मां है तो सब है, मां ही तो घर की नींव है. उसी के कंधे पर घर-गृहस्थी का भार टिका होता है फिर उसकी लंबी उम्र के लिए कोई व्रत क्यों नहीं बनाया गया? मां के लिए ऐसी कोई पूजा क्यों नहीं होती जिससे उसकी उम्र लंबी हो जाए. देखने में आता है कि कुछ लड़के अपनी पत्नी के लिए करवाचौथ का व्रत रख लेते हैं यह अच्छी पहल है, मगर वे मां के लिए व्रत नहीं रखते हैं.
वह मां ही है जो नौ महीने बच्चे को अपनी कोख में पालती है. ऐसा लगता है कि पेट और कमर पर कोई भारी सामान बांध दिया गया है जिसे वह हर जगह अपने साथ ढोती है. उल्टी कर करके उसकी हालात खराब हो जाती है. वह कुछ खा नहीं पाती. वह ठीक से सो नहीं पाती, उसके पैरों में सूजन रहती है, उसके मूड स्विंग्स होते हैं मगर इतना दर्द के बाद भी अपने अंदर बच्चे को महसूस कर खुश रहती है.
कहा जाता है कि बच्चे के जन्म के साथ मां का भी जन्म होता है, क्योंकि वह एक औरत, एक बेटी, एक बहन औऱ एक पत्नी से एक मां बनती है. बच्चे के जन्म के बाद उसे पालने के विए वह अपने दिन का चैन और रातों की नीदें खराब करती है. उसकी आंखों की पलकों में नींद की कमी की वजह से सूजन आ जाता है. उसकी आंखों के नीचे काले घरे बन आता है. हार्मोनल चेंजेस के कारण उसका शरीर फूलने लगता है. उसके बाल झड़ने लगते हैं. उसके चेहरे पर झाइयां बन जाती हैं.
एक बच्चे को जन्म देते समय एक महिला को जो दर्द होता है उस तकलीफ को कोई पुरुष कभी महससू नहीं कर सकता. कई बार तो बच्चे का जन्म ऑपरेशन से होता है. बच्चा ठीक रहे इसलिए मां अपने पसंद के पकवान खाना छोड़ देती है. कई बार वह बच्चे को समय देने के लिए अपना करियर भी छोड़ देती है. मां की जिंदगी तो बच्चे के आस-पास घमूती रहती है. इस तरह मां सिर्फ...
मां है तो सब है, मां ही तो घर की नींव है. उसी के कंधे पर घर-गृहस्थी का भार टिका होता है फिर उसकी लंबी उम्र के लिए कोई व्रत क्यों नहीं बनाया गया? मां के लिए ऐसी कोई पूजा क्यों नहीं होती जिससे उसकी उम्र लंबी हो जाए. देखने में आता है कि कुछ लड़के अपनी पत्नी के लिए करवाचौथ का व्रत रख लेते हैं यह अच्छी पहल है, मगर वे मां के लिए व्रत नहीं रखते हैं.
वह मां ही है जो नौ महीने बच्चे को अपनी कोख में पालती है. ऐसा लगता है कि पेट और कमर पर कोई भारी सामान बांध दिया गया है जिसे वह हर जगह अपने साथ ढोती है. उल्टी कर करके उसकी हालात खराब हो जाती है. वह कुछ खा नहीं पाती. वह ठीक से सो नहीं पाती, उसके पैरों में सूजन रहती है, उसके मूड स्विंग्स होते हैं मगर इतना दर्द के बाद भी अपने अंदर बच्चे को महसूस कर खुश रहती है.
कहा जाता है कि बच्चे के जन्म के साथ मां का भी जन्म होता है, क्योंकि वह एक औरत, एक बेटी, एक बहन औऱ एक पत्नी से एक मां बनती है. बच्चे के जन्म के बाद उसे पालने के विए वह अपने दिन का चैन और रातों की नीदें खराब करती है. उसकी आंखों की पलकों में नींद की कमी की वजह से सूजन आ जाता है. उसकी आंखों के नीचे काले घरे बन आता है. हार्मोनल चेंजेस के कारण उसका शरीर फूलने लगता है. उसके बाल झड़ने लगते हैं. उसके चेहरे पर झाइयां बन जाती हैं.
