तमिलनाडु के कल्लाकुरिची (Kallakurichi, Tamil Nadu) में स्कूली छात्रा ने सुसाइड (Suicide) कर लिया. वह 12वीं कक्षा में थी. वह दिखने में सुंदर थी. उसके चहेरे पर तेज था. हमने जब उसकी तस्वीर देखी तो देखते ही रह गए. हैरानी इस बात से हो रही है कि इस नन्हीं सी लड़की के साथ ऐसा क्या हुआ कि 13 जुलाई को उसने जिंदगी को छोड़कर मौत को चुना.
वह हॉस्टल, जहां तीसरी मंजिल के कमरे में वह रहती थी. उसने कमरे की खिड़की से बाहर आसमान को तकते हुए ना जाने कितने सपने देखे होंगे. अपनी सहेलियों के साथ हंसी-ठिठोली की होगी. उसी हॉस्टल की सबसे ऊपरी मंजिल से वह कूद गई.
सोचकर मन बैचेन हो जाता है कि जिसे ऊंची उड़ान भरनी थी, उसने छत से छलांग उड़ने के लिए नहीं, मरने के लिए लगाई. वह अपने गांव पेरिवानासालुर से चिन्नासलेम के प्राइवेट स्कूल में पढ़ने आई थी, वह अपने माता-पिता से दूर इसलिए तो रह रही थी ताकि उनका सपना पूरा कर सके.
एक स्कूल की लड़की के लिए अपने परिवार से दूर जाकर रहना क्या होता है? यह मैं समझती हूं. घर की याद, पापा का दुलार, मां की गोद, भाई-बहनो की नोंक-झोक और दादा-दादी का प्यार, उसे इन सबकी कमी खलती होगी लेकिन फोन पर उसने किसी को यह जाहिर भी नहीं होने दिया होगा.
छात्रा शायद सोचती होगी एक दिन वह कुछ ऐसा करेगी की परिवार वाले उस पर नाज करेंगे. वह अपने रास्ते पर चल भी रही थी लेकिन इंसान रूपी राक्षसों से उसका पाला पड़ गया. कहने को तो वे उसके शिक्षक थे लेकिन उन्होंने उसके मन पर इतने घाव दिए कि वह सहन नहीं कर पाई.
शुरुआती जांच में पता चला है कि केमिस्ट्री की टीचर हरिप्रिया और गणित की टीचर कृतिका छात्रा को प्रताड़ित कर रही थीं. उसने...
तमिलनाडु के कल्लाकुरिची (Kallakurichi, Tamil Nadu) में स्कूली छात्रा ने सुसाइड (Suicide) कर लिया. वह 12वीं कक्षा में थी. वह दिखने में सुंदर थी. उसके चहेरे पर तेज था. हमने जब उसकी तस्वीर देखी तो देखते ही रह गए. हैरानी इस बात से हो रही है कि इस नन्हीं सी लड़की के साथ ऐसा क्या हुआ कि 13 जुलाई को उसने जिंदगी को छोड़कर मौत को चुना.
वह हॉस्टल, जहां तीसरी मंजिल के कमरे में वह रहती थी. उसने कमरे की खिड़की से बाहर आसमान को तकते हुए ना जाने कितने सपने देखे होंगे. अपनी सहेलियों के साथ हंसी-ठिठोली की होगी. उसी हॉस्टल की सबसे ऊपरी मंजिल से वह कूद गई.
सोचकर मन बैचेन हो जाता है कि जिसे ऊंची उड़ान भरनी थी, उसने छत से छलांग उड़ने के लिए नहीं, मरने के लिए लगाई. वह अपने गांव पेरिवानासालुर से चिन्नासलेम के प्राइवेट स्कूल में पढ़ने आई थी, वह अपने माता-पिता से दूर इसलिए तो रह रही थी ताकि उनका सपना पूरा कर सके.
एक स्कूल की लड़की के लिए अपने परिवार से दूर जाकर रहना क्या होता है? यह मैं समझती हूं. घर की याद, पापा का दुलार, मां की गोद, भाई-बहनो की नोंक-झोक और दादा-दादी का प्यार, उसे इन सबकी कमी खलती होगी लेकिन फोन पर उसने किसी को यह जाहिर भी नहीं होने दिया होगा.
छात्रा शायद सोचती होगी एक दिन वह कुछ ऐसा करेगी की परिवार वाले उस पर नाज करेंगे. वह अपने रास्ते पर चल भी रही थी लेकिन इंसान रूपी राक्षसों से उसका पाला पड़ गया. कहने को तो वे उसके शिक्षक थे लेकिन उन्होंने उसके मन पर इतने घाव दिए कि वह सहन नहीं कर पाई.
शुरुआती जांच में पता चला है कि केमिस्ट्री की टीचर हरिप्रिया और गणित की टीचर कृतिका छात्रा को प्रताड़ित कर रही थीं. उसने कथित तौर पर सुसाइड नोट में इस बात का जिक्र किया है कि, उसे हर वक्त पढ़ने के लिए मजबूर किया जाता था. टीचर इस बहाने उसे टॉर्चर करती थीं. वे छात्रा को डांटती रहती थीं.
