तुम करते क्या हो? यह सवाल आज के जमाने के अधिकतर पुरुषों (Men) को सुनना पड़ता है. वे बेचारे जवाब तो बहुत कुछ देना चाहतें है मगर उनके गले से बाहर आवाज नहीं निकलती है. वे मन ही मन खुद को बता देते हैं कि वे कितना काम करते हैं मगर पत्नी के समाने उनका मुंह नहीं खुलता.
बेचारे सुबह उठते हैं, पीने का पानी भरते हैं. बच्चों को जगाते हैं. उसे ब्रश कराते हैं. उन्हें स्कूल छोड़कर आते हैं. कई तो बेचारे सुबह की चाय बनाकर फिर पत्नी को जगाते हैं. फिर वे नहा-धोकर तैयार होकर रास्ते के धक्के खाते हुए ऑफिस जाते हैं. दिन भर ऑफिस में काम करते हैं. बॉस की डांट सुनते हैं फिर रात को लेट लतीफ घर पहुंचते हैं. फिर सब्जी लाते हैं, सूखे कपड़ें उतारते हैं थक हार कर अभी बैठते हैं कि पत्नी आवाज लगा देती है, खाना बन गया है कम से कम टेबल पर तो ले चलो...वैसे भी तुम करते ही क्या हो? ऐसे में पतियो को भी कभी-कभी खुद पर ही शक होने लगता है कि हम कुछ करते भी हैं या नहीं?
अगर पत्नी हाउसवाइफ है तब को वह रोज नए-नए तानों से पति का स्वागत करती है और अगर वहीं कामकाजी है तब तो डोज डबल हो जाता है. पत्नी जब सुबह रसोई में नाश्ता बनाती है तो पति को थोड़ा ही सही मदद को करा ही देते हैं. जैसे-आलू छीना, अंडे छीलना, आटा गूथना, बच्चे संभालना...अपना टिफिन पैक करना. अब अगर दिन में वे काम पर चले जाते हैं तो यह उनकी गलती तो है नहीं. अब जब वे घर पर ही नहीं रहेंगे तो दोपहर में पत्नी की कैसे मदद करेंगे? हालांकि ऑफिस से आने के बाद ही उनकी कुछ ना कुछ काम करने की ड्यूटी लग जाती है. जैसे वॉशिंग मशीन से कपड़ें निकालकर सुखाना. इसके अलावा घर के सारे बाहरी काम वही करते हैं जैसे- पंखे की सफाई करना, घर में लाइट लगाना, पोधों में पीनी डालना. फिर भी पत्नियों को लगता है कि उनके पति करते क्या हैं?
तुम करते क्या हो? यह सवाल आज के जमाने के अधिकतर पुरुषों (Men) को सुनना पड़ता है. वे बेचारे जवाब तो बहुत कुछ देना चाहतें है मगर उनके गले से बाहर आवाज नहीं निकलती है. वे मन ही मन खुद को बता देते हैं कि वे कितना काम करते हैं मगर पत्नी के समाने उनका मुंह नहीं खुलता.
बेचारे सुबह उठते हैं, पीने का पानी भरते हैं. बच्चों को जगाते हैं. उसे ब्रश कराते हैं. उन्हें स्कूल छोड़कर आते हैं. कई तो बेचारे सुबह की चाय बनाकर फिर पत्नी को जगाते हैं. फिर वे नहा-धोकर तैयार होकर रास्ते के धक्के खाते हुए ऑफिस जाते हैं. दिन भर ऑफिस में काम करते हैं. बॉस की डांट सुनते हैं फिर रात को लेट लतीफ घर पहुंचते हैं. फिर सब्जी लाते हैं, सूखे कपड़ें उतारते हैं थक हार कर अभी बैठते हैं कि पत्नी आवाज लगा देती है, खाना बन गया है कम से कम टेबल पर तो ले चलो...वैसे भी तुम करते ही क्या हो? ऐसे में पतियो को भी कभी-कभी खुद पर ही शक होने लगता है कि हम कुछ करते भी हैं या नहीं?
अगर पत्नी हाउसवाइफ है तब को वह रोज नए-नए तानों से पति का स्वागत करती है और अगर वहीं कामकाजी है तब तो डोज डबल हो जाता है. पत्नी जब सुबह रसोई में नाश्ता बनाती है तो पति को थोड़ा ही सही मदद को करा ही देते हैं. जैसे-आलू छीना, अंडे छीलना, आटा गूथना, बच्चे संभालना...अपना टिफिन पैक करना. अब अगर दिन में वे काम पर चले जाते हैं तो यह उनकी गलती तो है नहीं. अब जब वे घर पर ही नहीं रहेंगे तो दोपहर में पत्नी की कैसे मदद करेंगे? हालांकि ऑफिस से आने के बाद ही उनकी कुछ ना कुछ काम करने की ड्यूटी लग जाती है. जैसे वॉशिंग मशीन से कपड़ें निकालकर सुखाना. इसके अलावा घर के सारे बाहरी काम वही करते हैं जैसे- पंखे की सफाई करना, घर में लाइट लगाना, पोधों में पीनी डालना. फिर भी पत्नियों को लगता है कि उनके पति करते क्या हैं?
