IAS Tapasya Parihar ने अपनी शादी में कन्यादान की रस्म (Kanyadan) के लिए इनकार कर दिया. यह खबर पिछले दो-तीन दिनों से खूब वायरल हो रही है. कई लोगों ने इस कदम के लिए PSC Topper Tapasya Parihar की सराहना की है. तो वहीं कुछ लोगों ने सोशल मीडिया पर हिंदू विवाह और कन्यादान की रस्म के नाम पर बाल्टी भर-भर के इतना ज्ञान दिया है कि माने छिछालेदर ही कर दिया.
दरअसल, 2018 बैच की IAS ऑफिसर तपस्या ने आइएफएस गर्वित गंगवार के साथ 12 दिसंबर को पचमढ़ी में सात फेरे लिए. अब चारों तरफ इस शादी के चर्चे हो रहे हैं. लोग कन्यादान को मुद्दा बनाकर उस पर बहस कर रहे हैं.
वैसे आपको कुछ दिन पहले के ‘मोहे- मान्यवर’ कंपनी का विज्ञापन तो याद ही होगा. जिसमें आलिया भट्ट दुल्हन के रूप में दिखी थीं. यह विज्ञापन भी कन्यादान के खिलाफ था. जिसके बाद आलिया को लोगों ने काफी ट्रोल किया था. लोगों का कहना था कि इस विज्ञापन में कन्यादान को एक बुराई के रूप में पेश किया गया था.
खैर, कन्यादान की रस्म ना करना IAS तपस्या और उनके परिवार वालों की मर्जी है. किसी लड़की की शादी में क्या करना है और क्या नहीं करना है, यह कोई बाहरी वाला तय नहीं कर सकता है. वैसे भी तपस्या के इस फैसले से दोनों ही परिवार खुश हैं. चलिए पहले इस मामले में IAS तपस्या का पक्ष जान लीजिए फिर इसपर ज्ञान देने वालों की भी अपनी विचारधारा है.
तपस्या के पिता का कहना है कि, ‘इस तरह की रस्म से लड़की को उसके घर या पिता की जायदाद से अलग करने की साजिश की तरह देखा जाता...
IAS Tapasya Parihar ने अपनी शादी में कन्यादान की रस्म (Kanyadan) के लिए इनकार कर दिया. यह खबर पिछले दो-तीन दिनों से खूब वायरल हो रही है. कई लोगों ने इस कदम के लिए PSC Topper Tapasya Parihar की सराहना की है. तो वहीं कुछ लोगों ने सोशल मीडिया पर हिंदू विवाह और कन्यादान की रस्म के नाम पर बाल्टी भर-भर के इतना ज्ञान दिया है कि माने छिछालेदर ही कर दिया.
दरअसल, 2018 बैच की IAS ऑफिसर तपस्या ने आइएफएस गर्वित गंगवार के साथ 12 दिसंबर को पचमढ़ी में सात फेरे लिए. अब चारों तरफ इस शादी के चर्चे हो रहे हैं. लोग कन्यादान को मुद्दा बनाकर उस पर बहस कर रहे हैं.
वैसे आपको कुछ दिन पहले के ‘मोहे- मान्यवर’ कंपनी का विज्ञापन तो याद ही होगा. जिसमें आलिया भट्ट दुल्हन के रूप में दिखी थीं. यह विज्ञापन भी कन्यादान के खिलाफ था. जिसके बाद आलिया को लोगों ने काफी ट्रोल किया था. लोगों का कहना था कि इस विज्ञापन में कन्यादान को एक बुराई के रूप में पेश किया गया था.
खैर, कन्यादान की रस्म ना करना IAS तपस्या और उनके परिवार वालों की मर्जी है. किसी लड़की की शादी में क्या करना है और क्या नहीं करना है, यह कोई बाहरी वाला तय नहीं कर सकता है. वैसे भी तपस्या के इस फैसले से दोनों ही परिवार खुश हैं. चलिए पहले इस मामले में IAS तपस्या का पक्ष जान लीजिए फिर इसपर ज्ञान देने वालों की भी अपनी विचारधारा है.
तपस्या के पिता का कहना है कि, ‘इस तरह की रस्म से लड़की को उसके घर या पिता की जायदाद से अलग करने की साजिश की तरह देखा जाता है’. कुछ लोगों का तो यह भी कहना है कि ‘लड़की कोई चीज नहीं कि जिसे दान कर दिया जाए’.
