कोई 300 साल राज करने के बाद 15 अगस्त 1947 को आखिरकार अंग्रेजों (British) को भारत से पैकअप करना पड़ा. यूं तो इस जीत में कई लोगों का हाथ है मगर वो व्यक्ति जिसके ऊपर इस कामयाबी का सेहरा बांधा गया वो मोहनदास करमचंद गांधी (Mahatma Gandhi) या फिर महात्मा गांधी थे. गांधी को यूं तो हमने या तो नोटों/ तस्वीरों में देखा या फिर फिल्मों में मगर जैसे ही इस नाम की कल्पना होती है एक छवि हमारे दिमाग में बनती है जिसमें धोती पहने लाठी पकड़े और गोल चश्मा लगाए एक व्यक्ति हमें दिखता है. आने वाले वक्त में शायद ये चश्मा भी हमारे आपके जहन से गायब हो जाए. ब्रिस्टल की एक नीलामी एजेंसी ने महात्मा गांधी का चश्मा 2.55 करोड़ रुपये में नीलाम (Mahatma Gandhi Spectacles Auctioned) किया है. खबर है कि बेहद दुर्लभ धरोहरों में शुमार गांधी के इस चश्मे को अमरीका के एक कलेक्टर ने ख़रीदा है.
इस बेशकीमती चश्मे को नीलाम करने वाली एजेंसी ईस्ट ब्रिस्टल ऑक्शन्स का कहना है कि उनको 3 अगस्त को यह चश्मा एक सादे लिफ़ाफ़े में मिला था. किसी व्यक्ति ने उसे रख छोड़ा था. चश्मा हासिल करने के बाद ही कंपनी ने इसकी नीलामी के विषय में सोचा और ये माना था कि ये चश्मा उनकी कंपनी को बड़ा मुनाफा देगा. तब कंपनी का अनुमान था कि नीलामी में चश्मे की वैल्यू 14 लाख रुपए के आस पास होगी.
इस चश्मे के विषय में जो जानकारी हासिल हुई है वो भी अपने में खासी दिलचस्प है. बताया जा रहा है कि महात्मा गांधी को ये चश्मा उनके चाचा ने उस वक्त किया था जब 1910 से 1930 के बीच मे वो दक्षिण अफ्रीका में काम कर रहे थे. चश्मे के विषय में जानकारी देते हुए ईस्ट ब्रिस्टल ऑक्शन्स ने ये भी कहा कि 'तकरीबन 50...
कोई 300 साल राज करने के बाद 15 अगस्त 1947 को आखिरकार अंग्रेजों (British) को भारत से पैकअप करना पड़ा. यूं तो इस जीत में कई लोगों का हाथ है मगर वो व्यक्ति जिसके ऊपर इस कामयाबी का सेहरा बांधा गया वो मोहनदास करमचंद गांधी (Mahatma Gandhi) या फिर महात्मा गांधी थे. गांधी को यूं तो हमने या तो नोटों/ तस्वीरों में देखा या फिर फिल्मों में मगर जैसे ही इस नाम की कल्पना होती है एक छवि हमारे दिमाग में बनती है जिसमें धोती पहने लाठी पकड़े और गोल चश्मा लगाए एक व्यक्ति हमें दिखता है. आने वाले वक्त में शायद ये चश्मा भी हमारे आपके जहन से गायब हो जाए. ब्रिस्टल की एक नीलामी एजेंसी ने महात्मा गांधी का चश्मा 2.55 करोड़ रुपये में नीलाम (Mahatma Gandhi Spectacles Auctioned) किया है. खबर है कि बेहद दुर्लभ धरोहरों में शुमार गांधी के इस चश्मे को अमरीका के एक कलेक्टर ने ख़रीदा है.
इस बेशकीमती चश्मे को नीलाम करने वाली एजेंसी ईस्ट ब्रिस्टल ऑक्शन्स का कहना है कि उनको 3 अगस्त को यह चश्मा एक सादे लिफ़ाफ़े में मिला था. किसी व्यक्ति ने उसे रख छोड़ा था. चश्मा हासिल करने के बाद ही कंपनी ने इसकी नीलामी के विषय में सोचा और ये माना था कि ये चश्मा उनकी कंपनी को बड़ा मुनाफा देगा. तब कंपनी का अनुमान था कि नीलामी में चश्मे की वैल्यू 14 लाख रुपए के आस पास होगी.
