शादी की परंपरा, रीति-रिवाज सदियों से एक जैसी ही चली आ रही हैं. इनमें से कुछ परंपराएं ऐसी हैं जिन्हें इन जोड़ों ने बदलने की जरूरत समझी और फिर बदल डाली. इन रूढ़िवादी परंपरा के खिलाफ जाना मतलब जमाने से दुश्मनी मोल लेने जैसा है. हालांकि यह सभी को पता है कि बदलते दौर के साथ जो बातें गलत हैं उन्हें बदल देने में ही भलाई है.
जिस तरह अब लड़कियां भी अपने माता-पिता को मुखाग्नि दे रही हैं, उसी तरह शादियों में भी कुछ रिवाज ऐसे हैं जिसे निभाने की परंपरा सिर्फ महिलाओं की ही थी, जिसे इन जोड़ियों ने समझा और बदलने की हिम्मत दिखाई. इन रूढ़िवादी विचार धारा को बदलने में इन महिलाओं का साथ इनके होने वाले पति और परिवार ने भी दिया. चलिए एक नजर आप भी डाल लीजिए कि समाज में बदलाव लाने वाली ये जोड़ियां कौन सी हैं?
पति ने पत्नी के छुए पैर और लिया आशीर्वाद
सितंबर के महीने में शादी की एक वीडियो ने लोगों का दिल जीत लिया. इस वीडियों में शादी के बाद पत्नी अपने पति के पैर छू रही है. इसके बाद पति भी अपनी पत्नी के पैर छू कर आशीर्वाद लेता है. हालांकि पत्नी कुछ सेकेण्ड में ही पीछे हट जाती है. शायद उसे भी पता है कि ऐसा करना कितना बड़ा पाप है, भला एक पति कैसे अपनी पत्नी के पैर छू सकता है?
वह पुरुष है, जिसका ओहदा पत्नी से काफी उपर माना गया है. पति तो परमेश्वर होते हैं और परमेश्वर की जगह चरणों...
शादी की परंपरा, रीति-रिवाज सदियों से एक जैसी ही चली आ रही हैं. इनमें से कुछ परंपराएं ऐसी हैं जिन्हें इन जोड़ों ने बदलने की जरूरत समझी और फिर बदल डाली. इन रूढ़िवादी परंपरा के खिलाफ जाना मतलब जमाने से दुश्मनी मोल लेने जैसा है. हालांकि यह सभी को पता है कि बदलते दौर के साथ जो बातें गलत हैं उन्हें बदल देने में ही भलाई है.
जिस तरह अब लड़कियां भी अपने माता-पिता को मुखाग्नि दे रही हैं, उसी तरह शादियों में भी कुछ रिवाज ऐसे हैं जिसे निभाने की परंपरा सिर्फ महिलाओं की ही थी, जिसे इन जोड़ियों ने समझा और बदलने की हिम्मत दिखाई. इन रूढ़िवादी विचार धारा को बदलने में इन महिलाओं का साथ इनके होने वाले पति और परिवार ने भी दिया. चलिए एक नजर आप भी डाल लीजिए कि समाज में बदलाव लाने वाली ये जोड़ियां कौन सी हैं?
पति ने पत्नी के छुए पैर और लिया आशीर्वाद
सितंबर के महीने में शादी की एक वीडियो ने लोगों का दिल जीत लिया. इस वीडियों में शादी के बाद पत्नी अपने पति के पैर छू रही है. इसके बाद पति भी अपनी पत्नी के पैर छू कर आशीर्वाद लेता है. हालांकि पत्नी कुछ सेकेण्ड में ही पीछे हट जाती है. शायद उसे भी पता है कि ऐसा करना कितना बड़ा पाप है, भला एक पति कैसे अपनी पत्नी के पैर छू सकता है?
वह पुरुष है, जिसका ओहदा पत्नी से काफी उपर माना गया है. पति तो परमेश्वर होते हैं और परमेश्वर की जगह चरणों में कैसे हो सकती है? हमारे यहां तो यही रिवाज है कि पत्नी अपने पति परमेश्वर की दासी होती है, तो अगर वह पैर छूती है को यह उसका फर्ज है और इसमें कोई नई बात नहीं हैं. नई बात तो तब हो गई जब इस पति ने अपनी पत्नी का सम्मान करते हुए पैर छू लिया. लोगों को यह बदलवाल बहुत पसंद आया और सभी ने लड़को की खूब तारीफ की. पत्नी है तो पैर तो छूना ही पड़ेगा अब भला इस रिवाज को कौन बदल सकता था? लेकिन इस जोड़े ने परंपरा को बदल दिया. अब लोग इन्हें असंस्कारी कह दें तो कह दें, कोई क्या कर सकता है?
दिया मिर्जा की शादी महिला पुजारी ने करवाई
शादियों में अक्सर हमने पुरूष पुजारी को ही देखा है. कुछ काम ऐसे हैं जिनमें पुरुषों को ही अव्वल और महिलाओं को कमजोर माना जाता है. आज भले की कई क्षेत्रों में महिलाएं आगे बढ़ रही हैं, काम कर रही हैं लेकिन अभी भी कई कुछ कामों के लिए मान ही लिया गया है कि यह महिलाओं के बस की बात ही नहीं है. ऐसा ही एक क्षेत्र है पूजा और पुजारी का. ऐसे में बालीवुड अभिनेत्री दिया मिर्जा और वैभव की शादी की शादी जब महिला पुजारी शीला गट्टा ने कराई तो चारों तरफ चर्चा होने लगी.
