इंटरनेट दुनिया के हर कोने में उपयोगी जानकारियां उपलब्ध कराने की क्रांतिकारी तकनीक है. इसके जरिए लोग किसी भी जानकारी को आसानी से प्राप्त कर सकते हैं. उसका आदान-प्रदान कर सकते हैं. इंटरनेट केवल आवश्यकता नहीं बल्कि अनिवार्यता बन गई है. जब इंटरनेट नहीं था, विद्यार्थियों को किसी भी प्रकार का आवेदन जमा करने के लिए दिक्कतों का सामना करना पड़ता था. इंटरनेट के आविष्कार का श्रेय टिम बर्नर्स ली को जाता है. पहली बार इसका उपयोग गुप्त आंकड़ों और सूचनाओं को दूर-दराज़ तक भेजने व प्राप्त करने के लिए हुआ था. आज यह शिक्षा को सुलभ करने का बड़ा माध्यम है. शिक्षा के क्षेत्र में इंटरनेट ने क्रांतिकारी बदलाव लाए हैं. इंटरनेट की उपलब्धता के कारण विद्यार्थियों को शिक्षा का तोहफ़ा मिल रहा है, जोकि रोज़गार में उनके दावेदारी को रख रहा है. कम लागत में अधिक उपयोगिता के कारण वो उसे रोजमर्रा की आदतों में शामिल कर लिया गया है. उच्च शिक्षा की राह आज पहले से आसान दिखाई देती है. स्कूल और कॉलेज ने आज शिक्षा का इंटरनेट मॉडल अपना लिया है. हालांकि मैनेजमेंट एवम सुधार से इंकार नहीं किया जा सकता. इंटरनेट शिक्षा से सबसे ज्यादा कोरोना काल में घुला-मिला.
कोविड काल में इंटरनेट एजुकेशन का मुख्य प्लेटफार्म बन गया था. ऑनलाइन क्लासेज़ की वजह कितने ही स्टूडेंट्स का कैरियर बचा रहा. इसका दूसरा बड़ा उदाहरण यूक्रेन संकट के दरम्यान देखा गया. नाज़ुक हालात के मद्देनजर वहां पढ़ रहे हजारों विद्यार्थियों को देश छोड़ना पड़ा. इंटरनेट मॉडल की वजह से इन सबकी पढ़ाई जारी रह सकी. माध्यमिक व प्राइमरी स्कूल भी इंटरनेट मॉडल से शिक्षा को आपातकाल स्तर तक संभव कर रहे हैं. विद्यार्थियों की भी इंटरनेट से पढ़ाई करने में...
इंटरनेट दुनिया के हर कोने में उपयोगी जानकारियां उपलब्ध कराने की क्रांतिकारी तकनीक है. इसके जरिए लोग किसी भी जानकारी को आसानी से प्राप्त कर सकते हैं. उसका आदान-प्रदान कर सकते हैं. इंटरनेट केवल आवश्यकता नहीं बल्कि अनिवार्यता बन गई है. जब इंटरनेट नहीं था, विद्यार्थियों को किसी भी प्रकार का आवेदन जमा करने के लिए दिक्कतों का सामना करना पड़ता था. इंटरनेट के आविष्कार का श्रेय टिम बर्नर्स ली को जाता है. पहली बार इसका उपयोग गुप्त आंकड़ों और सूचनाओं को दूर-दराज़ तक भेजने व प्राप्त करने के लिए हुआ था. आज यह शिक्षा को सुलभ करने का बड़ा माध्यम है. शिक्षा के क्षेत्र में इंटरनेट ने क्रांतिकारी बदलाव लाए हैं. इंटरनेट की उपलब्धता के कारण विद्यार्थियों को शिक्षा का तोहफ़ा मिल रहा है, जोकि रोज़गार में उनके दावेदारी को रख रहा है. कम लागत में अधिक उपयोगिता के कारण वो उसे रोजमर्रा की आदतों में शामिल कर लिया गया है. उच्च शिक्षा की राह आज पहले से आसान दिखाई देती है. स्कूल और कॉलेज ने आज शिक्षा का इंटरनेट मॉडल अपना लिया है. हालांकि मैनेजमेंट एवम सुधार से इंकार नहीं किया जा सकता. इंटरनेट शिक्षा से सबसे ज्यादा कोरोना काल में घुला-मिला.