इस चश्मे के विषय में जो जानकारी हासिल हुई है वो भी अपने में खासी दिलचस्प है. बताया जा रहा है कि महात्मा गांधी को ये चश्मा उनके चाचा ने उस वक्त किया था जब 1910 से 1930 के बीच मे वो दक्षिण अफ्रीका में काम कर रहे थे. चश्मे के विषय में जानकारी देते हुए ईस्ट ब्रिस्टल ऑक्शन्स ने ये भी कहा कि 'तकरीबन 50 सालों से ये चश्मा ऐसे ही एक अलमारी में बंद था और अब जबकि ये चश्मा नीलाम हो गया तो उन तमाम लोगों को इससे बहुत फायदा हुआ है जो इस नीलामी में शामिल थे.
नीलामी के बाद कंपनी ने एक बयान जारी कर कहा है कि, हम इस बात से बहुत ज्यादा ख़ुश हैं कि गांधी के चश्मे को एक नया ठिकाना मिला और इस काम में हम मददगार हुए. कंपनी का ये भी कहना है कि ये नीलामी हमारे लिए एक नया रिकॉर्ड तो है ही बल्कि ऐतिहासिक रूप से महत्वपूर्ण भी है.'
गांधी जी का चश्मा कैसे वहां पहुंचा इसकी भी कहानी खासी दिलचस्प है चश्मे के मालिक के अनुसार 1920 में उनके परिवार के एक सदस्य ने अपने दक्षिण अफ्रीका के दौरे के अवसर पर गांधी से भेंट की थी जहां ये चश्मा उन्हें तोहफे में मिला और पीढ़ी दर पीढ़ी यहां तक पहुंचा. नीलाम करने वाली कंपनी ने भी चश्मे पर खासा शोध किया और पाया कि ये चश्मा महात्मा गांधी का ही है जिसे उन्होंने दक्षिण अफ्रीका में पहना था.
राष्ट्रपिता महात्मा गांधी का ये चश्मा विदेश में बिका है और करोड़ों में बिका है. बात वाक़ई आश्चर्य में डालने वाली है ऐसे में भारतीय प्रतिक्रियाओं का आना स्वाभाविक था. तो आइए नजर डालते हैं कि इस बेशकीमती नीलामी को लेकर क्या कह रहा है सोशल मीडिया.
सवाल ये भी हो रहा है कि गांधी की मृत्यु के बाद उनका चश्मा यूके पहुंचा कैसे ?
इस खबर के बाद कि महात्मा गांधी का चश्मा इतना महंगा बिका है क्या देश क्या विदेश लोगों का हैरत में पड़ना स्वाभाविक था.
वहीं महात्मा गांधी ने अपने चश्में के जरिये लोगों को हंसी मजाक का मौका भी दे दिया है.
सोशल मीडिया पर यूजर्स यही बात कह रहे हैं कि जिस परिवार को भी गांधी ने अपना चश्मा दिया उसकी तो पूरी जिंदगी ही बदल कर रह गयी.
सोशल मीडिया पर लोग उस आदमी की किस्मत पर भी खूब जल रहे हैं जिसे गांधी से इतना बेशकीमती तोहफा मिला था.
बहरहाल जिस तरह की प्रतिक्रियाएं सोशल मीडिया पर आ रही हैं उनको देखकर इतना तो साफ़ है कि खबर सामने आने के बाद लोग भौचक्के हैं. सवाल यही हो रहा है कि आखिर इस चश्मे में ऐसा क्या था जो इसकी नीलामी कुछ यूं हुई कि रिकॉर्ड कायम हो गया. सवाल तमाम हैं और जवाब वही दे पाएगा जिसने इतनी ऊंची कीमत देकर ये चश्मा खरीदा है.
ये भी पढ़ें -
आखिर क्यों गांधी सभी हिंदुओं से थोड़ा ज्यादा हिंदू थे?
Rajiv Gandhi को प्रमोट करना कांग्रेस के लिए मज़बूरी और जरूरत दोनों है!
इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.