ये कोई आज की बात नहीं है, प्राचीन काल से अब तक, हम यही मानते आए हैं कि 'चिकित्सक में भगवान का वास होता है'. हमें अब तक यही बताया गया है कि एक डॉक्टर जो बोल रहा है वो हमारे और हमारे साथ आए मरीज के भले के लिए है. अतः किसी भी सूरत में हमें उसे खारिज नहीं करना चाहिए. मौजूदा वक्त में चिकित्सा 'पब्लिक सर्विस' न रहकर एक आम पेशा है जिसमें प्रॉफिट एंड लॉस का उतना ही महत्त्व है जितना किसी अन्य पेशे में. मानवीय संवेदनाओं को भूलकर आज डॉक्टर इसे जेब गर्म करने वले पेशे के तौर पर क्यों देख रहे हैं इसपर उनके अलग तर्क हैं.
आज आपको एक ऐसी ही कहानी से अवगत करा रहे हैं जिसको पढ़कर अवश्य ही आपकी धारणा बदल जाएगी और आप ये सोचने पर मजबूर हो जाएंगे कि अब तक आप जिन डॉक्टरों को भगवान मानते रहे हैं दरअसल वो भगवान नहीं बल्कि वो पशु हैं जिनका अस्तित्व आपके रक्त से है. ये आपका खून पीकर आपको खोखला कर रहे हैं और खुद फल फूल रहे हैं.
अभिनव वर्मा की मां, जो सिर्फ 50 बरस की थीं, पेट में दर्द उठा, नजदीक ही फोर्टिस अस्पताल बनेरघट्टा, बंगलौर है. डॉक्टर कनिराज ने मां को देखा और अल्ट्रा साउंड कराने को कहा. फोर्टिस में ही अल्ट्रा साउंड हुआ और डा. कनिराज ने बताया कि गाल ब्लैडर में पथरी है ! एक छोटा सा ऑपरेशन होगा, मां स्वस्थ हो जाएंगी. अभिनव मां को घर लेकर आ गए और पेन-किलर के उपयोग से दर्द खत्म भी हो गया.
कुछ दिन बाद अभिनव वर्मा को फोर्टिस से फोन कर डॉक्टर कनिराज ने हिदायत दी कि यूं पथरी का गाल ब्लैडर में रहना खतरनाक होगा. अतः अभिनव को अपनी मां का ऑपरेशन तुरंत करा लेना जरूरी है. अभिनव जब अपनी मां को फोर्टिस बंगलौर लेकर पहुंचे तो एक दूसरे डॉक्टर मो शब्बीर अहमद ने अटेंड किया,...
ये कोई आज की बात नहीं है, प्राचीन काल से अब तक, हम यही मानते आए हैं कि 'चिकित्सक में भगवान का वास होता है'. हमें अब तक यही बताया गया है कि एक डॉक्टर जो बोल रहा है वो हमारे और हमारे साथ आए मरीज के भले के लिए है. अतः किसी भी सूरत में हमें उसे खारिज नहीं करना चाहिए. मौजूदा वक्त में चिकित्सा 'पब्लिक सर्विस' न रहकर एक आम पेशा है जिसमें प्रॉफिट एंड लॉस का उतना ही महत्त्व है जितना किसी अन्य पेशे में. मानवीय संवेदनाओं को भूलकर आज डॉक्टर इसे जेब गर्म करने वले पेशे के तौर पर क्यों देख रहे हैं इसपर उनके अलग तर्क हैं.
आज आपको एक ऐसी ही कहानी से अवगत करा रहे हैं जिसको पढ़कर अवश्य ही आपकी धारणा बदल जाएगी और आप ये सोचने पर मजबूर हो जाएंगे कि अब तक आप जिन डॉक्टरों को भगवान मानते रहे हैं दरअसल वो भगवान नहीं बल्कि वो पशु हैं जिनका अस्तित्व आपके रक्त से है. ये आपका खून पीकर आपको खोखला कर रहे हैं और खुद फल फूल रहे हैं.
अभिनव वर्मा की मां, जो सिर्फ 50 बरस की थीं, पेट में दर्द उठा, नजदीक ही फोर्टिस अस्पताल बनेरघट्टा, बंगलौर है. डॉक्टर कनिराज ने मां को देखा और अल्ट्रा साउंड कराने को कहा. फोर्टिस में ही अल्ट्रा साउंड हुआ और डा. कनिराज ने बताया कि गाल ब्लैडर में पथरी है ! एक छोटा सा ऑपरेशन होगा, मां स्वस्थ हो जाएंगी. अभिनव मां को घर लेकर आ गए और पेन-किलर के उपयोग से दर्द खत्म भी हो गया.
कुछ दिन बाद अभिनव वर्मा को फोर्टिस से फोन कर डॉक्टर कनिराज ने हिदायत दी कि यूं पथरी का गाल ब्लैडर में रहना खतरनाक होगा. अतः अभिनव को अपनी मां का ऑपरेशन तुरंत करा लेना जरूरी है. अभिनव जब अपनी मां को फोर्टिस बंगलौर लेकर पहुंचे तो एक दूसरे डॉक्टर मो शब्बीर अहमद ने अटेंड किया, जो एंडोस्कोपी के एक्सपर्ट थे. उन्होंने बताया कि एहतियात के लिए ERCP करा ली जाए, डा. अहमद को पैंक्रियास कैंसर का .05 % शक था.