दिया मिर्जा ने सदियों ने चली आ रही इस परंपरा को तोड़कर खूब वाहवाही बटोरी. आप भी कल्पना कीजिए कि आत्मविश्वास से लबरेज महिला पुजारी के चेहरे पर कैसा तेज होगा. दीया ने महिला पुजारी की तारीफ करते हुए लिखा कि, ‘हमारी शादी संपन्न कराने के लिए धन्यवाद शीला अट्टा. यह गर्व की बात है कि, हम साथ में आगे बढ़ सकते हैं.
वह दूल्हा जिसने शादी में पत्नी के हाथों पहना मंगलसूत्र
हम जिसकी बात कर रहे हैं उस शख्स का नाम शारदुल है. ये पुणे के रहने वाले हैं. एक साल पहले शादी के समय इनकी पत्नी ने इन्हें मंगलसूत्र पहनाया था. जब शारदुल ने ये तस्वीरें सोशल मीडिया पर डालीं तो उन्हें सिंदूर लगाने के लिए कहा गया. लोगों ने तो यह भी पूछा कि तुम्हें पीरियड्स भी आते होंगे? लोगों ने मजाक उड़ाना शुरु किया कि तुम साड़ी क्यों नहीं पहन लेते? लेकिन शागदुल ने इन बातों पर ध्यान नहीं दिया. उनका कहना है कि वे मंगलसूत्र इसलिए पहनते हैं क्योंकि यह प्यार की निशानी है. कुछ लोग मंगलसूत्र को महिलाओं और रस्म-रिवाजों से जोड़ देते हैं, जबकि इसका अर्थ उन्हें पता भी नहीं होता है. असल में मंगलसूत्र दो शब्दों से मिलकर बना है, 'मंगल' यानी शुभ और 'सूत्र' मतलब पवित्र धागा.
मंगलसूत्र एक ऐसा पवित्र धागा है जो दो लोगों को जीवनभर एक साथ बांधे रखता है. यह कहां लिखा है कि इसे सिर्फ महिलाएं ही पहन सकती हैं पुरुष नहीं. शारदुल के अनुसार वे मंगलसूत्र से जुड़े भाव से बहुत प्रभावित थे. उन्होंने शादी के दिन प्यार जाहिर करने के लिए पत्नी तनुजा को मंगलसूत्र पहनाने के बाद पत्नी के हाथों खुद भी मंगलसूत्र पहना. यह तनुजा के लिए सबसे खास पल था. शारदुल मानते हैं कि जब कपल एक-दूसरे को एंगेजमेंट रिंग पहनाते हैं तब तो कोई यह नहीं कहता कि यह महिलाओं का गहना है, रिंग को लड़के भी पहनते हैं. हालांकि अब लोग इनकी तारीफ करते हैं, क्योंकि ये ऑफिस में भी ब्रेसलेट मंगलसूत्र पहनकर जाते हैं. लोग तो अब यह पूछते हैं कि मंगलसूत्र डिजाइन कहां से करवाते हो...
घोड़ी पर दूल्हा नहीं इस बार दुल्हन बैठी
शादी में सेहरा बांधकर घोड़ी पर दूल्हा ही क्यों बैठता है? यह सवाल बचपन से ही एक बच्ची के मन में चल रहा था. उसने यह सवाल अपनी मां से पूछा भी था. उसने पढ़ाई की और अपने सपने को पूरा करते हुए एयर होस्टेस बनी. अपनी शादी में जब वह घोड़ी पर बैठकर जब निकली तो लोग देखते ही रह गई. बिहार क गया की यह लड़की पूरे देश में चर्चा का विषय बन गई. इस तरह एयरहोस्टेज दुल्हन ने इस परंपरा को तोड़ दिया. दुल्हन की मां सुष्मिता गुहा अपनी बेटी को देखकर बहुत खुश हुईं औऱ कहा कि आज बेटी को उसके सवालों का जवाब मिल गया. बेटी भी घोड़ी पर बैठकर बारात लेकर दूल्हे के घर पहुंच सकती है.
हमने इन कहानियों में उन जोड़ियों को नहीं लिया जिन्होंने अपना कन्यादान नहीं किया, क्योंकि यह उनकी अपनी मर्जी है कि उन्हें शादी में क्या करना है और क्या नहीं करना है. दूसरी बात, इन रस्मों को निभाने वालों ने, ना ही किसी का अपमान किया और ना ही किसी का दिल दुखाया. अपनी परंपरा में कुछ बातें जोड़ लेने से इनकी शादी की खूबसूरती और बढ़ गई है. हो सकता है कि ये महज एक शुरुआत है और आने वाले समय में और भी बदलाव देखने को मिलें. अपनी संस्कृति की परंपरा को आगे बढ़ाते हुए इस बात को जरूर याद रखिए कि श्रद्धा और अंधविश्वास में अंतर होता है. तो जो गलत है उसे बदलने की जरूरत है और जो सही है उसे खुले दिल से अपना लेना चाहिए.
इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.