मेरे मुंह में पानी जा रहा था तो मैंने थोड़ा-थोड़ा निकाल दिया. मम्मी मेरे पास थी उनके मुंह में पानी जा रहा था तो मैंने पानी में फूंक मारी. यह कहना है इस बच्ची 'एलिना' का जो इंदौर हादसे में बाल-बाल बच गई. हालांकि हादसे में एलिना ने अपनी मां को खो दिया. जब एलिना ने देखा कि मां के मुंह में पानी भर गया है वह डूब रही हैं तो उस अबोध में पानी में फूंक मारा कि इससे पानी छट जाएगा और उसकी मां पानी में डूबने से बच जाएगी. मगर उसकी कोशिश मां को बचाने के लिए काफी नहीं थी. उसके सामने ही मां डूब गई.
हादसे के वक्त इस बच्ची के दिल पर क्या बीता होगा यह हम और आप कल्पना भी नहीं कर सकते हैं. इस बच्ची का वीडियो ट्विटर पर वायरल हो रहा है, बच्ची की बातें सुनकर कलेजा फट जा रहा है. इस मासूम को पता भी नहीं है कि उसकी मां अब इस दुनिया में नहीं है.
हादसे के बाद की तस्वीर, जिसमें पिता बच्चे के शव से लिपटकर रो रहे हैं...
इसी तरह दैनिक भास्कर ने डेढ़ साल के हितांश के हादसे के पहले और बाद की तस्वीर शेयर की है. हादसे से पहले वह शिवलिंग के पास हाथ जोड़े खड़ा है. और हादसे के बाद उसकी लाश पर पिता रो रहे हैं. यह तस्वीर अपने आप में कई कहानी कह रही है.
इसी तरह अग्रवाल नगर में रहने वाले राजेंद्र दशोरे अपनी 15 साल की बेटी नंदिता के साथ मंदिर पूजा करने पहुचे थे. जब...
मेरे मुंह में पानी जा रहा था तो मैंने थोड़ा-थोड़ा निकाल दिया. मम्मी मेरे पास थी उनके मुंह में पानी जा रहा था तो मैंने पानी में फूंक मारी. यह कहना है इस बच्ची 'एलिना' का जो इंदौर हादसे में बाल-बाल बच गई. हालांकि हादसे में एलिना ने अपनी मां को खो दिया. जब एलिना ने देखा कि मां के मुंह में पानी भर गया है वह डूब रही हैं तो उस अबोध में पानी में फूंक मारा कि इससे पानी छट जाएगा और उसकी मां पानी में डूबने से बच जाएगी. मगर उसकी कोशिश मां को बचाने के लिए काफी नहीं थी. उसके सामने ही मां डूब गई.
हादसे के वक्त इस बच्ची के दिल पर क्या बीता होगा यह हम और आप कल्पना भी नहीं कर सकते हैं. इस बच्ची का वीडियो ट्विटर पर वायरल हो रहा है, बच्ची की बातें सुनकर कलेजा फट जा रहा है. इस मासूम को पता भी नहीं है कि उसकी मां अब इस दुनिया में नहीं है.
हादसे के बाद की तस्वीर, जिसमें पिता बच्चे के शव से लिपटकर रो रहे हैं...
इसी तरह दैनिक भास्कर ने डेढ़ साल के हितांश के हादसे के पहले और बाद की तस्वीर शेयर की है. हादसे से पहले वह शिवलिंग के पास हाथ जोड़े खड़ा है. और हादसे के बाद उसकी लाश पर पिता रो रहे हैं. यह तस्वीर अपने आप में कई कहानी कह रही है.
इसी तरह अग्रवाल नगर में रहने वाले राजेंद्र दशोरे अपनी 15 साल की बेटी नंदिता के साथ मंदिर पूजा करने पहुचे थे. जब हादसा हुआ तो वे हवन के लिए बैठे थे. इस हादसे में नंदिता तो बच गई मगर उनका कहीं पता नहीं चल रहा है. बेटी बार-बार यही कह रही है कि उसके पापा अभी तक नहीं मिले हैं. कोई उन्हें खोजकर ला दे, मेरी मां घर में परेशान होगीं. वह बार-बार चिल्ला रही है, परिजन उसे समझाने की कोशिश कर रहे हैं.