और तो और छुट्टी वाले दिन बेचारों की सुबह से ड्यूटी लगा दी जाती है. पूरे हफ्ते का काम उन्हें एक ही दिन में निपटाना रहता है. जिसमें सबसे बड़ा काम पत्नी को घुमाना और शॉपिंग करना है. छुट्टी है तो शाम का डिनर तो बना ही सकते हैं और अगर नहीं बना सकते हें तो बाहर तो करा ही सकते हैं. वे अपनी छुट्टी वाले दिन आराम भी नहीं करते मगर पत्नियों को लगता है कि वे कुछ काम ही नहीं करते हैं. बस सुबह बैग टांगे और निकल गए शाम को आए और सो गए. इनकी जिंदगी में तो बस आराम ही आराम है, भले ही थकान के मारे पति चूर-चूर हो गया हो.
पतियों को लगता है कि यह अपने पत्नी को कैसे समझाएं कि वे कितना का काम करते हैं, क्योंकि बीवीयों के लिए ऑफिस का काम तो कुछ है ही नहीं, उनके लिए काम का मतलब रसोई बस...ना एसके इधर ना उधर. इस मसले पर हमने कुछ पतियों से बात की देखिए उन्होंने कैसे अपना दर्द बयां किया है-
भावेश का कहना है कि अगर पत्नी खाना बना रही हो, तो बच्चे के साथ खेलने की जिम्मेदारी निभानी पड़ती है. रोज सुबह पाने का पानी लाना पड़ता है. कभी-कभी बच्चा पत्नी के हाथ से खाना खाने में नखरे कर रहा हो, तो उसे खाना भी खिलाना पड़ता है. फिर चाहे खाना खिलाने में एक घंटा ही क्यों न लग जाए. वीकऑफ पर एक-दो बार चाय भी बनाकर पिलाना पड़ता है. घर के दर्जनों छोटे-मोटे कामों मदद को तो गिना ही नहीं जाता है. और, इसके बाद जब 10 घंटे की नौकरी कर 11वें घंटे में घर वापस आओ. तो पत्नी कहती है तुम करते क्या हो?
महेश का कहना है कि ऐसे तो रोज पौधो में पानी डालने का काम मेरा है. कामवाली बाई आए, दूध वाला आए, पेपर वाला आए, कोरियर वाला आए तो गेट मुझे ही खोलना पड़ता है. इसके अलावा हर दिन एक टाइम और वीकऑफ पर खाना मैं ही बनाता हूं.
रवि का कहना कहना है कि बॉलकनी की सफाई, पौधों का की कटाई छटाई, सारे बिल भरना, सब्जी लाना इसके अलावा कपड़े धोना और जूते चप्पल साफ करना, झाड़ू लगाना...ये सारे काम मेरे हिस्से आते हैं. इसके अलावा छुट्टी वाले दिन खाना भी बनाता हूं. काम वाली ना आए तो बाइपर से पोछा लगाना मेरे हिस्से आता है.
पीयूष का कहना है कि मैं तो हर रोज घर औऱ बाहर दोनों काम करता है. मेरी पत्नी वर्किंग है. मैं सुबह शाम रसोई में मदद कराता हूं. सब्जी काटता हूं, आटा लगाता हूं, बिस्तर लगाता हूं छुट्टी वाले दिन बाथरूम साफ करता हूं, गाड़ी धोता हीं. फिर भी मेरी पत्नी को लगता है कि वह मेरे से अधिक काम करती है.
तो देखा आपने पुरुषों का दुख कितना है? हमें उम्मीद है कि यह आर्टिकल ज्यादा से ज्यादा पत्नियां पढ़ें ताकि वे अपने घर के पुरुषों का हाल समझ सकें. महिलाओं को लेकर तो बड़ी-बड़ी बातें होती हैं मगर अब समय आ गया है कि पुरुषों की भी तकलीफ को समझा जाएगा. ये लाइन झूठ है कि मर्द को दर्द नहीं होता...क्योंकि सच में मर्द में दर्द होता है औऱ वह रोता भी है. एक बात और रोना किसी के कमजोरी की निशानी है, एक इमोशन है. वैसे भी कभी-कभी कमजोर पड़ जाना अच्छा होता है. जो भी हो हम तो यही कहेंगे कि ये दुख काहें खत्म नहीं होता है बे??? घर में बीवी नहीं समझती औऱ जमाने वाले जोरु का गुलाम अलग कहते हैं...
इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.