वहीं IAS तपस्या ने पिता से कहा कि 'मैं दान की चीज नहीं हूं, आपकी बेटी हूं. विवाह दो परिवार करते हैं, तो फिर छोटा या बड़ा या ऊंचा नीचा होना सही नहीं है, क्यों किसी का दान किया जाए. जब मैं शादी के लिए तैयार हुई तो मैंने भी परिवार में चर्चा कर कन्यादान की रस्म को शादी से दूर रखा’.
तपस्या के पति ने भी इस फैसले में उनका साथ दिया. उनके IFS पति ऑफिसर गर्वित गंगवार का कहना है कि ‘शादी के बाद क्यों किसी लड़की को ही बदलना पड़ता है. चाहे मांग भरने की बात हो या कोई ऐसी परंपरा जो यह सिद्ध करे कि लड़की शादीशुदा है. ऐसी रस्में लड़के के लिए कभी लागू नहीं होती और इस तरह की मान्यताओं को हमें धीरे-धीरे दूर करने की कोशिश करनी चाहिए.’
वहीं जिन लोगों को आइएस तपस्या का कन्यादान ना करने का फैसला पसंद नहीं आया उनका भी अपना पक्ष है. उनका कहना है कि आज के लोग कन्यादान की रस्म को ही गलत समझ रहे हैं. उन्हें इसका सही मतलब ही नहीं पता है.
कई कुछ लोगों का कहना है कि इसे IAS किसने बना दिया? तो कई ने कन्यादान क्या होता है यह पूरा अपने सोशल मीडिया अकाउंट पर समझा दिया.
एक का कहना है कि ‘मूर्खता का शिक्षा के साथ कोई संबंध नहीं है. लोग शिक्षित होकर भी मूर्ख हो सकते हैं. आजकल लोग खुद को आधुनिक दिखाने के चक्कर में कुछ भी मूर्खता कर रहे हैं. असल में हिंदू विवाह के कुल 22 में कन्यादान सबसे महत्वपूर्ण चरण है. इस रस्म में अग्नि को साक्षी मानकर लड़की का पिता अपनी बेटी के गोत्र का दान करता है'.
इसके बाद बेटी अपने पिता का गोत्र छोड़कर पति के गोत्र में प्रवेश करती है. कन्यादान का मतलब यह नहीं है कि पिता अपनी बेटी का दान करत है. कन्यादान के समय जो मंत्रोच्चार होता है उसमें पिता अपने होने वाले दामाद से वचन लेता है कि आज से वह उसकी बेटी की सभी खुशियों का ध्यान रखेगा.
कन्यादान का विरोध करने वालों को पता ही नहीं है कि हिंदू धर्म के विवाह मंत्रों की रचना विदुषी सूर्या सावित्री ने की थी. लोगों ने कन्यादान ना करने वाले लोगों की मूर्खता पर तरस खाने की भी बात कही है.
वहीं कुछ लोगों का कहना है कि 'बेटी दान करने की चीज नहीं है तो उसे शादी के बाद अपने पिता के घर ही रहना चाहिए. दूल्हा तो अपने घर चला ही जाता है. ऐसे में वे शादी के बाद होने वाले सभी अत्याचार से बच जाएंगी'.
कुछ का कहना है कि ‘हिंदू धर्म में कन्या-दान को सबसे बड़ा दान माना गया है लेकिन कन्यादान का अर्थ बेटी को वस्तु समझ कर दान करना बिल्कुल भी नहीं होता. हिंदू धर्म में विवाह को पाणिग्रहण संस्कार माना गया है. जिसमें वर को विष्णु और कन्या को धनलक्ष्मी का स्वरुप माना गया है. कन्यादान का अर्थ होता है कि माता-पिता अपने घर की लक्ष्मी वर को सौंप रहे हैं.
कन्या का हाथ वर के हाथ में देते हुए माता-पिता यह उम्मीद करते हैं कि ससुराल पक्ष में भी उसे वही सम्मान और प्रेम मिलेगा जो अब तक उनके घर मिला है. अगर यह महज दान होता को लोग दूसरे घर की बेटियों का कन्यादान नहीं करते. कन्यादान हिंदू धर्म में वर-वधू दोनों पक्षों के लिए सौभाग्य लेकर आता है'.
अब आपने दोनों पक्षों की बातों को अच्छी तरह समझ लिया होगा. कुछ लोग IAS तपस्या के साथ हैं तो कुछ लोग उनके विपरीत...वैसे इस मामले में आपकी क्या राय है?
इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.