सुदूर अफगानिस्तान में तालिबान की गुंडई अब किसी परिचय की मोहताज नहीं रह गई है. इस्लामिक कट्टरपंथ की आड़ लेकर जिस तरह तालिबान ने राष्ट्रपति अशरफ़ गनी को सत्ता से बदेखल किया और जिस तरह मुल्क छोड़ने पर विवश किया दुनिया ने देख लिया है. हुकूमत ए मुहम्मदी की तर्ज पर अपना शासन स्थापित कर रहे तालिबान पर दुनिया की नजर है. ऐसा हो भी क्यों न? इसके लिए खुद तालिबान ने दुनिया को विवश किया है. बात वजहों की हो तो इसके पीछे की सबसे बड़ी वजह है मौजूदा तालिबान को अपने को 20 साल पहले वाले तालिबान से लिबरल और हक़ परस्त दिखाना और मामले में मजेदार ये कि ये बातें भी एक प्रोपोगेंडा से ज्यादा और कुछ नहीं हैं. ये प्रोपोगेंडा कैसा है यदि इसे समझना या गहनता के साथ इसका अवलोकन करना हो तो उन तस्वीरों को देख सकते हैं जो तालिबान शासित अफगानिस्तान के विश्वविद्यालयों से आई हैं जिनमें क्लास रूप के अंदर लड़के औरएवं लड़कियां पढ़ाई कर रही हैं और उन दोनों के बीच पर्दा पड़ा हुआ है. ध्यान रहे ये वही पर्दा है जो कट्टरपंथ का चोला ओढ़े तालिबान के ज़हनों पर है और अब जिसे वो जबरदस्ती सब पर थोप रहे हैं.
इंटरनेट पर जंगल में फैली किसी आग की तरह वायरल हो रही इस तस्वीर ने लोगों को भले ही डिबेट में पड़ने या संवाद स्थापित करने का मौका दे दिया हो लेकिन सच्चाई क्या है वो शायद ही किसी से छिपी हो. अंतर्राष्ट्रीय राजनीति को समझने और उसपर अपनी मजबूत टिप्पणी करने वाले ऐसे तमाम राजनीतिक विश्लेषक हैं जो इस बात को लेकर एकमत हैं कि तालिबान द्वारा अफगानिस्तान की सत्ता पर कब्जा न केवल राजनीतिक दृष्टि से मुल्क को कई दशक पीछे करेगा. बल्कि इससे एक मुल्क के रूप में अफगानिस्तान की संस्कृति भी प्रभावित...
सुदूर अफगानिस्तान में तालिबान की गुंडई अब किसी परिचय की मोहताज नहीं रह गई है. इस्लामिक कट्टरपंथ की आड़ लेकर जिस तरह तालिबान ने राष्ट्रपति अशरफ़ गनी को सत्ता से बदेखल किया और जिस तरह मुल्क छोड़ने पर विवश किया दुनिया ने देख लिया है. हुकूमत ए मुहम्मदी की तर्ज पर अपना शासन स्थापित कर रहे तालिबान पर दुनिया की नजर है. ऐसा हो भी क्यों न? इसके लिए खुद तालिबान ने दुनिया को विवश किया है. बात वजहों की हो तो इसके पीछे की सबसे बड़ी वजह है मौजूदा तालिबान को अपने को 20 साल पहले वाले तालिबान से लिबरल और हक़ परस्त दिखाना और मामले में मजेदार ये कि ये बातें भी एक प्रोपोगेंडा से ज्यादा और कुछ नहीं हैं. ये प्रोपोगेंडा कैसा है यदि इसे समझना या गहनता के साथ इसका अवलोकन करना हो तो उन तस्वीरों को देख सकते हैं जो तालिबान शासित अफगानिस्तान के विश्वविद्यालयों से आई हैं जिनमें क्लास रूप के अंदर लड़के औरएवं लड़कियां पढ़ाई कर रही हैं और उन दोनों के बीच पर्दा पड़ा हुआ है. ध्यान रहे ये वही पर्दा है जो कट्टरपंथ का चोला ओढ़े तालिबान के ज़हनों पर है और अब जिसे वो जबरदस्ती सब पर थोप रहे हैं.
इंटरनेट पर जंगल में फैली किसी आग की तरह वायरल हो रही इस तस्वीर ने लोगों को भले ही डिबेट में पड़ने या संवाद स्थापित करने का मौका दे दिया हो लेकिन सच्चाई क्या है वो शायद ही किसी से छिपी हो. अंतर्राष्ट्रीय राजनीति को समझने और उसपर अपनी मजबूत टिप्पणी करने वाले ऐसे तमाम राजनीतिक विश्लेषक हैं जो इस बात को लेकर एकमत हैं कि तालिबान द्वारा अफगानिस्तान की सत्ता पर कब्जा न केवल राजनीतिक दृष्टि से मुल्क को कई दशक पीछे करेगा. बल्कि इससे एक मुल्क के रूप में अफगानिस्तान की संस्कृति भी प्रभावित होगी.
जैसा कि हम ऊपर इस बात को बहुत साफ लहजे में बता चुके हैं कि यूनिवर्सिटी का ये फोटो सिर्फ प्रोपोगेंडा है तो इसे हम यूं ही नहीं कह रहे. इस कथन को स्थापित करने के लिए हमारे पास माकूल वजहें हैं. जिन्हें समझने के लिए हमें बीते दिनों की कुछ घटनाओं का अवलोकन करना होगा.
