एक बार फिर रेल हादसों में लोगों की जान गई और फिर मुआवजों का दौर शुरू हो गया. जिनकी दुर्घटना में मौत हुआ उसको 3.5 लाख, तो गंभीर स्थिति में हैं उनको 50 हजार और जिनको मामूली चोटे आई हैं उनको 25 हजार दे दिए गए. पर सवाल है कि क्या भारत में इंसान की जिंदगी कुछ पैसों की ही है...
बता दें, भारत में हर साल औसतन 300 छोटी-बड़ी रेल दुर्घटनाएं होती हैं. जिसमें कई जानें जाती हैं. अब यात्री ज्यादा होंगे तो दुर्घटना होना भी लाजमी है. लेकिन इसके लिए सिस्टम भी बनाया जा सकता है. लेकिन सिस्टम के नाम पर जो है तो वो है मुआवजा.
भारत में कोई बीमारी हो, ट्रेन, बस या प्लेन हादसा हो या फिर कोई प्राकृतिक आपदा. हर चीज को रोकने का कोई सिस्टम नहीं. मुआवजा देकर सरकार भी छुटकारा पा लेती है. कहने को हो जाता है कि सरकार ने अपना काम कर दिया है. लेकिन इन हादसों को रोकने के लिए क्या है...
इसका जवाब है कुछ नहीं. जहां बाकी देशों में जहां रेल को सुरक्षित बनाने की रणनीति पर काम हो रह हैं तो वहीं भारत में मुआवजा ही मिल रहा है. ये स्थिति रेल की ही नहीं, बस से होने वाली दुर्घटना और हवाई दुर्घटना में भी हैं. जहां दुर्घटना से बचने के लिए कुछ नहीं किया.
प्राकृतिक आपदा आ जाए तो होती हैं सिर्फ मौत
भारत में बाढ़ आ जाए तो मौतों का सिलसिला चलता है. बिहार में बाढ़ आई तो करीब 250 लोगों की मौत हुई और एक करोड़ से ज्यादा लोग प्रभावित हुए. मरने वालों को कुछ लाख थमा दिए जाते हैं. जो लोग फंसे हुए हैं वहां हेलीकॉप्टर के जरिये खाने-पीने के सामान गिरा दिए जाते हैं.
अब मुंबई की बाढ़ को ही ले लीजिए. हर साल वहां...
एक बार फिर रेल हादसों में लोगों की जान गई और फिर मुआवजों का दौर शुरू हो गया. जिनकी दुर्घटना में मौत हुआ उसको 3.5 लाख, तो गंभीर स्थिति में हैं उनको 50 हजार और जिनको मामूली चोटे आई हैं उनको 25 हजार दे दिए गए. पर सवाल है कि क्या भारत में इंसान की जिंदगी कुछ पैसों की ही है...
बता दें, भारत में हर साल औसतन 300 छोटी-बड़ी रेल दुर्घटनाएं होती हैं. जिसमें कई जानें जाती हैं. अब यात्री ज्यादा होंगे तो दुर्घटना होना भी लाजमी है. लेकिन इसके लिए सिस्टम भी बनाया जा सकता है. लेकिन सिस्टम के नाम पर जो है तो वो है मुआवजा.
भारत में कोई बीमारी हो, ट्रेन, बस या प्लेन हादसा हो या फिर कोई प्राकृतिक आपदा. हर चीज को रोकने का कोई सिस्टम नहीं. मुआवजा देकर सरकार भी छुटकारा पा लेती है. कहने को हो जाता है कि सरकार ने अपना काम कर दिया है. लेकिन इन हादसों को रोकने के लिए क्या है...
इसका जवाब है कुछ नहीं. जहां बाकी देशों में जहां रेल को सुरक्षित बनाने की रणनीति पर काम हो रह हैं तो वहीं भारत में मुआवजा ही मिल रहा है. ये स्थिति रेल की ही नहीं, बस से होने वाली दुर्घटना और हवाई दुर्घटना में भी हैं. जहां दुर्घटना से बचने के लिए कुछ नहीं किया.
प्राकृतिक आपदा आ जाए तो होती हैं सिर्फ मौत
भारत में बाढ़ आ जाए तो मौतों का सिलसिला चलता है. बिहार में बाढ़ आई तो करीब 250 लोगों की मौत हुई और एक करोड़ से ज्यादा लोग प्रभावित हुए. मरने वालों को कुछ लाख थमा दिए जाते हैं. जो लोग फंसे हुए हैं वहां हेलीकॉप्टर के जरिये खाने-पीने के सामान गिरा दिए जाते हैं.
अब मुंबई की बाढ़ को ही ले लीजिए. हर साल वहां मॉनसून में कमोबेश यही तस्वीर होती है. यहां सवाल उठता है कि क्या इस मुश्किल से निपटना इतना मुश्किल है, क्या बाढ़ और जलभराव से निपटने का कोई तरीका नहीं है? इसका जवाब है हां, इस मुश्किल से निपटा जा सकता है और इसके लिए हमें नीदरलैंड से सबक लेना होगा...
नीदरलैंड का करीब 25 फीसदी हिस्सा समुद्र तल से नीचे है. इस हिस्से में नीदरलैंड की 20 फीसदी से ज्यादा की आबादी रहती है. यही नहीं नीदरलैंड का करीब 50 फीसदी हिस्सा समुद्र तल से महज 1 मीटर ऊपर है. यहां आपको बता दें कि मुंबई समुद्र तल से 10 से 15 मीटर ऊपर है. बाढ़ से बचने के लिए नीदरलैंड ने समुद्र तल के किनारे तटबंध बना रखे हैं. साथ ही बड़े-बड़े बांधों के जरिए भी बाढ़ के कहर को रोका जाता है.
समुद्र तल से नीचे वाले हिस्सों को बाढ़ से बचाता है यहां का बेमिसाल ड्रेनेज सिस्टम. ये ड्रेनेज सिस्टम 17वीं शताब्दी में बनाया गया था. ड्रेनेज सिस्टम का संचालन नीदरलैंड के नगर निकाय करते हैं. नीदरलैंड में 430 नगर निकाय हैं जो स्वतंत्र रुप से अपना काम करते हैं.
बारिश और बाढ़ की स्थिति में ये निकाय तुरंत एक्शन में आ जाते हैं. शहर के पानी को बाहर निकालने के लिए जगह-जगह पंपिंग सिस्टम लगे हुए हैं. ये पंपिंग सिस्टम पवन चक्की की तरह दिखते हैं. बारिश होते ही ये पंपिंग सिस्टम शुरू हो जाते हैं और शहर का पानी निकाल कर नदियों और नहरों में पहुंचाते हैं.
ये तो रही बाढ़ की बात, अगर भारत में बीमारियों की बात करें तो कोई नई बीमारी जन्म लेती है और मौतों का सिलसिला शुरू हो जाता है. स्वाइन फ्लू को ही ले लीजिए. दिल्ली में आया और हजारों लोग इसके शिकार हो गए. किसी का कोई सिस्टम नहीं है. लोगों की जिंदगी की गारंटी खुदी के हाथ में है. बच गए तो किसमत नहीं तो वाह.
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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.