मां- 'जुलियाना अगर तुम फिर से बीमार हुई तो अस्पताल जाना चाहोगी या घर पर ही रहना पसंद करोगी?
जुलियाना- नहीं, मुझे अस्पताल अच्छा नहीं लगता...मुझे नफरत है वहां जाने से.
मां- ठीक है, तो अगर तुम अगली बार बीमार हुई तो घर पर रहना चाहोगी. लेकिन क्या तुम्हें पता है इसका मतलब ये हुआ कि तुम्हें स्वर्ग जाना पड़ सकता है.
जुलियाना- हां..
मां- और इसका मतलब ये भी हुआ कि तुम्हें वहां स्वर्ग में खुद जाना होगा....आपकी मम्मी वहां बाद में पहुंचेंगी..
जुलियाना- लेकिन मैं वहां अकेली तो नहीं रहूंगी ना?
मां- हां, तुम अकेली नहीं होगी वहां...
जुलियाना- कुछ लोग बहुत जल्दी स्वर्ग चले जाते हैं क्या?
मां- हां, लेकिन हम सब में से किसी को पता नहीं होता कि वहां जाना कब है. कभी-कभी छोटे बच्चे भी चले जाते हैं तो कभी बुढ़े लोग भी...
जुलियाना- क्या एलेक्स भी (6 साल का छोटा भाई) मेरे साथ स्वर्ग जाएगा....
मां- शायद अभी नहीं, कई बार लोग एक साथ स्वर्ग जाते हैं लेकिन ज्यादातर बार उन्हें अकेले ही वहां जाना होता है..क्या तुम्हें डर लग रहा है?
जुलियाना- नहीं, स्वर्ग तो अच्छा होता है. लेकिन मुझे मरना नहीं है...
फिल्मी स्क्रिप्ट नहीं, सच है! पांच साल की बेटी के साथ ये एक मां का संवाद है. उस बेटी के साथ जो अब इस दुनिया में नहीं है. वॉशिंगटन की जुलियाना को गंभीर बीमारी थी...'चार्कोट मैरी टूथ'. जिंदगी के सारे रास्ते बंद. डॉक्टरों ने भी हाथ खड़े कर दिए थे. अब मां क्या करती? अपनी मासूम सी परी जैसी बेटी को इस छोटी सी उम्र में मौत और जिंदगी का फर्क समझाने लगी.
समझाने लगी कि वह अब कहां जाने वाली है. वहां क्या होगा, ये दिलासा देते हुए कि वहां उसे अस्पताल नहीं जाना होगा और उसकी प्यारी मम्मी...
मां- 'जुलियाना अगर तुम फिर से बीमार हुई तो अस्पताल जाना चाहोगी या घर पर ही रहना पसंद करोगी?
जुलियाना- नहीं, मुझे अस्पताल अच्छा नहीं लगता...मुझे नफरत है वहां जाने से.
मां- ठीक है, तो अगर तुम अगली बार बीमार हुई तो घर पर रहना चाहोगी. लेकिन क्या तुम्हें पता है इसका मतलब ये हुआ कि तुम्हें स्वर्ग जाना पड़ सकता है.
जुलियाना- हां..
मां- और इसका मतलब ये भी हुआ कि तुम्हें वहां स्वर्ग में खुद जाना होगा....आपकी मम्मी वहां बाद में पहुंचेंगी..
जुलियाना- लेकिन मैं वहां अकेली तो नहीं रहूंगी ना?
मां- हां, तुम अकेली नहीं होगी वहां...
जुलियाना- कुछ लोग बहुत जल्दी स्वर्ग चले जाते हैं क्या?
मां- हां, लेकिन हम सब में से किसी को पता नहीं होता कि वहां जाना कब है. कभी-कभी छोटे बच्चे भी चले जाते हैं तो कभी बुढ़े लोग भी...
जुलियाना- क्या एलेक्स भी (6 साल का छोटा भाई) मेरे साथ स्वर्ग जाएगा....
मां- शायद अभी नहीं, कई बार लोग एक साथ स्वर्ग जाते हैं लेकिन ज्यादातर बार उन्हें अकेले ही वहां जाना होता है..क्या तुम्हें डर लग रहा है?
जुलियाना- नहीं, स्वर्ग तो अच्छा होता है. लेकिन मुझे मरना नहीं है...
फिल्मी स्क्रिप्ट नहीं, सच है! पांच साल की बेटी के साथ ये एक मां का संवाद है. उस बेटी के साथ जो अब इस दुनिया में नहीं है. वॉशिंगटन की जुलियाना को गंभीर बीमारी थी...'चार्कोट मैरी टूथ'. जिंदगी के सारे रास्ते बंद. डॉक्टरों ने भी हाथ खड़े कर दिए थे. अब मां क्या करती? अपनी मासूम सी परी जैसी बेटी को इस छोटी सी उम्र में मौत और जिंदगी का फर्क समझाने लगी.
