कहावत है कि ज़ख्म को उसके शुरूआती दौर में ही खत्म कर देना चाहिए. ऐसा इसलिए क्योंकि यदि समय रहते जख्म का उपचार नहीं किया गया तो वो नासूर बन जाएगा जिससे व्यक्ति की जान भी जा सकती है. अब इस बात को कश्मीर के सन्दर्भ में रखकर देखिये. घाटी के लड़के क्यों पत्थरबाज बन हिंसा का रास्ता अपना रहे हैं इसके पीछे की एक बड़ी वजह घाटी में चलने वाले इस्लामिक चैनल थे. अतः सरकार ने घाटी के केबल ऑपरेटरों को ऐसे 30 से अधिक चैनलों को बंद करने का निर्देश दिया है, जो अपने कार्यक्रमों के जरिये घाटी में जहर घोलते हैं. ध्यान रहे कि सरकार द्वारा तत्काल प्रभाव से पीस टीवी समेत इन 30 चैनलों को, घाटी की शांति एवं स्थिरता के लिए खतरा करार देते हुए बंद करने के निर्देश दिए गए हैं.
बताया जा रहा है कि इस सन्दर्भ में स्थानीय केबल ऑपरेटरों को अतिरिक्त जिलायुक्त श्रीनगर की तरफ से एक आदेश मिला है. इस आदेश में आरोप लगाया गया है कि घाटी के तमाम केबल ऑपरेटर प्रतिबंधित निजी सैटलाईट चैनलों का प्रसारण कर रहे हैं. अतिरिक्त जिलायुक्त द्वारा भेजे गए इस आदेश में जम्मू-कश्मीर सरकार के गृह विभाग द्वारा एक पत्र पीएस /होम/2018-60/ दिनांक: 2 जुलाई 2018 का भी हवाला दिया गया है जिसके अनुसार केबल ऑपरेटर उन निजी सैटलाईट टीवी चैनलों का प्रसारण कर रहे हैं जो प्रतिबंधित हैं और जिनके प्रसारण की अनुमति नहीं है.
आदेश में इस बात को स्पष्ट किया गया है कि जनहित में और शांति व सौहार्द का माहौल बनाए रखने के लिए इन चैनलों का प्रसारण शीघ्र से शीघ्र रोका जाए आपको बताते चलें कि वादी में बैन हुए ये चैनल, वो चैनल हैं जिनके प्रसारण की अनुमति केंद्रीय सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय भी नहीं देता है. अपने इस आदेश...
कहावत है कि ज़ख्म को उसके शुरूआती दौर में ही खत्म कर देना चाहिए. ऐसा इसलिए क्योंकि यदि समय रहते जख्म का उपचार नहीं किया गया तो वो नासूर बन जाएगा जिससे व्यक्ति की जान भी जा सकती है. अब इस बात को कश्मीर के सन्दर्भ में रखकर देखिये. घाटी के लड़के क्यों पत्थरबाज बन हिंसा का रास्ता अपना रहे हैं इसके पीछे की एक बड़ी वजह घाटी में चलने वाले इस्लामिक चैनल थे. अतः सरकार ने घाटी के केबल ऑपरेटरों को ऐसे 30 से अधिक चैनलों को बंद करने का निर्देश दिया है, जो अपने कार्यक्रमों के जरिये घाटी में जहर घोलते हैं. ध्यान रहे कि सरकार द्वारा तत्काल प्रभाव से पीस टीवी समेत इन 30 चैनलों को, घाटी की शांति एवं स्थिरता के लिए खतरा करार देते हुए बंद करने के निर्देश दिए गए हैं.
बताया जा रहा है कि इस सन्दर्भ में स्थानीय केबल ऑपरेटरों को अतिरिक्त जिलायुक्त श्रीनगर की तरफ से एक आदेश मिला है. इस आदेश में आरोप लगाया गया है कि घाटी के तमाम केबल ऑपरेटर प्रतिबंधित निजी सैटलाईट चैनलों का प्रसारण कर रहे हैं. अतिरिक्त जिलायुक्त द्वारा भेजे गए इस आदेश में जम्मू-कश्मीर सरकार के गृह विभाग द्वारा एक पत्र पीएस /होम/2018-60/ दिनांक: 2 जुलाई 2018 का भी हवाला दिया गया है जिसके अनुसार केबल ऑपरेटर उन निजी सैटलाईट टीवी चैनलों का प्रसारण कर रहे हैं जो प्रतिबंधित हैं और जिनके प्रसारण की अनुमति नहीं है.
