वैंसे तो एक अपराधी सिर्फ अपराधी होता है और पीड़ित एक पीड़ित. लेकिन समाज के साथ साथ जैसी हमारी सोच है हम उसे बांट देते हैं धर्म में. जाति में. हमें इस बात से कोई मतलब नहीं रहता कि अपराध किस हद तक घिनौना है मगर हां हमें इस बात से जरूर मतलब रहता है कि अपराध में शामिल व्यक्ति की आस्था क्या है? वो किस धर्म का है. ये बातें न तो कोई मजाक है और न ही ये हवा हवाई हैं. ये एक ऐसा सत्य है जिसे आप हम और कानून तीनों चाहकर भी शायद ही कभी नकार पाएं. अक्सर ही होता है कि हम सुनते हैं कि अमुक जगह पर हत्या हुई है और हत्या करने वाला मुस्लिम है और फलां जाति से संबंध रखता है. या फिर वो खबर जब अख़बार या किसी वेबसाइट पर हमने ये पढ़ा हो कि फलां जगह पर एक महिला का बलात्कार हुआ है और अपराधी हिंदू है और इस जाति का है.
बात अपराधी और उसकी जाति और धर्म की हुई है तो आइये पहले एक खबर को जान लिया जाए. दरअसल पंजाब में पुलिस विभाग को जांच के दौरान तैयार की गई प्राथमिकी या अन्य आधिकारिक दस्तावेजों में किसी आरोपी, पीड़ित या गवाहों के धर्म या जाति का उल्लेख करने की मनाही है. लेकिन पुलिस मानी नहीं और इस प्रथा को जारी रखा बाद में जब कोर्ट से फटकार लगी तो पंजाब पुलिस के भी होश ठिकाने आए. बताया जा रहा है कि आदेश को अमली जामा पहनाया जाए इसलिए पंजाब सरकार ने एक समिति का गठन किया है.
मामला न्यायमूर्ति जसगुरप्रीत सिंह पुरी की बेंच से जुड़ा है जो एक अग्रिम जमानत याचिका की सुनवाई कर रहे थे. पुलिस ने जो डाक्यूमेंट्स अदालत में पेश किये उनमें वही गलती दोहराई गयी (जाति और धर्म) जिसके विषय में कोर्ट ने पहले ही दिशा निर्देश दिया था. इसके बाद पंजाब सरकार...
वैंसे तो एक अपराधी सिर्फ अपराधी होता है और पीड़ित एक पीड़ित. लेकिन समाज के साथ साथ जैसी हमारी सोच है हम उसे बांट देते हैं धर्म में. जाति में. हमें इस बात से कोई मतलब नहीं रहता कि अपराध किस हद तक घिनौना है मगर हां हमें इस बात से जरूर मतलब रहता है कि अपराध में शामिल व्यक्ति की आस्था क्या है? वो किस धर्म का है. ये बातें न तो कोई मजाक है और न ही ये हवा हवाई हैं. ये एक ऐसा सत्य है जिसे आप हम और कानून तीनों चाहकर भी शायद ही कभी नकार पाएं. अक्सर ही होता है कि हम सुनते हैं कि अमुक जगह पर हत्या हुई है और हत्या करने वाला मुस्लिम है और फलां जाति से संबंध रखता है. या फिर वो खबर जब अख़बार या किसी वेबसाइट पर हमने ये पढ़ा हो कि फलां जगह पर एक महिला का बलात्कार हुआ है और अपराधी हिंदू है और इस जाति का है.
बात अपराधी और उसकी जाति और धर्म की हुई है तो आइये पहले एक खबर को जान लिया जाए. दरअसल पंजाब में पुलिस विभाग को जांच के दौरान तैयार की गई प्राथमिकी या अन्य आधिकारिक दस्तावेजों में किसी आरोपी, पीड़ित या गवाहों के धर्म या जाति का उल्लेख करने की मनाही है. लेकिन पुलिस मानी नहीं और इस प्रथा को जारी रखा बाद में जब कोर्ट से फटकार लगी तो पंजाब पुलिस के भी होश ठिकाने आए. बताया जा रहा है कि आदेश को अमली जामा पहनाया जाए इसलिए पंजाब सरकार ने एक समिति का गठन किया है.