एक बच्चे को जन्म देते समय एक महिला को जो दर्द होता है उस तकलीफ को कोई पुरुष कभी महससू नहीं कर सकता. कई बार तो बच्चे का जन्म ऑपरेशन से होता है. बच्चा ठीक रहे इसलिए मां अपने पसंद के पकवान खाना छोड़ देती है. कई बार वह बच्चे को समय देने के लिए अपना करियर भी छोड़ देती है. मां की जिंदगी तो बच्चे के आस-पास घमूती रहती है. इस तरह मां सिर्फ देना ही जानती है.
इतना कुछ करने के बाद वह अपनी संतान के उज्जवल भविष्य और लंबी आयु के लिए हर साल अश्विन माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को जीवित्पुत्रिका यानी जितिया व्रत का रखती है. वो भी निर्जला, जिसमें 24 घंटे बाद अगले दिन पारण करती हैं. सोचिए मां बनना कितना कठिन हैं. मां बनने के साथ ही साथ वह घर की बहू और किसी की पत्नी होती है, इसलिए उसे घर की सारी जिम्मेदारियां भी निभानी पड़ती है.
अब सोचिए कि हम मां के लिए क्या करते हैं? उनकी लंबी उम्र के लिए तो कोई व्रत ही नहीं बना. मां दिन भर व्रत रखती हैं लेकिन बच्चों के लिए खाना बनाती हैं. वे नहीं चाहतीं कि उनके बच्चे जरा भी भूखे रहें. मगर कई बार हमें इतना गुस्सा आ जाता है कि जिसने हमें जन्म दिया है हम उसी पर चिल्ला देते हैं. हमारे पास उसी के लिए टाइम नहीं रहता है. कई बार हम मां के फोन कॉल को इग्नोर मार देते हैं. कई बार हम मां को फोन लगना ही भूल जाते हैं, यह जानते हुए कि उसकी दुनिया हम ही हैं.
एक औरत जब मां बन जाती है तो उसकी सारी खुशी उसका सारा दुख बच्चे से जुड़ जाता है. बच्चा खुश तो मां खुश, बच्चा दुखी तो मां रोने लग जाती है. वह कहीं भी रहे उसके दिल में बेटा-बेटी की चिंता लगी रहती है, तभी तो फोन करते ही सबसे पहले पूछती है खाना खा लिए? उसके लिए दुनिया का हर काम एक तरफ और बच्चे को खाना खिलाना एक तरफ. तभी मौका मिलते है लग जाती है बच्चों की पसंद का पकवान बनाने...
सोचिए जिस मां से हमारा अस्तित्व है हम उसको लिए क्या करते हैं? मां के लिए व्रत नहीं बना मगर अगर बना होता तो भी क्या संतानें उस व्रत को करते? बदलते समय के साथ जागरुक पति लोग तो तीज और करवाचौथ का व्रत रखने लगे हैं, पत्नी की सहायता करने लगे हैं मगर मां के मामले में वे लापरवाह हो जाते हैं?
क्या वे व्रत वाले दिन मां की मदद कराते है? हमारी जानकारी में तो किसी संतान ने मां के लिए व्रत नहीं किया. मदद कराना तो छोड़ दीजिए कई बच्चों तो व्रत वाले दिन मां को फोन तक नहीं करते, उन्हें याद ही नहीं रहता. उन्हें लगता है कि वह मां है हमारे लिए व्रत रखना, पूजा करना उसका फर्ज है. वे यह नहीं सोचते हैं कि वे मां के लिए क्या कर रहे हैं? हम यह नहीं कह रहे हैं कि हमें जीवित्पुत्रिका व्रत से परेशानी है या फिर हम हिंदू धर्म के त्योहार के खिलाफ हैं, मगर यह बात जेहन में आ गई थी.
खैर, हम भले ही मां के लिए व्रत ना रखें मगर कम से कम उन्हें इज्जत तो दे ही सकते हैं. उन्हें अपना समय तो दे ही सकते हैं. वैसे भी मां कभी नहीं चाहेगी कि उसका बच्चा उसके लिए व्रत रखकर भूखा रहे...तो अब फैसला आपने हांथ में है कि मां के साथ किस तरह का व्यवहार करना है...बाकी मां तो मां है. आप उसके लिए कुछ नहीं करेंहे तो भी वह आपसे शिकायत कभी भी नहीं करेगी...
इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.