इस देश के सो कॉल्ड लिबरल्स बहुत ही कन्फ़्यूज़ रहते हैं. उनको हर चीज़ से शिकायत ही रहती है. अलग दिखने के चक्कर में हमेशा अनर्गल प्रलाप करते रहते हैं. आज सुबह से रोना ले कर बैठ गए हैं कि, वो लोग निहत्थे थे तो पुलिस को उन पर गोली नहीं चलानी चाहिए (Hyderabad Encounter) थी. पुलिस की बर्बरता का ये उदाहरण है. इंसानियत के हिसाब से ये ग़लत है. तो एक बात बताइए क्या हैदराबाद की डॉक्टर (Hyderabad DIsha Gangrape And Murder) उन चारों का ख़ून करने निकली थी जो उसे ज़िंदा जला दिया? महान बौद्धिक लोग अब ह्यूमन-राइट्स (Human Rights Of Accused) का रोना और पुलिस को दरिंदा साबित करने में लग चुके हैं. वो लॉजिक दे रहें हैं कि कोर्ट न्याय करती. फ़ास्ट-ट्रैक अदालत लगवा कर फ़ैसला देते. तो प्लीज़ ये लॉजिक रखिए अपने पास. इस एनकाउंटर से इतना तो कम से कम होगा कि अब बलात्कार करने से पहले एक बार सोचेंगे ज़रूर, कि जो पकड़े गए तो हम भी उड़ा दिए जाएंगे.
कुछ नहीं से कुछ होना बेहतर है. ऊपर से वो सो कॉल्ड नाबालिग थे तो वैसे भी कोर्ट उनको रिहा ही कर देती सिलाई-मशीन के साथ. और फिर यहां आरोपी अपना गुनाह क़बूल कर चुके थे. उन्होंने किया था बलात्कार और फिर जलाया था दिशा को तो उनके साथ जो हुआ, वो कम ही हुआ है. वो बैठ कर बयान दे रहें हैं कि चाहे कोई गुनहगार भले ही पकड़ा जाए मगर एक भी निर्दोष की मौत नहीं होनी चाहिए.
देखिए फिर तो होने को कुछ भी हो सकता है. होने को तो ये भी हो सकता है कि दिशा के भी आरोपी, उन्नाव-रेप आरोपियों की तरह बेल पर निकलते और फिर से किसी का बलात्कार करते. जैसे बेल मिलते ही उन्नाव बलात्कार के आरोपियों ने पीड़िता को जलाने की कोशिश की. वैसे ही जेल से निकलते ही दिशा मामले के...
इस देश के सो कॉल्ड लिबरल्स बहुत ही कन्फ़्यूज़ रहते हैं. उनको हर चीज़ से शिकायत ही रहती है. अलग दिखने के चक्कर में हमेशा अनर्गल प्रलाप करते रहते हैं. आज सुबह से रोना ले कर बैठ गए हैं कि, वो लोग निहत्थे थे तो पुलिस को उन पर गोली नहीं चलानी चाहिए (Hyderabad Encounter) थी. पुलिस की बर्बरता का ये उदाहरण है. इंसानियत के हिसाब से ये ग़लत है. तो एक बात बताइए क्या हैदराबाद की डॉक्टर (Hyderabad DIsha Gangrape And Murder) उन चारों का ख़ून करने निकली थी जो उसे ज़िंदा जला दिया? महान बौद्धिक लोग अब ह्यूमन-राइट्स (Human Rights Of Accused) का रोना और पुलिस को दरिंदा साबित करने में लग चुके हैं. वो लॉजिक दे रहें हैं कि कोर्ट न्याय करती. फ़ास्ट-ट्रैक अदालत लगवा कर फ़ैसला देते. तो प्लीज़ ये लॉजिक रखिए अपने पास. इस एनकाउंटर से इतना तो कम से कम होगा कि अब बलात्कार करने से पहले एक बार सोचेंगे ज़रूर, कि जो पकड़े गए तो हम भी उड़ा दिए जाएंगे.
कुछ नहीं से कुछ होना बेहतर है. ऊपर से वो सो कॉल्ड नाबालिग थे तो वैसे भी कोर्ट उनको रिहा ही कर देती सिलाई-मशीन के साथ. और फिर यहां आरोपी अपना गुनाह क़बूल कर चुके थे. उन्होंने किया था बलात्कार और फिर जलाया था दिशा को तो उनके साथ जो हुआ, वो कम ही हुआ है. वो बैठ कर बयान दे रहें हैं कि चाहे कोई गुनहगार भले ही पकड़ा जाए मगर एक भी निर्दोष की मौत नहीं होनी चाहिए.