मामला न्यायमूर्ति जसगुरप्रीत सिंह पुरी की बेंच से जुड़ा है जो एक अग्रिम जमानत याचिका की सुनवाई कर रहे थे. पुलिस ने जो डाक्यूमेंट्स अदालत में पेश किये उनमें वही गलती दोहराई गयी (जाति और धर्म) जिसके विषय में कोर्ट ने पहले ही दिशा निर्देश दिया था. इसके बाद पंजाब सरकार ने 9 सितंबर को फिर से एक नोटिस जारी किया है और पहले के निर्देशों को दोहराया. वहीं पंजाब सरकार ने बेंच को ये भी बताया कि अतिरिक्त पुलिस महानिदेशक/एचआरडी और निदेशक, पंजाब पुलिस अकादमी, फिल्लौर को भी राज्य में पुलिस प्रशिक्षण केंद्रों में प्रशिक्षण कार्यक्रमों में इसे शामिल करने का निर्देश दिया गया है.
पंजाब सरकार की तरफ से जारी हुए इस आदेश में यह भी कहा गया कि डीजीपी ने अधिकारियों को हाई कोर्ट के दिशा निर्देश का पालन करने के लिए निर्देशित किया है. ध्यान रहे कि जून 2018 में चंडीगढ़ हाईकोर्ट ने हिमाचल की तर्ज पर पंजाब और हरियाणा पुलिस को आदेश जारी किए थे कि राज्य में दर्ज होने वाली एफआईआर में अपराधी के धर्म या जाति का जिक्र नहीं किया जाए. हाईकोर्ट ने इस संबंध में दोनों राज्यों की पुलिस से हलफनामा भी लिया था, लेकिन हाईकोर्ट के आदेशों के बावजूद इस आदेश को अमली जामा अभी तक नहीं पहनाया गया. आज भी पंजाब के अलग अलग थानों में एफआईआर में अपराधी समेत शिकायतकर्ता की जाति को दर्ज किया जाता है.
बताते चलें कि पूर्व में पंजाब पुलिस रूल्स 1934 के तहत पुलिस एफआईआर में अपराधी की जाति व धर्म का जिक्र किया करती थी. एफआईआर में अपराधी की जाति दर्ज करने का कारण भी कम दिलचस्प नहीं है. तर्क ये दिए गए थे कि एक गांव या फिर शहर तथा किसी क्षेत्र में एक नाम के कई लोग रहते है. तो जब किसी व्यक्ति के खिलाफ कोई एफआईआर दर्ज होती थी तो अपराधी के धर्म से पुलिस उसकी पहचान कर लिया करती थी.
बहरहाल अब जबकि समिति बन ही गयी है तो देखना दिलचस्प रहेगा कि उसकी कार्यप्रणाली क्या रहती है लेकिन बड़ा सवाल जो अब भी हमारे सामने है वो ये कि क्या वाक़ई हम अपराधी और पीड़ित को अपराधी और पीड़ित मान पाएंगे? ये सवाल हम सिर्फ इसलिए कर रहे हैं क्योंकि चाहे वो अपराधी का समर्थन हो या फिर पीड़ित का साथ देना, ये हमसे तब ही हो पाता है जब हमें उनकी धर्म और जाति पता होती है.
खैर सवाल ये भी है कि क्या ऐसा ही होना चाहिए? क्या हमें अपराधी को लेकर अपराधी और पीड़ित को सिर्फ एक पीड़ित की ही नजर से देखना चाहिए. इस विषय पर सवाल कई हो सकते हैं. लेकिन उन सवालों का सबसे सही और माकूल जवाब क्या होगा इसका फैसला जनता ही करे.
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