कोविड काल में इंटरनेट एजुकेशन का मुख्य प्लेटफार्म बन गया था. ऑनलाइन क्लासेज़ की वजह कितने ही स्टूडेंट्स का कैरियर बचा रहा. इसका दूसरा बड़ा उदाहरण यूक्रेन संकट के दरम्यान देखा गया. नाज़ुक हालात के मद्देनजर वहां पढ़ रहे हजारों विद्यार्थियों को देश छोड़ना पड़ा. इंटरनेट मॉडल की वजह से इन सबकी पढ़ाई जारी रह सकी. माध्यमिक व प्राइमरी स्कूल भी इंटरनेट मॉडल से शिक्षा को आपातकाल स्तर तक संभव कर रहे हैं. विद्यार्थियों की भी इंटरनेट से पढ़ाई करने में विशेष रुचि है.बेहतरीन शिक्षा को लेकर दुश्वारियां जो भी समक्ष रहीं उसी ने डिजिटल माध्यम को अनिवार्य बनाया.
कहना चाहिए इंटरनेट तक पहुंच आज विद्यार्थियों की मूलभूत जरूरत है.आज दुनिया के किसी भी कोने में बैठा विद्यार्थी इसकी सहायता से उच्च शिक्षा प्राप्त कर सकता है. बशर्ते उसके पास इंटरनेट तक अच्छी पहुंच हो. विद्यार्थी ऑनलाइन पढ़ना पसंद करते हैं. अत: ऑनलाइन पुस्तकों एवम पाठ्य सामग्री की उपलब्धता इन सभी विद्यार्थियों को लाभान्वित करती है.खुद से पढ़ाई करने वालों छात्रों के लिए इंटरनेट एक बड़ा विकल्प है. ऑनलाइन लर्निंग के साथ प्रोफेशनल विकल्प भी वहां तलाश सकते हैं. रुचि के विषयों पर गंभीर रिसर्च कर सकते हैं.
इंटरनेट सेवाएं ना होने से साधन एवम अवसर में बड़ी असमानताएं देखी गई हैं. शहरों एवम दूर-दराज के स्टूडेंट्स में साधनों की पहुंच के संदर्भ में असमानता है. आय एवम लिंग के आधार पर असमानता है. बराबरी लाने की दिशा में इंटरनेट का बड़ा रोल है. इंटरनेट का इस्तेमाल यूजर्स के विवेक पर निर्भर है.स्टूडेंट्स को इंटरनेट के हानिकारक उपयोग के प्रति जागरूक करना भी जरूरी है. अस्सी के दशक में आया इंटरनेट आज लाइफस्टाइल का हिस्सा है.
स्कूल एवम कालेज में पढ़ने वाले इन्टरनेट के संपर्क में शायद सबसे अधिक रहते हैं. इसलिए भी इसके हर पहलू को जानना जरूरी है. इंटरनेट की जरूरत के तहत केरल उच्च न्यायलय के अहम निर्णय के बारे में जान लेना चाहिए. केरल उच्च न्यायालय ने फहीमा शिरिन बनाम केरल राज्य के मामले में संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत आने वाले निजता के अधिकार और शिक्षा के अधिकार का एक हिस्सा बनाते हुए इंटरनेट तक पहुंच के अधिकार को मौलिक अधिकार घोषित किया है.
इंटरनेट तक पहुंच के अधिकार को संयुक्त राष्ट्र भी मौलिक अधिकार के रूप में मान्यता देता है. सभी जाति सभी वर्ग के स्टूडेंट्स, विशेषकर रिमोट क्षेत्रों के स्टूडेंट्स को इंटरनेट साक्षर बनाने के उद्देश्य से केंद्र एवम राज्य सरकारें योजनाएं चला रही है. भारतनेट परियोजना एक ऐसी ही परियोजना है. इसके तहत ‘डिजिटल इंडिया’ को बढ़ावा मिल रहा है. परियोजना को तीन चरणों में पूरा करने का लक्ष्य सरकार ने रखा है. इसे 2023 तक पूरा किया जाना है. किंतु कई क्षेत्रों में हाई स्पीड इंटरनेट से जोड़ने वाली भारतनेट योजना पिछड़ रही है.
