पुलिस अफसरों की 'अफसरी' के किस्से तो आपने खूब सुने होंगे, लेकिन अब इस अफसरी पर एक अफसर ने सवाल खड़ा किया है. सवाल ही नहीं, खूब खरी-खरी सुना दी है. वैसे तो यह भड़ास यूपी के एक बेहद सीनियर आईपीएस अफसर ने खुद अपनी फेसबुक वॉल पर निकाली है.
आईपीएस नवनीत सिकेरा लिखते हैं कि-
आपको याद होगा एक बार मुम्बई यात्रा के दौरान ऑटो में अपना ipad भूल गया था, लगभग एक घंटे बाद फ्लैट की घंटी बजी तो देखा वही ऑटो वाला मेरा ipad लिए खड़ा था. मैं अवाक था कि आजकल के जमाने में क्या ऐसा भी हो सकता है मैंने पूरी घटना पोस्ट की थी. उस समय मैंने सोचा कि ऑटो चालक दिनेश की ईमानदारी का कोई मोल नहीं है फिर भी अगर मैं उसके कोई गिफ्ट दूं तो उसे अच्छा लगेगा. फिर मैंने सोचा कि अगर ये गिफ्ट वहां के लोकल डीसीपी (एसपी) के हाथों दिलवा दूं तो दिनेश का मान और बढ़ेगा. मैने स्वयं डीसीपी को फ़ोन किया उसने सहमति भी जताई लेकिन पूरे दिन मेरा भतीजा गिफ्ट लिए डीसीपी आफिस के बाहर खड़ा रहा बड़े डीसीपी साहब के पास वक़्त नही था फिर मैंने डीसीपी को रिक्वेस्ट किया कि एक बार ऑटो चालक को फ़ोन करके बधाई दे दो उसका मनोबल बढ़ जाएगा, खैर डीसीपी साहब के पास उतना वक़्त भी नही था.
आज की पोस्ट उस डीसीपी, बड़े साहब को ही समर्पित है उनके पास समय नहीं था आम इंसान के लिए, लेकिन मैं ये बताना चाहता हूं कि आज दिनेश सीधे IG से बात करता है न सिर्फ मुझसे बल्कि मुम्बई के अन्य उच्च अधिकारियों से भी. संदेश ये है डीसीपी साहब बहुत से अच्छे लोग भी हैं इस दुनिया में और वह बाकी लोगों की परवाह कर लेंगे. आपको आपका डीसीपी होना मुबारक !
लेकिन ऐसी 'अफसरी' के खिलाफ सबको खुलकर कहने की जरूरत है. जब एक आईपीएस अफसर दूसरे आईपीएस अफसर की संवेदना को नहीं समझ पा रहा है, तो वह आम लोगों से किस तरह का जुड़ाव रखता होगा?
ये रहा वो वाक्या जिसे दो साल पहले नवनीत सिकेरा ने अपनी फेसबुक वॉल पर शेयर किया था
आखिर में एक...
पुलिस अफसरों की 'अफसरी' के किस्से तो आपने खूब सुने होंगे, लेकिन अब इस अफसरी पर एक अफसर ने सवाल खड़ा किया है. सवाल ही नहीं, खूब खरी-खरी सुना दी है. वैसे तो यह भड़ास यूपी के एक बेहद सीनियर आईपीएस अफसर ने खुद अपनी फेसबुक वॉल पर निकाली है.
आईपीएस नवनीत सिकेरा लिखते हैं कि-
आपको याद होगा एक बार मुम्बई यात्रा के दौरान ऑटो में अपना ipad भूल गया था, लगभग एक घंटे बाद फ्लैट की घंटी बजी तो देखा वही ऑटो वाला मेरा ipad लिए खड़ा था. मैं अवाक था कि आजकल के जमाने में क्या ऐसा भी हो सकता है मैंने पूरी घटना पोस्ट की थी. उस समय मैंने सोचा कि ऑटो चालक दिनेश की ईमानदारी का कोई मोल नहीं है फिर भी अगर मैं उसके कोई गिफ्ट दूं तो उसे अच्छा लगेगा. फिर मैंने सोचा कि अगर ये गिफ्ट वहां के लोकल डीसीपी (एसपी) के हाथों दिलवा दूं तो दिनेश का मान और बढ़ेगा. मैने स्वयं डीसीपी को फ़ोन किया उसने सहमति भी जताई लेकिन पूरे दिन मेरा भतीजा गिफ्ट लिए डीसीपी आफिस के बाहर खड़ा रहा बड़े डीसीपी साहब के पास वक़्त नही था फिर मैंने डीसीपी को रिक्वेस्ट किया कि एक बार ऑटो चालक को फ़ोन करके बधाई दे दो उसका मनोबल बढ़ जाएगा, खैर डीसीपी साहब के पास उतना वक़्त भी नही था.
आज की पोस्ट उस डीसीपी, बड़े साहब को ही समर्पित है उनके पास समय नहीं था आम इंसान के लिए, लेकिन मैं ये बताना चाहता हूं कि आज दिनेश सीधे IG से बात करता है न सिर्फ मुझसे बल्कि मुम्बई के अन्य उच्च अधिकारियों से भी. संदेश ये है डीसीपी साहब बहुत से अच्छे लोग भी हैं इस दुनिया में और वह बाकी लोगों की परवाह कर लेंगे. आपको आपका डीसीपी होना मुबारक !
लेकिन ऐसी 'अफसरी' के खिलाफ सबको खुलकर कहने की जरूरत है. जब एक आईपीएस अफसर दूसरे आईपीएस अफसर की संवेदना को नहीं समझ पा रहा है, तो वह आम लोगों से किस तरह का जुड़ाव रखता होगा?
ये रहा वो वाक्या जिसे दो साल पहले नवनीत सिकेरा ने अपनी फेसबुक वॉल पर शेयर किया था
आखिर में एक सवाल मुंबई पुलिस के लिए
बेशक सिकेरा की अपील मुंबई के इस डीसीपी की ड्यूटी के दायरे से बाहर थी, लेकिन वह मानवता के दायरे में तो 100 फीसदी थी. इसलिए मुंबई पुलिस को उस पुलिस अफसर का नाम सामने लाना चाहिए, जो नवनीत सिकेरा ही नहीं, मानवता का भी गुनाहगार है.
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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.