इंदौर (Indore Accident) के बेलेश्वर महादेव झूलेलाल मंदिर में जब यह हादसा हुआ चारों ओर चीख-पुकार होने मच गई. लोग बचाओ-बचाओ चिल्ला रहे थे. मंदिर में बावड़ी (कुएं) का छत गिर गया था. रामनवमी के अवसर था इसलिए काफी भीड़ थी. हवन हो चुका था और आऱती होने वाली थी. आरती के समय लोग बावड़ी की छत पर चढ़ गए जो अंदर से खोखली थी.
लोगों को यह बात पता नहीं थी. वे तो भगवान की आराधना में लीन थे. तभी अचानक हादसा हो गया. बावड़ी में गंदा पानी भी थी. उस पर खड़े करीब 50 से अधिक लोग अब अंधेरे कुएं में थे. वे डूबने लगे. वे एक-दूसरे का हाथ पकड़ने लगे. बावड़ूी में गिरने वाले में बच्चे, महिलाएं, पुरुष सभी थे. जिन लोगों को तैरना आता था वे किसी तरह कुएं की सीढ़ी तक पहुंच गए. वे सीढ़ी पर खड़े होकर अपने बचने की दुआ मांग रहे थे. वहां एक दम अंधेरा था. कुछ दिखाई नहीं दे रहा था.
जो लोग परिवार के साथ आए थे वे बिछड़ गए थे. एक दम मौत के कुएं की तरह. थोड़ी में पुलिस वालों ने रस्सी डाली. कुछ लोगों ने रस्सी पकड़ ली वे बच गए. थोड़ी देर छटपटाने के बाद बचाओ-बचाओ चिल्लाने की आवाजें शांत हो गईं क्योंकि वे लोग पानी में डूब चुके थे. पानी में लाशें तैरने लगी. कुछ लोगों को बचाया गया मगर करीब 36 लोगों की मौत हो गईं.
आह, इस बारे में सोचकर ही मन कांप जाता है. जिन लोगों ने इस हादसे में अपनी जान गवाईं आखिर उनकी क्या गलती थी? उन्हें क्या पता था कि मंदिर के अंदर ऐसा कोई हादसा हो जाएगा. त्योहार का दिन था. सभी कितने खुश थे. सब परिवार के साथ पूजा करने मंदिर गए थे. उनमें से किसी ने नहीं सोचा होगा कि वे घर नहीं लौट पाएंगे. वे अपनों से आखिरी बार मिल रहे हैं. कितनों ने अगले दिल के प्लान बनाए होंगे. मगर वे अब अपनों से हमेशा के लिए बिछड़ गए.
कोई कह रहा है कि यह हादसा आपराधिक लापरवाही का नतीजा है. केवल सरिये के जाल पर टाइल्स बिछा कर किए गए निर्माण को लेकर नोटिस जारी होते रहे. कोई प्रशासन को दोष दे रहा है तो कोई इसे निर्माण को करवाने वाले को मंदिर को. कोई कह रहा है कि प्रशासनिक मदद पहुंचने में डेढ़ घंटे से अधिक का समय लग गया. अगर समय पर मदद मिली होती तो कई जाने बच जातीं. सेना की मदद लेने में भी 12 घंटे से अधिक का समय लग गया जबकि महू इंदौर के ठीक पास में है.
इंदौर के बेलेश्वर महादेव झूलेलाल मंदिर हादसे का जिम्मेदार कोई भी हो मगर जिन्होंने अपनों को खो दिया उनकी पीड़ा कौन समझेगा? किसी ने अपना बच्चा खो दिया, किसी ने पत्नी, किसी ने मां तो किसी ने पिता. कोई तो हाथ जोड़े ही बावड़ी (कुएं) में ही समा गया. कहने को कितनी ही बातें कह दी जाएं, मुवाअजे दे दिए जाएं मगर जो चले गए वे लौट कर नहीं आने वाले.
यह सही है कि किसी के साथ कब क्या हो जाए कोई बता नहीं सकता मगर किसी अपने के इसतरह बिछड़ जाने के बारे में भला कौन सोचता है? इस हादसे में जान गंवाने वालों के परिजन जिंदगी भर मन ही मन तड़पते रहंगे. ये लोग सोच रहे होंगो कि काश ये कर लिया होता काश वो कर लिया होता. काश उन्हें मंदिर जाने से रोक दिया होता. काश उनकी वो बात मान ली होती तो आज हमारे अपने साथ होते. अफसोस की काश कहने के अलावा हम कुछ औऱ कर भी नहीं सकते. उनके दिलों से पूछो जिनकी बसी बसाई दुनिया उज़ड गई...
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