शायद इसलिए भी क्योंकि कई दुर्गम इलाकों में बिजली अभी तक नहीं पहुंची है. इंटरनेट का सपना वहां साकार हो तो कैसे. गैर सरकारी संस्था ऑक्सफैम इंडिया की रिपोर्ट में भी यह बात सामने आई है. रिपोर्ट के अनुसार भारत में एक बड़ा डिजिटल डिवाइड है. इंटरनेट तक पहुंच के मामले में फर्क देखा गया है. लिंग के आधार पर एवम चिंताजनक रूप से जाति के आधार पर बराबरी की कमी है. छात्रों के लिए इंटरनेट तक पहुंच एक मूलभूत ज़रूरत है.
बड़े स्तर पर इस उद्देश्य को केवल सरकारें ही प्राप्त कर सकती हैं. किंतु जनसमर्थन एवम सहयोग के बगैर कोई भी योजना हक़ीक़त में तब्दील नहीं होती. सहयोग एवम हस्तक्षेप से शिक्षा योजनाओं का लाभ छात्रों तक पहुंचाया जा सकता है.मौजूदा समय का डिजिटल युग नवजागरण कहा जा सकता है. लेकिन लैंगिक चुनौतियों का सामना इसे है. पूर्वाग्रहों को खत्म किए बिना सफलता की नई बुलंदियों को पाना आसान नहीं .
अंतराष्ट्रीय महिला दिवस 2023 पर संयुक्त राष्ट्र की थीम को देखेंगे तो समझ आएगा चुनौतियां कम नहीं. जब दो समूहों को समान रूप से तकनीकी और इंटरनेट तक पहुंच प्राप्त न हो तो उसे डिजिटल डिवाइड कहा जाता है. पूरी दुनिया में पुरुषों के तुलना में महिलाएं इसका अधिक सामना कर रही हैं. इसमें उनके संग हो रहे साइबर बुलिंग अपराध शामिल हैं.
अपनी कहानी बताने का जरिया है इंटरनेट :
स्कूल एवम कॉलेज युवाओं के जीवन का सबसे महत्वपूर्ण हिस्सा होते हैं. जिसमें हर क्षण उनके मस्तिष्क में नए विचार, कहानियां और आइडियाज पनपते रहते हैं. इस दौरान युवाओं की सोचने और समझने की क्षमता को नयापन मिलता है. वो असीम उर्जा से परिपूर्ण रहते हैं. विचारों की दुनिया से परिचित होते हैं. उसे प्लेटफार्म पर साझा करने की हिम्मत पाते हैं. यहां कहानियां आपस में संवाद करती हैं. साहित्य सिनेमा एवम राजनीति के किरदार आकार लेते हैं. हरेक छात्र अपनी कहानी के अभिनेता होते हैं. भले ही सबकी कहानी अलग-अलग हो.
किंतु होती अवश्य है. स्कूल/कॉलेज / यूनिवर्सिटी के छात्रों को कैंपेन से जोड़ने के लिए उनके बीच जाना होगा. वहां के माहौल एवम चरित्र को समझना होगा. कैंप-लॉग के जरिए वहां के विचारों, कहानियों को एक नया मोड़ दिया जा सकता है. किंतु इसके लिए भागीदारी के प्रयोग चलाना जरूरी होगा. लघु एवम वृहद स्तर पर कैंपेन की पहल करनी होगी. चुनौतियों एवम समाधान की दिशा में यह एक अहम पहल दिखाई देती है. छात्रों के रोजमर्रा का जायज़ा लेकर उनके जरूरतों के हिसाब से काम करना होगा.
