क्या 'शाहरुख़' नाम है इसलिए फ़ेस्बुक पर चुप्पी छाई है डिजायनर फ़ेमिनिस्ट, निम्नकोटी के बुद्धिजीवियों में? क्या शाहरुख़ की जगह अगर संतोष रहता तो दुःख या ग़ुस्सा आता? पता नहीं आप में से कितने लोगों ने ये ख़बर पढ़ी होगी. झारखंड में 17 साल की अंकिता को एकतरफ़ा प्यार के मामले में शाहरुख़ ने मौत के घाट उतार दिया. अंकिता अपने कमरे में सो रही थी, तब खिड़की से पेट्रोल फेंक कर आग लगा दी उस हैवान ने. 23 अगस्त को जलायी अंकिता ने कल दम तोड़ दिया.
अंकिता ने मरने से पहले पुलिस को शाहरुख़ के बारे में सब बताया. कैसे वो ट्यूशन जाते वक़्त उसका पीछा करता था. कहीं से उसका फ़ोन नम्बर हासिल करके उसे फ़ोन पर प्यार करने के लिए मजबूर करता रहा. अंकिता ने पहले इन चीज़ों को सिरियसली नहीं लिया. जिस दिन उसे आभास हुआ कि वो उसे नुक़सान पहुंचाएगा] उसने रात को अपने पापा से बात की. पापा ने यक़ीन दिलाया था कि सुबह वो शाहरुख़ से बात करके उसे समझाएंगे. लेकिन, इसके पहले ही उसने सुबह 5 बजे जला दिया अंकिता को.
मैं समझने की कोशिश कर रही हूं कि अगर अंकिता की जगह आरिफ़ा होती तब भी यही खामोशी होती? क्या तब देश में बेटियां ख़तरे में नहीं होतीं? क्या लोग हिंदू होने पर शर्मिंदा नहीं हो रहे होते? कितना दोगलापन है, छी! ऊपर से एक और ख़ास चीज़ जिसे मेंशन करना ज़रूरी है. अंकिता के हत्यारे शाहरुख़ को जब पुलिस गिरफ़्तार करती है तो सो हंस रहा होता है. उसके चेहरे पर पछतावा या अफ़सोस जैसी कोई भाव नहीं दिख रहा था.
शायद उसे लग रहा होगा कि उसने एक काफ़िर लड़की को मौत के घाट उतार दिया है. अब वो सिर तन से जुदा गैंग के लिए पोस्टरबॉय बन जाएगा. मज़हबी कट्टरता में पले बढ़े लड़के आख़िर प्यार करना...
क्या 'शाहरुख़' नाम है इसलिए फ़ेस्बुक पर चुप्पी छाई है डिजायनर फ़ेमिनिस्ट, निम्नकोटी के बुद्धिजीवियों में? क्या शाहरुख़ की जगह अगर संतोष रहता तो दुःख या ग़ुस्सा आता? पता नहीं आप में से कितने लोगों ने ये ख़बर पढ़ी होगी. झारखंड में 17 साल की अंकिता को एकतरफ़ा प्यार के मामले में शाहरुख़ ने मौत के घाट उतार दिया. अंकिता अपने कमरे में सो रही थी, तब खिड़की से पेट्रोल फेंक कर आग लगा दी उस हैवान ने. 23 अगस्त को जलायी अंकिता ने कल दम तोड़ दिया.
अंकिता ने मरने से पहले पुलिस को शाहरुख़ के बारे में सब बताया. कैसे वो ट्यूशन जाते वक़्त उसका पीछा करता था. कहीं से उसका फ़ोन नम्बर हासिल करके उसे फ़ोन पर प्यार करने के लिए मजबूर करता रहा. अंकिता ने पहले इन चीज़ों को सिरियसली नहीं लिया. जिस दिन उसे आभास हुआ कि वो उसे नुक़सान पहुंचाएगा] उसने रात को अपने पापा से बात की. पापा ने यक़ीन दिलाया था कि सुबह वो शाहरुख़ से बात करके उसे समझाएंगे. लेकिन, इसके पहले ही उसने सुबह 5 बजे जला दिया अंकिता को.
मैं समझने की कोशिश कर रही हूं कि अगर अंकिता की जगह आरिफ़ा होती तब भी यही खामोशी होती? क्या तब देश में बेटियां ख़तरे में नहीं होतीं? क्या लोग हिंदू होने पर शर्मिंदा नहीं हो रहे होते? कितना दोगलापन है, छी! ऊपर से एक और ख़ास चीज़ जिसे मेंशन करना ज़रूरी है. अंकिता के हत्यारे शाहरुख़ को जब पुलिस गिरफ़्तार करती है तो सो हंस रहा होता है. उसके चेहरे पर पछतावा या अफ़सोस जैसी कोई भाव नहीं दिख रहा था.
शायद उसे लग रहा होगा कि उसने एक काफ़िर लड़की को मौत के घाट उतार दिया है. अब वो सिर तन से जुदा गैंग के लिए पोस्टरबॉय बन जाएगा. मज़हबी कट्टरता में पले बढ़े लड़के आख़िर प्यार करना तो नहीं सीखेंगे न. ख़ैर. वैसे अंकिता की मौत के बाद कितनी तख़्ती, कितने लेख, कितने ट्वीट आपलोगों को दिखें ज़रा गौर कीजिएगा. फिर से कह रही हूं हिंदुस्तान में हिंदू होना गुनाह है.
आप मर जाएंगे और आपके लिए कोई आवाज़ उठाने वाला नहीं होगा. क्या मोदी जी और क्या भाजपा सबको अभी गुजरात चुनाव दिख रहा होगा तो जो ही दो-चार वोट मिल जाए उस तरफ़ से इसलिए शाहरुख़ के ख़िलाफ़ कोई ट्वीट या संदेश नहीं आएगा. चलिए बढ़िया है. देश का हिंदू सब देख रहा है. जाते जाते एक और बात बता दूं , झांसी में एक हिंदू लड़की ने मोहम्मद दानिश खान के प्यार और निकाह के प्रपोज़ल को मना कर दिया है तो उस पर दानिश साहेब ने ब्लेड से हमला किया, लड़की अभी अस्पताल में है. चलिए किसी और अंकिता की मौत की तैयारी चल रही है. बढ़िया है.
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