रेप भारत की राष्ट्रीय समस्या बन चुका है और ये कोई शक की बात नहीं है. चाहें 3 महीने की बच्ची का केस हो या फिर 90 साल की महिला का भारत में अब कोई भी सुरक्षित नहीं रह गया है. रेप इतना विभत्स्य होता जा रहा है कि आजकल तो मंदिर और मस्जिद में भी महिलाएं और छोटी बच्चियां तक सुरक्षित नहीं हैं.
ये इतना विभत्स्य हो गया है कि अब प्रशासनिक सेवा के लिए इंटरव्यू देने आए प्रतिभागियों से भी रेप को लेकर सवाल पूछे जाने लगे हैं. ऐसा किस्सा हाल ही में एक IAS प्रतिभागी आरिफ खान के साथ हुआ.
आरिफ खान झांसी के रहने वाले एक IIT इंजीनियर हैं जो प्राइवेट नौकरी छोड़ सिविल सर्विस की तैयारी कर रहे थे. ये आरिफ का चौथा अटेम्प्ट था. फिलहाल आरिफ नागपुर में जीएसटी ऑफिसर के पद पर काम कर रहे थे.
आरिफ ने प्री और मेन्स परीक्षा के बाद इंटरव्यू भी क्लियर कर लिया, लेकिन आरिफ से जो सवाल पूछा गया और उसका जो जवाब उन्होंने दिया वो चर्चा का विषय बना हुआ है.
इंटरव्यू में आरिफ से एक सवाल किया गया.
सवाल: रेप की घटनाओं को रोकने के लिए क्या आरोपी को फांसी की सजा देना सही है?
जवाब: ये इसका समाधान नहीं है. दरअसल, सबूत मिटाने के लिए ऐसे केस में आरोपी विक्टिम को मार सकता है. हमारी कोशिश होनी चाहिए कि समाज सुधरे, क्योंकि रेप के आरोपी भी इसी समाज से आते हैं.
जवाब बिलकुल नपातुला है और जवाब में समाज सुधार की बात भी बहुत अच्छी है. ये सवाल उस POCSO एक्ट के तहत पूछा गया जिसमें हाल ही में संशोधन किया गया है और 12 साल से कम उम्र की बच्चियों के रेपिस्ट को फांसी देने की बात कही गई है. ये ऑर्डिनेंस कठुआ रेप कांड के बाद पास किया गया और महामहीम भी इसपर अपनी सहमती दे चुके हैं.
तो क्या आप इस सवाल के जवाब से सहमत हैं?
इस सवाल के जवाब से कम से कम मैं तो पूरी तरह सहमत नहीं हूं. कारण सीधा सा है...समाज सुधार का प्रयास हमारे यहां न जाने कब से हो रहा है. समाज सुधार के नाम पर ही महिलाओं को कैसे...
रेप भारत की राष्ट्रीय समस्या बन चुका है और ये कोई शक की बात नहीं है. चाहें 3 महीने की बच्ची का केस हो या फिर 90 साल की महिला का भारत में अब कोई भी सुरक्षित नहीं रह गया है. रेप इतना विभत्स्य होता जा रहा है कि आजकल तो मंदिर और मस्जिद में भी महिलाएं और छोटी बच्चियां तक सुरक्षित नहीं हैं.
ये इतना विभत्स्य हो गया है कि अब प्रशासनिक सेवा के लिए इंटरव्यू देने आए प्रतिभागियों से भी रेप को लेकर सवाल पूछे जाने लगे हैं. ऐसा किस्सा हाल ही में एक IAS प्रतिभागी आरिफ खान के साथ हुआ.
आरिफ खान झांसी के रहने वाले एक IIT इंजीनियर हैं जो प्राइवेट नौकरी छोड़ सिविल सर्विस की तैयारी कर रहे थे. ये आरिफ का चौथा अटेम्प्ट था. फिलहाल आरिफ नागपुर में जीएसटी ऑफिसर के पद पर काम कर रहे थे.
आरिफ ने प्री और मेन्स परीक्षा के बाद इंटरव्यू भी क्लियर कर लिया, लेकिन आरिफ से जो सवाल पूछा गया और उसका जो जवाब उन्होंने दिया वो चर्चा का विषय बना हुआ है.
इंटरव्यू में आरिफ से एक सवाल किया गया.
सवाल: रेप की घटनाओं को रोकने के लिए क्या आरोपी को फांसी की सजा देना सही है?
जवाब: ये इसका समाधान नहीं है. दरअसल, सबूत मिटाने के लिए ऐसे केस में आरोपी विक्टिम को मार सकता है. हमारी कोशिश होनी चाहिए कि समाज सुधरे, क्योंकि रेप के आरोपी भी इसी समाज से आते हैं.
जवाब बिलकुल नपातुला है और जवाब में समाज सुधार की बात भी बहुत अच्छी है. ये सवाल उस POCSO एक्ट के तहत पूछा गया जिसमें हाल ही में संशोधन किया गया है और 12 साल से कम उम्र की बच्चियों के रेपिस्ट को फांसी देने की बात कही गई है. ये ऑर्डिनेंस कठुआ रेप कांड के बाद पास किया गया और महामहीम भी इसपर अपनी सहमती दे चुके हैं.
तो क्या आप इस सवाल के जवाब से सहमत हैं?
इस सवाल के जवाब से कम से कम मैं तो पूरी तरह सहमत नहीं हूं. कारण सीधा सा है...समाज सुधार का प्रयास हमारे यहां न जाने कब से हो रहा है. समाज सुधार के नाम पर ही महिलाओं को कैसे कपड़े पहने, कैसे चलें, कैसे उठे-बैठें सिखाया जाता है, समाज सुधार के नाम पर ही ये कहा जाता है कि लड़कियों की शादी जल्दी कर देनी चाहिए, समाज सुधार के नाम पर ही नेता तरह-तरह के बयान देते हैं.
समाज सुधार कैसे होगा? असली सवाल तो ये है. पकड़े जाने के डर से लोग विक्टिम को मार देंगे ये कहना शायद पूरी तरह से सही नहीं है क्योंकि भारत जैसे देश में वैसे भी बच्चियों, महिलाओं को रेप के बाद मार देने की घटनाएं काफी ज्यादा हो रही हैं.
रेप करके लोग फरार हो रहे हैं, विक्टिम के साथ भले ही रेपिस्ट कुछ भी करे, लेकिन कानून न होने के कारण वो बचकर निकल जाता है. किसी भी हाल में ये होना सही नहीं है. माना समाज सुधार के लिए कदम उठाने चाहिए, लेकिन सिर्फ समाज सुधार के लिए लगे रहें और कुछ भी न करें ये सही नहीं है. कानून अगर सख्त नहीं होगा तो हौसला लोगों का उससे भी बढ़ रहा है कि वो कुछ भी करके चले जाएं, लेकिन बच जाएंगे.
यकीनन ये सोचने की जरूरत है कि इस कानून को और बेहतर बनाया जाए, लेकिन कड़ी सज़ा का प्रावधान भी न हो, ये तो अपने आप में ही गलत बात है.
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