आदेश में इस बात को स्पष्ट किया गया है कि जनहित में और शांति व सौहार्द का माहौल बनाए रखने के लिए इन चैनलों का प्रसारण शीघ्र से शीघ्र रोका जाए आपको बताते चलें कि वादी में बैन हुए ये चैनल, वो चैनल हैं जिनके प्रसारण की अनुमति केंद्रीय सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय भी नहीं देता है. अपने इस आदेश में अतिरिक्त जिलायुक्त ने केबल टेलीविजन नेटवर्क नियमन अधिनियम 1995 की धारा 19 का भी हवाला दिया गया है जिसके तहत इन्हें सुरक्षा और सौहार्द की दृष्टि से अपने चैनल बंद करने ही होंगे. साथ ही स्थानीय केबल ऑपरेटरों को इस संदर्भ में नोटरी द्वारा सत्यापित एक हल्फनामा भी अतिरिक्त जिलायुक्त श्रीनगर के कार्यालय में दाखिल करना होगा.
इन अवैध चैनल्स पर सरकार कितनी सख्त है, इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि, यदि केबल ऑपरेटरों ने निर्धारित समयावधि में प्रतिबंधित चैनलों का टेलीकास्ट बंद नहीं किया और हल्फनामा दायर करने में देर की तो उनके खिलाफ केबल नेटवर्क अधिनियम 1995 के संबधित प्रावधानों के तहत एक्शन लिया जाएगा. इतनी जानकारी के बाद सवाल उठना लाजमी है कि आखिर इन चैनलों से राज्य सरकार को क्या दिक्कत हो रही थी? तो इसका जवाब बस इतना है कि पाकिस्तान और सऊदी समेत अन्य मुस्लिम देशों से चलने वाले इन चैनलों पर ऐसे प्रोग्रामों की भरमार थी जिनका उद्देश्य सभ्य समाज में विष घोलना, उन्हें बांटना और नफरत का प्रचार प्रसार करना था.
ज्ञात रहे कि कश्मीर खतरे के निशान पर है और वहां नकारी गई छोटी से छोटी भूल तमाम बड़ी परेशानियों की वजह बन सकती है. इस बात को यदि हम पीस टीवी जैसे चैनलों के सन्दर्भ में देखें तो मिलता है कि इन चैनलों का आधार ही हिन्दू और मुस्लिम करना और लोगों को बांटना है. ऐसे में यदि राज्य सरकार इन चैनलों को चलाने वाले केबल ऑपरेटरों पर नकेल कसती है तो निश्चित तौर पर शांति और सौहार्द की अवधारणा को लागू किया जा सकता है.
गौरतलब है कि पिछले साल मई महीने में भी घाटी में शांति बनाए रखने के उद्देश्य से फेसबुक और व्हाट्सएप सहित सोशल मीडिया पर बैन लगा दिया गया था. साथ ही उस समय भी पाकिस्तान और सऊदी अरब फंडेड चैनलों के प्रसारण पर रोक लगा दी गई थी. उस समय भी इन चैनलों पर घाटी में देश विरोधी भावना और धार्मिक कट्टरता फैलाने का आरोप लगा था. इसके अलावा 2016 में आतंकी बुरहान वानी के एनकाउंटर के बाद भड़की हिंसा को शांत करने के लिए भी घाटी में स्थानीय प्रशासन द्वारा पाकिस्तानी चैनलों पर नकेल कसी गई थी. ऐसा इसलिए हुआ था क्योंकि बुरहान की मौत के बाद पड़ोसी मुल्क पाकिस्तान से प्रसारित हो रहे चैनल उसे एक हीरो की तरह दर्शा रहे थे और उसे किसी शहीद का दर्जा दे रहे थे जिससे प्रेरणा लेकर घाटी के कई युवाओं ने आतंकवाद और हिंसा का मार्ग चुना.
बात अगर उन चैनलों की हो जिन्हें राज्य सरकार ने निशाने पर लिया है तो पीस टीवी, पैगाम, नूर, सहर, मदनी, जियो, एआरवाई, क्यूटीवी, सऊदी कुरान, सऊदी, हादी, सऊदी सुन्ना का शुमार उन चैनलों में है जिन्हें घाटी से बंद किया गया है. बहरहाल, कहना गलत नहीं है भले ही राज्य सरकार ने देर से ही इन चैनलों का संज्ञान लिया हो मगर इसे एक सही समय पर लिया गया है. कहना गलत नहीं है कि जो कश्मीर के हालात हैं और जिस तरह राज्य के युवा बेरोजगारी की मार सह रहे थे और आतंक और हिंसा का मार्ग अपना रहे थे उसमें टीवी किसी उत्प्रेरक की भूमिका निभा रहा था.
खैर अब देखना दिलचस्प रहेगा कि राज्य सरकार के इस आदेश के बाद घाटी के लोग सुधारते हैं या नहीं हां मगर इस फैसले से कहीं न कहीं उन केबल ऑपरेटर्स का नुकसान जरूर होगा जो इन अराजक चैनल्स को दिखाकर घाटी के लोगों से मोटा पैसा ऐठ रहे थे.
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