पहाड़ दो हजार बारह में ही एक बड़ी विपदा झेल चुका था. मिश्रा आयोग की रिपोर्ट पहले ही यह बता चुकी थी की जोशीमठ ग्लेशियर से लाई गई मिट्टी यानी मोरेन पर बसा है जो बेहद ही संवेदनशील है. इसके बाद भी चारधाम परियोजना की योजना में जोशीमठ को बेहतर पर्यटन स्थल बनाने के लिए फर्राटा मारती गाड़ियों को दौड़ाने के लिए चमचमाती सड़क बनाने के लिए छेड़ना शुरू किया गया.
नतीजा यह हुआ की पिछले कुछ दिनों से जोशीमठ दरार ली हुई भयावाह तस्वीरों के साथ सुर्खियों में हैं. आर्थिक लाभ के लिए 20-25 हजार लोगों की जिंदगी एक झटके में भंवर में उलझा दी गयी है.जोशीमठ के ये लोग सहमे हुए हैं. उन्हें अपने प्यारे घरों को छोड़कर टेंटों में शरण लेना पड़ रहा है.
वे कहां रहेंगे यह अलग विषय है. सरकार उनके पुनर्वास की कैसी व्यवस्था करेगी यह और प्रश्न है. लेकिन मूल सवाल है घर, अपना घर छोड़ने का. घर कोई साधारण जगह नहीं होती. कई सालों यहां तक की कभी-कभार पूरा जीवन लगाकर एक व्यक्ति अपना घर बनाता है. चलिए मान लिए इसकी भरपाई हो सकती है, लेकिन उन यादों की भरपाई कैसे सम्भव होगी जो घर से जुड़ी होती है. कई खट्टे-मीठे अनुभव, दुःख और सुख को हम अपने घरों में बिताते है. वे दीवारें, उसमें गड़ी खूटियां, घर के कोने, उभरे ईंटों, दरवाजों तक की एक याद बन जाती है. हम इनसे इमोशनली जुड़ जाते हैं. एक पल बचपन, बीती जवानी और बुढापा कटने की उम्मीद बना अपना घर एक झटके में छोड़ जाना बहुत आसान नहीं है.
आर्थिक लाभ की हवस नें एक पूरे समुदाय को खतरे में डाल दिया है. प्रकृति से छेड़छाड़ का नतीजा जीवन के जोखिम के रूप में सामने है. उस पिकनिक या पर्यटन स्थल के विकास के क्या मायने है जो मानव जीवन की कीमत पर हो. क्या जब हमारे पास पूर्वानुमान के इतने साधन थे. कई आपदाओं के उदाहरण थे.
मिश्रा आयोग की रिपोर्ट थी तब भी हमें जोशीमठ से...
पहाड़ दो हजार बारह में ही एक बड़ी विपदा झेल चुका था. मिश्रा आयोग की रिपोर्ट पहले ही यह बता चुकी थी की जोशीमठ ग्लेशियर से लाई गई मिट्टी यानी मोरेन पर बसा है जो बेहद ही संवेदनशील है. इसके बाद भी चारधाम परियोजना की योजना में जोशीमठ को बेहतर पर्यटन स्थल बनाने के लिए फर्राटा मारती गाड़ियों को दौड़ाने के लिए चमचमाती सड़क बनाने के लिए छेड़ना शुरू किया गया.
नतीजा यह हुआ की पिछले कुछ दिनों से जोशीमठ दरार ली हुई भयावाह तस्वीरों के साथ सुर्खियों में हैं. आर्थिक लाभ के लिए 20-25 हजार लोगों की जिंदगी एक झटके में भंवर में उलझा दी गयी है.जोशीमठ के ये लोग सहमे हुए हैं. उन्हें अपने प्यारे घरों को छोड़कर टेंटों में शरण लेना पड़ रहा है.
वे कहां रहेंगे यह अलग विषय है. सरकार उनके पुनर्वास की कैसी व्यवस्था करेगी यह और प्रश्न है. लेकिन मूल सवाल है घर, अपना घर छोड़ने का. घर कोई साधारण जगह नहीं होती. कई सालों यहां तक की कभी-कभार पूरा जीवन लगाकर एक व्यक्ति अपना घर बनाता है. चलिए मान लिए इसकी भरपाई हो सकती है, लेकिन उन यादों की भरपाई कैसे सम्भव होगी जो घर से जुड़ी होती है. कई खट्टे-मीठे अनुभव, दुःख और सुख को हम अपने घरों में बिताते है. वे दीवारें, उसमें गड़ी खूटियां, घर के कोने, उभरे ईंटों, दरवाजों तक की एक याद बन जाती है. हम इनसे इमोशनली जुड़ जाते हैं. एक पल बचपन, बीती जवानी और बुढापा कटने की उम्मीद बना अपना घर एक झटके में छोड़ जाना बहुत आसान नहीं है.
आर्थिक लाभ की हवस नें एक पूरे समुदाय को खतरे में डाल दिया है. प्रकृति से छेड़छाड़ का नतीजा जीवन के जोखिम के रूप में सामने है. उस पिकनिक या पर्यटन स्थल के विकास के क्या मायने है जो मानव जीवन की कीमत पर हो. क्या जब हमारे पास पूर्वानुमान के इतने साधन थे. कई आपदाओं के उदाहरण थे.
मिश्रा आयोग की रिपोर्ट थी तब भी हमें जोशीमठ से छेड़छाड़ करना था. क्या यह घोर लापरवाही नहीं है. उस विकास और आर्थिक लाभ के क्या मायने जो जिंदगियों को ही खतरे में ही डाल दे. सरकारों को इस पर फिर सोचना चाहिए. उम्मीद और दुआएं की जोशीमठ के लोगों के लिए कोई बेहतर रास्ता निकले.
इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.