अभिनव मजबूर थे, डॉक्टर भगवान होता है, झूठ तो नहीं बोलेगा, सो पैंक्रियास और गाल ब्लैडर की बायोप्सी की गई. रिपोर्ट नेगेटिव आई, मगर बॉयोप्सी और एंडोस्कोपी की प्रक्रिया के बाद मां को भयंकर दर्द शुरू हो गया. गाल ब्लैडर के ऑपरेशन को छोड़, मां को पेट दर्द और इंटर्नल ब्लीडिंग के शक में IC में पंहुचा दिया गया.
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जब अभिनव की मां अस्पताल में भर्ती हुई थीं तो लिवर, हार्ट, किडनी और सारे ब्लड रिपोर्ट पूरी तरह नार्मल थे. डॉक्टरों ने बताना शुरू किया कि अब लिवर अफेक्टेड हो गया है, फिर किडनी के लिए कह दिया गया कि डायलिसिस होगा ! एक दिन कहा अब बीपी बहुत 'लो' जा रहा है तो पेस मेकर लगाना पड़ेगा, पेस मेकर लग गया मगर हालात बद से बदतर हो गए. पेट का दर्द भी बढ़ता जा रहा था और शरीर के अंग एक-एक कर साथ छोड़ रहे थे. अब तक अभिनव की मां को फोर्टिस IC में एक माह से ऊपर हो चुका था.
एक दिन डॉक्टर ने कहा कि बॉडी में शरीर के ऑक्सीजन सप्लाई में कुछ गड़बड़ हो गई अतः ऑपरेशन करना होगा. ऑपरेशन टेबल पर लिटाने के बाद डॉक्टर, ऑपरेशन थिएटर के बाहर निकल कर तुरंत कई लाख की रकम जमा कराने को कहता है और उसके बाद ही ऑपरेशन करने की बात करता है. अभिनव तुरंत दौड़ता है और अपने रिश्तेदारों, मित्रों के सामने गिड़गिड़ाता है, रकम उसी दिन इकट्ठी कर फोर्टिस में जमा कराई गई, पैसे जमा होने के बाद भी डॉक्टर ऑपरेशन कैंसिल कर देते हैं.
हालात क्यों बिगड़ रहे हैं, इंफेक्शन क्यों होते जा रहे थे, डॉक्टर अभिनव को कुछ नहीं बताते. सिर्फ दवा, ड्रिप, खून की बोतलें और मां की बेहोशी में अभिनव स्वयं आर्थिक और मॉनसिक रूप से टूट चुका था. डॉक्टरों को जब अभिनव से पैसा जमा कराना होता था तब ही वह अभिनव से बात करते थे.
मां बेहोशी में कराहती थी. अभिनव मां को देख कर रोता था कि इस मां को कभी-कभी हलके पेट दर्द के अलावा कोई तकलीफ न थी. उसकी हंसमुख और खूबसूरत मां को फोर्टिस की नजर लग गई थी ! 50 दिन IC में रहने के बाद दर्द में कराहते हुए मां ने दुनिया से विदा ले ली. खर्चा-अस्पताल का बिल रु 43 लाख मय दवाइयों का बिल 12 लाख और 50 यूनिट खून. अभिनव की मां की देह को शवग्रह में रखवा दिया गया और अभिनव को शेष भुगतान जमा कराने के लिए कहा गया और शव के इर्द गिर्द बाउंसर्स लगा दिए गए.
अभिनव ने फोर्टिस की ही दर्जनों रिपोर्ट्स में, एक में देखा... मां के गाल ब्लैडर में कभी कोई पथरी नहीं थी.
'ये कोई रील लाइफ कहानी नहीं है, बल्कि रियल लाइफ कहानी है जिसे फेसबुक पर शेयर किया गया है और जिसका एक बुरा अंत हो चुका है. बहरहाल, जाहिर तौर पर आपके भी अस्पताल के अनुभव होंगे. कभी न कभी ऐसा कुछ अवश्य ही हुआ होगा जिससे आपको तकलीफ हुई होगी. अतः अगर अस्पताल की किसी हरकत से आपकी भावना आहत हुई है और उससे आपको कष्ट हुआ है, आपने किसी अपने को खोया है, तो उसे हमारे साथ शेयर करिए. हम पूरी कोशिश करेंगे कि उसे उसके सही अंजाम तक ले जाएं और आपको इंसाफ मिल सके. आपके प्रति हमारा ये दायित्व है कि अब जब ये बात निकली है तो इसे यूं बीच में न छोड़ा जाए और इसे दूर तक ले जाया जाए.
आप अपनी कहानियां शेयर करें ताकि हम उन कहानियों को इस देश के नेताओं और डॉक्टरों को सुनाकर आपको इंसाफ दिला सकें'. अंत में हम यही कहेंगे कि आइये अब आप भी खुलकर डॉक्टरों की मनमानियों का विरोध कीजिए ताकि उन्हें एहसास हो जाए कि अब इस देश की जनता न तो खुले आम उनकी लूट घसोट बर्दाश्त करेगी और न ही उनकी ज्यादतियों पर चुप्पी ही साधेगी.
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