अभी बीते दिनों ही खबर आई थी कि अफगानिस्तान से निकासी के लिए अफगानी महिलाओं की जबरन शादी करवाई जा रही है. महिलाओं को मुल्क से बाहर निकाला जा सके इसके लिए काबुल एयरपोर्ट पर उनकी जबरन शादी करवाई जा रही है.
माना यही जा रहा है कि ऐसा करके अफगानी महिलाएं आसानी से और सुरक्षित तरीके से यूएस पहुंच जाएंगी. ये जानकारी यूं ही हवाहवाई नहीं है. संयुक्त अरब अमीरात में स्थित निकासी केंद्रों में से एक में यह पता चला कि अफगान महिलाओं के कुछ परिवारों ने तालिबान से बचने के लिए उन्हें शादी करने के लिए मजबूर किया था.
स्थिति कितनी और किस हद तक जटिल है इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि कई महिलाओं के परिजनों ने अपनी लड़कियों से शादी करने के लिए पुरुषों को पैसे भी दिए थे. ये सब इसलिए हुआ था ताकि ये युवक इनकी मदद करें जिससे इन पीड़ित महिलाओं को आसानी से अफगानिस्तान से निकाला जा सके.
हो सकता है पढ़ने या समझने की दृष्टि से ये बात हमें और आपको एक बहुत हल्की या ये कहें कि सामान्य बात लगे मगर क्या वास्तविकता इतनी ही सिंपल है? क्या अफगानी महिलाओं की ज़िंदगी बहुत आसान है? इन सवालों का सीधा जवाब है नहीं. कभी मौका मिले तो पूछिये किसी अफगानी महिला से कि क्या वो बेखौफ होकर अफगानिस्तान में टहल घूम सकती है? यात्रा कर सकती है?
ये सवाल गर जो मुश्किल लगें तो पूछिये उससे कि क्या है उसमें इतनी हिम्मत कि वो आज़ाद ख्याली का परिचय देते हुए, मानवाधिकारों की बात करते हुए अपनी पसंद के कपड़े धारण कर ले ? ऐसे सवालों पर जो जवाब आपको मिलेगा यकीनन वो आपकी कल्पना से परे होगा.
अफगानिस्तान के तमाम शहरों में में जहां जहां भी महिलाओं से जुड़ी कोई भी चीज थी. चाहे वो विज्ञापन ही क्यों न हों उन्हें हटा दिया गया है या फिर उन्हें पेंट कर दिया गया है. वो तालिबान जो आज यूनिवर्सिटी की फ़ोटो दिखा रहा है. वो न कभी लिबरल था न कभी होगा. कट्टरता उसकी नस नस में है जो शायद ही कभी जाए.
ये तो बात हो गयी महिलाओं की जिक्र अगर पुरुषों का हो तो उनकी भी जिंदगी कोई बहुत अच्छी नहीं है. तमाम शहरों में गोली का भय दिखाकर आम अफगानी युवा को लिखाई पढ़ाई याब दूर किया जा रहा है और उसके हाथों में बंदूक थमाई जा रही है. जो तालिबम की बातों को मान गया उसका जीवन तो सेट है लेकिन वो तमाम लोग जो तालिबान की इन गतिविधियों का विरोध कर रहे हैं उनकी ज़िंदगी मौत से कहीं ज्यादा बदतर है.
आज एक देश के रूप में अफगानिस्तान जिन चुनौतियीं का सामना कर रहा है वो कई मायनों में खौफनाक है. मुल्क का कोई भी शहर हो जगह जगह प्रदर्शन हो रहे हैं और मांग यही की जा रही है कि लोगों को खुलकर जीने का अधिकार मिले. बात अधिकारों की चल रही है तो इतना जान लीजिये कि अफगानिस्तान में मीडिया भी मजबूर है और बुर्के में तालिबानी आतंकियों के इंटरव्यू के लिए विवश है.
अंत में हम फिर अपनी बातों को दोहरा देना चाहेंगे कि भले ही तालिबान विश्व विद्यालओं में पर्दे लगवाए या फिर उन बच्चों को सम्मानित करे जो परीक्षाओं में अच्छे नंबर लाए हैं. मगर हकीकत बस यही है कि ये एक ऐसा खतरनाक आतंकी संगठन है जिसकी नसों में कट्टरपंथ फैला है और जिससे मानवता को खतरा है.
अब वो वक़्त आ गया है जब दुनिया को तालिबान की इस मक्कारी को भली भांति समझ लेना चाहिए और इसका हर तरीके से विरोध करना चाहिए.
ये भी पढ़ें -
काबुल एयरपोर्ट पर लड़कियों की जबरन शादी, मतलब तालिबान से बचने के लिए सब जायज
बहुसंख्यक हिंदू आबादी को तालिबानी सोच वाला बताने से मुस्लिमों की हालत नहीं सुधरेगी
अफगानिस्तान में बुर्के का दाम छू रहा आसमान, जींस पहनने पर बंदूक की नोक से पिटाई कर रहे तालिबानी
इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.