जरा सोचिए एक सकारात्मक पहल माध्यम को स्टूडेंट्स की सबसे बड़ा दोस्त बना सकती है. उनके किरदार एवम पहलुओं को आकार दे सकती है. स्कूल एवम कॉलेज की हलचलों को मंच देने के लिए स्टूडेंट्स को माध्यम से जोड़ना ही होगा क्योंकि उनसे बेहतर कोई और नहीं वहां की कहानी को व्यक्त कर पाएगा. स्टूडेंट्स अपनी बातों को खुलकर रखने का जरिया ढूंढते हैं. माध्यम के जरिए हजारों लोगों तक उनके विचार, कहानियां आसानी से पहुंच सकती है.
किसी भी देश का युवा वर्ग सबसे शक्तिशाली वर्ग होता है. युवाओं की शक्ति को व्यापक स्वर मुहैया हो तो क्या नहीं मुमकिन. क्षेत्र में पड़ने वाले स्कूलों एवम कॉलेज के जरिए यह किया जा सकता है. फोकस्ड होने के लिए स्टूडेंट्स के एज ग्रुप का वर्गीकरण करना बेहतर होगा. प्रशासन एवम जन प्रतिनिधियों को इस पूरी प्रक्रिया का हिस्सा होना ही चाहिए क्योंकि नीतियां वहीं से आती हैं.
प्रस्तावित कैंपेन
टारगेट आडियंस- हमारे कैंपेन की टारगेट आडियंस छात्र होंगे, जो अपनी जीवन का बहुत अहम हिस्सा स्कूल एवम कॉलेजों में गुजार देते हैं. हमें उनके संस्थानों को करीब से जानना होगा. इंटरनेट मॉडल को लागू करने के लिए वहां ढांचागत फेरबदल के सुझाव देने होंगे. युवाओं को सकारात्मक रूप से जोड़ने के हर संभव प्रयास करने होंगे.
शेड्यूलिंग- विद्यार्थियों के उपयोग के लिए डिजिटल प्लैटफॉर्म से समय पर सार्थक कंटेंट पब्लिश करने के लिए शेड्यूलिंग करना एक अलग कदम साबित हो सकता है . इंटरनेट पर हर चीज सीधे तौर पर छात्रों के लिए उपयोगी नहीं होती. जरूरत एवम लक्जरी में फ़र्क समझना होगा. मगर जरूरत को लक्जरी समझ कर मूलभूत चीजों को नजरंदाज करने की भूल ना करें.
मिडिया सहयोग- किसी भी कैंपेन में मीडिया का सहयोग आवश्यक अंग होता है. इस संचार प्लेटफार्म के साथ लाखों युवाओं के साथ संपर्क स्थापित करने में सफलता मिल सकती है. हरेक स्कूल एवम कॉलेज में इंटरनेट की मूलभूत सुविधा का होना आज एक जरूरत बन गया है. किंतु इस लक्ष्य के सामने कई चुनौतियां हैं. चुनौतियों की पहचान कर समाधान तलाश करना.
टारगेट ऑडिएंस को माध्यम बनाना- टारगेट ऑडिएंस को माध्यम की ओर लाने के लिए युवा केंद्रित अन्य प्लेटफार्म के साथ मिलकर सकारात्मक कार्यक्रम चलाए जा सकते हैं. यूजर जेनेरेटेड अन्य प्लेयर्स को चिन्हित करना होगा. इससे युवाओं की बीच शिक्षा के अधिकार को लेकर सहभागिता का महत्व बताया जा सकता है. स्कूल एवम कॉलेजेस में कंप्यूटर लैब एवम कंप्यूटर क्लासेज़ का होना आज एक बेसिक मॉडल है. ऐसे में पिछड़ रहे लोगों को धारा से जोडना होगा.
कम लागत में इंटरनेट सेवाओं को हर जगह पहुंचाने के लिए सभी कारकों की पहचान कर योजना विकसित करनी होगी. जहां इंटरनेट की पहुंच हुई है, वहां की स्थिति को समझ कर कमियों को कम करना. व्यवस्था को सुचारू रूप से चलाना है. कम्प्यूटर एवम मोबाइल की उपलब्धता और उसके उपयोग से जुड़ी बेसिक साक्षरता का पैमाना तय करना होगा.
