1.44 लाख करोड़ रुपये. यह सिर्फ चार प्रमुख भारतीय शहरों, दिल्ली, मुंबई, बैंगलोर और कोलकाता में ट्रैफिक जाम की वजह से लगा खर्च है जिसे चाहें तो टाला जा सकता है. संयोग से ये राशि बजट 2018 में भारत सरकार के द्वारा शिक्षा बुनियादी ढांचे को सुधारने के लिए आवंटित की गई रकम के तुलना में 50 प्रतिशत ज्यादा है.
बोस्टन कंसल्टिंग ग्रुप की उबर-कमीशन रिपोर्ट, "nlocking Cities: The impact of ridesharing across India", इस बुरी खबर का खुलासा करती है. भारतीय शहरों में पीक आवर (Peak Hour) के समय सड़क पर भीड़ का औसत 149 प्रतिशत था. ये आंकड़ा दक्षिण पूर्व और पूर्वी एशिया के महानगरीय शहरों की तुलना में काफी अधिक है. इसका मतलब है कि भारतीय यात्रियों को पीक आवर की तुलना में नॉन पीक आवर में एक निश्चित दूरी को तय करने में 1.5 गुना अधिक समय लगता है.
बैंकॉक, मनीला, सिंगापुर, हांगकांग और हनोई समेत एशिया के 10 शहरों में पीक आवर के समय 88.5 प्रतिशत भीड़ थी. कोलकाता और बैंगलोर में भीड़ का स्तर क्रमशः 171 फीसदी और 162 फीसदी पर रहा, जबकि दिल्ली सबसे कम भीड़ वाले शहर (129 प्रतिशत) के रूप में सामने आया.
आखिर ये निराशाजनक स्थिति कैसे आई? भारत का उच्च जनसंख्या घनत्व और हमारे अविकसित पब्लिक ट्रांसपोर्ट नेटवर्क इसका स्पष्ट कारण हैं. 1980 के बाद से देश की आबादी लगभग दोगुनी हो गई है (लगभग 90% वृद्धि). जबकि प्रति व्यक्ति जीपीडी सिर्फ 5 गुणा ही बढ़ी है. रिपोर्ट का दावा है कि...
1.44 लाख करोड़ रुपये. यह सिर्फ चार प्रमुख भारतीय शहरों, दिल्ली, मुंबई, बैंगलोर और कोलकाता में ट्रैफिक जाम की वजह से लगा खर्च है जिसे चाहें तो टाला जा सकता है. संयोग से ये राशि बजट 2018 में भारत सरकार के द्वारा शिक्षा बुनियादी ढांचे को सुधारने के लिए आवंटित की गई रकम के तुलना में 50 प्रतिशत ज्यादा है.
बोस्टन कंसल्टिंग ग्रुप की उबर-कमीशन रिपोर्ट, "nlocking Cities: The impact of ridesharing across India", इस बुरी खबर का खुलासा करती है. भारतीय शहरों में पीक आवर (Peak Hour) के समय सड़क पर भीड़ का औसत 149 प्रतिशत था. ये आंकड़ा दक्षिण पूर्व और पूर्वी एशिया के महानगरीय शहरों की तुलना में काफी अधिक है. इसका मतलब है कि भारतीय यात्रियों को पीक आवर की तुलना में नॉन पीक आवर में एक निश्चित दूरी को तय करने में 1.5 गुना अधिक समय लगता है.
बैंकॉक, मनीला, सिंगापुर, हांगकांग और हनोई समेत एशिया के 10 शहरों में पीक आवर के समय 88.5 प्रतिशत भीड़ थी. कोलकाता और बैंगलोर में भीड़ का स्तर क्रमशः 171 फीसदी और 162 फीसदी पर रहा, जबकि दिल्ली सबसे कम भीड़ वाले शहर (129 प्रतिशत) के रूप में सामने आया.
आखिर ये निराशाजनक स्थिति कैसे आई? भारत का उच्च जनसंख्या घनत्व और हमारे अविकसित पब्लिक ट्रांसपोर्ट नेटवर्क इसका स्पष्ट कारण हैं. 1980 के बाद से देश की आबादी लगभग दोगुनी हो गई है (लगभग 90% वृद्धि). जबकि प्रति व्यक्ति जीपीडी सिर्फ 5 गुणा ही बढ़ी है. रिपोर्ट का दावा है कि इसी अवधि में भारत में यात्रा की मांग आठ गुना बढ़ी है.
देश के सार्वजनिक परिवहन के क्षेत्र में बुनियादी ढांचे में पिछड़ने के कारण, देश में निजी कार का उपयोग स्पष्ट रूप से बढ़ा है. बल्कि सच्चाई तो ये है कि सर्वेक्षण किए गए शहरों में परिवहन का सबसे आम तरीका निजी वाहन ही है. भीड़ से छुटकारा पाने के उपायों के लिए बनाए गए रिपोर्ट में कहा गया है कि- "सर्वे में शामिल यात्रियों में से औसतन 87 फीसदी लोग अगले 5 सालों में नई कार खरीदने की योजना बना रहे हैं."
राहत की बात ये है कि उन्हीं लोगों में से 79 प्रतिशत ने यह भी संकेत दिया है कि अगर पब्लिक ट्रांसपोर्ट की स्थिति सुधर जाए तो वो अपनी कार खरीदने की योजना को रद्द कर सकते हैं." अध्ययन के मुताबिक, निजी कारों के बदले राइड शेयर करने से इन शहरों में सड़क पर कुल कारों का 46-68 प्रतिशत भीड़ कम हो जाएगी. जिससे 17-31 फीसदी तक ट्रैफिक कम हो सकती है. रिपोर्ट में कहा गया है कि, "कम प्रदूषण के अलावा", कोलकाता में लगभग 760 एकड़ और दिल्ली में 22,000 एकड़ अनावश्यक पार्किंग की जगहें बच सकती हैं." उसके बाद इस भूमि का इस्तेमाल आवास और सामाजिक आधारभूत संरचना को बदलने में किया जा सकता है. संभावनाएं अनंत हैं.
उबर इंडिया और दक्षिण एशिया के अध्यक्ष अमित जैन ने कल अध्ययन जारी करते हुए कहा "भारत में राइड शेयरिंग की वास्तविक संभावनाओं को अनलॉक करने के मामले में हम सबसे आगे रहते हैं. इस स्टडी के माध्यम से हम प्रशासनिक अधिकारियों और शहरी योजनाकारों का ध्यान आकर्षित करने की उम्मीद कर रहे हैं कि कैसे राइड शेयरिंग, पर्सनल कारों का समाधान हो सकती है."
स्टडी के अनुसार, फिलहाल राइडशेयर, भारत में उपयोग किए जाने वाले परिवहन के 10 प्रतिशत का प्रतिनिधित्व करता है. "सर्वेक्षण किए गए अधिकांश शहरों में, राइड शेयरिंग का इस्तेमाल नहीं करने वाले दो तिहाई लोग बताते हैं कि अगर मूल्य, उपलब्धता या स्पीड के मामले में अच्छा हुआ तो फिर वो राइडशेयरिंग को ही पसंद करेंगे."
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