वहीं पोस्टमार्टम रिपोर्ट में छात्रा के शरीर पर कई चोट और बल्ड के निशान भी मिले हैं. इस बात की जानकारी जब लड़की के परिवार वाले, रिश्तेदार और गांव वालों को हुई तो वे प्रदर्शन करने लगे. प्रदर्शनकारियों ने 17 जुलाई को स्कूल में जमकर तोड़-फोड़ की और बसों में आग लगा दी. उनका कहना है कि जल्द से जल्द दोषियों को सजा दी जाए.
इसके बाद पुलिस ने भी प्रदर्शनकारियोंलाठी चार्ज किया और कई इलाकों में धारा 144 लागू कर दी. प्रदर्शनकारियों का मानना है कि स्कूल प्रबंधन ने लापरवाही की है. वे मामले की जांच के लिए सीबी-सीआईडी की मांग कर रहे हैं.
हालांकि बेटी को खोने वाली मां लोगों से अपील कर रही थीं कि वे शांति से काम लें, हिसां न करें. वहीं तमिलनाडु के डीजीपी सी सिलेंद्र बाबू ने का कहना था कि छात्रा की मौत प्राकृतिक कारणों से हुई है. जिसके बाद छात्रा के माता-पिता ने दोबारा पोस्टमार्टम के लिए हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया था. इस पर कोर्ट ने छात्रा के शव का दूसरी बार पोस्टमार्टम करने का आदेश दे दिया है.
कोर्ट का कहना है कि इस पूरी प्रक्रिया के दौरान लड़की के पिता वहां पर मौजूद रहेंगे. सोचिए इस पिता पर क्या बीत रही होगी, जिसे अपनी बेटी को न्यान दिलाने के लिए पोस्टमार्टम के समय उसके शव को कटटे-पिटते देखना पड़ेगा. जो पिता अपनी बेटी को उदास नहीं देख पाता था, जिसके आंसू देख वह घबरा जाता था, आज उसे कैसे दिन देखने पड़ रहे हैं.
आरोपी टीचर ने कहा वह बहुत चंचल थी
आरोपी टीचर्स ने अपने बचाव में कहा है कि हम तो बस उसे लापरवाही न करने और ध्यान केंद्रित करने को कहते थे. हम उसे कड़ी मेहनत करने के लिए कहते थे. वह स्वभाव की बहुत चंचल थी. क्या चंचल होना जुर्म है? पता नहीं किस तरह ते शिक्षकों ने उसके साथ व्यवहार किया कि उसने अपनी जान देनी की सोची. यह सिर्फ एक दिन या एक समय की कहानी नहीं है. हो न हो उसे जरूर मेंटल टॉर्चर से गुजराना पड़ा होगा. हसमुख होना, चंचल होना कबसे अपराध की श्रेणी में आने लगा, आखिर किस बात के लिए छात्रा को इतनी यातना दी गई...?
डीएमके सरकार पर लगे आरोप
भाजपा और अन्नाद्रमुक ने हिंसा के लिए राज्य सरकार को जिम्मेदार बताया है. उनका कहना है कि द्रमुक शासन अयोग्य है. वहीं पूर्व मुख्यमंत्री के. पलानीस्वामी ने पुलिस, राज्य सरकार और जिला प्रशासन पर लापरवाही बरतने और समय पर सही कदम ना उठाने का आरोप लगाया है. उनका कहना है कि "इसके लिए मुख्यमंत्री स्टालिन पूरी तरह से जिम्मेदार हैं. अगर सरकार ने स्कूल के खिलाफ तुरंत कार्रवाई की होती तो स्थिति हाथ से बाहर नहीं जाती."
कहीं मामला कुछ और तो नहीं?
फिलहाल सभी को दूसरे पोस्ट माटर्म रिपोर्ट का इंतजार है. आरोपी शिक्षकों को गिरफ्तार कर लिया गया है. वहीं हिंसा को रोकने के लिए 500 से अधिक पुलिस फोर्स को तैनात किया गया है. जितनी बातें अभी तक सामने आई हैं, वे अधूरी हैं. हो सकता है कि यह मामला जितना दिख रहा है, उससे अधिक का हो.
यह बात हजम नहीं हो रही है कि टीचर स्कूली छात्रा को ध्यान से पढ़ने के लिए बोलें और वह खुद को खत्म कर ले. जिस तरह उसके शरीर पर खून के दाग और चोटें मिली हैं...हो सकता है कि इस घटना के पीछे कोई और बात हो, क्योंकि तन के घाव तो रिपोर्ट में पता चल जाएगी लेकिन मन के घावों के तो कोई निशान नहीं होते. इसलिए लड़की की मानसिक हालत के बारे में पता लगाना जरूरी है, तभी पूरा सच बाहर आ पाएगा...
कभी-कभी लगता है कि हम जिंदगी की वह परीक्षा दे रहे हैं, जहां हमें हर सवाल का जवाब पता है, लेकिन जवाब देना कैसे है, यह समझ नहीं आता...किसी इंसान के भीतर क्या छिपा है, यह हम समझना ही नहीं चाहते. हर चीज को अपने हिसाब से हम उस पर थोप देते हैं. हम उसकी हर बात को अपने नजरिए के चश्मे से देखने की कोशिश करते हैं, यह जाने बिना कि वह किस हाल में है? छात्रा की मौत से लगा कि लोगों के अंदर सेसेंसिविटी खत्म हो चुकी है, वरना जिस गुरु और शिक्षक के बीच के रिश्ते की दुनिया दुहाई देती है, वह इतना जहरीला कैसे हो सकता है?
इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.