समझाने लगी कि वह अब कहां जाने वाली है. वहां क्या होगा, ये दिलासा देते हुए कि वहां उसे अस्पताल नहीं जाना होगा और उसकी प्यारी मम्मी उसे वहां दोबारा मिलगी. बाद में एलेक्स भी आएगा... जुलियाना को चार्कोट मैरी टूथ नाम की बीमारी थी. तंत्रिका कोशिका संबंधी ये बीमारी हाथों और पैरों की मांसपेशियों पर सबसे ज्यादा असर डालता है. धीरे-धीरे ये पूरे शरीर में फैलता है और मांसपेशियों को कमजोर कर देता है. अक्सर शुरुआत में डॉक्टर इस बीमारी को पकड़ पाने में असफल होते हैं और जब तक कुछ समझ में आता है, बहुत देर हो चुकी होती है.
जुलियाना की एक तस्वीर (साभार- फेसबुक) |
जुलियाना के मामले में ये था कि संक्रमण उसे दांत के मंसूड़ो से होता हुआ उसके खाने और श्वांस लेने की नली तक में पहुंच गया था. यहां तक कि फेफड़े तक में संक्रमण था और उसमें बलगम भर गया था. इस वजह से उसे निमोनिया भी हो गया. डॉक्टरों के पास एक ही तरीका था, जो कई बार जुलियाना पर आजमाया भी गया. लेकिन यह तरीका बेहद तकलीफ देने वाला है. इसमें डॉक्टर नाक से होते हुए उसके गले के रास्ते एक ट्यूब फेफड़ो में उतारते हैं और उसी ट्यूब की मदद से उस खतरनाक बलगम को बाहर निकाला जाता है.
जुलियाना इतनी कमजोर हो चली थी कि उसे बेहोश भी नहीं किया जा सकता था और उसने जब भी इलाज कराया, उस दर्द को झेला.
हालत खराब होती गई, और बाद में आलम ये हुआ कि जुलियाना ठीक से सांस भी नहीं ले सकती थी. डॉक्टरों ने मुंह पर मास्क लगा दिया ताकि ऑक्सिजन उसके फेफड़ो तक पहुंच सके. उसके पेट में नली के जरिए खाना पहुंचाया जाताा था.
अमेरिकी अखबार, वाशिंगटन पोस्ट के मुताबिक ऑक्टूबर-2014 में डॉक्टरों ने जुलियाना की बीमारी के बारे में उसके माता-पिता से बहुत विस्तार में बात की. बताया कि जुलियाना की हालत लगातार खराब हो रही है. अगली बार अगर वो बीमार होती है, उसे निमोनिया होता है तो उसकी मौत भी हो सकती है. अगर डॉक्टर बचा लेते हैं तो भी उसकी जिंदगी पहले से और बदतर ही होगी. मतलब, इलाज असंभव है.
जाहिर है फैसला, मां-बाप को लेना था. अखबार के अनुसार उस समय जुलियाना के माता-पिता ने कहा कि जरूरत पड़ने पर वे दोबारा अस्पताल आएंगे. लेकिन फिर बाद में उन्होंने जुलियाना से इस बारे में बात करने का फैसला किया. इस घटना के कुछ महीनों बाद, पिछले साल जुलियाना की मां ने एक वेबसाइट पर ब्लॉग लिखा और बताया कि उसकी बेटी अब अस्पताल नहीं जाना चाहती. फिर सोशल मीडिया, अखबारों और टीवी पर खूब बहस हुई.
कई लोगों ने कहा कि एक पांच साल की बच्ची भला कोई फैसला कैसे ले सकती है. क्या जुलियाना के माता-पिता जो कर रहे हैं, वो जायज है? बहस होती रही और समय निकलता गया.
लेकिन मौत तो समय का पाबंद है. उसे आना था और वो आया. 14 जून को जुलियाना इस दुनिया को छोड़ कर चली गई. मां मिशेल मून ने एक और ब्लॉग लिखा....मेरी प्यारी जुलियाना आज स्वर्ग चली गई. मैं स्तब्ध हूं, टूट गई हूं लेकिन शुक्रगुजार भी हूं. मुझे लगता है कि मैं दुनिया की सबसे भाग्यशाली मां हूं. भगवान ने मुझे सबसे अच्छी बच्ची दी और हम दोनों ने छह साल साथ गुजारे. हां...मैं उसके साथ और समय बिताना चाहती थी और इसलिए अब उदास हूं. लेकिन ठीक है, कम से कम अब वो आजाद है. पूरा ब्लॉग यहां पढ़ें-
जुलियाना के माता-पिता का फैसला और बहस..
वाकई, ये विवाद तो है कि जुलियाना के मां-बाप को क्या करना चाहिए था. क्या उन्हें और कोशिश करनी चाहिए थी या जो उन्होंने किया, वही ठीक था? चमत्कार तो इसी दुनिया में होते हैं. कई उदाहरण मिल जाएंगे लेकिन ये भी सच है कि वे हमेशा नहीं होते.
जुलियाना के लिए क्या बेहतर होता...अपने घर, अपने परिवार के बीच रहते हुए स्वर्ग जाना या अस्पताल में बड़े-बड़े मशीनों के साथ मौत और जिंदगी के बीच की जोर आजमाइश. वैसे भी, पांच साल की उम्र ही क्या होती है और जब इस दुनिया में इच्छामृत्यु की बहस ही अभी अधूरी है तो क्या जुलियाना के लिए और कोशिशें होनी चाहिए थीं?
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