पूर्वाग्रह - इंटरनेट को लेकर पूर्वाग्रहों को तोड़ने की दिशा में जीवंत उदाहरण सामने लाने की पहल महत्वपूर्ण है. विद्यार्थियों को इंटरनेट उपलब्ध कराने की दिशा में परिवारों के पूर्वाग्रह तोड़ने होंगे. केंद्र एवम राज्य सरकारों की चल रही योजनाओं के बारे में संपूर्ण रूप से अवगत कराना इसमें अहम है.
आर्ट एंड कल्चर रिसोर्स- आर्ट एंड कल्चर युवाओं को एस्थेटिवली जगाने का बड़ा माध्यम है. रेडियो टीवी एंड सिनेमा जैसे जनसंचार के माध्यमों का प्रयोग कर युवाओं तक पहुंचा जा सकता है. जनसंचार के माध्यम आर्ट एवम कल्चर के प्रसार के सबसे सार्थक प्लेटफार्म होते हैं. स्टुडेंट्स के उपयोग का यहां काफ़ी कंटेंट होता है. टारगेट ग्रुप फिल्म स्क्रिनिंग्स के साथ भी आसानी से धारा में लाएं जा सकते हैं. स्क्रीनिंग्स के माध्यम से स्थानीय लोगों में जागरूकता होगी.
रिवार्ड्स- युवा केंद्रित सांस्कृतिक कार्यक्रम कैंपस में आयोजित किए जा सकते हैं. स्कूल एवम कॉलेज मैनेजमेंट के सहयोग से आयोजन कराए जा सकते हैं. युवा प्रोफाइल बिल्डिंग को लेकर बहुत चिंतित रहा करते हैं. यदि उनके लिए सहभागिता के रिवार्ड्स कायम किए जाएंगे तो निश्चित तौर पर प्लेटफार्म कई चीजें हासिल कर लेगा.
डेडलाइन्स- किसी भी कैंपेन को लम्बे समय तक चलाने के लिए अर्थात उसकी लाइफ़ साइकिल को बरकरार रखने के लिए गोल डेडलाइन्स रखी जानी चाहिए. निर्धारित समय के लिए चलाए जा रहे कैंपेन का आकलन बेहद जरूरी है.
इंटरनेट को मूलभूत ज़रूरत इसलिए भी समझना लाज़मी होगा क्योंकि इंटरनेट रोजमर्रा की आदतों में शामिल है. महानगरों एवम बड़े शहरों के नागरिक इंटरनेट से हर पल लाभान्वित हो रहे हैं. आज मोबाइल की पहुंच गांवों तक हो चुकी है. ऐसे में इंटरनेट की जरूरत को आसानी से समझा जा सकता है. इंटरनेट की पहुंच में बाधाओं को जान लेना भी जरूरी है. किसी क्षेत्र में इंटरनेट की सुविधा क्यों नहीं है. इसमें समझा जा सकता है कि बिजली की पहुंच एक बड़ी बाधा है. इंटरनेट की रेट्स में निरंतर बदलाव समस्याएं पैदा करता है. सस्ते दर पर इंटरनेट की उपलब्धता हमेशा होनी चाहिए.
चुनौतियां : यह समझना जरूरी है कि क्यों हर जरूरतमंद विद्यार्थी को इसका लाभ मिलना चाहिए. क्यों सरकार की योजनाओं का पूरा लाभ सभी तक नहीं पहुंच पा रहा है. क्यों पिछड़े इलाकों में इंटरनेट को लेकर पूर्वाग्रह हैं. क्यों इसका लाभ लोग सही से नहीं उठा पाते हैं. क्यों डिजिटल होना जरूरी है.
यह भी जानना होगा क्यों इंटरनेट का दुरुपयोग हो रहा. क्यों इंटरनेट के सुलभ हो जाने बाद इंटरटेनमेंट मिडिया की बाढ़ सी है. स्मार्टफोन ड्रिवन जीवनशैली किशोरों को क्यों भ्रमित कर रही. क्या किशोरों का एक बड़ा समूह ओटीटी का दर्शक नहीं है. इन सभी सवालों का जवाब एवम उससे जुड़ा समाधान युवा केंद्रित चिंताओं का हल निकाल सकता है.
इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.