देखिए फिर तो होने को कुछ भी हो सकता है. होने को तो ये भी हो सकता है कि दिशा के भी आरोपी, उन्नाव-रेप आरोपियों की तरह बेल पर निकलते और फिर से किसी का बलात्कार करते. जैसे बेल मिलते ही उन्नाव बलात्कार के आरोपियों ने पीड़िता को जलाने की कोशिश की. वैसे ही जेल से निकलते ही दिशा मामले के आरोपी दिशा के रिश्तेदार पर हमला कर देते. तब? तब शायद ये लोग ही ट्वीट करके पुलिस को कोसते. देश में डर का माहौल है लिखते.
मानती हूं अपने देश की पुलिस की इमेज ऐसी नहीं है कि उससे किसी नेक काम की उम्मीद की जाए. मगर जिस देश में बलात्कारी को वक़ील और सिलाई मशीन मिलता हो, वहां बलात्कारी का एनकाउंटर होना बदलाव जैसा ही कुछ है, देश की जनता के लिए. आज देश में औरतें सड़कों पर नाच-गा कर जो खुशियां ज़ाहिर कर रहीं हैं, वो कहीं न कहीं सालों से उनके अंदर दबी घुटन को दिखा रहा है. जब देश में किसी भी बेटी का बलात्कार होता है, डर देश की तमाम औरतें जाती हैं. किसी भी काम के लिए घर से बाहर निकलने से पहले हज़ार बुरे ख़्याल आते हैं.
तो आज जब उन चार आरोपियों को पुलिस ने मार गिराया तो देश की स्त्रियों के मन में ख़्याल आ रहा कि इससे शायद बलात्कार न रुके मगर बलात्कार से पहले अपराधियों के मन में एक बार तो इस एनकाउंटर का डर ज़रूर उभरेगा. उस डर की वजह से एक भी बलात्कार रुक जाए तो वो सफलता है हैदराबाद पुलिस की.
वैसे इन लिब्रलस और ह्यूमन राइट्स वालों को क्या पता एक लड़की की तकलीफ़ जो घर से निकलती है और गली के हर नुक्कड़ पर कोई उस पर फब्तियां कस रहा होता है, तो वहीँ दूसरी तरफ कोई आंख मारकर निकल रहा होता है. ये सो कॉल्ड मानवता के रक्षक गाड़ियों में घूमने वाले एलीटलोग होते हैं.इन्हें समाज के आख़िरी तबके की लड़कियों की ज़िंदगी के बारे में पता कितना है? इन्हें क्या पता उन लड़कियों के संघर्ष के बारे में जो सड़कों पर नाच कर आज अपनी ख़ुशी दिखा रहीं.
उन नाच रही लड़कियों के झुंड में से न जाने कितनी लड़कियां यौन-हिंसा का शिकार हुई होंगी. त्रासदी ये है कि किसी से कह तक नहीं पायी होंगी. आज का दिन उन लड़कियों के लिए आज़ादी के दिन जैसा है. आज कहीं न कहीं उन लड़कियों ने भी मन ही मन अपने-अपने अपराधियों को मौत की सजा सुना दी होगी लेकिन ये बात बौद्धिकता से भरे लोग नहीं समझ पाएंगे.
ख़ैर, अब लगे हाथों पुलिस कठुआ कांड, उन्नाव रेप केस आरोपी सेंगर, मुज़फ़्फ़रपुर बालिका गृह कांड के आरोपी ब्रिजेश और तमाम जेलों में बैठे बाबाओं को भी ले जाए घटना स्थल पर, फिर कर दें उनका भी एनकाउंटर तो लिब्रल-लोगों का मुंह बंद हो जाएगा. मेरे अंदर ज़्यादा बौद्धिकता तो है नहीं. मैं बस इतना ही सोच कर ख़ुश हो रही हूं कि इस एनकाउंटर के बाद बलात्कार करने से पहले एक बार तो अपराधियों के मन में ये ख़्याल ज़रूर आएगा कि पकड़े जो गए, तो एनकाउंटर तय है.
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