कि जब से टीवी आया, तब से साबुन, तेल, नमकीन से लेकर बड़ी-बड़ी कारों तक की ख़रीद के लिए हम विज्ञापनों के मायाजाल में फंसे हुए हैं. ये बनाए ही इस तरह जाते हैं कि लोग उनसे कनेक्ट हो सकें. विजुअल का असर ही गहरा होता है. तभी तो फ़िल्मी कलाकारों/खिलाड़ियों की लोकप्रियता को भुनाते हुए हमारे हाथ में कुछ भी थमा दिया जाता है. कहा न. हम लोग हमेशा से भावनात्मक मूर्ख रहे हैं जो केवल नेताओं की पिंगपोंग बॉल ही नहीं बने हैं बल्कि हर क्षेत्र में हर स्तर पर बनते आए हैं.
हम सदा से कलाकारों को पूजते रहे, उन्हें अपना आदर्श मानते रहे, उनके साथ खिंची एक तस्वीर से लहालोट होते रहे हैं. तभी तो जब भी किसी से जुड़ा कोई कड़वा सच सामने आता है तो सबसे पहले हम उसे खारिज़ करने में जुट जाते हैं. इस बार भी बॉलीवुड और टीवी इंडस्ट्री का जो नशीला सच सामने आ रहा, उसने प्रशंसकों के दिल तोड़ दिए हैं. इसीलिए सब उसकी मरम्मत में दिन-रात एक किये दे रहे. चाहे दुनिया पलट जाए पर छवि न बिगड़े! यही नेताओं के लिए भी होता रहा है.
चाहे कितने भी अपराध कर लें पर सबकी ज़ुबान पर ताले लटक जाते हैं. उस पर उनके तो रुतबे का खौफ़ भी सताता है. कभी किसी की गाड़ी ने किसी को कुचला तो हमने पल भर में उसे माफ़ कर दिया. कारण यही कि मरने वाला हमारा क्या लगता था! पर ये तो अपुन का हीरो है! गलत हो ही नहीं सकता! हमसे अपना घर तो ठीक से संभाला नहीं जाता पर हमारी प्रिय जोड़ी के ब्रेकअप से हम ज़ार-ज़ार रोने लगते हैं.
बाबा को जेल हुई तो पूरा देश घबरा गया कि 'हाय! कितना भोला बच्चा! किसी को मारा थोड़े ही न था, बस घर में नैक हथियार ही तो मिले थे.'
दरअसल हमने इन कलाकारों से इस हद तक जुड़ाव कर लिया है कि इनकी ग़लतियों को पहले तो हम स्वीकार ही नहीं कर पाते और जो आंखों के सामने साफ़-साफ़ दिख रहा, उस पर पर्दा डालने में ज़रा सी भी देर नहीं करते. इतने वर्षों में कास्टिंग काउच, नेपोटिज्म, हिंसा, अपराध और नशे से सम्बंधित आई सैकड़ों ख़बरों को हम सिरे से नकारते रहे हैं. हमने यह कहकर भी इन कलाकारों को सिर पर चढ़ाया है कि ये तो हर क्षेत्र में होता है. लेकिन अब यही उचित समय है कि अब इन्हें ज़मीन पर उतार आम आदमी की तरह ट्रीट किया जाए.
इनके कोई सुर्खाब के पर नहीं लगे हुए हैं कि हम इनके लिए बिछावन बन जाएं. जैसे हम और आप नौकरी कर रहे, ऐसे ही ये अभिनय. मन करे तो फ़िल्में देखिए और उस अभिनय को वहीं छोड़ भी आइए. जितना हो सके, इनके निजी जीवन से प्रेरित न होइए और न ही विज्ञापनों से. इन्हें हर बात का पैसा मिल रहा है जिससे कि हम मूर्ख बनते रहें! कितना और कब तक बनिएगा? ध्यान रहे, असल जीवन में हर कोई नायक नहीं होता, कुछ खलनायक भी होते हैं!
मैं जानती हूं कि सब अपने-अपने वालों के समर्थन में लगे हुए हैं. यह भी तय है कि अंजाम कुछ भी हो, कुछ समय बाद इस नशीली घटना को भी भुला दिया जाएगा. कारण यही कि हमारे पास कुतर्कों की कमी नहीं! उससे भी बड़ी बात यह है कि हमने नशे के शिकार घरों का दर्द समझा ही कहां है! हम तो कुआं भी तभी खोदते हैं, जब आग लगती है.
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